राष्ट्रीय एकात्मता का अनूठा प्रयास

आधारभूत सुविधाओं का अभाव, उद्योंगों के लिए आवश्यक शांति और सुव्यवस्था न होने के कारण यह पिछड़ गया है। इसी कारण यह क्षेत्र अलगाववादियों का केन्द्र रहा है।

लगभग ५० वर्ष पूर्व जब इन नारों सुना तो मन     में प्रश्न उठा कि ये क्या है? और कुछ महाविद्यालयीन युवक ये सब क्या व क्यों कर रहे हैं यह तो बहुत ही कम लोगों को पता था। नारे लगाने वाले उन महाविद्यालयीन युवकों में से ही एक युवक आज नगालैंड के राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं जिनका नाम है पद्मनाभ आचार्य। वे जब राज्यपाल बने तब नगालैंड की जनता ने जो आनंद व्यक्त किया वह इस कल्पना का प्रभाव और परिणाम दोनों को अधोरेखित करता है।

सन १९६५ में पद्मनाभ आचार्य और दिलीप परांजपे संघ प्रचारक के रूप में कार्यरत अपने मित्र अरुण साठे से मिलने असम गए। वहां जाकर उन्होंने वहां की परिस्थिति को देखा। उन लोगों के मन में विचार आया कि पूर्वोत्तर के युवकों में जानकारी का अभाव और उससे उत्पन्न गलतफहमियों को अगर दूर करना है तो उसके लिए उन्हें कुछ ऐसे अच्छे अनुभव होने चाहिए जो वे जीवन भर याद रख सकें। इसी विचार के साथ वापसी के प्रवास के दौरान ‘अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन’ प्रकल्प की योजना बनी। वहां निरंतर प्रवास शुरू हुआ। वहां के अभिभावकों का विश्वास संपादन करने का प्रयास शुरू हुआ। परिणाम यह हुआ कि उस समय के नेफा अर्थात आज के अरुणाचल प्रदेश से शालेय विद्यार्थियों का एक समूह ३१ मई १९६६ को मुंबई आया। समस्त मुंबईवासियों की ओर से तत्कालीन महापौर ने उनका स्वागत किया। उसके बाद ये विद्यार्थी मुंबई के अपने स्थानीय अभिभावकों के घर रहने चले गए। परिवारों में निवास की इस परंपरा को सील प्रकल्प ने आज तक कायम रखा है। अब पूर्वोत्तर से भारत के अन्य राज्यों में आनेवाले या अन्य राज्यों से पूर्वोत्तर में जानेवाले सभी विद्यार्थी परिवारों में ही रहते हैं।

छह देशों की सीमाओं से जुड़ने वाले आठ राज्यों के इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर कहा जाता है। सभी को ज्ञात असम, सबसे अधिक वर्षावाला क्षेत्र चेरापूंजी जिस राज्य में है वह मेघालय, दार्जिलिंग तक पर्यटन संभव होने के कारण जिसके बारे में लोग थोड़ा बहुत जानते हैं ऐसा सिक्किम और बहुत कम जानकारी वाले मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा आदि सभी प्रदेशों को मिलाकर यहां लगभग १६६ विविध जनजातियां दिखाई देती हैं। देश के केवल इस ७ प्रतिशत भूभाग में प्रचुर मात्रा में खनिज संपत्ति, तेल भंडार और नैसर्गिक संपदा भरी पड़ी है। जंगल, बर्फाच्छादित हिमालय, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों की घाटियां, और गिरिकंदराओं से युक्त यह क्षेत्र देश के मुख्य भाग से ‘चिकननेक’ से जुडा है। लगभग ३२ किमी लंबी संकरी पट्टी इसे पश्चिम बंगाल से जोड़ती है। प्राकृतिक संपदा का वरदान प्राप्त यह क्षेत्र हमेशा ही अशांत रहा। आधारभूत सुविधाओं का अभाव, उद्योंगों के लिए आवश्यक शांति और सुव्यवस्था न होने के कारण यह पिछड़ गया है। इसी कारण यह क्षेत्र अलगाववादियों का केन्द्र रहा।

अपने पहले ही प्रवास के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने भविष्य में उत्पन्न होने वाले खतरों को भांप लिया और ‘एक राष्ट्र-एक जन-एक संस्कृति’ को अपना ध्येय वाक्य मानकर सील प्रकल्प की शुरूआत की। इसे अनुभव के आधार पर भावनात्मक एकात्मता का अनुभव देने वाला पहला प्रकल्प कहा जाना चाहिए। संस्कारक्षम आयु में देश की एकता के संदर्भ में दृढ निष्ठा निर्माण करने वाले अनेक अनुभव कई विद्यार्थियों को प्राप्त हुए हैं। शैक्षणिक सुविधाओं के अभाव के कारण पूर्वोत्तर के कई छत्रों ने मुंबई के कई परिवारों में रहकर अपनी शिक्षा पूर्ण की। ऐसे ही कुछ विद्यार्थियों में से एक अरुणाचल के लेकी फुंगत्सो ने वरिष्ठ संगीतकार तथा गायक स्व. सुधीर फडके उर्फ बाबूजी के घर पर रहकर अपनी शिक्षा पूर्ण की। बाबूजी ने उनका नाम दीपक रखा। आज वे अरुणाचल सरकार में बड़े अधिकारी हैं। हाल ही में इम्फाल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुई श्रीमती सुरबाला देवी, अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग और इसी तरह कई अन्य लोग पूर्वोत्तर में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं।

