अटलजी की अण्वास्त्र नीति

अटल जी के नेतृत्व में भारत द्वारा घोषित अण्वास्त्र नीति के महत्वपूर्ण वाक्य हैं- हम अण्वास्त्र का प्रथम प्रयोग नहीं करेंगे। पर यदि हम पर किसी ने हमला किया तो हम निश्चित प्रतिकार करेंगे। आक्रामक को असह्य हो इतना कठोर सबक सिखाएंगे। इससे भारत की विदेश नीति उच्च स्तर पर पहुंच गई।

श्रीअटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने वाले गैर कांग्रेसी नेता थे। 27 दलों के सहयोग से उन्होंने यह सरकार बनाई थी। इसके पूर्व सन 1977 से 1979 के उनन्नीस महीनों की जनता पार्टी सरकार में उन्होंने विदेश मंत्री का दायित्व निभाया था। इस प्रकार देश के प्रधानमंत्री का पद सम्हालते समय उनके पास विदेश नीति का अच्छा खासा अनुभव था। पूर्व विदेश सचिव श्री जे.एन.दीक्षित के अनुसार देश का हित किसमें है इसकी स्पष्ट कल्पना एवं देश के भविष्य के बारे में व्यवहार्य दूरदृष्टि ये गुण उन्हें शायद भगवत कृपा से ही प्राप्त हुए लगते हैं। (अ‍ॅक्रॉस बार्डर्स-फिफ्टी ईयर्स ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी/ पायस बुक्स नई दिल्ली,1998, पृष्ठ 121)

जनता पार्टी के शासन काल में अटल जी ने पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन किया। 4 अप्रैल 78 को सलाल योजना के संबध में भारत-पाक समझौते पर हस्ताक्षर करते समय उन्होंने इस नीति के पालन की पुन: निश्चिति की। (देखें डेटा इंडिया, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली 10-16 अप्रैल 1978, पृष्ठ 225) इसी कारण उस कालखंड में भारत कें पाकिस्तान के संबध काफी सुधरे। अटल जी ने उस काल में चीन का दौरा कर चीन के साथ भी संबंध सुधारने का प्रयास किया। विशेष याने भारत का मित्र वियतनाम पर चीन आक्रमण करने वाला है, ऐसी गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट होते हुए भी अटल जी ने चीन का दौरा किया। (पी.एम.कामत-फॉरेन पॉलिसी-मेकिंग एण्ड इंटरनेशनल पॉलिटिक्स ,नई दिल्ली, रेडियन्ट पब्लिशर्स 1990, पृष्ठ 234)

भारत का अण्वास्त्र परीक्षण एवं स्वत: को अण्वास्त्र संपन्न देश घोषित करना यह भारतीय विदेश नीति के बदलते स्वरूप का एक विशेष बिंदु था। मई 1998 को अटल जी ने यह घोषित कर विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया कि भारत ने तीन अण्वास्त्र परीक्षण किए हैं। इसमें से एक परीक्षण प्लुटोनियम प्रकार का याने 1974 के अणु परीक्षण जैसा ही था। दूसरा परीक्षण हायड्रोजन बम का था एवं तीसरा व्यूह रचनात्मक अण्वास्त्र का था। दो दिनों बाद पुन: दो परीक्षण किए गए। तब प्रधानमंत्री ने कहा था, भारत अब अण्वास्त्र देश हो गया है। (टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई, 16 मई 1998)

अटल जी की नेतृत्व क्षमता का यह छोटा सा नमूना था। नटवर सिंह पहले राजनयिक थे, बाद में वे राजनीतिक नेता बने। वे उस समय कांग्रेस के प्रवक्ता थे। वास्तव में देश को अण्वास्त्र संपन्न बनाना गर्व की बात थी परंतु नटवर सिंह अर्थात कांग्रेस के प्रवक्ता की प्रतिक्रिया अत्यंत निराशाजनक थी। इसके कारण उस घटना का महत्व ज्यादा अधोरेखित हुआ। नटवर सिंह ने कहा कि अण्वास्त्र परीक्षण का श्रेय इस सरकार का न होकर कांग्रेस के 45 वर्ष किए गए कामों को है। परंतु अणु तंत्रज्ञान का श्रेय मेरी सरकार का है ऐसा अटल जी ने कभी नहीं कहा। परंतु यह निश्चित था कि देश को अण्वास्त्र संपन्न बनाने हेतु आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति, दृढ़ निश्चय, कुशलता एवं युक्ति ये चीजें प्रधानमंत्री अटल जी में ही थीं। इनमें से एक गुण भी पहले की कांग्रेस सरकारें नहीं दिखा सकीं। (तत्रैव-पृष्ठ 1941-43)

