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प्लास्टिक मुक्त भारत का स्वप्न

प्लास्टिक मुक्त भारत का स्वप्न

by अमोल पेडणेकर
in जून २०१८, संपादकीय
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सरकार ने राज्य में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध प्लास्टिक की हर वस्तु पर नहीं, केवल प्लास्टिक की पतली थैलियों पर ही लागू है। प्लास्टिक की ये थैलियां पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं। सरकार के द्वारा लिया गया प्लास्टिक पर प्रतिबंध का यह निर्णय स्वागतयोग्य है। परंतु क्या केवल प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से पर्यावरण का होनेवाला नुकसान थम जाएगा? यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित ही है। यह प्रतिबंध लगाने से पहले सरकार को प्लास्टिक का विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए था। वास्तविकता यह है कि आज प्लास्टिक सबसे सस्ता और सभी स्तरों के लिए उपयोगी वस्तु बन चुका है। इसका अभी तक कोई भी विकल्प नहीं मिला है। सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगाने के पूर्व इन बातों पर विचार नहीं किया गया, अत: यह प्रतिबंध बहुत ही खोखला लगता है। प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाते समय उत्पादक से लेकर सामान्य जनता तक और प्लास्टिक पर निर्भर रहनेवाले लाखों कर्मचारियों का नुकसान न हो, इसका गहराई से विचार होना आवश्यक है।

प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का यह पहला अवसर नहीं है। देश में लगभग 20 वर्ष पूर्व से प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का प्रयोग हो रहा है। प्लास्टिक के प्रयोग पर कम अधिक मात्रा में पाबंदी लगाई गई। सरकार ने इसके लिए सन 1986 के पर्यावरण कानून का उपयोग किया। परंतु इस पर क्रियान्वयन कितना हो पाया यह सभी जानते हैं।

देशभर के विभिन्न राज्यों की नदियां प्लास्टिक थैलियों से पटी हुई हैं। देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों की समस्याओं की सूची में प्लास्टिक की समस्या का भी समावेश होने लगा है। इसका प्रमुख कारण विघटित न होनेवाला प्लास्टिक ही है। कचरे की समस्या के कारण बारिश में होनेवाला जलभराव भी उग्र रूप ले लेता है। मुंबई में 15 वर्ष पूर्व अतिवृष्टि के कारण जो बाढ आई थी उसका कारण भी प्लास्टिक ही था। प्लास्टिक की थैलियों से भरे हुए गटर ही मुंबई को डुबानेवाला कारक सिद्ध हुआ। प्लास्टिक के इस तरह के दुष्परिणामों से सीख लेकर ही शायद सरकार ने प्लास्टिक पर पाबंदी का निर्णय लिया है। प्लास्टिक की थैलियां और अन्य उत्पादन प्राकृतिक दृष्टि से या जैविक दृष्टि से विघटनशील न होने के कारण उनके प्रयोग से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है। उनके भयानक परिणाम समुद्र के जीव-जंतुओं पर भी हो रहे हैं। प्लास्टिक का प्रयोग करने की आदत केवल हमारे हाथों को ही नहीं मन को भी हो चुकी है। इस आदत को हमें जड़ से उखाड़ना होगा। इसके लिए हमारे मन में प्लास्टिक के प्रयोग की भावना है उसे बदलना होगा। प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से पहले उसके विकल्प देने होंगे। इन सभी के साथ प्लास्टिक के संदर्भ में समाज में साक्षरता फैलाने की भी आवश्यकता है। प्लास्टिक का विकल्प दिए बिना और इस संदर्भ में समाज में जागरुकता लाए बिना पर्यावरण को प्लास्टिक से खतरा है यह बात ही सामान्य लोगों के गले नहीं उतर रही है। पिछले 20 वर्षों में सरकार की ओर से प्लास्टिक पर लगे प्रतिबंध की जनता की ओर से जो अवहेलना हुई है उसका यह भी एक प्रमुख कारण हो सकता है।

दुनिया में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के सफल प्रयोगों के कई उदाहरण हैं। दुनिया का छोटा सा देश है रवांडा। इस देश में पिछले दस सालों से प्लास्टिक प्रतिबंधित है। उन्होंने देशव्यापी प्लास्टिक जागरण अभियान के अंतर्गत प्लास्टिक पर प्रतिबंध का महत्व लोगों को समझाया है। वहां के लोग प्लास्टिक की थैलियों के बिना जीना सीख गए हैं। कीनिया जैसा देश भी इसी मार्ग पर चल रहा है। फ्रांस भी 2020 तक खुद को प्लास्टिक मुक्त देश बनाने के लिए कटिबद्ध है। यूरोप, अफ्रीका, एशिया के अन्य कई देश इसी मार्ग पर चल रहे हैं। भारत भी इस मार्ग पर चलते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है, परंतु पिछले 20 सालों में वह अभी तक पूर्ण सफलता नहीं प्राप्त कर सका है। प्लास्टिक पर प्रतिबंध की केवल घोषणा करने से काम नहीं चलेगा अपितु उसका विकल्प देना भी अत्यंत आवश्यक होगा।

प्लास्टिक के प्रदूषण ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों और अध्ययनकर्ताओं के सामने प्रश्नचिह्न निर्माण किया है। प्लास्टिक के सूक्ष्म कण समुद्री जीवों के खाद्य पदार्थों में शामिल हो रहे हैं। अत: समुद्री जीवों को हानि पहुंचाने वाले तथा कचरे की अनेक समस्याओं की जड़ प्लास्टिक ही है। इसका बंदोबस्त किस तरह किया जाए यह चिंता सारी दुनिया को सता रही है। इस प्लास्टिक को नष्ट करनेवाले कुछ जीवाणुओं की खोज करने का दावा भी कुछ वैज्ञनिकों ने किया है। यह खोज कुछ इस तरह है जैसे चारों ओर अंधेरा छाने के बाद सकारात्मक प्रकाश की एक किरण नजर आए और अंधेरा छटना शुरू हो जाए। यह जीवाणु प्लास्टिक का विघटन कर देता है, ऐसा उनका दावा है। इस विघटित प्लास्टिक से पुन: प्लास्टिक का निर्माण करने का दावा भी कुछ भारतीय कंपनियां कर रही हैं। इतना भी अगर हो जाए तो हम लक्ष्य के काफी करीब पहुंच सकते हैं। इन नवीन उपायों का विचार करनेवाली कम्पनियों के बारे में सरकार को विचार करना चाहिए। उन्हें सरकार से आवश्यक प्रोत्साहन और सहायता मिलनी भी जरूरी है। प्लास्टिक के किसी भी विकल्प का विचार न करते हुए  प्लास्टिक पर सीधे प्रतिबंध लगा देने से अगर जनता को तकलीफ हो रही हो तो यह सरकार की बड़ी विफलता होगी। संयोग की बात यह है कि भारत की कुछ कंपनियां भी प्लास्टिक का विकल्प निर्माण करके प्लास्टिकमुक्त भारत बनाने का सकारात्मक विचार कर रही हैं। सरकार को भी आशा की इस किरण को आवश्यक सहायता प्रदान करनी चाहिए तथा प्लास्टिकमुक्त भारत का निर्माण करने के स्वप्न को साकार करना चाहिए।

 

 

अमोल पेडणेकर

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