भारत में दिव्यांगों के लिए प्रावधान

विकलांगों के लिए कानून, योजनाएं और नीतियां उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। समाज के रवैये में बदलाव आना आवश्यक है ताकि सभी क्षेत्रों में विकलांग लोगों के लिए समावेशी वातावरण बनाया जा सके।

वैश्विक स्तर पर, विकलांग व्यक्तियों को सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में से एक माना जाता है जो उपेक्षा, वंचित, पृथक्करण और बहिष्कार का शिकार है। भारत सरकार ने इस बड़े वंचित समूह को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी समझी है और सही सामाजिक मॉडल को अपनाकर विकलांग लोगों के कल्याण और पुनर्वास के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को तैयार किया है।

जनगणना 2011 के अनुसार, भारत की 121 करोड़ की आबादी में से लगभग 2.68 करोड़ लोग ’विकलांग’ हैं जो कि कुल आबादी का 2.21% है। विकलांग आबादी में से 56% (1.5 करोड़) पुरुष हैं और 44% (1.18 करोड़) महिलाएं हैं। विकलांग आबादी का अधिकतर भाग (69%) ग्रामीण इलाकों में रहता है (ग्रामीण क्षेत्रों में 1.86 करोड़ विकलांग व्यक्ति और शहरी क्षेत्रों में 0.81 करोड़)। कुल आबादी के मामले में, 69% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं जबकि शेष 31% शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।

कानून

2016-17 की अवधि में विकलांग व्यक्तियों के जीवन-स्तर में सुधार और सकारात्मक कार्रवाई के लिए कानूनों और नीतियों में सुधार के अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रम हाथ में लिए गए। विकलांग लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) का कानून 2016 में पारित किया गया था और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 में पारित किया गया था। दिव्यांगों के लिए समान अवसरों के संघर्ष में आरपीडब्ल्यूडी एक मील का पत्थर साबित हुआ है।

विकलांगताओं के प्रकार

आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 में विकलांगों के प्रकारों को मौजूदा 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इसमें कम दृष्टि, अंधापन, श्रवण विकलांगता, लोकोमोटर विकलांगता, विशिष्ट शिक्षण विकलांगता, मानसिक बीमारी, बौद्धिक अक्षमता, ऑटिज़्म,  विशेष रक्त विकार जैसे थैलेसेमिया, हेमोफिलिया, सिकल सेल, बहु-विकलांगता जैसे बहरे-अंधे, बौनापन, मांसपेशियों की डिस्ट्रॉफी, पार्किंसंस रोग, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, सेरेब्रल पाल्सी, एसिड हमले के पीड़ित, मल्टिपल स्क्लेरोसिस और वाणी और भाषा की अक्षमता सहित कई विकलांगताएं शामिल हैं।

सुगम्य भारत अभियान

विकलांग व्यक्तियों के लिए बाधा रहित वातावरण बनाने के लिए भारत सरकार ने एक प्रमुख कार्यक्रम सुगम्य भारत अभियान शुरू किया है, जो कि 3 दिसम्बर 2015 को शुरू हुआ। अभियान का लक्ष्य विकलांग लोगों के लिए भौतिक और आभासी बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है जो कि सही अर्थों में सुलभ और समावेशी हो। साथ ही ऐसे भवन, यातायात प्रणालियां और सूचना संचार प्रौद्योगिकी का निर्माण करना है जो कि बड़े पैमाने पर सुलभ भी हों और जो बाधा-मुक्त वातावरण निर्माण करने के दिशानिर्देशों के अनुरूप हों। ये दिशानिर्देश जारी होने के बाद, सभी नई परियोजनाओं में इसके अनिवार्य प्रावधानों का पालन किया जा रहा है।

आदर्श भवन नियमावली को भी संशोधित किया गया है। संशोधित नियमावली 18 मार्च 2016 को जारी की गई जिसमें विभिन्न विषयों के अलग-अलग प्रावधान शामिल हैं- जैसे विकलांगों, वृद्धों और बच्चों की सुविधाओं के प्रावधान, जो सभी इमारतों पर लागू होते हैं, और शैक्षिक, संस्थागत, जनसमूह संबंधी, वाणिज्यिक, व्यापारिक भवन, सामूहिक निवास संबंधी इत्यादि जो कि सार्वजनिक स्थलों पर लागू होते हैं। इस नियमावली में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि अवरोध मुक्त पुनर्निर्माण के लिए केंद्र सरकार के तहत सभी मौजूदा इमारतों के लिए एक्सेस ऑडिट कंसल्टेंट्स को भी शामिल किया जाए।

