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जुनून का धनी महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग

जुनून का धनी महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग

by धर्मेन्द्र पाण्डेय
in अप्रैल २०१८, सामाजिक
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असाध्य बीमारी से बेहद विकलांग बन चुके स्टीफन हाकिंस अपनी पीएच.डी. तक पूरा करने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन अपनी जिजीविषा के बल पर उन्होंने ब्लैक होल तथा बिग बैंग थ्योरी को समझने में अहम भूमिका अदा की। यही क्यों, 14 मार्च को मृत्यु के समय तक उनके पास 12 मानद डिग्रियां और अमेरिका का सब से उच्च नागरिक सम्मान था।

एक सामान्य सी और दो पंक्तियों की कथा है। 1963 में किसी 21 वर्षीय छात्र को मोटर न्यूरॉन नाम की दुर्लभ बीमारी हो जाती है जिससे वह चलने-फिरने में पूरी तरह असमर्थ हो जाता है। परंतु अपनी जिजीविषा के बल पर वही लड़का डॉक्टरों द्वारा बताए दो सालों से इक्यावन साल अधिक जी कर दुनिया के सर्वकालिक महान वैज्ञानिकों की श्रेणी में स्थान पक्का करा लेता है। पर दो पंक्तियों की इस कथा के फैलाव का अध्ययन करने पर पता चलता है कि ऊपर की पंक्तियों में प्रयुक्त ‘जिजीविषा‘ शब्द कितना व्यापक है। यह वही भाव है जो मनुष्य को पशुओं से ऊपर उठा कर इस पृथ्वी का नियंता बना देता है।

दुनिया भर के तमाम धार्मिक व ऐतिहासिक आख्यान इसी भाव के संप्रेषण की कथा का बखान करते हैं। यदि जीवों के विकास की भारतीय धारणा की ही बात करें तो ‘दशावतार’ की कथा भी इसी जिजीविषा के विशद रूप से व्याख्यायित होने का भाव देती है। बचपन से ही गणित में दिलचस्पी रखने वाले विद्यार्थी को आक्सफोर्ड के यूनिवर्सिटी कॉलेज में गणित विषय उपलब्ध न होने के कारण भौतिकी अपनानी पड़ी। बीमारी की वजह से पहले तो बैसाखियों के सहारे, फिर आगे चल कर पूरी तरह से व्हीलचेयर में कैद हो जाना पड़ा। धीरे-धीरे शरीर के ज्यादातर अंगों ने काम करना बंद कर दिया। शरीर एक जिंदा लाश बन गया। आगे चल कर स्थिति इतनी भयावह हो गई कि उसे एक कम्प्यूटर के माध्यम से बात करने के लिए मजबूर होना पड़ा। परंतु इन सारी शारीरिक विकलांगताओं के बावजूद आइंस्टीन के बाद का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक माने जाने वाले स्टीफन हाकिंग ने अपनी शारीरिक दुर्बलताओं के विषय में बताया था-

“लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़ कर ही बातचीत करता हूं। हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं लेकिन हमें उन चीजों के लिए पछताना नहीं चाहिए जो कि हमारे वश में नहीं है। हमारी बुद्धिमत्ता की सब से बड़ी असफलता न बोलने में है। कभी भी अपनी मानसिकता को असफलता की ओर मत ले जाइए क्योंकि हमारी सब से बड़ी आशा ही हमारा भविष्य बनती है। इसीलिए हम सभी को हमेशा बोलते रहना तथा प्रगति पथ पर अग्रसर रहना चाहिए।”

तमाम अक्षमताओं के बावजूद स्टीफन अपने अटूट विश्वास और प्रयासों के दम पर इतिहास लिखने की शुरुआत कर चुके थे। उन्होंने अपनी अक्षमता और बीमारी को एक वरदान के रूप में लिया। जब उन्हें अचानक यह अहसास हुआ कि अवसाद के क्षण बौद्धिक क्षमता का हनन कर देंगे तथा उनकी पीएच.डी. का पूरा होना लगभग असंभव है तो उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा को अनुसंधान को समर्पित कर दिया। जीने की इच्छा और चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्परता से स्टीफन हाकिंग ने यह साबित कर दिया कि मृत्यु तो निश्चित है। लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच कैसे जीना चाहते हैं वह केवल हम पर निर्भर है। उनके खुद के शब्दों में-

“हालांकि मैं चल नहीं सकता और कम्प्यूटर के माध्यम से बात करनी पड़ती है लेकिन अपने दिमाग से मैं आजाद हूं। अन्य विकलांगों के लिए मेरी सलाह है, कि उन चीजों  पर ध्यान दें जिन्हें अच्छी तरह से करने में आपकी विकलांगता आड़े नहीं आती और उन चीजों के लिए अफसोस नहीं करें जिन्हें करने में ये बाधा डालती है। आत्मा और शरीर दोनों से विकलांग मत बनें। अगली बार कोई यह शिकायत करे कि आपने गलती कर दी तो उन्हें बताएं कि यह अच्छी बात है क्योंकि बिना परफेक्शन के आप कुछ छोड़ नहीं सकते। आपका कार्य ही आपको जीने का अर्थ और उद्देश्य देता है और इसके बिना आपका जीवन बिलकुल अधूरा है। हमारी बुद्धिमत्ता की सब से बड़ी उपलब्धि हमें बोलने से मिलती है।”

