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जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र

जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र

by अवनीश राजपूत
in मार्च २०१७, सामाजिक
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देश को आजादी मिले सात दशक पूरे होने को हैं| इस दरमियान     सोलह बार लोकसभा चुनाव हुआ| कितनी सरकारें आईं और चली गईं, पर जम्मू-कश्मीर की समस्या जस-की- तस बनी हुई है| या कहें कि और उलझती ही जा रही है| १९४७ में भारत में ५५० से अधिक देशी रियासतों का विलय हुआ| गोवा, दमन और दीव १९६१ में तो सिक्किम १९७५ में भारत का अंग बने| आज कोई नहीं कह सकता कि इनमें से कोई भारत की मुख्य धारा से दूर है| सभी राज्य कंधे-से- कंधा मिला कर देश की विकास यात्रा में सहभागी हुए हैं| लेकिन जैसे ही जम्मू-कश्मीर राज्य का नाम आता है लोगों के मन में एक अलग तरह की भ्रांति जन्म लेने लगती है|

इसके पीछे के तत्थों पर जब गंभीर चिंतन हुआ तो निष्कर्ष निकला कि जम्मू-कश्मीर राज्य में व्याप्त कथित समस्या को हल करने और समाज में उपजे भ्रम को दूर करने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे वे कभी हुए ही नहीं| जिस कथित समस्या का समाधान तथ्यों और तर्कों के आधार पर होना चाहिए था उसे निहित स्वार्थ के लिए किस्से और कहानियों में उलझा कर रख दिया गया| जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में स्वार्थी तत्वों द्वारा योजनापूर्वक गढ़े गए भ्रम समय के साथ विश्वास में बदल गए हैं| जम्मू-कश्मीर राज्य की बात करते समय प्रायः सभी के सामने कश्मीर घाटी का ही मानचित्र होता है| जबकि तथ्य यह है कि कश्मीर घाटी का क्षेत्रफल संपूर्ण जम्मू कश्मीर राज्य का मात्र ७.१३ प्रतिशत है| यदि पाक अधिक्रंत क्षेत्र को छोड़ दें तो भी यह भारत के अधिकार वाले राज्य का १६ प्रतिशत भी नहीं है| दूसरी बड़ी भ्रांति है कि जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम राज्य है| लेकिन जब तथ्यों पर नजर गई तो कई रोचक बातें सामने आने लगीं|

सम्पूर्ण राज्य की बात करें तो जहां कश्मीर, गिलगित और बाल्तिस्तान मुस्लिम बहुल हैं वहीं जम्मू हिन्दू बहुल है और लद्दाख बौद्ध बहुल| भौगोलिक संरचना, भाषा और जीवनशैली के स्तर पर भी सभी क्षेत्रों में परस्पर काफी भिन्नता है| जम्मू कश्मीर राज्य को लेकर ऐसे कई मिथक समाज में जड़ जमाए हुए हैं| धरती पर स्वर्ग कहलाने वाला यह राज्य १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही एक ऐसे दुष्चक्र में फंस गया जिससे वह आज भी नहीं उबर सका है| भारत का वह भू-भाग, जो  १९४७ में विलय के पश्‍चात वैधानिक दृष्टि से भारत का अभिन्न अंग बना, आज उसका एक बडा भाग पाकिस्तान और अवैध चीन के कब्जे में है| भारत के वे नागरिक, जिनका भविष्य विलय के बाद भारत के साथ जुडा, आज इन देशों द्वारा लादी गयी क्रूर व्यवस्था के अंतर्गत अमानवीय परिस्थितियों में जीने के लिये विवश हैं|

समाज जीवन से जुड़े अलग-अलग क्षेत्रों के बुद्धजीवियों ने मिल कर ऐसे तमाम मिथकों को दूर करने, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के भौगोलिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, विधिक और सांस्कृतिक पहलुओं के बहुआयामी अध्ययन और शोध हेतु ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र’ नाम के एक प्रकल्प की स्थापना की| इसका मुख्य काम देश के सभी नागरिकों को सही और पूरी जानकारी सही समय पर उपलब्ध कराना एवं भ्रांतियों का निराकरण करना है| ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ’ ने जम्मू-कश्मीर के प्रश्‍न का तथ्यों और तर्कों के आधार पर विश्‍लेषण, वैधानिक विवेचन और धरातलीय जानकारी को देश के सम्मूख यथा -रुप प्रस्तुत करने का संकल्प किया है|

जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के शोध और कार्य का क्षेत्र मुख्यत: चार आयामों के अंतर्गत संचालित होता है| विधि, मीडिया, अकादमिक और सम्पर्क इसके प्रमुख आयाम हैं| इसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय, अनुच्छेद ३७० और उसका संवैधानिक महत्व, राज्य में आतंकवाद और उसके लिए उत्तरदायी स्थानीय एवं विदेशी तत्व, जम्मू-कश्मीर में विस्थापितों एवं शरणार्थियों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक अधिकार, विदेशी शक्तियों और संयुक्त राष्ट्र आदि की भूमिका सहित विभिन्न विषय प्रमुख रूप से शामिल हैं| इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से जुड़े समकालीन विषय जैसे, मानवाधिकार, लोकतांत्रिक अधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति, जनजातीय एवं पिछड़ा वर्ग, महिलाओं के अधिकार, सूचना के अधिकार जैसे विषयों पर अध्ययन कर वस्तुस्थिति पर आधारित रिपोर्ट्स, मोनोग्राफ एवं लेख तैयार करना अध्ययन केन्द्र की प्राथमिकताओं में शामिल है|

वैसे देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर राज्य में विस्थापितों एवं शरणार्थियों की संख्या लगभग २० लाख से अधिक है| इनमें विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये लगभग दो लाख शरणार्थी, पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर के १० लाख विस्थापित, १९९० में कश्मीर घाटी से विस्थापित तीन लाख से अधिक कश्मीरी हिंदु, पाकिस्तान के साथ तीनों युद्धों के समय सीमावर्ती क्षेत्रों से आये लगभग दो लाख विस्थापित और ९१७१ में शिमला समझौते के परिणामस्वरुप धम्ब क्षेत्र से आये लगभग एक लाख विस्थापित आज भी अपनी पहचान ढूंढ रहे हैं| इस राज्य में न तो इनको उचित सम्मान मिल रहा है और न ही इनके मानवाधिकार सुरक्षित हैं| ‘जम्मू-कश्मीर अध्यन केंन्द्र’ इस विस्थापितों व शरणार्थियों के मानवाधिकार की सुरक्षा की मांग को लेकर न्यायालय से लेकर मीडिया तक और समाज से लेकर सरकार तक इस विषय को गंभीरता से उठा रहा है|

जम्मू-कश्मीर का बहुत बड़ा भाग मीरपुर, मुजफ्फराबाद एवं पुंछ, गिलगित-बल्टिस्तान, अक्साइचिन, शक्सगाम घाटी जैसे प्रमुख क्षेत्र पाकिस्तान और चीन के कब्जे में हैं| ये क्षेत्र भारत के लिए आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं| इन क्षेत्रों में पाकिस्तान और चीन की अवैध गतिविधियों पर अध्ययन केंद्र लगातार दृष्टि रखते हुए वहां रहने वाले लोगों के मानवाधिकारों के हनन, आर्थिक एवं राजनैतिक शोषण की सही तस्वीर विश्व के सामने रखने का प्रयास करता है|

सर्वविदित है कि राजनैतिक अदूरदर्शिता और आतंकवाद के कारण जम्मू-कश्मीर में विकास की धारा अवरुद्ध रही है| जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र राज्य के पिछड़े इलाकों में जन भागीदारी के माध्यम से लघु उद्योगों एवं पारंपरिक हस्तकला उद्योगों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है| इसका उद्देश्य आम जनता को निराशा और अनिश्चय के वातावरण से निकाल कर उनमें विकास एवं राष्ट्रनिर्माण के नए सरोकार विकसित करना है|

जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र कश्मीरी हिंदू निष्कासन दिवस (१९-२० जनवरी), संकल्प दिवस (२२ फरवरी), विलय दिवस (२६ अक्टूबर), महाराजा हरि सिंह का जन्म दिवस (१९ सितंबर) और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (१० दिसंबर) जैसे महत्वपूर्ण दिवसों को निमित्त बना कर देश भर में अपनी विभिन्न इकाइयों के माध्यम से परिचर्चा, संविमर्श एवं अन्य कार्यक्रमों का आयोजन करता है| इसके साथ ही अध्ययन केंद्र समय- समय पर देश के विभिन्न नगरों और विश्वविद्यालय परिसरों में समसामयिक एवं प्रासंगिक विषयों पर सम्मेलन और विचार गोष्ठियों का आयोजन करता है|

जम्मू कश्मीर की यथास्थिति को समझाने के लिए अध्ययन केन्द्र विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं एवं सांसदों के साथ विचार-विमर्श के साथ ही देश के पत्रकारों, राजनीतिक नेताओं, बौद्धिक वर्गों, छात्रों और अध्यापकों की जम्मू-कश्मीर राज्य के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं आयोजित करा कर जम्मू-कश्मीर के विभिन्न आयामों की समझ को विकसित कराने में भी लगा हुआ है|

जम्मू-कश्मीर के भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और विधिक विषयों को लेकर अध्ययन केन्द्र द्वारा कई प्रामाणिक पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया है| इनमें जम्मू-कश्मीर- तथ्य, समस्या एवं समाधान, जम्मू-कश्मीर १९४७: विलय और परवर्ती घटनाक्रम, विलय का सच एवं सियासत का झूठ, गिलगिट बल्टिस्तान, जम्मू-कश्मीर- वर्तमान परिदृश्य एवं भावी दिशा, अनुच्छेद ३७०, लीगल डाक्यूमेंट्स, जम्मू-कश्मीर समस्याओं का मिथक,जम्मू-कश्मीर-एक अवलोकन जननायक  महाराज हरिसिंह, जम्मू-कश्मीर की अनकही कहानी और कश्मीर शैव दर्शन के महान संत आचार्य अभिनवगुप्त पर विभिन्न पुस्तकों का प्रकाशन प्रमुख रूप से शामिल है|

आचार्य अभिनवगुप्त एक उत्कृष्ट साधक, श्रेष्ठ दार्शनिक और कश्मीर शैव दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य थे| उनका दर्शन आगम, निगम और लोक, तीनों का श्रेष्ठ समावेशन और विभिन्न मान्यताओं का सुंदर समन्वय करता है| लोकमान्यता है कि आज से १००० वर्ष पूर्व अपने जीवन का लक्ष्य पूरा कर आचार्य कश्मीर में वीरवा-स्थित भैरव गुफा में प्रविष्ट हुए जहां वह अपने आराध्य शिव के साथ एकाकार हो गए| आचार्य अभिनवगुप्त-सहस्राब्दी- वर्ष उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को स्मरण करने हेतु जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र ने आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह का गठन किया| देश के बुद्धिजीवी, संस्कृतकर्मी, सामाजिक एवं अकादमिक जगत के प्रबुद्धजनों के द्वारा वर्ष २०१६ को आचार्य अभिनवगुप्त के सहस्राब्दी समारोह के रूप में मनाया गया| पौष कृष्ण दशमी संवत २०७३ तदनुसार दिनांक ४ जनवरी २०१६ ख्रिस्ताब्द को देश भर में आचार्य अभिनवगुप्त को सहस्र दीपों से श्रद्धा समर्पित की गई, साथ ही देश भर में अकादमिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारंभ हुए| समारोह का औपचारिक उद्घाटन दिनांक १३ फरवरी २०१६ को विज्ञान भवन में समारोह समिति के अध्यक्ष श्रीश्री रवि शंकर जी ने किया| उसके बाद देशभर में विविध कार्यक्रम आयोजित हुए|

 

अवनीश राजपूत

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