कश्मीरी पंडित : कश्मीर के आदि निवासी

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कश्मीर की मनोरम घाटी इस समय तन्हा हो गई है; मानो अच्छाइयां वहां से विदा हो चुकी हो। बर्बर आतंकवादियों ने पौराणिक काल से यहां बसे कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भगा दिया है, हजारों लोगों का क्रूरता से संहार किया है और कश्मीर के ५००० साल पुराने इतिहास और

जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र

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देश को आजादी मिले सात दशक पूरे होने को हैं| इस दरमियान     सोलह बार लोकसभा चुनाव हुआ| कितनी सरकारें आईं और चली गईं, पर जम्मू-कश्मीर की समस्या जस-की- तस बनी हुई है|

संघ के प्रयासों से रियासत कश्मीर का विलय

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 कश्मीर के भारत में विलय करने हेतु महाराजा को तैयार करने में संघ स्वयंसेवकों विशेषकर श्रीगुरुजी की अहम् भूमिका रही है| श्रीगुरुजी की महाराजा से भेंट उन्हें विलय का निर्णय करवाने में निर्णायक रही; क्योंकि उस भेंट के बाद ही विलय की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई|

राष्ट्रसंघ के कागजी शेर

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कश्मीर संकट पर राष्ट्रसंघ का प्रस्ताव क्रमांक 47 और उससे जुड़े अन्य प्रस्ताव निष्फल और कालबाह्य हो चुके हैं। ये प्रस्ताव कागजी शेर बन कर रह गए हैं। प्रस्तावों के इस हश्र के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है; क्योंकि प्रस्तावों की पूर्वशर्त के अनुसार उसने अपने कब्जे वाले इलाके से अपनी फौज नहीं हटाई। शंखगाम घाटी तो उसने चीन को ही दे दी। अब तो पाकिस्तान-चीन एक तरफ और भारत दूसरी तरफ यह स्थिति बन गई है।

करें स्वरोजगार का दर्शन

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आज देश की करीब ६५ फीसदी कार्यशील युवा आबादी है और यही जनसांख्यिकी लाभांश भारत की मौजूदा समय में सब से बड़ी पूंजी है। इसी कार्यबल का यदि सदुपयोग हो जाए, तो कोई वजह नहीं बचती कि भारत विश्व शक्ति न बन पाए। इसके लिए पहली शर्त तो यही मानी जाएगी कि देश का हर ह

कश्मीर की व्यथा कथा

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यह तय हो गया कि भारत विभाजन होगा। लार्ड वेवेल विदा हो गए और लार्ड माउंटबेटन ने भारत के वायसराय का पद मार्च के अंत में संभाला। २ मई १९४७ को नए वायसराय ने अपने प्रस्ताव इंग्लैंड भेजे और १० मई १९४७ को उन्हें ब्रिटिश सरकार की स्वीकृती मिल गई। योजना केवल लाड

अब कैसे हो कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास?

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कश्मीर में १९ जनवरी १९९० को हुए बर्बर जनसंहार के बाद सत्ताईस वर्षों का लम्बा अंतराल बीत गया है जिसमें दिल्ली और श्रीनगर की असंवेदनशीलता के सिवा कश्मीरी पंडितों को कुछ नहीं मिला है। अब तो यह भी विचारणीय प्रश्न है कि कश्मीर से निष्कासित कश्मीरी पंडित वह

कश्मीरघाटी की जनसांख्यिकी और उसका राजनैतिक प्रभाव

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कश्मीर घाटी जम्मू-कश्मीर प्रदेश का भौगोलिक लिहाज़ से सब से छोटा संभाग है। लेकिन जनसांख्यिकी के लिहाज़ से इस घाटी में बसे लोगों में बहुत विविधताएं हैं। यही कारण है कि इसका जनसांख्यिकी अध्ययन अत्यंत रुचिकर कहा जाता है। मोटे तौर पर कश्मीर घाटी में रहने वाले

मुश्किल हालात में कुछ ठोस करने की चुनौती

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महीनों से कश्मीर घाटी में पत्थर चल रहे थे। विद्यालय जलाए जा रहे थे। पाकिस्तान घाटी की मीडिया फुटेज को लेकर आसमान सर पर उठाने की कोशिश कर रहा था। आतंकी बुरहान बानी के लिए मर्सिया गाया जा रहा था। फिर नोटबंदी का फैसला आया और घाटी में अचानक पत्थर चलने बंद ह

मीडिया के मंच पर मानवाधिकार का मुखौटा

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पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के प्रश्न को राष्ट्रीय से अधिक सभ्यता से जुड़ा प्रश्न मानता रहा है। इसी मान्यता के आधार पर वह इस्लामी दुनिया को यह समझाने में एक हद तक सफल भी रहा है कि गजवा-ए-हिंद अथवा खिलाफत के इस्लामी स्वप्न का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पड़ाव जम्मू-कश्

विस्थापन, विस्थापन, विस्थापन!

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जरूरी है कि विस्थापन की पीड़ा को समझा जाए। विडंबना यह है कि अपने विस्थापन की पीड़ा को तो लोग समझते हैं, लेकिन दूसरों के विस्थापन के लिए अंधे, गूंगे और बहरे बन जाते हैं। नौकरी में तबादले आम बात है। एक शहर से दूसरे शहर की बात तो दूर, एक ही शहर में एक कार्या

कश्मीर जो कभी शारदा देश था

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कश्मीर जो कभी शारदा देश थाजम्मू एवं कश्मीर राज्य की राजभाषा उर्दू है। इस स्थिति में वहां हिंदी तथा संस्कृत की क्या स्थिति होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, तथापि विगत युग में यही प्रदेश संस्कृत, काव्य, दर्शन तथा इतिहास के प्रकाण्ड पण्डितों की क

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