मानसिक रोग और रोगी

जब किसी व्यक्ति का व्यवहार सामाजिक मानकों या सोशल नॉर्म्स के अनुरूप होता है, तो उसे हम सामान्य मानते हैं, लेकिन जब उसका व्यवहार उन मानकों के अनुसार नहीं होता, तो उसे असामान्य व्यवहार करार देते हैं। इसकी पहचान और चिकित्सा आवश्यक है।

वर्तमान समय में इंसान की लगातार बदलती जीवनशैली उसके शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ ही उसे मानसिक तौर पर भी काफी क्षति पहुंचा रही है। परिणामस्वरूप मानसिक रोगियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। आम तौर से शारीरिक रोगियों की तुलना में मानसिक रोगियों को अधिक देखभाल और सहानुभूति की जरूरत होती है। पर अफसोस कि होता ठीक इसके उल्टा है। आज भी हमारे समाज में अधिकतर लोग मानसिक रोगियों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं, मानो उन्होंने कोई पाप कर दिया हो। इसी कारण मानसिक रोग से पीड़ित लोग अक्सर अपनी समस्याओं को छुपाते हैं। इस बारे में खुल कर बात नहीं करते। डॉक्टर के पास जाने से भी कतराते हैं कि अगर लोगों को पता चला गया तो ‘लोग क्या कहेंगे।’ इस वजह से उनकी समस्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जाती है और एक समय के बाद इसके गंभीर परिणाम न केवल पीड़ित व्यक्ति को बल्कि उसके पूरे परिवार या उसके आस-पास रहने वाले सभी लोगों को झेलने पड़ते हैं। आंकड़ों की बात करें, तो भारत में कुल आबादी के 9 फीसदी लोग दिमागी मरीज हैं। विश्व के कुल मनोरोगियों का 15% भारत में हैं।

क्या हैं मनोरोग

मनोरोग का अर्थ किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की उस स्थिति से है, जिसकी तुलना किसी स्वस्थ व्यक्ति से करने पर वह ’सामान्य’ नहीं होती। सामान्य भाषा में कहें, तो जब किसी व्यक्ति का व्यवहार सामाजिक मानकों या सोशल नॉर्म्स के अनुरूप होता है, तो उसे सामान्य माना जाता है, लेकिन जब उसका व्यवहार उन मानकों के अनुसार नहीं होता, तो उसे असामान्य व्यवहार माना जाता है।

स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोग ग्रस्त किसी व्यक्ति का व्यवहार असामान्य

मानसिक रोगों के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार होते हैं

* सामाजिक रूप से अलग-थलग या अकेले रहना।

* कामकाज में असामान्यता, विशेष रूप से स्कूल या काम की जगह पर, खेल आदि में अरूचि, स्कूल में असफल रहना आदि।

* ध्यान अथवा एकाग्रता में कमी, याददाश्त कमजोर होना, या समझने में मुश्किल होना।

* गंध, स्पर्श व जगहों के प्रति अधिक संवेदनशीलता व उत्तेजना।

* किसी भी गतिविधि में भाग लेने के लिए इच्छा की कमी, या उदासीनता।

* हमेशा खुद को हताश, निराश या कमजोर समझना।

* दूसरों पर शक करना। यह सोचना कि सब उनके बारे में ही सोचते या बातें करते हैं।

* भयभीत या हमेशा नर्वस महसूस करना।

* अस्वाभाविक और अजीब व्यवहार प्रदर्शित करना।

* नाटकीय रूप से नींद और भूख में कमी या बढ़ोतरी होना।

* व्यक्तिगत स्वच्छता में कमी। पूरे विश्व में तेजी से बढ़ती मानसिक रोगियों की संख्या को देखते हुए इनके प्रति जागरूकता बढ़ाना और इनके इलाज के उपाय तलाशना बेहद जरूरी है।

कैसे करें मनोरोग के लक्षणों की पहचान

कोई भी मानसिक रोग इससे प्रभावित व्यक्ति के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करता है, इसीलिए इसे रोग, सिंड्रोम, या डिसॉर्डर कहा जाता है। आम तौर पर अधिकतर मानसिक रोगी या मनोरोगी देखने में सामान्य लोगों की तरह ही लगते हैं, लेकिन उनके व्यवहारों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।

(maladaptive behaviour) होता है। इन्हें मानसिक रोग, मनोविकार, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार के नाम से भी जाना जाता है।

कोमर (1995) ने असामान्य व्यवहार की व्याख्या चार डी (Four D’s) के रूप में की है।

विचलन (Deviance): इसके तहत ऐसे व्यवहारों को रखा जाता है, जो सामाजिक मानकों से भिन्न होते हैं।

तकलीफ (Distress) : ऐसे व्यवहार जो स्वयं व्यक्ति के लिए कष्टकारी या तकलीफदेह होते हैं।

दुष्क्रिया (Dysfunction): ऐसे व्यवहार जो व्यक्ति को अपनी दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों को करने के बाधक होते हैं। इससे व्यक्ति का मन इतना अशांत हो जाता है कि वह साधारण सामाजिक परिस्थितियों में खुद को एडजस्ट नहीं कर पाता।

खतरा (Danger): ऐसे असामान्य व्यवहार जो स्वयं व्यक्ति के साथ-साथ उसके संपर्क में रहने वाले अन्य लोगों के लिए भी खतरनाक साबित होता है।

इन सबके लिए कई तरह के कारक जैसे जैविक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक व पर्यावरणीय आदि कारक जिम्मेदार होते हैं।

आनुवंशिक कारक

साइकोसिस (जैसे सिजोफ्रेनिया, मूड डिसॉर्डर, डिप्रेशन इत्यादि), पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, अल्कोहलिज्म, मंदबुद्धिता, एपिलेप्सी इत्यादि रोग उन लोगों में ज्यादा मिलते हैं, जिनके परिवार में इसका कोई इतिहास रहा हो। उन परिवारों में पैदा होने वाली संतान में इनके होने की संभावना सामान्य लोगों की अपेक्षा लगभग दोगुनी होती है।

व्यक्तित्व कारक

अपनेआप में खोये रहने वाले, चुप रहने वाले, कम दोस्ती करने वाले लोगों में सेजोफ्रेनिया की संभावना अधिक होती है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले लोगों में मनोग्रसित-बाध्यता रोग की संभावना अधिक होती है।

मनोवैज्ञानिक कारण

आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति का गुजरना, आत्मसम्मान को ठेस लगना, काम में भारी नुकसान, शादी, तलाक, परीक्षा या प्यार में असफलता आदि मनोरोगों के कारण बन सकते हैं।

पर्यावरणी कारक

प्राकृतिक आपदाएं, प्रदूषण, प्रतिकूल परिवेश, दूसरों द्वारा की गई अपेक्षाएं आदि भी कई बार मानसिक बीमारी की वजह बन जाती हैं।

इसके अलावा कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, शराब व अन्य नशीले पदार्थों आदि का सेवन मनोरोगों के होने का कारण बन सकते हैं। इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

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