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ऐसा देश है मेरा

ऐसा देश है मेरा

by हिंदी विवेक
in प्रकाश - शक्ति दीपावली विशेषांक अक्टूबर २०१७, सामाजिक
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‘‘देश में शिक्षा की बाढ़-सी आ गई है| इस क्षेत्र में हमने इतनी तरक्की कर ली है कि विद्यार्थी जिस विषय में चाहे, टॉप कर सकता है, यहां तक कि कई बार तो उसे खुद पता नहीं चलता कि उसने किस विषय में टॉप किया है| टॉप करना पास होने से भी ज्यादा आसान हो गया है|’’

जैसा कि हम में से बहुत-से लोग जानते होंगे, अपने इस प्यारे देश का नाम इंडिया है और यहां की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी है| कुछ सिरफिरे लोग इसे भारत या हिंदुस्तान कह कर भी पुकारते हैं और यहां की राष्ट्रभाषा हिंदी होने की गलतफहमी पैदा करने की कोशिश करते हैं, पर शुक्र है भगवान का कि विदेशी ही नहीं, देशवासी भी उनकी बातों में नहीं आते|

इंडिया, चलिए भारत ही सही, पहले कृषि-प्रधान देश था, अब देश है| पहले सोने की चिड़िया था, अब सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है, खासकर विदेशियों की नजर में| वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने लिखा भी है, अरुण यह मधुमय देश हमारा| जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा| यह अनजान क्षितिज और कुछ नहीं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रतीक है| अलबत्ता कुछ विद्वान् इस कविता को अरुण शौरी का लिखा हुआ भी मानते हैं| विवाद खड़ा करने के शौकीन कुछ लोग इसे जयशंकर प्रसाद की भी बताते हैं|

देश के अस्सी प्रतिशत लोग खेती पर और बाकी राहत-कार्यों पर निर्भर हैं| यहां की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है, जिसका सबूत यह है कि विदेशी भी ऐसा ही कहते हैं| हमारे पास संसाधनों का कोई अभाव नहीं| कोयले, लोहे, तांबे, अभ्रक आदि के विशाल भंडार हैं| जमीन से कोयला निकाला जाता है, तो कोयले के साथ घोटाला अनायास निकल आता है| आर्थिक स्थिति हमेशा अच्छी बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि खनिज भंडार बने रहें| हम इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं| इसी वजह से खानों से ज्यादा चीजें नहीं निकालते और बिना उसके ही कोयले की दलाली में मुंह काला और धन सफेद करते रहते हैं|

भारत भारत है, यहां नदियों की जगह नदियां, पहाड़ों की जगह पहाड़ और मैदानों की जगह मैदान हैं, जिनमें सब से ज्यादा फसल राजनीति की होती है| यह फसल वहां भी उगाई जा सकती है, जहां कुछ नहीं उगता| यहां हर आदमी हर क्षेत्र में और हर विषय पर राजनीति करता है और ऐसा करते हुए दूसरे को टोकता भी रहता है कि इस मामले में राजनीति मत करो| देश में इफरात में पैदा होने वाली अन्य फसलों में बेईमानी, तस्करी, घोटाले, दलबदल, रिश्वतखोरी, सेक्स-स्कैंडल, अफीम और कच्ची शराब आदि प्रमुख हैं| कहीं-कहीं गेहूं, मक्का, बाजरा आदि भी पैदा होता है, जिसके लिए किसान बारहों महीने पछताता है|

भारत में तीन ओर समुद्र है, जो तस्करों और आतंकवादियों को अपनी या दूसरों की जान जोखिम में डाल कर भी देश को अपनी बहुमूल्य सेवाएं देने का अवसर उपलब्ध कराता है| सीता की खोज में निकले राम का मार्ग रोक कर जो गलती समुद्र ने त्रेतायुग में की थी, उसके निवारणस्वरूप अब वह किसी का भी मार्ग नहीं रोकता| ठीक भी है, ना जाने किस भेस में नारायण मिल जाए और क्रोध में आकर तरकस में से बाण या खीसे में से बम निकाल ले|

भारत में रेगिस्तान भी हैं, जिनमें सब से काम की चीज रेत होती है जो अमीर-गरीब दोनों के बहुत काम आती है| अमीर उसकी मदद से अपने महल खड़े करते हैं, तो गरीब भूख लगने पर उसे फांक सकते हैं| वैसे एक राजस्थानी गीत के अनुसार महिलाएं भी रेतीले जैसलमेर की ही सब से सुंदर होती हैं, हालांकि इसका मुझे कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं है| देश में जहां पर रेगिस्तान नहीं, वहां पर वन हैं और जहां पर वन हैं, वहां पेड़-पौधे हैं जिन्हें काट कर ईंधन के तौर पर तो जलाया ही जाता है, बहुओं-दलितों-आदिवासियों को जिंदा जलाने के काम में भी लाया जाता है| जहां-तहां बलात्कार होते रहते हैं, जिनमें किसी का हाथ-मुंह काला नहीं होता|

