राष्ट्र सेविका समिति का प्रेरणा शिविर

विश्व के सबसे बड़े हिंदू महिला संगठन राष्ट्र सेविका समिति ने अपनी स्थापना के 80 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली के छत्तरपुर में गत सप्ताह 11 से 13 नवम्बर तक बीच तीन दिवसीय प्रेरणा शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में भारत के कोने-कोने से आईं 2000 से अधिक दायित्वयुक्त सेविकाओं ने हिस्सा लिया। दिल्ली का तेरापंथ भवन लद्दाख से लेकर केरल तक और सौराष्ट्र से लेकर अरुणाचल तक की संस्कृतियों का संगम स्थान बना हुआ दिखाई दे रहा था। अपने- अपने राज्यों की पारंपरिक वेश-भूषा में सज्ज सेविकाएं लघु भारत का मनभावन दृश्य साकार कर रही थीं।
शिविर का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत तथा जैन मुनि श्री जयंत कुमार जी के द्वारा हुआ। मातृशक्ति एवं परिवार के संस्कारों पर विशेष बल देते हुए श्री मोहनजी भागवत ने कहा कि मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है। आतंकवाद से लेकर पर्यावरण तक की अनेक वर्तमान समस्याओं के बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने उसका हल भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत में दिखाया। मुनिश्री जयंत कुमार जी ने संघ और तेरापंथ संप्रदाय को त्याग की राह पर चलते हुए समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य करने वाले संगठन बताया और कहा कि ये एक नदी के दो किनारे समान हैं। राष्ट्र सेविका समिति की 80 वर्ष की गौरवमयी यात्रा अखिल भारतीय महासचिव ए. सीता जी ने प्रस्तुत की और समिति की गतिविधियों का लेखा-जोखा भी दिया। इसी समारोह में प्रेरणांजलि नामक स्मारिका का अनावरण भी हुआ।

उद्घाटन समारोह में गोवा की माननीया राज्यपाल श्रीमती मृदुला जी सिन्हा, पंजाब केसरी समूह की निदेशिका श्रीमती किरण चोपड़ा जैसी अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में सम्मिलित हुईं।

रात्रि के सत्र में दूरदर्शन के प्रसिद्ध कलाकार मनोज जोशी द्वारा ‘आर्य चाणक्य’ नाटक का प्रभावी प्रस्तुतीकरण हुआ। प्रेरणा-पुष्प नाम से लगाई गई प्रदर्शनी समिति की 80 वर्षों की यात्रा का प्रतिबिम्ब थी।

शिविर के दूसरे दिन विवेकानन्द केंद्र की उपाध्यक्ष निवेदिता जी भिड़े ने ‘कार्य और कार्य-विस्तार’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कार्यकर्ता का आंतरिक विकास, कार्य विस्तार की नींव है। कार्यकर्ता के आंतरिक विकास के बिना, संगठन का कार्य विस्तार असंभव है। आंतरिक विकास के लिए चिंतन अति आवश्यक है और चिंतन का मूल है स्वाध्याय।

गोवा की राज्यपाल एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मृदुला सिन्हा ने इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि महिला सृष्टि का आधार है। वह पुष्प भी है और चिंगारी भी है। उच्च शिक्षा और भारी भरकम पैकेज आज की युवा पीढ़ी की प्राथमिकता है; जबकि समाज और राष्ट्र के बारे में सोचने का उनके पास समय ही नहीं है इस पर उन्होंने चिंता जताई।

