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‘ऑर्गनायजर’ के सफल प्रकाशन के 70 वर्ष!

‘ऑर्गनायजर’ के सफल प्रकाशन के 70 वर्ष!

by दत्तात्रेय आंबुलकर
in दिसंबर २०१६, सामाजिक
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अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका ‘ऑर्गनायजर’ ने 70 वर्ष की सफल और चुनौतीभरी पत्रकारिता यात्रा पूरी की है। इसमें उसे अपनी सहयोगी पत्रिका एवं भारत प्रकाशन (दिल्ली) के प्रतिष्ठित प्रकाशन हिंदी साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ का भी पूरा सहयोग मिलता गया। इन दोनों पत्रिकाओं ने वैचारिक पत्रकारिता का अपना राष्ट्रीय दायित्व पूरी निष्ठा के साथ निभाया।

देश की स्वाधीनता के 70 वर्ष पूरे करने के वर्ष में ही राष्ट्रीय विचारधारा के साथ प्रकाशित होने वाली अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका ‘ऑर्गनायजर’ के प्रकाशन को भी 70 वर्ष पूरे होना यह एक विशेष संयोग रहा है। भारत को स्वाधीनता मिलने के साथ ही शुरू हुए अंग्रेजी साप्ताहिक ‘ऑर्गनायजर’ ने अपने प्रकाशन प्रचार-प्रसार के साथ राष्ट्रीय पत्रकारिता की धरोहर अपनी विशेषताओं के साथ बनाए रखी है यह बात इस साप्ताहिक को विशेष बना देती है।
इतिहास साक्षी है कि सा.‘ऑर्गनायजर’ की स्थापना एवं प्रकाशन के शुरुआती वर्षों में ही देश एवं समाज को देश के विभाजन के साथ मिली आजादी, देश के विभाजन की पीड़ा, उस पश्चात हुई म.गांधीजी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या, उसी आधार पर रा.स्व.संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन पर लगाई गई पाबंदी एवं उस दरम्यान देश भर में हजारों की संख्या में संघ कार्यकर्ताओं एवं स्वयंसेवकों की हुई गिरफ्तारियां, कुछ स्थानों पर स्वयंसेवकों एवं उनके परिजनों पर हुए अत्याचार आदि वारदातों का सामना करना पड़ा। ऐसे हाल एवं हालातों में राष्ट्रीय दायित्व निभाते हुए प्रसिद्धि से परे रहते हुए काम करने वाले संघ के स्वयंसेवकों के लिए राजधानी दिल्ली से अंग्रेजी साप्ताीहक पत्रिका का प्रकाशन अनेक प्रकार से चुनौती भरा काम था।

इस विपरीत स्थिति में 1946-47 में हजारों स्वयंसेवकों का सहयोग एवं प्रयासों का फल ही था कि दिल्ली में भारत प्रकाशन (दिल्ली) इस प्रकाशन संस्था का गठन का निर्णय हुआ, जो अपने-आप में दूरदर्शी था। इस नई पहल एवं प्रयास के पीछे प्रेरणा थी रा. स्व. संघ के प्रचारक वसंतरावजी ओक की। उनके इन प्रयासों के पहले चरण में ही जुड़ गए ‘भारत वर्ष’ के संपादक देवेंद्र विजय धवल, तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी अमरनाथ बजाज एवं चैतरायजी जैसे गणमान्य व्यक्ति! इसके अलावा इस नवगठित प्रकाशन में दिल्ली के उस समय के प्रमुख उद्योगपति तथा दिल्ली क्लाथ मिल के मालिक संचालक लाला चैतराय का भी विरोष सहयोग मिलता गया और स्व.वसंतरावजी की राष्ट्रीय प्रकाशन की संकल्पना वास्तविकता बन गई। यह मात्र संयोग ही था कि ‘ऑर्गनायजर’ की छपाई उसी दिल्ली के लतीफ प्रेस में शुरु हुई जंहा स्वाधीनता पूर्व काल में ‘शव’ पत्रिका की छपाई हुआ करती थी!