किसी समय जिसके पास अपना पीएच.डी. पूरी करने के लिए समय नहीं था, अपनी जिजीविषा के बल पर उन्होंने ब्लैक होल तथा बिग बैंग थ्योरी को समझने में अहम भूमिका अदा की। इतना ही नहीं, 14 मार्च को अपनी मृत्यु के समय तक उनके पास 12 मानद डिग्रियां और अमेरिका का सब से उच्च नागरिक सम्मान था।

अगर डॉक्टरी भाषा की बात करें तो पिछले 53 सालों में उन्होंने जो शारीरिक व मानसिक वेदना झेली थी, वह एक सामान्य मनुष्य की चेतना तथा समझ से परे की चीज है। लाखों में से कोई एक व्यक्ति ही ऐसी वेदना को सहते हुए जीवन पथ पर उन्नति के मार्ग का क्रमण कर पाता है। शायद इसीलिए शुरुआत से ही हाकिंग इच्छा मृत्यु के प्रबल पैरोकार रहे हैं। वे कहते रहते थे-

“मैं मानता हूं कि जिन्हें लाइलाज बीमारी है और वे अत्यधिक पीड़ा में हैं उनके पास अपना जीवन समाप्त करने का अधिकार होना चाहिए, और जो उनकी मदद करें उन्हें अभियोग से मुक्त रखना चाहिए।”

पर स्वयं के लिए उनका सर्वप्रिय कथन था-

“मैं मौत से नहीं डरता, लेकिन मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है। मेरे पास पहले से ही करने को इतना कुछ है कि यदि मैं अपनी विकलांगता के लिए गुस्सा करूं तो ये मेरे लिए समय को व्यर्थ गंवाने जैसा होगा। यदि आप हमेशा शिकायत करते रहोगे तो लोगों के पास आपके लिए समय नहीं होगा।”

उनकी खोजों तथा वैचारिक मंथन का फलक काफी व्यापक रहा है। उन्होंने जीवन के हर महत्वपूर्ण पहलू के प्रति अपने विचार रखे तथा लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। वे ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज के प्रबल आग्रही रहे थे। उनके अनुसार अगले सौ सालों में यह पृथ्वी मानवों के रहने योग्य नहीं रह जाएगी इसलिए हमें नए विकल्पों के प्रति खुले मस्तिष्क से सोचने की आवश्यकता है। वे लोगों को पैरों की बजाय सितारों की ओर देखने के लिए कहते थे ताकि लोगों की उत्सुकता व आश्चर्य बना रहे। यह उत्सुकता ही ब्रह्मांड के अस्तित्व व रहस्यों का सही विवेचन करने में सहायक सिद्ध होगी ताकि शून्य गुरुत्वाकर्षण के नियमों के प्रतिपालन के बल पर हम अंतरिक्ष यात्रा कर नव मानव बस्ती बसाने का कार्य कर सकें। कुछ दशकों पहले तक ‘समय यात्रा’ की बात औपन्यासिक गल्प की श्रेणी में रखी जाती थी पर अपने तमाम शोधों के बल पर उन्होंने साबित कर दिया कि भविष्य में समय यात्रा संभव है, बशर्ते उस दिशा में व्यापक व गहन कार्य किए जाने की आवश्यकता है। वे कम्प्यूटरों द्वारा बुद्धि विकसित कर मानव पर काबू करने को भविष्य का एक गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण खतरा मानते थे।

मानव द्वारा किया जा रहा निरंतर पर्यावरण क्षरण, आतंकवाद, परमाणु बमों की होड़ जैसे कार्य उन्हें काफी खलते थे। वे बहुधा कहते थे-

“हम अपने लालच और मूर्खता के कारण खुद को नष्ट करने के खतरे में हैं। हम इस छोटे, तेजी से प्रदूषित हो रहे और भीड़ से भरे ग्रह पर अपनी और अंदर की तरफ देखते नहीं रह सकते। हम एक औसत तारे के छोटे से ग्रह पर रहने वाली बंदरों की उन्नत नस्ल हैं लेकिन हम ब्रह्मांड को समझ सकते हैं। ये हमें कुछ खास बनाता है। हालांकि 11 सितम्बर का आतंकवादी हमला भयानक था, फिर भी परमाणु हथियार से ज्यादा नहीं क्योंकि यह मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं था।”

आखिर में, विज्ञान को संवेदनहीन, दुष्कर व शुष्क मानने वालों के लिए भी उनके कुछ लोकप्रिय कथोपकथन प्रस्तुत हैं-

“विज्ञान केवल तर्क का ही अनुयायी नहीं है, बल्कि रोमांस और जुनून का भी। विज्ञान लोगों को गरीबी और बीमारी से निकाल सकता है और बदले में सामाजिक अशांति समाप्त कर सकता है।”

 

धर्मेन्द्र पाण्डेय

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