खेल फिल्मों का जमाना
या द है आपको हम खेलों पर आधारित फिल्मों को गंभीरता से कब से लेने लगे? ठीक से विचार करें तो २००१ में आई ‘लगान’ के बाद से| इस बार खेल आधारित फिल्मों के विषय में बात करने का विशेष अवसर है|
या द है आपको हम खेलों पर आधारित फिल्मों को गंभीरता से कब से लेने लगे? ठीक से विचार करें तो २००१ में आई ‘लगान’ के बाद से| इस बार खेल आधारित फिल्मों के विषय में बात करने का विशेष अवसर है|
अपंग कल्याणकारी शिक्षण संस्था व संशोधन केंद्र वानवडी, पुणे का ६०वां स्थापना दिवस हाल ही में मनाया गया| संस्था ने नवम्बर २०१६ से दिसम्बर २०१७ यह वर्ष हीरक महोत्सव वर्ष के रूप में मनाने का निश्चय किया है|
उ त्तम मातृभक्त तो था ही, भगवान के प्रति भी उसकी बहुत आस्था थी| वह हर वर्ष गणेश चतुर्थी के समय अपने गांव गणपतीपुले के पुश्तैनी घर में पूरे विधि-विधान के साथ श्रीगणेशजी की स्थापना करता और दस दिन तक श्री गणेशजी की पूजा, आरती, भजन- कीर्तन, और सेवा में लगा रहता| वह सबके साथ मिलजुलकर रहना पसंद करता था|
हम देखते हैं कि श्री दत्त के अवतारों की विशेषता यह कि उनमें कोई भेदभाव नहीं था, सभी जाति-धर्म के लोगों को उन्होंने समाहित किया था। मानव जाति के गुण दोषों को देखते हुए मार्गदर्शन किया था। याने हम कह सकते हैं कि श्री दत्तावतार सर्व धर्म समभाव को पुरस्कृत करने वाला है।
गीता केवल मरणोपरांत मोक्ष या मुक्ति का ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह इसी जीवन में व्यक्ति को विषाद से प्रसाद की ओर, पलायन से पुरुषार्थ की ओेर, भागने से जागने की ओर तथा मरण से अमृतत्व की ओर ले जाने वाला ग्रंथ है। विश्व का यही एकमात्र ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। यही भारत का विश्व को वरदान भी है।
गांधीजी ने कहा था-जब कोई स्त्री किसी काम में जी-जान से लग जाती है तो उसके लिए कुछ भी नामुमकीन नहीं होता। इसी हकीकत को बयां करता है जयवंतीबेन मेहता का जीवन। उन्होंने जो ठाना वह करके ही दम लिया। सीमित साधनों और सामाजिक बाध्यताओं के बावजूद राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई। अपने मजबूत इरादों की बदौलत उन्होंने न सिर्फ अपने जीवन को नई दिशा दी बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बनीं।
कहावतें मानव जीवन की चिर-संचित अनुभव-राशि तथा ज्ञान-गरिमा का सार समुच्चय होती हैं। कहावतें ‘गागर में सागर’ अथवा उससे भी अधिक ‘बिंदु में सिंधु’ होती हैं। भाषाएं इनमें बाधा नहीं डाल सकतीं- सिंधी हो या भोजपुरी या हो कोई अन्य भाषा- उनमें समान लक्ष्यार्थ वाली कई कहावतें मिलती हैं। नारी जीवन के पक्ष-विपक्ष में व्यक्त कहावतें भी इससे जुदा नहीं हैं।
भोपाल में आयोजित त्रिदिवसीय आयोजन लोकमंथन की अवधारणा, आकार, आवेग और अनुवर्तन की दिशा तब ही स्पष्ट हो गई थी जब इस आयोजन के एक माह पूर्व, इस आयोजन के शुभंकर लोकार्पण हेतु एक कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री अनिल माधव दवे व फिल्म अभिनेता निर्देशक व चाणक्य सीरियल के कल्पक चंद्रप्रकाश द्विवेदी पधारे थे।
उद्घाटन समारोह में गोवा की माननीया राज्यपाल श्रीमती मृदुला जी सिन्हा, पंजाब केसरी समूह की निदेशिका श्रीमती किरण चोपड़ा जैसी अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में सम्मिलित हुईं।
भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। भारत के कण-कण में, रग-रग में संजीवनी शक्ति बन कर प्रवाहित है केसरिया रंग या भगवा रंग। इसीलिए भारत के तिरंगे में भी ऊपर का एक भाग केसरिया रंग या भगवा रंग है। रा.स्व.संघ के संस्थापक प.पू.डॉ. हेडगेवार भी भगवा ध्वज को गुरु स्थान पर मानते थे।
अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका ‘ऑर्गनायजर’ ने 70 वर्ष की सफल और चुनौतीभरी पत्रकारिता यात्रा पूरी की है। इसमें उसे अपनी सहयोगी पत्रिका एवं भारत प्रकाशन (दिल्ली) के प्रतिष्ठित प्रकाशन हिंदी साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ का भी पूरा सहयोग मिलता गया। इन दोनों पत्रिकाओं ने वैचारिक पत्रकारिता का अपना राष्ट्रीय दायित्व पूरी निष्ठा के साथ निभाया।
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में हिलरी क्लिंटन भले ही हार चुकी हों; किन्तु उन्होंने जो जुझारूपन दिखाया उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। अमेरिका का इतिहास 524 वर्षों का है; अब तक पांच महिलाएं यह चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन कोई नहीं जीतीं। लिहाजा, अमेरिकी समाज में पुरुष-वर्चस्व अब भी कायम है।