जनजातीय समाज का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना व्यापक, विस्तृत व विशाल योगदान रहा है। विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध वर्ष 812 से लेकर 1947 तक भारत की अस्मिता के रक्षण हेतु इस समाज के हजारों लाखों यौद्धाओं ने अपना सर्वस्व बलिदान किया है। जनजातीय समाज की आतंरिक सरंचना ही कुछ इस प्रकार की विलक्षण है कि यह सदैव स्वयं को देश की मिट्टी से जुड़ा हुआ पाता है। इस समाज की प्रत्येक पीढ़ी ने केवल जनजातीय परम्पराओं और राज्यों के लिए ही संघर्ष नहीं किया बल्कि वनों से लेकर नगरीय समाज तक प्रत्येक देशज तत्व की विदेशियों से रक्षा का कार्य इन्होने किया है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में जनजातीय समाज की अद्भुत गौरवशाली सैन्य, सांस्कृतिक, सामाजिक, कला, नाट्य, वास्तु, खाद्ध्य परंपरा, चित्रकला, शस्त्र विद्या, आपताकाल में कूट शब्दों में संवाद, वनप्रेम, प्रकृति पूजा, पशुप्रेम व आदि जैसे अनेकों अनूठे व विलक्षण गुणों की चर्चा आवश्यक हो जाती है।