आज की पाठक पीढ़ी के लिए यह बात अत्याधिक आश्चर्य की होगी कि साप्ताहिक ‘ऑर्गनायजर’ के जो पहले संपादक थे उनका संघ-संगठन से कोई सम्बंध नहीं था। उनका पत्रिका के सम्पादक पद पर चयन उनकी धारावाही अंग्रेजी एवं संपादन की विशेषता एवं उनके पत्रकारिता में योगदान के आधार पर ही किया गया था।

इस प्रकार से राष्ट्रीय विचारों से प्रभावित- प्रेरित होकर ‘ऑर्गनायजर’ का प्रकाशन भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर याने 14 अगस्त 1947 को आरंभ हुआ, जिसे अपने प्रवेशांक से ही सफलता मिली। किंतु पत्रिका के सफल प्रकाशन के मात्र 6 महीनों में ही उस पर वज्राघात हुआ। म.गांधीजी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या की पृष्ठभूमि में ‘ऑर्गनायजर’ के प्रकाशन को स्थगित करने का निर्णय दुर्भाग्यवश लेना पड़ा।

संघ पर लगा प्रतिबंध हटने पर ‘ऑर्गनायजर’ ने नए सिरे से अपना प्रकाशन शुरू किया। सम्पादन की जिम्मेदारी संभालने के लिए तब आगे आए उन दिनों ‘हिंदुस्थान टाइम्स’ के सम्पादन प्रभाग में कार्यरत स्व. केवल राम मलकानी थे। नए सिरे से पत्रिका का सम्पादन करने वाले के.आर.मलकानी ने बड़ी सफलता एवं नीड़रता के साथ ‘ऑर्गनायजर’ का सम्पादन 1948 से 1982 के दीर्घकाल तक किया। स्मरणीय है कि अपने सम्पादन काल में मलकानीजी जब फेलोशिप योजना के तहत लंदन गए थे, तब ‘ऑर्गनायजर’ का सम्पादन किया था उस समय के फिल्मी समीक्षक लालकृष्ण आडवाणी ने! बहुतों को यह तथ्य जानकर आश्चर्य होगा।

स्वाधीन भारत में भारत का संविधान लागू होने पर अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण ‘ऑर्गनायजर’ को कई बार विभिन्न चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भारत के विभाजन के पश्चात भी पाकिस्तान का विषैला एवं आक्रमणकारी रवैया, प.बंगाल के मुसलमानों द्वारा जारी हिंसा जैसे मुद्दों पर सा.‘ऑर्गनायजर’ ने समयानुकूल और कठोर भूमिका जारी रखी। इसमें विशेष रूप से ‘ऑर्गनायजर’ के 27 फरवरी 1950 के अंक में पहले पन्ने पर के उन्होंने अपने विशेष आलेख में विस्तृत टिप्पणी की थी।

खटकने वाली बात यह है कि तत्कालीन कांग्रेसी शासन ने गैरजिम्मेदार रवैया अपनाते हुए इस सामग्री के लिए ‘ऑर्गनायजर’ के सम्पादक के. आर. मलकानी को तत्कालीन प्रेस एडवायजर समिति के सामने पेश होने के निर्देश दिए। मलकानीजी ने ‘ऑर्गनायजर’ में शासन के दमनचक्र की मिसाल इस शीर्षक के साथ अपना निषेध बड़ी सटीक सक्रियता के साथ दर्ज करने का इतिहास रचा। इसके कारण बौखलाई सरकार ने पूर्व पंजाब सार्वजनिक सुरक्षा कानून के कथित प्रावधानों के तहत मलकानीजी पर ‘ऑर्गनायजर’ में पाकिस्तान से सम्बंधित किसी भी सामग्री के प्रकाशन के पहले ‘प्री-सेंशरशिप’ याने सामग्री की प्रकाशन -पूर्व जांच करवाने के निर्देश दिए। सरकार के निर्देशों के उत्तर में के.आर.मलकानी ने ‘सत्य की पवित्र असलियत’ शीर्षक विशेष लेख ‘ऑर्गनायजर’ के मार्च 1950 के अंक में प्रकाशित कर अपनी नीड़र एवं प्रखर राष्ट्रीय पत्रकारिता का परिचय दिया।

केंद्र सरकार के इस दमनचक्र पर मात्र लेखन द्वारा ही अपना विरोध प्रकट नहीं किया, अपितु सरकार की इस तानाशाही को चुनौती देते हुए अप्रैल 1950 में ‘ऑर्गनायजर’ ने तत्कालीन पूर्व पंजाब सार्वजनिक सुरक्षा कानून 1949 के प्रवधानों को देश के सर्वोच्य न्यायालय में चुनौती देने का साहस किया। परिणामतः 5 जून 1950 के अपने महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक फैसले के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा ‘ऑर्गनायजर’ पर लगाए गए प्रतिबंध एवं दमनकारी नियंत्रणों को खारिज कर दिया। इस तरह न्याय की इस लड़ाई में ‘ऑर्गनायजर’ ने स्वाधीन भारत में पत्रकारिता की स्वाधीनता का नया अध्याय रच दिया।

