हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
नरेंद्र मोदी- कृतित्व व व्यक्तित्व

नरेंद्र मोदी- कृतित्व व व्यक्तित्व

by प्रवीण गुगनानी
in जून २०१७, सामाजिक
0

मोदी सरकार ने ऐसे अनेकों निर्णय लिए जो पिछली सरकारों से या स्थापित भारतीय संसदीय प्रतिमानों (मूलतः तुष्टीकरण पर आधारित होते थे) से आमूलचूल अलग थे| यह एक ब्रह्म सत्य है कि स्वतंत्रता के पश्चात मोदी सरकार ऐसी प्रथम सरकार है जिसके प्रत्येक निर्णय में राष्ट्रवाद का पुट प्रमुखता से रहा है|

जर्मनी के एकीकरण के वास्तुकार बिस्मार्क ने अपनी राष्ट्र नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था- जर्मनी का ध्यान प्रशा के उदारवाद पर नहीं अपितु उसकी शक्ति पर लगा हुआ है| जर्मनी की समस्याओं का समाधान बौद्धिक भाषणों से नहीं, आदर्शवाद से नहीं, बहुमत के निर्णय से नहीं वरन प्रशा के नेतृत्व में तलवार की नीति से होगा| मुखर राष्ट्रवाद की भाषा बोलकर भारत की जनता का दिल जीत रहे नरेंद्र मोदी यदि अपनी राष्ट्र नीति को बिस्मार्क के इस कथन में आज व्यक्त करेंगे तो उस कथन में केवल तलवार के स्थान पर विश्वास व राष्ट्रवाद के नीति शब्दों को रखना होगा| बिस्मार्क ने जिस प्रकार प्रखर राष्ट्रवादी नीति की नींव पर जर्मनी के एकीकरण की वास्तु खड़ी की थी ठीक उसी प्रकार नरेंद्र मोदी भारत को विश्‍वगुरु बनाने की वास्तु रच रहे हैं|

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में श्रीयुत् नरेंद्र मोदी ने २ मई २०१४ को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली| इस अवसर पर प्रसिद्ध संघ विचारक एवं दलित विमर्श के मनीषी रमेशजी पतंगे के एक आलेख में लिखी कुछ पंक्तियां स्मरण आती हैं| उन्होंने लंदन के विश्वप्रसिद्ध समाचार पत्र ‘द गार्डियन‘ के सम्पादकीय की चर्चा की है| ‘द गार्डियन‘ ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की चुनावी जीत पर लिखा कि १८ मई २०१४ का दिन वह दिन है जब अंग्रेजों ने वस्तुतः भारत छोड़ दिया है| क्योंकि जिस पद्धति से अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया था, भारत में स्वातंत्र्योत्तर भी करीब-करीब वैसा ही शासन चलता रहा| इस कालखंड का अंत नरेंद्र मोदी की जीत ने किया है| स्वतंत्रता के बाद भारत में कांग्रेस के राज में अंग्रेजी राज का ही अलग-अलग तरीके से विस्तार होता रहा| ‘द गार्डियन‘ अखबार आगे लिखता है कि मई २०१४ में भारत से अंग्रेजी शासन समाप्त हुआ अर्थात अंगे्रजी आचार-विचारों के अनुसार, अंग्रेजी मूल्यों के अनुसार चलने वाली शासन पद्धति की समाप्ति और अब भारतीय पद्धति, भारतीय मूल्य, भारतीय आचार-विचार, भारतीय आदर्श के