भोजन उपरांत प्रेरणा दीप सत्र में समाज में प्रेरणास्पद कार्य करनेवाली 6 कर्तृत्वशाली महिलाओं को सम्मानित किया गया एवं उनको अपने अनुभवों को साझा करने के लिए निमंत्रित किया गया। दोपहर के बाद के सत्रों में विविध स्पर्धाओं का आयोजन हुआ। जिसमें राष्ट्रीय वाग्मिता प्रश्नमंच प्रतियोगिता में समिति कार्य, भारत की विज्ञान संबंधी उपलब्धियां एवं समसामयिक विषयों पर प्रश्न पूछे गए। गण समता एवं राष्ट्रीय भावगीत स्पर्धा का भी आयोजन किया गया। इन प्रतियोगिताओं का आयोजन स्पर्धा हेतु नहीं अपितु कार्यकर्ताओं के स्वयं के अभ्यास, कल्पकता एवं चिंतन को बढ़ाने हेतु किया गया। ‘मेरा परिवार इस राष्ट्र का महत्वपूर्ण घटक है और मैं अपने राष्ट्र की हूँ्। मेरे परिवार की प्रत्येक गतिविधि राष्ट्र हित में होनी चाहिए।’ यह विचार लोक सभा की माननीय स्पीकर सुश्री सुमित्रा महाजन ने प्रेरणा शिविर में ‘राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका’ इस विषय पर आयोजित परिसंवाद में रखे। आगे उन्होंने ने बताया कि हर लड़की जो सांस्कृतिक मूल्यों के साथ पली-बढ़ी है वह परिवार, समाज एवं राष्ट्र के लिए अमूल्य धरोहर है। डॉ. उमा वैद्य, डॉ. मीना चंद्रवरकर एवं डॉ. ज्योतिकिरण शुक्ला ने सेमिनार के तीन उप विषयों पर बात कीं। तीन पुस्तकें ‘मातृ चिंतन’, ‘मातृ कोर’ और Being Contemporaneous Without Getting Westernized’का लोकार्पण भी इसी परिसंवाद में प्रमुख संचालिका शांताक्का, सुमित्रा महाजन एवं तीनों गणमान्य वक्ताओं की उपस्थिति में हुआ।

समापन समारोह देवी अष्टभुजा को पुष्पांजलि अर्पण कर और भगवा ध्वज को प्रणाम कर आरंभ हुआ। सेविकाओं ने शारीरिक क्रियाओं जैसे कि योगासन, सूर्य नमस्कार, ताल योग एवं पताका योग का आकर्षक प्रदर्शन किया। बैंड के चित्ताकर्षक लयबद्ध प्रदर्शन ने सभी का मन मोह लिया। समिति की अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्रीमती सुनीला सोवनी ने स्वागत प्रवचन दिया। देश भर से आईं 2100 कार्यकर्ताओं ने इस शिविर में भाग लिया। तीन दिवसीय शिविर का विवरण प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र सेविका समिति की सह-कार्यवाहिका श्रीमती अलका इनामदार ने कहा कि नारी शक्ति का स्रोत है। उन्होंने समिति द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं की जानकारी दी। रियो पैरा ओलंपिक की रजत पदक विजेता सुश्री दीपा मलिक ने, जो कि मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं, कहा- मैं यहां प्रतिभागियों को प्रेरित करने के लिए आई थीं; किंतु प्रचुर मात्रा में आपकी उपस्थिति देख मैं स्वयं ही उत्साहित हू्ं।’ अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. वी शुभा, जो किNAL बैंगलुरू की विशिष्ट वैज्ञानिक हैं, ने जीवन मूल्यों एवं पारिवारिक संबंधों की सुदृढ़ता पर ज़ोर दिया। निजी तौर पर उन्हें जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा उसके के बारे में उन्होंने बताया। NAL के द्वारा अपनी परियोजनाओं में प्रयोग की जा रही स्वदेशी तकनीक के बारे में भी बताया। शिविर के समापन समारोह में मुख्य भाषण राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका सुश्री शांता कुमारी जी किया। उन्होंने कहा कि भारत के पास इसकी युवा शक्ति के रूप में अपार क्षमता है। भावी पीढ़ी की प्रतिभा को सही दिशा प्रदान की जानी चाहिए। आगे उन्होंने हमारे पारिवारिक तंत्र को सुदृढ़ करने आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि परिवार हमारे राष्ट्र का आधार स्तंभ है। समिति के द्वारा परिवार प्रबोधन के माध्यम से पारिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ एवं सुगठित बनाने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं। प्रेरणा शिविर से प्रेरित, उत्साहित एवं तरोताजा हुई सभी सेविकाएं कार्य-विस्तार की प्रेरणा लेकर अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में वापस लौटीं।
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