यूडीआईडी परियोजना

सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के तहत विकलांग सशक्तिकरण विभाग विकलांग व्यक्तियों के लिए यूनिक आईडी परियोजना को लागू करने की प्रक्रिया में है जिसके तहत विकलांग लोगों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जा सके और प्रत्येक विकलांग व्यक्ति को एक आईडी कार्ड दिया जा सके। इसके द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने हेतु विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करना सुलभ हो सकेगा।

कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना

सरकार ने कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना 2015 में जारी की है जिसका उद्देश्य 2022 तक विभिन्न हितधारकों के माध्यम से 25 मिलियन विकलांग लोगों के कौशल विकास के लिए कार्य करना शामिल है। वे विकलांगों में कौशल विकसित करने के लिए कार्यक्रम प्रबंधन, रोजगार सक्षम बनाने हेतु प्रशिक्षण क्षमता तथा आईसीटी आधारित सामग्री विकास पर काम कर रहे हैं।

जागरूकता बढ़ाने और प्रचार के लिए योजना

इस योजना को 2014 में जारी किया गया था जिसमें व्यापक प्रसिद्धि के उद्देश्य से कार्यक्रम आधारित प्रचार इत्यादि शामिल थे। इसके तहत पीडब्ल्यूडी के सामाजिक समावेशन हेतु और एक सक्षम वातावरण बनाने हेतु इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, फिल्म मीडिया, मल्टी मीडिया के माध्यम से केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा संचालित विकलांगों के कल्याणकारी कार्यक्रमों की जानकारी के प्रचार-प्रसार के लिए, पीडब्ल्यूडी के कानूनी अधिकारों की जानकारी पहुंचाने के लिए, नियोक्ताओं और अन्य समान समूहों को विकलांगों की विशेष आवश्यकताओं के बारे में जानकारी देने के लिए, विकलांगों के पुनर्वास हेतु सामग्री विकसित करने के लिए, सहायता केंद्र देने आदि के लिए, विशेष प्रावधान किए गए हैं।

अनुसंधान और विकलांगता से संबंधित प्रौद्योगिकी, उत्पादों और मुद्दों पर केंद्रीय परीयोजना

विकलांग व्यक्ति सशक्तिकरण विभाग ने जनवरी 2015 में उपरोक्त योजना शुरू की है। इसका उद्देश्य है कि जीवन चक्र की आवश्यकताओं, व्यक्तियों और उनके परिवारों के परिपूर्ण विकास पर आधारित मॉडल और कार्यक्रमों के अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके। साथ ही विकलांगता की रोकथाम और उचित रखरखाव के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित स्वदेशी उपकरणों के अनुसंधान को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य है।

शिक्षा

विकलांग बच्चों की एक बड़ी संख्या को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती है। यह अधिनियम प्रस्तावित करता है कि अक्षमतावाले प्रत्येक बच्चे को 6 से 18 वर्ष की आयु में निःशुल्क शिक्षा मिले।

सरकार ने विभिन्न स्तरों पर विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति और फेलोशिप प्रदान की हैं- जैसे प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक, एम.फिल, पीएच.डी. और विदेशों में उच्च शिक्षा आदि। मंत्रालय ने अक्षमता वाले छात्रों हेतु विकलांगता अनुकूल परीक्षा केंद्र बनाने के लिए 2015 में आदेश जारी किए हैं।

10,000 रुपये तक शुल्क की हर साल प्रतिपूर्ति की जाती है। स्नातक/स्नातकोत्तर/ पेशेवर पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले दृश्य अक्षम/श्रवण अक्षम छात्रों हेतु संपादन सॉफ्टवेयर और सेरेब्रल पाल्सी वाले छात्रों हेतु सपोर्ट एक्सेस सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटर के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

माध्यमिक स्तर के विकलांगों हेतु समावेशी शिक्षा (आईईडीएसएस) 

यह योजना 14 साल या उससे अधिक आयु के विकलांग बच्चों को सहायता प्रदान करती है, जो 9वीं से 12वीं कक्षा में किसी भी सरकारी, स्थानीय शासन और सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों में पढ़ रहे हों। यह योजना उन विकलांग बच्चों को पहचान पत्र भी देती है जो प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा की ओर बढ़ रहे हैं ताकि उन्हें उनकी विकलांगता में सहायता करने वाले उपकरण, शिक्षा सामग्री, यातायात सुविधा, छात्रावास सुविधा, छात्रवृत्तियां, किताबें, सहायक तकनीकें, लेखक लिपिक और पढ़ने वाला आदि सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें।

