क्षत्रियों के कुलनाशक नहीं समाज संगठक थे परशुराम

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वैशाख शुक्ल तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया सनातन हिंदू समाज की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण तिथि है। यह दिवस केवल हमारे सकल हिंदू समाज के आराध्य भगवान् परशुराम के अवतरण का ही नहीं अपितु इसी दिन परमात्मा के हयग्रीव, नर नारायण और महाविद्या मातंगी अवतार का भी अवतरण दिवस है। वस्तुतः…

के. जी. बालकृष्ण आयोग : विचारों का क्रियान्वयन

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बाबासाहेब ने हिंदू दलितों के उत्थान और उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान दिया लेकिन उसका लाभ उसके मूल वर्ग को मिलने की बजाय उन्हें मिल रहा है जो अन्य धर्मों में मतांतरण कर चुके हैं। के. जी. बालकृष्ण आयोग उन्हें उनका खोया अधिकार…

भाजपा: वैचारिक धुंधकाल के निराकरण का तंत्र

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विमर्श या नैरेटिव के नाम पर भारत में एक अघोषित युद्द चला हुआ है। इन दिनों भारत में चल रहा विमर्श शुद्ध राजनैतिक है। राजनीति और कुछ नहीं समाज का एक संक्षिप्त प्रतिबिंब ही है। विमर्श में यह प्रतिबिंब विषय व समयानुसार कुछ छोटा या बड़ा होता रह सकता है।…

फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन – वैश्विक हिंदी की दस्तक

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन भारतेंदु हरिश्चंद्र विश्व हिंदी सम्मेलन, फिजी की चर्चा प्रारंभ करने से पूर्व एक व्यथा या विवाद की…

राजनैतिक दल डिलिस्टिंग के पक्ष या विरोध में ?

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जनजातीय मुद्दों पर प्रतिदिन अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाले विभिन्न संगठन व राजनैतिक दल डिलिस्टिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चुप क्यों हैं? स्पष्ट है कि वे कथित धर्मान्तरित होकर जनजातीय समाज के साथ छलावा और धोखा देनें वाले लोगों के साथ खड़े हैं. ये कथित दल, संगठन और एनजीओ…

मध्यप्रदेश में सख्त हो धर्मांतरण कानून

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यदि मध्यप्रदेश के सामाजिक ताने बाने, अर्थव्यवस्था, राजनैतिक वातावरण, व्यापार वयवसाय के पिछड़े होने की और इन सबसे धर्मांतरण के संबंध की चर्चा करें तो एक जनजातीय कहावत स्मरण मे आती है - तेंदू के अंगरा बरे के न बुताय के अर्थात दुष्ट व्यक्ति न स्वयं चैन से रहते हैं…

संघप्रमुख का कहा राष्ट्रवादी मुस्लिमों को स्वीकार

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"तोड़ दूंगा ये सारे बुत ए खुदा पहले यह तो बता तुझको इनसे इतनी जलन क्यों है। आए हैं कहां से ये बुत तेरी ही बनाए हुए पत्थरों और मिट्टियों से पहले यह तो बता की उन पत्थरों और मिट्टियों में क्या तू नही है?" किसी शायर का ये शेर…

सुपर फ़ूड मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि

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Indian farmer plowing rice fields with a pair of oxen using traditional plough at sunrise.
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23 दिसंबर: राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष सुपर कृषक बनने का मार्ग: सुपर फ़ूड मोटे अनाज की प्राकृतिक कृषि देश में मोटे अनाजों की कृषि, उत्पादन व उपभोग को पर केंद्रित इस लेख के पूर्व यह कविता पढ़िए - यह रागी हुई अभागी क्यों? चावल की किस्मत जागी क्यों? जो…

बाबरी विध्वंस और मंदिर निर्माण की राष्ट्र यात्रा

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भारतीय राजनीति में 6 दिसम्बर का उल्लेखनीय महत्व है। इस दिन देश में हजारों सालों से हाशिए पर रहे वंचित वर्ग के उन्नायक डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस है। साथ ही, भारतीय संस्कृति के प्रतीक प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर हुए विदेशी अतिक्रमण को हटाने की शुरुआत भी इसी दिन हुई थी। बाबासाहेब द्वारा बनाए गए संविधान की छाया में आज भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य  हो रहा है।

राष्ट्ररक्षा का भाव ही वनवासी समाज का मूल स्वभाव है

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जनजातीय समाज का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना व्यापक, विस्तृत व विशाल योगदान रहा है। विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध वर्ष 812 से लेकर 1947 तक भारत की अस्मिता के रक्षण हेतु इस  समाज के हजारों लाखों यौद्धाओं ने अपना सर्वस्व बलिदान किया है। जनजातीय समाज की आतंरिक सरंचना ही कुछ इस प्रकार की विलक्षण है कि यह सदैव स्वयं को देश की मिट्टी से जुड़ा हुआ पाता है। इस समाज की प्रत्येक पीढ़ी ने केवल जनजातीय परम्पराओं और राज्यों के लिए ही संघर्ष नहीं किया बल्कि वनों से लेकर नगरीय समाज तक प्रत्येक देशज  तत्व की विदेशियों से रक्षा का कार्य इन्होने किया है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में जनजातीय समाज की अद्भुत गौरवशाली सैन्य, सांस्कृतिक, सामाजिक, कला, नाट्य, वास्तु, खाद्ध्य परंपरा, चित्रकला, शस्त्र विद्या, आपताकाल में कूट शब्दों में संवाद, वनप्रेम, प्रकृति पूजा, पशुप्रेम व आदि जैसे अनेकों अनूठे व विलक्षण गुणों की चर्चा आवश्यक हो जाती है।

भारत ता तल्ला डा सांस्कृतिक टीका (भारत के माथे का सांस्कृतिक तिलक)

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भारत की हृदयस्थली मध्य प्रदेश संस्कृति और जीवन की विविधताओं को अपने अंदर समाहित किए हुए है। यहां की जीवनशैली और मेहनतकश प्रवृत्ति राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है। मंदिरों, पवित्र नदियों और अन्य दर्शनीय स्थलों का संगम यह भूमि हमेशा से ही विश्व भर के सांस्कृतिक पर्यटकों की पसंदीदा जगह रही है।

भारत में वैचारिक धुंधकाल

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राजनीतिक स्तर पर वामपंथ फलक से गायब होता जा रहा है लेकिन वह अलग-अलग तथा ज्यादा खतरनाक और विध्वंसक तरीके से सामने आ रहा है। समाज को तोड़ने के लिए चलाए जा रहे इनके अभियान इतने सूक्ष्म तरीके से चलाए जा रहे हैं कि आम जन को पता ही नहीं चल पाता कि यह एक वामपंथी नैरेटिव है। इन देश विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाया जाना आवश्यक है।

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