पत्रकारिता में महिलाओं की दशा और दिशा

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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तो बढ़ी है लेकिन अभी भी वो हाशिए पर है। लेकिन कई ऐसी जुझारु पत्रकार हैं जो अपनी कार्य-कुशलता के बल पर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती हैं और उन क्षेत्रों में जाकर साहसिक रिर्पोटिंग करती हैं जहां पुरुषों का क्षेत्र  माना जाता था।  

बदलते दौर में महिलाओं में आए परिवर्तन

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भारतीय संस्कृति में महिलाओं की स्थिति पुरुषों के समान ही रही लेकिन 11वीं सदी से लेकर 19वीं सदी के मध्य के संक्रमण काल में यहां महिलाओं की स्थिति अत्यधिक बुरी हो गई। एक बार फिर उसमें तेजी आई है लेकिन इसमें बढ़ाव की आवश्यकता है ताकि समाज की प्रगति में…

सावित्रीबाई फुलेः स्त्री शिक्षा की अग्रणी प्रणेता

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दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिल कर डाली, जिसने भारत में महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण की नींव रखी। वे दोनों कभी ऑक्सफोर्ड नहीं गये थे, बल्कि, उन्होंने भारत में रहते हुए ही भारतीय समाज…

24 x 7 काम ही काम

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कोरोना आपदा ने हमारे जीवन में काफी कुछ बदल दिया है। पहले जो लोग जिंदगी को बेफिक्र अंदाज में जीते थे, बगैर किसी की परवाह किए, अब वे भी हर छोटी-छोटी सी बात की परवाह करने लगे हैं। कोरोना ने न सिर्फ जीवन के प्रति हमारा नजरिया बदल दिया है, बल्कि हमारे रहन-सहन का ढंग, खान-पान की आदतें, हमारे जीवन में रिश्तों की अहमियत तथा हमारे कामकाज का ढंग आदि बहुत कुछ भी प्रभावित हो गया है।

मंदिरों की पूजा की रीति

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सम्पूर्ण भारत में ऐसे-ऐसे दिव्य मंदिर है, जहां की विविधतापूर्ण विशेषताएं विश्व भर के लोगों को आकर्षित करते हैं। साथ ही, देश भर में मनाया जाने वाला नवरात्रि और दशहरे का त्योहार भी हर राज्य में अपनी एक अलग छटा बिखेरता है। नवरात्री का यह त्योहार खास तौर पर भक्ति और शक्ति का प्रतीक है।

स्मार्टफोन बना रहा बच्चों को हिंसक

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आजकल स्मार्टफोन जीवन की आवश्यकता से आगे बढ़कर लोगों को सामाजिक जीवन से काटकर रख देने वाली चीज बन गए हैं। वैसे तो इसका प्रभाव हर वर्ग पर पड़ रहा है लेकिन बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव बहुत खतरनाक साबित हो रहा है क्योंकि बच्चे देश का भविष्य होते हैं और यह उनके मस्तिष्क को कुंद कर दे रहा है।

नारीवाद का यथार्थ

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दरअसल, इन फर्जी नारीवाद का उद्देश्य सिर्फ पुरुषों को नीचा दिखाना है। इन्हें अधिकारों की बात नहीं करनी, बल्कि इनका असल मकसद है पितृसत्ता के खिलाफ भड़काऊ बेहूदा पोस्ट डालकर उनके ख़िलाफ़ नफरत फैलाना। अगर सच में ही ऐसी महिलाएं ’नारीवादी’ होतीं, तो ये ज़मीनी स्तर पर उनके अधिकारों और महिलाओं पर हो रहे शोषण के खिलाफ लड़ रही होतीं, फेसबुक और ट्विटर पर रात-दिन बयानबाजी नहीं कर रही होती।

कोरोना से देश में बढ़ी बेरोजगारी

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सामान्य तौर पर बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है, जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नहीं मिल पा रहा है। बेरोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों  देशों में पाई जाती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कींस के अनुसार किसी भी देश में  बेरोजगारी अन्य किसी भी समस्या से बड़ी समस्या है।

दान नहीं, बल्कि ‘दान का भाव’ है महत्वपूर्ण

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दान तभी सार्थक है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाये। अगर दान देते समय दानदाता के मन में उसके बदले कुछ पाने की लालसा है, भले ही वह पुण्य की लालसा ही क्यूं न हो, तो वह दान नहीं व्यापार है। अगर वह अपनी इच्छा के विरूद्ध केवल लोकोपचार की वजह से दिया जाये,

बच्चों को हम दे क्या रहे हैं?

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हम अपने बच्चों को जीवन में केवल दो महत्वपूर्ण चीजें ही दे सकते हैं- मजबूत जड़ (संस्कार) और शक्तिशाली पंख (आत्मविश्वास)। उसके बाद वे जहां चाहें, वहां उड़ सकते हैं और स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं।

स्त्री और चुनौती एक-दूसरे का पर्याय है

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इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को है। इस वर्ष की थीम है- स्त्री और चुनौतियां। पिछले लगभग सौ सालों में महिलाओं ने संघर्षरत रह कर अपने अधिकार हासिल किए हैं। भारत में ऐसी महिलाएं भी हैं, जिन्होंने लीक से हट कर उपलब्धियां हासिल की हैं।

सावित्रीबाई फुलेः स्त्री शिक्षा की अग्रणी प्रणेता

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दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिल कर डाली, जिसने भारत में महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण की नींव रखी।

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