रोजगार

नए कानून के तहत रोजगार में विकलांगों के लिए आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है। सरकार ने विभिन्न विभागों और अनुभागों में पदों की पहचान की है जिन्हें विकलांगों के लिए ही आरक्षित किया गया है जिनमें उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम दिया जाएगा। सरकार ने, जून 2015 में जारी परिपत्र के अनुसार, केंद्र सरकार के अंतर्गत सी और डी पदों की रिक्तियों के लिए कम दृष्टि वाले, अंध, श्रवण विकलांग, लोकोमोटर विकलांग और सेरेब्रल पाल्सी वाले विकलागों हेतु 10 साल अधिक की अधिकतम आयु सीमा तय की है। उन्हें आवेदन शुल्क और परीक्षा शुल्क में भी छूट दी गई है।

सामान्य से दोगुनी दरों पर यातायात भत्ता 2017 से लागू हो चुका है। साथ ही 17 फरवरी 2015 को जारी परिपत्र के अनुसार विकलांग सरकारी कर्मचारियों के सहायकों को भी प्रशिक्षण या प्रवास के लिए यात्रा भत्ता देना शुरू किया गया है।

राष्ट्रीय विकलांग वित्त एवं विकास निगम स्वयं रोजगार के लिए विकलांगों को क़र्ज़ देता है। आरबीआई ने अपने मार्च 2015 के परिपत्र में यह स्पष्ट किया है कि विकलांगों के प्राथमिकता क्षेत्र के क़र्ज़ कमज़ोर वर्ग के रूप में वर्गीकृत किए जाएंगे।

केंद्र के सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर विकलांग महिला कर्मचारियों को विशेष लाभ दिया जाता है, विशेष रूप से यदि उनके छोटे बच्चे हों या विकलांग बच्चे हों। सरकार ने 3000/- प्रति महीना विकलांग महिला कर्मचारियों को शिशु देखभाल विशेष भत्ता देने का निर्णय लिया है। यह भत्ता बच्चे के जन्म से बच्चे के 2 वर्ष पूरे होने तक मिल सकेगा। यह प्रथम दो जीवित बच्चों तक के लिए सीमित है। यह प्रावधान जुलाई 2017 से प्रभावशील है।

विशेष सुविधाएं

विकलांगों को धारा 80 यू के तहत आयकर में छूट दी गई है। विकलांगों के कानूनी पालकों को धारा 80डीडी के तहत चिकित्सा, प्रशिक्षण और पुनर्वास पर होने वाले व्यय या वार्षिकी पर आयकर में छूट दी गई है। विकलांगों को व्यवसाय कर में छूट दी गई है।

साधनों और उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिए अक्षम व्यक्तियों की सहायता (एडीआईपी योजना)

इस योजना का मुख्य उद्देश्य ऐसे टिकाऊ, परिष्कृत और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायक साधनों और उपकरणों को खरीदने में जरूरतमंद विकलांग लोगों की सहायता करना है जो विकलांगता के प्रभाव को कम कर सके  और उनकी आर्थिक क्षमता को बढ़ाकर उनके शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा दे सके। इस योजना में ऐसे साधन और उपकरण शामिल हैं जिनका मूल्य 50रु. से कम और 6000 रु. से अधिक न हो। साथ ही, यात्रा भत्ता सामान्य दर्जे की बस यात्रा शुल्क या रेल में द्वितीय श्रेणी शयन यान की यात्रा तक स्वीकार्य और सीमित है। चिकित्सा केंद्रों की यात्राओं की संख्या पर कोई सीमा नहीं है।

इस धारा की एक और बहुत बड़ी विशेषता है, हर जिले में विशेष न्यायालयों का प्रावधान। ये विशेष न्यायालय पीडब्ल्यूडी के अधिकारों के हनन से संबंधित मामलों पर काम करेंगे। राज्य सरकारें पीडब्ल्यूडी की स्थानीय समस्याओं के लिए जिला स्तर पर समितियों का गठन करेंगी।

विकलांगों के लिए कानून और योजनाएं/ नीतियां उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। समाज के रवैये में बदलाव आना आवश्यक है ताकि सभी क्षेत्रों में विकलांग लोगों के लिए समावेशी वातावरण बनाया जा सके।

 

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