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स्मार्ट सिटी में जल संवर्धन

स्मार्ट सिटी में जल संवर्धन

by संजय कश्यप
in गौरवान्वित उत्तर प्रदेश विशेषांक - सितम्बर २०१७, सामाजिक
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समाज जीवन में भी पानी के प्रति सामूहिक चेतना जागृत होती है तो जल संवेदना से जल संवर्धन होता है| पानी का पुनर्उपयोग तथा पुनर्चक्रण पानी की उपलब्धता बढ़ाता है| स्मार्ट सिटी परियोजना में जल संवर्धन को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए|

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कार्यकारी समूह ने अपनी संस्तुतियों में कहा है कि शहर ही विकास के इंजन का काम करेंगे| अधिक उत्पादन और अधिक खपत इन्हें पर्यावरण के लिए चुनौती बनाएगी| अर्थात् पर्यावरण संरक्षण की असल लड़ाई शहरों में लड़ी जाएगी| भारत तेजी से उभरती आर्थिक शक्ति है जिसका अभी तेजी से विकास होना है| इस कारण भारत में शहरीकरण और उनके पर्यावरण को लेकर चुनौतियां भी गंभीर हैं|

देश में बदलाव के दौर में अभी नई आई सरकार ने भी देश को कुछ सब्जबाग दिखाए है| जिसमें एक सपना भारत में स्मार्ट सिटी का होना है| हम भारत के उन शहरों की बात कर रहे हैं जो पहले से मौजूद हैं मगर उनमें विकास और सुधार होने की आवश्यकता है| उ.प्र. में भी कुछ शहरों का चयन इस योजना में हुआ है|

अब यदि हम चयनित स्मार्ट सिटी में रहना चाहते हैं तो जरूरी है कि अधिक से अधिक जनता का सहभाग इसके DPR बनाने में हो तथा DPR बनाने के लिए जरूरी है कि जिन बिंदुओं के आधार पर DPR बनना है उन प्रत्येक बिंदु पर विस्तृत समझ बने, सघन चर्चा हो|

कहावत है कि ‘बिन पानी सब सून’ जीवन व विकास का पानी मुख्य आधार है इसलिए इस बिंदु पर विस्तृत चर्चा तथा सामूहिक विवेक चेतना जागृति परम आवश्यक है| पानी, स्वास्थ तथा शिक्षा की तरफ सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए| पानी का स्वामित्व तथा वितरण सरकार पर होना चाहिए| स्वच्छ जल की व्यवस्था तथा गंदे पानी व मल के निष्कासन की व्यवस्था किसी भी शहर की आधारभूत संरचना होती है| यह किसी भी शहर के नागरिकों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सब से अधिक महत्वपूर्ण है|

शहरी योजना में इमारत सब से महत्वपूर्ण है तथा आवश्यक सुविधाएं इसके नीचे जमीन में पाइपों में बिछाई जाती हैं| इनमें मुख्यत: स्वच्छ जल की उपलब्धता तथा गंदे पानी के निष्कासन की लाइन होती है| यदि गंदे पानी के निष्कासन की बेहतर व्यवस्था और स्वच्छ पानी की आपूर्ति का काम हो तो वह बेहतरीन इमारत साबित होती है| यदि निम्न आय श्रेणी के आवासों में इसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध हो तो आवास चाहे कितना भी असुविधाजनक हो पर जो वह चारों ओर से कीचड़ व गंदगी से घिरे रहते हैं, उस स्थिति से बचा जा सकता है| इसी कारण वहां स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं होता|

जो जल है उसकी गुणवत्ता भी चिंताजनक है| अधिकारी बताते हैं कि पिछले दशक में ही जल स्तर में ८० फीसदी तक की गिरावट आई है| शहर की प्यास बुझाने के लिए  हजारों मिलियन लीटर पानी जमीन से रोज खींचा जा रहा है| इसके लिए तमाम छोटे-बड़े ट्यूबवेल रात दिन काम करते हैं, जिनकी क्षमता लगातार कम हो रही है| शहर के पार्कों में लगभग चारों कोनों पर निगम ट्यूबवेल खोद चुका है| यदि यही हालात रहे तो अगले दशक में ये ट्यूबवेल बेपानी हो जाएंगे| इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए जल की उपलब्धता तथा गुणवत्ता दोनों सुनिश्‍चित करनी होंगी जो कि हम भविष्य में होने वाले जल उपयोग की उपलब्धता और खपत (जल आंकलन-वाटर बजट) के जरिए कर सकते हैं|

संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी दुनिया भर में पानी के स्रोतों को गंदा करने तथा घटती पानी की उपलब्धता पर चिंता जताई है जिस कारण शहरों में पानी की माप करने का उपाय ढूंढा गया है यानि शहरी प्राधिकरण कितना पानी ले रहे हैं तथा अपने नागरिकों को कितना पानी प्रति दिन दे रहे हैं इसका माप रहता है| अभी दिल्ली सरकार ने अपने नागरिकों को प्रति परिवार एक निश्‍चित मात्रा में पानी नि:शुल्क देने की योजना चलाई है| यदि कोई परिवार उससे ज्यादा पानी खर्च करता है तो उसे न केवल फालतू पानी बल्कि मुफ्त मिले पानी का भी प्रति माह भुगतान करना होता है| हम बेहताशा पानी बहाते हैं, बिना परवाह किए कि कम पानी में भी वह काम हो सकता है| यदि पानी का मापन होगा तो हमें अपव्यय का भी पता चलेगा और वह रुकेगा भी|

पानी का बजट तथा पानी का मापन तभी संभव हो पाएगा जब पानी की उपलब्धता होगी| यदि किसी शहर में पानी की उपलब्धता प्रचुर है तो वहां का नागरिक खुशहाल और सम्पन्न रहता है| इसके लिए विचार करना होगा कि पानी कहां से मिलता है| पहला स्रोत तो वर्षा जल है, दूसरा स्रोत नहर का पानी तथा तीसरा सब से अधिक दोहित भूगर्भ जल है| इन तीनों तरह के स्रोतों का हम किस तरह और कितना उपयोग करते हैं कि वर्षा जल को हम सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं| गंगा के जल पीने को अधिकतम आबादी आतुर है तथा भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन से स्थिति भयावह है| भगवान की कृपा हम पर रहती है वर्षा के रूप में शहर में प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है किंतु शहर में पूर्व में मौजूद तालाबों पर कब्जे हो गए हैं या उनको प्रदूषित कर दिया गया| अब कल्पना करें कि मौजूदा तालाबों पर अतिक्रमण हटें तथा उनमें वर्षा जल पहुंचने के रास्तों का नियोजन किया जाएगा तो कभी भी पानी का स्तर घटेगा नहीं, क्योंकि वर्षा हर साल होती है| न केवल नागरिक अपने आवास और कारोबार के लिए अतिक्रमण करते हैं वरन् शहर में सरकारी संस्थानों ने भी कई तालाबों पर अवैध कब्जा किया हुआ है| इन सभी में सर्वोच्च प्राथमिकता पर वर्षा जल संचयन हो उसके बाद उन नालों का पानी जो पानी बर्बादी के कारण भरे रहते हैं उन पर जैविक एसटीपी लगा कर उनका पानी भी तालाबों में डाला जा सकता है|

गंगा जल का उपयोग भी तालाबों को पुनर्जीवित करने में किया जा सकता है| अलीगढ़ के मशहूर अचल ताल में बवारसी रजवाहे से पानी भरा जाता रहा है तथा कुशीनगर में जामुनी नदी से वहां के शहरी तालाबों को पिछले दस सालों से भर कर पुनर्जीवित किया गया है| तालाबों का उपयोग सरकार तथा जनता दोनों को समझना होगा तथा इनके रक्षण के लिए शहर में ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जिससे आम नागरिक अपनी सुविधा से तालाब संबंधित शिकायत या सुझाव दर्ज करा सके|

वर्षा जल के संग्रहण का दूसरा उपाय है छतों का पानी जमीन में पहुंचाना इसको सरकार द्वारा जरूरी भी किया गया है परंतु अप्रभावी निरीक्षण इसे निष्प्राण कर देता है| शहर में कईं स्थानों पर वर्षा जल का भराव होता है इन स्थानों पर सोंकने वाला गड्ढा बनवा कर यह पानी भी धरती के पेट में पहुंचाया जा सकता है| शहर के मुहल्लों में पुराने कुएं बेकार पड़े हैं जबकि ये वर्षा काल में जल संचयन का बेहतर साधन बन सकते हैं| आज पूरे शहर में सीमेंट टाइल्स का साम्राज्य नजर आता है| अविवेकी टाइलिंग न केवल शहर की हरियाली नष्ट कर रही है बल्कि पहले जो पानी कच्ची जमीन से होकर धरती में चला जाता था उसे भी रोकती है| टाइलिंग बहुत आवश्यक हों तो करवाई जाएं, टाइल के नीचे सीमेंट, रोड़ा आदि न भरा जाए छेदों वाली टाइल्स का ही इस्तेमाल किया जाए|