अनुसार शासनकाल का समय प्रारंभ हुआ है| नरेंद्र मोदी के शासन का मूल्यांकन हमें इसी आधार पर करना चाहिए| ऐसा नहीं है कि भारत में यह प्रथम सत्ता परिवर्तन है| सत्ता परिवर्तन मोरारजी भाई देसाई, वी. पी. सिंह, देवेगौड़ा, गुजराल के समय भी हुआ किन्तु उस समय भिन्न-भिन्न कारणों से शासन का दृष्टिकोण पूर्ववत ही रहा|  अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी सत्ता का दृष्टिकोण नहीं बदल पाया क्योंकि अटल जी की सरकार एक अल्पमत व विभिन्न विचारों से बनी पार्टियों की बैसाखी पर चल रही थी| अब नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है व उन्हें सहयोगी दल की बैसाखियों की भी आवश्यकता नहीं है| अतः यह समय भारत में केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं अपितु वैचारिक आधार के बदलाव का समय है| विगत तीन वर्षों के दिन-प्रतिदिन, नरेंद्र मोदी के शासन में, ‘गार्डियन‘ का यह कथन सौ प्रतिशत सत्य होता दिख रहा है|

तीस वर्षों पश्चात २०१४ के आम चुनावों में देश की जनता ने जब नरेंद्र मोदी को स्पष्ट बहुमत के साथ जनादेश दिया, तब इस देश की जनता अपने इस नए नेतृत्व की क्षमताओं को जान चुकी थी| देश के राजनीतिक गलियारों में नरेंद्र मोदी को गुजरात से निकलकर दिल्ली आने के मार्गों की कठिनाई समय-समय पर दोहराई जाती रहीं किंतु जनता के मन में कभी संशय नहीं रहा| भारतीय जनता मोदी के प्रति मन बना चुकी थी|

अपेक्षा के अनुरूप प्रधानमंत्री बनने के पश्चात नरेंद्र मोदी ने स्वयं का कोई नया रूप प्रकट नहीं किया, जैसा कि उनके विरोधी उनसे आशा कर रहे थे| मोदी ने अपने उस रूप-स्वभाव का ही विस्तार किया जिस रूप से वे गत बारह वर्षों से गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे| उन्होंने एक ओर देश में ‘सबका साथ-सबका विकास‘ की नीति को आगे बढ़ाया तो दूसरी ओर अपने अहर्निश, अथक और अचूक परिश्रम से विश्व के सामने भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा को शक्ति, दृढ़ता, प्रतिबद्धता के साथ किंतु विनम्र शैली में प्रस्तुत किया| भारत को विश्वगुरु बनाने की राह में मोदी ने पश्चिम के देशों को जहां अपने व्यक्तित्व की चकाचौंध से प्रभावित किया तो बहुत से एशियाई और पड़ोसी देशों को अपनी बुद्ध सर्किट की अवधारणा से प्रभावित किया| एक प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जब भी विदेश गए या जब भी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ देश की भूमि पर घूमे तब-तब उन्होंने भारतीय संस्कृति के प्रतिमानों को अद्भुत दृष्टि के साथ विदेशियों के समक्ष प्रस्तुत किया| आज निःसंदेह यह दृढ़ता के साथ कहा जा  सकता है कि विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के समक्ष भारतीय संस्कृति का वैभव प्रदर्शन जिस प्रकार नरेंद्र मोदी ने किया वैसा कभी कोई  प्रधानमंत्री नहीं कर पाया| हां इस विषय में अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी जी को अवश्य कुछ छूट दी जा सकती है| भारत आने वाले विदेशी अतिथियों को भारत का सच्चा सांस्कृतिक परिचय देना और यह बताना कि मूलतः हम क्या हैं, क्यों हैं व कैसे हैं; एक अत्यंत सहज व सरल कार्य था जिसे भारत के किसी अन्य प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं किया यह किसी से छिपा नहीं है| वस्तुतः भारत की राजनीति पर जिस प्रकार भारतीय राजनीतिज्ञों ने चुन-चुन कर व समय-समय पर तुष्टिकरण के दंश कराये, उन सब से हमारी जो पहचान विश्व भर में बन रही थी वह एक ऐसे देश की थी जिसके पास कुछ भी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक संपदा थी ही नहीं| इस कोण से ही नरेंद्र मोदी व देश के अन्य नेतृत्वकर्ताओं का आंकलन प्रारंभ होता है जो बड़े विस्तृत किंतु विचित्र कोण तक जाता है| नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रत्येक विदेश यात्रा को या विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की भारत यात्रा को भारतीय संस्कृति व दर्शन के वैश्विक परिचय हेतु एक सुअवसर बना दिया|