पहले भारत में घी-दूध की नदियां बहती थीं, अब उन नदियों में प्रदूषण की बाढ़ आई रहती है| जब से दूध यूरिया और साबुन से बनने लगा है, गाएं दूध देने के कम, दंगा करवाने के काम ज्यादा आने लगी हैं| जीते-जी गाय मनुष्य के जितने काम आती है, मर कर उससे भी ज्यादा काम आती है| इसलिए समझदार लोग इधर बूचड़खाने चलाते हैं, उधर गाय के नाम पर दंगे करवा कर गोभक्ति का परिचय देते हैं|

दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए देश का हर नागरिक दिल्लीमुखी है, यहां तक कि हरेक की अपनी अलग दिल्ली है|  दिल्ली में अन्य चीजों के अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इफरात से पाए जाते हैं| जिन लोगों के पास कोई काम नहीं होता, वे ऐसे संगठनों के सचिव और अध्यक्ष बन जाते हैं, जिसके बाद उनके पास काम ही काम हो जाता है|

देश में कई बड़े नगर हैं, जिन्हें सुविधा के लिए महानगर कहा जाता है, हालांकि वहां असुविधाएं ज्यादा होती हैं| दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई ऐसे ही महानगर हैं, जहां अट्टालिकाओं में तस्कर और झुगी-झोंपड़ियों में बेबस मानवता रहती है|

देश में शिक्षा की बाढ़-सी आ गई है| इस क्षेत्र में हमने इतनी तरक्की कर ली है कि विद्यार्थी जिस विषय में चाहे, टॉप कर सकता है, यहां तक कि कई बार तो उसे खुद पता नहीं चलता कि उसने किस विषय में टॉप किया है| टॉप करना पास होने से भी ज्यादा आसान हो गया है| शिक्षा की उन्नति में सरकार का सहयोग लोगों ने भी हर गली-मुहल्ले में पब्लिक स्कूल खोल कर दिया, जिनका आम पब्लिक से कभी कोई नाता नहीं रहा| सहायक उद्योगों के रूप में कोचिंग उद्योग और नकल उद्योग ही नहीं, फर्जी डिग्री उद्योग भी पनप आए, जिन्होंने डिग्री पाने के लिए पढ़ना अप्रासंगिक बना दिया| नेता जैसे व्यस्त लोगों का तो ये ही एकमात्र सहारा होते हैं|

देश का शिक्षा विभाग मूलत: तबादला विभाग है| इस विभाग में चूंकि अकसर पति-पत्नी दोनों इकट्ठे काम करते हैं| इकट्ठे काम करने के कारण ही अकसर वे पति-पत्नी हो गए होते हैं| अत: दोनों में से एक का तबादला करके परिवार-नियोजन कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है| लेकिन पता नहीं कैसे, यह प्रयोग भी विफल रहता है और फलत: हमारी आबादी सवा सौ करोड़ तक पहुंच गई है| शिक्षा के क्रम में ही पीएचडी का भी विकास हुआ है और हालत यह हो गई है कि हर लल्लू-पंजू, ऐरा-गैरा, नत्थू खैरा किसी न किसी शिक्षा की दुकान से पीएचडी होने की फिराक में रहता है| जो हो जाता है, वह सोच में पड़ जाता है कि होकर भी क्या हुआ और जो नहीं हो पाता, वह इस सोच में कि इतना सब करके भी क्यों नहीं हो पाया?

भारत में रेल-परिवहन काफी विकसित है| समूचे देश में रेल की पटरियों का जाल-सा बिछा है| इन पटरियों का हमारे निजी जीवन में भी बड़ा महत्व है| इन पर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ जा सकता है| खुले में शौच न करने और घर में ही शौचालय बनवाने के सरकारी आदेश का पालन चूंकि बेघर लोग चाह कर भी नहीं कर सकते, लिहाजा स्टेशन के निकट झुग्गी-झोपड़ियों में और फुटपाथों आदि पर बसे लोगों का सहारा रेल की पटरियां ही बनती हैं| रेल की पटरियों में फिश-प्लेटें भी होती हैं, जो उखाड़े जाने के काम आती हैं| रेल की पटरियों का एक उपयोग और भी है, उन पर रेलगाड़ियां चलती हैं| वैसे यह उपयोग बहुत गौण है, क्योंकि भारतीय रेलगाड़ियां अकसर पटरियों से नीचे भी चलती हैं| पिछले दिनों कई रेलगाड़ियां थल पर चलते-चलते जल में उतर गईं| इससे पता चलता है कि भारत में रेलगाड़ियों को जल-थल दोनों पर समान रूप से चलाने के जोरदार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें नदी-नालों पर रेल के पुल बनाने वाले ठेकेदार भरपूर योगदान कर रहे हैं|