उसी दरम्यान देश की स्वाधीनता, विभाजन के साथ ही कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा किया गया आक्रमण, नेहरू-लियाकत अली समझौता, कश्मीर के मुद्दे पर प्रजा परिबद की सुस्पष्ट नीति, कश्मीर मामले पर भारतीय जनसंघ द्वारा छेड़ा गया आंदोलन, जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.श्यामप्रसाद मुखर्जी द्वारा कश्मीर में जाकर किया गया विरोध, उस दरम्यान शेख अब्दुल्ला द्वारा डॉ. मुखर्जी की गई गिरफ्तारी एवं कारावास के दौरान डॉ.शामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध अवस्था में हुई मृत्यु इन सारे मुद्दों को ‘ऑर्गनायजर’ ने पुख्ता ढंग से समय-समय पर उठाया। पत्रकारिता की यही धरोहर ‘ऑर्गनायजर’ ने 1962 एवं 1965 के युद्ध के समय बरकरार रखते हुए अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभाने के साथ अपने पैनी पत्रकारिता की सीख भी अक्षुण्ण रखी।

इस प्रकार से राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित समाचार-सामग्री पाठकों को प्रति दिन उपलब्ध कराने के उद्देश्य एवं प्रेरणा से राजधानी दिल्ली से 5 फरवरी 1971 से दैनिक पत्रिका ‘द मदरलैंड’ का अंग्रेजी में प्रकाशन शुरु हुआ। इस दैनिक के सम्पादन की जिम्मेदारी भी स्वाभाविक तौर पर के. आर. मलकानी को ही सौंपी गई। उन्होंने अल्प-समय में ही ‘मदरलैंड’ को विशेष गरिमा दिलवाने का सराहनीय कार्य काम कर दिखाया। यही कारण था कि उन दिनों शासन प्रकाशन के स्तर पर सा.‘ऑर्गनायजर’ एवं दैनिक पत्रिका ‘मदरलैंड’ के विचार एवं सामग्री पर अवश्य गौर किया जाने लगा।
यह वास्तविकता देश में आपातकाल के लागू करते समय भी उभर कर सामने आई। आपात स्थिति लागू करने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के विशेष निर्देशों पर देश के जिन चुनिंदा पत्रकार सम्पादकों को आपातकाल के पहले चरण में ही बंदी बनाया गया, उनमें मलकानीजी का नाम अग्रणी था। इतना करके ही सरकार की तसल्ली नहीं हुई और तत्कालीन सरकार ने तानाशाह बनते हुए 25-26 जून 1975 की मध्यरात में ‘मदरलैंड’ की बिजली काट दी।

शासन के इस तरह की तानाशाही एवं दमन नीति का प्रखर विरोध करते हुए ‘ऑर्गनायजर’ एवं ‘मदरलैंड’ के पत्रकार कर्मचारियों ने बेजोड़ धैर्य एवं समर्पण का परिचय देते हुए 25-26 जून 1975 का ‘मदरलैंड’ का अंक प्रकाशित कर सारे देशवासियों को उस रात्रि में जयप्रकाश नारायण, चंद्रशेखर, कृष्ण कांत चौधरी, चरण सिंह, रामधन जैसे राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी से अवगत करने का महत्वपूर्ण एवं सराहनीय दायित्व पूरा कर दिखाया। ‘मदरलैंड’ के 27 जून 1975 का डाक संस्करण प्रकाशित होकर वितरत भी हुआ किंतु 27 जून 1975 को देर रात पुलिस प्रशासन द्वारा ‘मदरलैंड’ की बिजली सप्लाई बंद करते हुए वहां के कर्मचारियों पर कार्यालय में आकर काम करने पर रोक लगाई और उसी रात ‘मदरलैंड’के प्रकाशन की आखिरी रात भी सिद्ध हुई।

‘ऑर्गनायजर’ की पत्रकारिता की इस सफल यात्रा में उसे अपनी सहयोगी पत्रिका एवं भारत प्रकाशन (दिल्ली) के प्रतिष्ठित प्रकाशन हिंदी साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ का भी पूरा सहयोग मिलता गया। विगत दो दशकों में शाहबानो मामला, रामजन्म भूमि आंदोलन, गोध्रा कांड तथा उसके भीषण परिणाम, बोफोर्स में व्याप्त भ्रष्टाचार, शासन प्रशासन एवं संस्कारों के प्रकाशन प्रचार करने का राष्ट्रीय दायित्व इन दोनों पत्रिकाओं ने वैचारिक पत्रकारिता को प्रति पूरी निष्ठा के साथ निभाते हुए आज ‘ऑर्गनायजर’ एवं ‘पाचजन्य’ को सरकार से लेकर संसद तक सीख प्राप्त हुई है और यही बात इन पत्रिकाओं की वास्तविक सफलता की परिचायक भी है।
(‘ऑर्गनायजर’, 14 अगस्त 2016 से साभार)
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दत्तात्रेय आंबुलकर

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