भारतीय संस्कृति के वैश्विक परिचय का एक उल्लेखनीय अवसर भारत व समूचे विश्व ने एक बार और देखा जब ११ दिसम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र में १९३ सदस्यों से २१ जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली| प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को ९ दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है| इस पहल को कई वैश्विक नेताओं से समर्थन मिला| सबसे पहले, नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव का समर्थन किया| संयुक्त राज्य अमेरिका सहित १७७ से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने इसका समर्थन किया है| अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है|

यदि विगत तीन वर्षों के मोदी के कार्यकाल का आकलन करें और प्रथमतः उत्तर प्रदेश के चुनाव की चर्चा करें तो हमारे सामने कोई विशिष्ट नहीं अपितु अत्यंत सहज तथ्य सामने आते हैं| ऐसे सहज तथ्य जिससे कोई साधारण बुद्धि का राजनीतिज्ञ भी उत्तर प्रदेश की राजनीति को अपने सुर में साध सकता था| उ.प्र. जैसे धुर जातिवादी राजनीति वाले प्रदेश में जब पहले पहल नरेंद्र मोदी ने ८० में से ७३ लोकसभा सीटों पर विजय दर्ज की तब सभी ने यही कहा था कि ये लोस चुनाव हैं अतः राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर मोदी बढ़त बना गए किंतु विस चुनावों में राज्य की राजनीति जातिगत गणित पर ही चलेगी| यह कहना स्वाभाविक ही था| उप्र का राजनीतिक इतिहास व वातावरण अपने जातिवादी रुझान को सस्वर व निःसंकोच प्रकट करता है| उ.प्र. का स्थानीय राजनीतिज्ञ या देश भर से उ.प्र. में जाने वाला कोई भी राजनीतिज्ञ, उ.प्र. के नौकरशाह या उ.प्र. के सांस्कृतिक सामाजिक कार्यकर्ता सभी उ.प्र. की  जातिवादी राजनीति के चरित्र को न केवल सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करते थे अपितु उसे निःसंकोच मान्यता भी देते और उस अनुरूप ही निर्वाचन कार्यक्रम, व्यक्ति और समाज तय करते थे| उ.प्र. में कब कौन कहां जाएगा, किस दिशा में जाएगा व किसके साथ जाएगा इन प्रश्नों के उत्तर राजनीति तय किया करती थी| उ.प्र. की राजनीति जातिवाद के दलदल से बाहर निकलेगी इस बात की कल्पना भी लोगों ने बंद कर दी था| उ.प्र. ने अपने इस चरित्र का पर्याप्त से बहुत अधिक मूल्य चुकाया व एक पिछड़ा, बीमार, गरीब, अविकसित राज्य बन गया|

चरम जातिवाद की परिस्थितियों में वर्ष २०१७ के विस चुनाव के परिणाम नरेंद्र मोदी के करिश्मे को एक नया विस्तार दे गए| दूसरी ओर उ.प्र. विस के परिणामों के पश्चात योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री के रूप में मनोनयन नरेंद्र मोदी, अमित शाह व भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल जी के अभियान २०१९ की उद्घोषणा कर गया| उ.प्र. के मुख्यमंत्री के रूप में योगी का चयन समूचे भारतीय जनमानस को आंदोलित व झंकृत कर गया| यूं तो योगी आदित्यनाथ पिछली बार से गोरखपुर से सांसद चुने जाकर, लगभग आधे उ.प्र. की राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं किंतु उनके मुख्यमंत्री के रूप में मनोनयन के बाद देश के प्रत्येक आबाल-वृद्ध ने यह आभास किया कि भारतीय राजनीति को आगामी दशकों हेतु एक नया राष्ट्रवादी चेहरा मिल गया है| योगी के मुख्यमंत्री बनने से जहां एक ओर देश का राष्ट्रवादी वर्ग प्रसन्न हुआ तो वहीं देश में सेक्युलर व मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों व वामपंथियों पर तो जैसे घड़ों पानी पड़ गया|