पानी का विवेकपूर्ण इस्तेमाल भी पानी की उपलब्धता बढ़ाता है| हमारे प्रति दिन की दिनचर्या का अवलोकन करने पर बहुत से कार्य पानी को बचा पाएंगे, यदि उनमें थोड़ा बदलाव कर लें तो| समाज जीवन में भी पानी के प्रति सामूहिक चेतना जागृत होती है तो जल संवेदना से जल संवर्धन होता है| पानी का पुनर्उपयोग तथा पुनर्चक्रण पानी की उपलब्धता बढ़ाता है| दिल्ली में कईं इमारतों में ऊपर वाले के बाथरूम का पानी नीचे फ्लैट वाला अपने टॉयलेट को साफ करने की फ्लैश में उपयोग कर रहे हैं| शहर में कई नालियां व नालों में लगभग साफ पानी बहता है| ऐसे नालों पर चैक डैम बना कर, त्रिस्तरीय कुण्ड जल शोधन यंत्र के रूप में बना कर उसका पानी बागवानी, इमारत निर्माण, सड़क निर्माण, औद्योगिक प्रयोग इत्यादि में किया जा सकता है| शहर के सीवर को जल शोधन यंत्र- एसटीपी द्वारा शोधित किया जाता है, किंतु उसे यूंही व्यर्थ बहा देते हैं| इनको निम्न क्रमानुसार प्राथमिकता से प्रयोग में लाया जाए- पहला जिस स्रोत से वह उत्पन्न हुआ है सर्वप्रथम उसे उसी स्रोत द्वारा उसी कार्य में प्रयोग किया जाए,

दूसरा खेती अथवा बागवानी में, तीसरा स्थानीय तालाबों में, चौथा गैर बरसाती नालों में|

ग्रामों- शहरों मे तमाम जन प्रतिनिंध जनता को पानी पिलाने के लिए हैंड पंप लगवाते ह| प्रति दिन औसतन एक हैंड पंप में ५०० लीटर पानी बर्बाद होता है| यदि हम उस हैंड पंप के बराबर में जल सोंकने वला गड्ढा बनवा दें तो बर्बाद हुआ पानी पुन: धरती के पेट में पहुंचेगा| शहरों में बहुत लोग अपने एयर कंडीशनर का निकला पानी पौधों को देने में, फर्श की सफाई आदि में इस्तेमाल कर रहे हैं| सरकार को चाहिए कि जो भी संगठन, हाऊसिंग सोसायटी, पानी के पुनर्उपयोग तथा पुनर्चक्रण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रयोग या कार्य कर रहे हों उन्हें प्रोत्साहित किया जाए या उन्हें सामूहिक रूप से पुरस्कृत किया जाए जिससे ५०० लीटर पानी से एसयूवी धोने वाले, २००० लीटर से घर के फर्श रोजाना धोने वाले, ८ इंच का बोरिंग कर अवैध रूप से इमारत बनाने के लिए भूगर्भ जल का दोहन करने वाले, पानी का अवैध कारोबार करने वाले टैंकर माफिया को सबक मिलेगा|

नदी का स्मार्ट सिटी के ऊझठ में न केवल नियोजन होना चाहिए| शहर की नदी को सीवरमुक्त क्षेत्र घोषित करना चाहिए जिससे कोई भी नाला इसमें न गिर सके| रोके गए नालों से जैविक खाद तथा औद्योगिक उपयोगी पानी मिलेगा, जिससे पीने योग्य पानी पर दबाव कम होगा| नागपुर नगर निगम इसका उदाहरण है|

किसी भी नदी के तीन क्षेत्र होते हैं| पहला- सामान्य दिनों में नदी का पानी जहां तक बहता है, दूसरा- सामान्य बाढ़ का पानी जितना क्षेत्रफल घेरता है, व तीसरा- जहां तक पिछले १०० वर्षों के दौरान सर्वाधिक बाढ़ वाले क्षेत्र में नदी का पानी पहुंचा हो| इन तीनों क्षेत्रों की पहचान तथा चिह्नीकरण कर उसे अधिसूचित किया जाए|

जब नदी में निर्मल जल रहेगा, शहर के तालाबों में वर्षा जल से भूगर्भ जल स्तर सुधरेगा तभी भूगर्भ में अंदर मौजूद आपसी जल संचरण प्रणालियां दुरूस्त हो जाएंगी तब शहर वासियों को स्वच्छ जल, प्रचुर जल लंबे समय तक मिल सकेगा| इसलिए स्मार्ट सिटी की ऊझठ में शहर के तालाबों तथा नदी के पुर्नजीवन की योजना का भी संयोजन करना चाहिए|

अंत में इस पूरे ऊझठ के मूलभूत आधार पर लौटें| शहरवासियों से सुझाव मांग कर समाधान निकाला जाए| इसके लिए बहुत आवश्यक है कि शहर के नगर निगम अथवा विकास प्राधिकरण में किसी ऐसे संबंधित जल विकास प्रकोष्ठ का गठन किया जाए जिससे आम नागरिक की सहज सहभागिता लगातार सुनिश्‍चित हो; ताकि जल संसाधन प्रबंधन में उसका उसका सशक्त सहयोग रहे|

 

संजय कश्यप

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