मैं एक मीसा बंदी

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“समाज का जाति अनुसार विचार करने वाले प्रगतिशील महानुभावों द्वारा संघ को मनुवादी कहते देखकर मेरे क्रोध की सीमा न रही। हिंदू समाज का अस्तित्व उन्हें स्वीकार नहीं था। परंतु जातीय अहंकार, जातीय भावना भड़काने से उन्हें कोई एतराज नहीं था। जातीय भावना भड़काकर समता पर आधारित समाज रचना करने का उपदेश करना यह उनके ढोंगीपन की सीमा थी।”

आपातकाल (26 जून १९७५) का आधुनिक संदर्भ

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वर्तमान पीढ़ी को चूंकि यह जानने का अधिकार है कि आपातकाल में आखिर क्या हुआ था, अतः इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इससे जो बातें छनकर आएंगी, वे तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की स्वेच्छाचारिता, अतिमहत्वाकांक्षा तथा पदलोलुपता को तो प्रदर्शित करेंगी ही, कांग्रेस के शासन की करतूतें भी सामने आएंगी।

दीक्षा व्यक्ति को आकाश बना देती है

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      प्रसिद्ध सेवाभावी संस्था ‘समस्त महाजन’ के गिरीशभाई शाह के भतीजे उच्च शिक्षित 24 वर्षीय ‘मोक्षेस’ ने जैन मुनि की हाल में दीक्षा ली। प्रस्तुत है मोक्षेस की दीक्षा के संदर्भ में जैन मुनि राजहंस सूरीजी से विशेष बातचीत-

प्लास्टिक का विकल्प संभव – विक्रम भानुशाली

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प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प है, कम्पोस्टेबल पालिमर। स्टॉर्च (कार्न, शुगर) से उत्पादित लैक्टिक एसिड से पॉली लैक्टिक एसिड व अन्य नैसर्गिक पदार्थों को मिलाकर स्काय आई इनोवेशन यह पदार्थ प्लास्टिक के विकल्प के रूफ में लाया है। यह न केवल कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है बल्कि बाद में इससे कम्पोस्ट(खाद) भी बनता है। प्रस्तुत है कम्पनी के निदेशक श्री विक्रम भानुशाली से प्लास्टिक उद्योग, प्लास्टिक से उत्पन्न पर्यावरण समस्याओं, वैकल्पिक उत्पाद, सरकार से प्रोत्साहन आदि के बारे में हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंशः-

अपना शहर

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“चलने से पहले एक भरपूर निगाह मकान पर डालता हूं। ऐ मेरे मन, रोना नहीं, रोना नहीं -खुद से कहता हूं।  ट्रक चल पड़ा है। पीछे-पीछे कार। अब हम गली से बाहर आ गए हैं। अपना शहर तो छूट गया।”

चटपटा नाश्ता

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गर्मियों के दिन हैं। बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं। उन्हें शाम को भूख लग जाती है। कई बार शाम को मेहमान भी आ जाते हैं। हमेशा वही पोहा, उपमा, इडली, समोसा, वडा किसी को नहीं सुहाता। क्यों ना ऐसा चटपटा नाश्ता बनाया जाए जो नया हो बच्चों के साथ-साथ बड़ों को पसंद आए।

मानसिक बीमारियों के दैहिक कारक

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ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि मानसिक बीमारियां हमारे मस्तिष्क की क्रियाशीलता को प्रभावित करने वाले जैविक, आनुवंशिक या पर्यावरणीय (आसपास का माहौल) कारकों की अव्यवस्थित कार्यवाही का परिणाम होती हैं। यह पूरी तरह से सच नहीं है। कई बार मानसिक बीमारियों का कारण शारीरिक भी होता है, जैसे - दिमागी चोट, स्नायु विकार, सर्जरी, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक यंत्रणा आदि का प्रभाव भी व्यक्ति की मस्तिष्कीय क्रियाशीलता पर पड़ सकता है।

कृषि में मूल्यवर्धित उत्पादों का बड़ा हिस्सा

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देश में ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ही साथ ‘ग्रो इन इंडिया’ अभियान चलाए जाने की भी आवश्यकता है जो कि पूरी तरह कृषि उत्पादन एवं उसके व्यापार पर केंद्रित हो। आज भी अनाजों के मुकाबले अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों का कृषि जीडीपी में बहुत बड़ा हिस्सा है।

नेत्रदान, महाअभियान

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अपने शरीर का हर अंग अगर हमारी मृत्य् के उपरांत दूसरे को नया जीवनदान दे सके तो यह पुण्य का कार्य प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। ‘आई प्लेज, वी प्लेज’ के महाअभियान में अब तक 50 लाख से अधिक लोग शामिल हो चुके हैं। आइए, आप भी उसका हिस्सा बनिए। यह ईश्वरीय कार्य है।

जैव-कम्पोस्ट योग्य पॉलिमर

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प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कम्पोस्ट योग्य पॉलिमर पिछले कुछ वर्षों में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। यह पॉलिमर प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े करता है और जैविक संसाधनों में घुल मिलकर उनका कम्पोस्ट बना देता है। प्लास्टिक के खतरे से बचने का यह नया और आधुनिक तरीका है।

पॉलिथीन पर पाबंदी के लिए चाहिए वैकल्पिक व्यवस्था

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बाजार से सब्जी लाना हो या पैक दूध या फिर किराना या कपड़े, पॉलिथीन के प्रति लोभ ना तो दुकानदार छोड़ पा रहे हैं, ना ही खरीदार। पॉलिथीन न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य को भी नष्ट करने पर आमादा है। इससे बचने के लिए वैकल्पिक उत्पादों पर हमें गौर करना होगा।

सहकारी बैंकों का भविष्य अंधेरे में

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सहकारी बैंकों के प्रति सरकारों और राजनीतिक दलों का रवैया उदासीन दिखाई दे रहा है। यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो ये बैंक नाममात्र के लिए अस्तित्व में रह जाएंगे। यह सहकारिता और देश दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।

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