इधर हमारे देश ने कई क्षेत्रों में काफी तरक्की की है| पैदावार बढ़ी है| बच्चे भावी भारत के कर्णधार हैं, यह बात हम शुरू से ही ध्यान रखते आए हैं| यही कारण है कि ‘दो या तीन बस!’ के सरकारी नारे को ‘दो या तीन बस?’ के रूप में लेते हुए हमने भारत के लिए कर्णधारों की भरमार कर दी है| कुछ धार्मिक नेता तो इससे भी संतुष्ट नहीं हैं और ‘कम से कम चार’ का नारा देते हैं| इसके बिना उन्हें धर्म खतरे में नजर आता है| सरकार के अथक प्रयासों से बचत भी बढ़ी है| स्थिति यह हो गई है कि लोगों को बाजार जाने पर पता चलता है कि वे अपनी आय का उपयोग बचत करने के अलावा और किसी चीज के लिए कर ही नहीं सकते|

भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुख्य रूप से दो ही घटनाएं घटित हो पाती हैं  आयात और निर्यात| भारत जिन चीजों का आयात करता है, उनमें तेल सब से महत्वपूर्ण है| इस तेल का एक पूल होता है, जिसका घाटा बराबर बढ़ता ही जाता है| उसे कम करने का एक ही सरल उपाय है कीमत बढ़ाना| हम यह उपाय बड़ी शिद्दत से करते रहते हैं, यहां तक कि जब अंतरराष्ट्रीय जगत में तेल की कीमतें घटती हैं, तब भी देश में तेल की कीमतें बढ़ती हैं|

तेल मुख्यतया बसों और बहुओं को जलाने के काम आता है, हालांकि उससे वाहन चलाने का परंपरागत काम भी भरपूर मात्रा में लिया जाता है| तेल से चलने वाले वाहन बाई-प्रोडक्ट के रूप में धुएं का जोरदार उत्पादन करते हैं, जो मच्छरों को मार कर डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के उन्मूलन में वाहन-चालकों के विनम्र योगदान का परिचायक है| धुएं से दमा, कैंसर, टीबी जैसे दूसरे रोग भले हो जाएं, पर मच्छरजन्य बीमारियों के मामले में वह बहुत आश्वस्तकारी समझा जाता है| सरकार इसीलिए उनकी तरफ से पूरी तरह आश्वस्त रहती है और अपनी ओर से कोई और कदम उठाना आवश्यक नहीं समझती|

भारतीय निर्यात की प्रमुख मद खाद्यान्न है| भारत से खाद्यान्न का निर्यात भारतवासियों के स्वास्थ्य की दृष्टि से निहायत जरूरी है| देश में ज्यादा अनाज रहने पर लोग ठूंस-ठूंस कर खाने से मर जाएंगे, जो बिना खाए मरने से ज्यादा शर्मनाक है| लोग अगर नहीं भी मरे, तो यह तो होगा ही कि ज्यादा अनाज रहने से लोग अनाज ही अनाज खा पाएंगे, चारा नहीं, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से ज्यादा फायदेमंद है| सरकार निर्यात-सामग्री में नई-नई वस्तुएं, जैसे कि सांसदों की हिंदी-समिति आदि, जोड़ने का प्रयत्न करती रहती है|

हमारा देश एक विकासशील देश है और यह बात हम कुछ इस गर्व से कहते हैं कि विकसित देश तक डर जाते हैं| पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने यही बात दोहरा-दोहरा कर अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक सब की मिट्टी खराब कर दी| सब विकसित देश सोच में पड़ गए कि विकासशील होना कहीं विकसित होने से भी ज्यादा श्रेयस्कर तो नहीं?

इस प्रकार, देश समृद्ध है और जनता खुशहाल| बड़े-बड़े नेता आम आदमियों की तकलीफें जानने के लिए अकसर देश का दौरा करते हैं और सर्किट-हाउसों से लेकर फाइव-स्टार होटलों तक की खाक छान मारते हैं, लेकिन कहीं कोई भूखा-नंगा नजर नहीं आता| उनका जी तरस कर रह जाता है भूखे-नंगों के साथ सेल्फी लेने के लिए| कहीं-कहीं तो लोग इतने  संपन्न हैं कि लंगोटी तक पहनते हैं| सभी के लिए आवास उपलब्ध हैं| अपनी-अपनी रुचि के अनुसार कुछ लोग छतों के नीचे रहते हैं, तो बाकी गरीबी की रेखा के नीचे|

ऐसा देश है मेरा! सोणा देश है मेरा!

 

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