उ.प्र. विस चुनाव एक और विषय के लिए स्मरण किया जाएगा| जब यह विश्लेषण सामने आया कि इस चुनाव में भाजपा की प्रचंड विजय के मूल में एक कारण मोदी द्वारा छेड़ा गया तीन तलाक का मुद्ददा भी है| नरेंद्र मोदी ने उ.प्र. व देश भर के अन्य मंचों से जिस प्रकार तीन तलाक व बहुविवाह परम्परा के नाम पर मुस्लिम बहनों पर होने वाले अत्याचार व पाशविकता की चर्चा की उससे मुस्लिम स्त्री जगत इस सामाजिक अत्याचार के विरुद्ध आंदोलित हो उठा व मोदी के समर्थन में आ खड़ा हुआ| कहा गया कि तीन तलाक के विरुद्ध मुहिम के कारण बड़ी मात्रा में मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा को वोट किया|

उ.प्र. चुनाव के पूर्व देश ने नरेंद्र मोदी की निर्णय क्षमता व तटस्थता का एक और उदाहरण देखा था- नोटबंदी के रूप में| नोटबंदी के निर्णय को जिस गोपनीयता व आकस्मिकता से घोषित किया गया वैसा निर्णय व वैसी निर्णय प्रक्रिया की आदत इस देश को पूर्व में कभी नहीं रही| विपक्षियों ने इस निर्णय पर बड़ा विवाद मचाया व जनता को होने वाली परेशानियों के नाम पर देश की हमदर्दी बटोरने का प्रयास किया किंतु देश भर में इस निर्णय के बाद विभिन्न स्थानों पर हुए चुनाव परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया कि जनता नोटबंदी के निर्णय पर मोदी सरकार के साथ है|

बड़े-बड़े अकल्पनीय आंकड़ों वाले घोटालों व आर्थिक अपराधों को देख-देख कर जब देश की जनता का मानस दुखी व राजनैतिक अवसाद की स्थिति में आ खड़ा हुआ था तब देश के प्रधानमंत्री की दहाड़ कि ‘न खाउंगा, न खाने दूंगा’ ने देश में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार कर दिया| इस दहाड़ के बाद अपने मंत्रिमंडल व दलीय सहयोगियों के मध्य मोदी की कार्यशैली यह मौन मंत्र देती रही कि- राष्ट्र सेवा में अहर्निश परिश्रम करूंगा| न सोऊंगा, न सोने दूंगा| विगत तीन वर्षों में उन्होंने जो कहा वैसा किया भी| मोदी सरकार का भ्रष्टाचार विहीन व भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टालरेंस का रवैया रहा है उसे देखकर देश की जनता ने राहत की सांस ली है व उसका मानस अवसाद की स्थिति से बाहर आ गया है|

मोदी सरकार ने ऐसे अनेकों निर्णय लिए जो पिछली सरकारों से या स्थापित भारतीय संसदीय प्रतिमानों (मूलतः तुष्टीकरण पर आधारित होते थे) से आमूलचूल अलग थे| मात्र कुछ प्रतिनिधि घटनाओं की चर्चा ही यहां की गई है, किंतु यह एक ब्रह्म सत्य है कि स्वतंत्रता के पश्चात मोदी सरकार ऐसी प्रथम सरकार है जिसके प्रत्येक निर्णय में राष्ट्रवाद का पुट प्रमुखता से रहा है|

 

प्रवीण गुगनानी

[email protected]

Next Post
समस्त महाजन संस्था के कदम महाराष्ट्र से उ.प्र. की ओर

समस्त महाजन संस्था के कदम महाराष्ट्र से उ.प्र. की ओर

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0