पिछले पचास वर्षों में कई लोगों के समूह पूर्वोत्तर में गए और उन भागों से विद्यार्थी देश के विभिन्न भागों में शिक्षा प्राप्ति हेतु आये। इस प्रकल्प के माध्यम से मणिपुर में नशीले पदार्थों के सेवन की समस्या, त्रिपुरा के चकमा निर्वासितों की समस्या, असम और पश्चिम बंगाल में घुसपैठ की समस्या आदि समस्याओं का भी अध्ययन किया गया। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपालों ने इस प्रकल्प की तारीफ की है।

इस प्रकार के विविध माध्यमों से प्रत्यक्ष रूप से समस्याओं का आंकलन करने के पश्चात उनके परिणामकारक उपाय ढूंढने हेतु सील प्रकल्प के अंतर्गत सन २००० में  ‘युवा विकास केन्द्र’ की स्थापना की गई। विकास प्रक्रिया में आई हुई गति को देखते हुए उसमें स्थानीय युवकों का सहभाग बढ़ाने के उद्देश्य से पिछले ८-१० वर्षों से कई अन्य प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। विद्यालय/महाविद्यालय के पाठ्यक्रम को अधूरा छोड़ने वाले विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें नोकरी तथा व्यवसाय करने योग्य बनाने के लिए विभिन्न अभ्यास वर्ग, प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किए जाते हैं। पूर्वोत्तर की समस्याओं पर चर्चासत्र, कम्प्यूटर का प्रशिक्षण, व्यक्तित्व विकास शिविर, सूचना प्राप्ति के अधिकार संबंधित कार्यशाला आदि विविध कार्यक्रम युवा विकास केन्द्र में होते हैं।

सुवर्ण महोत्सवी वर्ष तक पहुंचते हुए अंतरराज्य जीवन दर्शन प्रकल्प ने कई योजनाएं बनाई हैं। पूर्वोत्तर के प्रति देश में योग्य वातावरण का निर्माण, जानकारी की उपलब्धता, साथ ही अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा सत्रों का आयोजन होगा। सम्पूर्ण देश में लगभग ३००० महाविद्यालयों में और सौ से अधिक शहरों में जनजागृति के कार्यक्रम चलाए जाएंगे। पर्यटन, व्यवसायाभिमुख प्रशिक्षण, दक्षिण पूर्व एशिया की दृष्टि से पूर्वोत्तर का सामरिक महत्व आदि विषयों पर कार्यशालाओं का आयोजन देश के विभिन्न भागों में होगा। अभी तक इस प्रकल्प से जुड़े विद्यार्थी और उनके स्थानीय अभिभावकों का एकत्रीकरण तथा उनके अनुभवों के आधार पर अन्य लोगों का भी प्रबोधन करने का भी संकल्प लिया गया है। नगालैंड से सबसे पहले आई टोली के १४ लोगों में से जीवित बचे ८ लोग हाल ही में राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य से मिले। मुंबई से गई पहली टोली के २४ लोगों में से २१ लोग फिर एक बार पचास सालों के बाद पूर्वोत्तर की यात्रा पर गए।

मुंबई या अन्य राज्यों के परिवारों के साथ बिताए हुए समय की यादें आज भी उन लोगों के मन में तरोताजा हैं और वे अपनी अगली पीढ़ी को भी ये किस्से सुनाते हैं। पूर्वोत्तर के घर के अलावा देश के अन्य राज्य बना घर असम के सुनील बसुमतारी, गीतिका बोरो, अरुणाचल प्रदेश की ताना काया तारा और मणिपुर की इडलीना जोयसिंग जैसे अनेक लोगों का जीवन परिवर्तन करने के लिए जिम्मेदार हैं।

राष्ट्रीय एकात्मता का अनुभव कराने वाले इस प्रकल्प की कल्पना ही इतनी सशक्त और सुदृढ़ है कि उसके आगे अनेक अलगाववादी ताकतों को झुकना पड़ा। पिछले पचास सालों में अनेक लोगों की तपस्या, राष्ट्रीय विचार करने वाले युवकों को पूर्वोत्तर में किसी दीपस्तंभ के रूप में आज भी मार्ग दिखा रही है।

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