कांग्रेस सरकारों ने अण्वास्त्र परीक्षण करना निश्चित किया, परंतु प्रत्यक्ष परीक्षण उनके लिए संभव नहीं हो सका ऐसे कम से कम दो प्रसंग याद है। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन सन 1983 में इंदिरा सरकार में रक्षा मंत्री थे। उन्होंने अटल जी को लिखा था 1983 में पोखरण में भूगर्भ मेंअण्वास्त्र परीक्षण की तैयारी पूर्ण की गई थी। मैंने स्वत: भूगर्भ के अंदर जाकर सारी व्यवस्था देखी थी। परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुक कर परीक्षण नहीं हो सका एवं योजना ठंड़े रास्ते में डाल दी गई। (टाइम्स ऑफ इंडिया,मुंबई, 28 मई 1998) सन 1995 के दिसंबर में भी नरसिंह राव सरकार ने अण्वास्त्र परीक्षण की योजना बनाई थी परंतु अमेरिका को इसका पता चल गया एवं यह योजना छोड़नी पड़ी। 1996 से 1998 के काल में रक्षा मंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के वक्तव्य पर यदि विश्वास किया जाए तो उस समय की सरकार ने भी अण्वास्त्र परीक्षण की योजना बनाई थी।

इसमें महत्व की बात यह है कि वाजपेयी सरकार ने अमेरिका की स्वयं पुलिसगिरी करने की अमेरिकी इच्छा पूर्ण नहीं होने दी एवं जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के बल पर धड़ाधड़ अण्वास्त्र परीक्षण किए। इसके फलस्वरूप अमेरिका ने भारत को बदनाम करने की बेलगाम मुहिम प्रारंभ की। 1998 में एनडीए ने अपनी कार्यसूची में यह घोषणा की थी कि, सुरक्षा पुनर्निरीक्षण (नेशनल सिक्योरिटी रिव्यू) समिति की रिपोर्ट आने के बाद भी हमारी सरकार अण्वास्त्र नीति के संबध में निश्चित नीति तय करेगी। एन.डी.ए. की सरकार ने अण्वास्त्र परीक्षण कर अपने वचन को तोड़ा है  और हमें गुमराह किया है, इस प्रकार के आरोप अमेरिकी उच्च अधिकारियों एवं सर्वोच्च राजनीतिक नेताओं ने किए। (राजनितिक दृष्टि से ये आरोप बेहद गंभीर थे।)

राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अण्वास्त्रों की आवश्यकता नहीं है ऐसी सलाह बहुत मिलने लगी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कहा, भारत की लोकतांत्रिक परम्परा है और वह अण्वास्त्रों का परीक्षण करें यह महानता का मार्ग नहीं है। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री मेडेलिन अलसाईट ने कहा, किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा और सामर्थ्य बढ़ाने के लिए अण्वास्त्र उपयोगी नहीं है। इसके बाद आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए।

संक्षेप में भारत की अण्वास्त्र संपन्नता को अमेरिका ने एक प्रकार से मान्यता ही दी। अमेरिका समझ गया कि वह कितना भी होहल्ला क्यों न मचाये भारत सुनता ही नहीं है, किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं आता और यदि पाकिस्तान ने ज्यादा होशियारी दिखाने की कोशिश की तो भारत अण्वास्त्र का प्रयोग करने से भी नहीं चूकेगा। यदि पाकिस्तान ने भारत पर अण्वास्त्र का प्रयोग किया तो वह उसका अंतिम अस्त्र होगा और उसके बाद पाकिस्तान अस्तित्व में नहीं रहेगा। अमेरिका ने दोनों राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान, से कहा कि वे ऐसा घोषित करें कि जब सभी रास्ते बंद हो जाएं तो ही अण्वास्त्र का प्रयोग करेंगे। जिससें विश्व (विश्व याने अमेरिका) सतर्क हो जाएगा। इसे कहते हैं अण्वास्त्र निवारण नीति। भारतीय विदेश नीति की यह बहुत बड़ी जीत थी।

इसके अनुसार भारत ने 17 अगस्त 1999 को अपनी अण्वास्त्र नीति की स्पष्ट घोषणा की। नीति के महत्वपूर्ण वाक्य हैं- हम अण्वास्त्र का प्रथम प्रयोग नहीं करेंगे। पर यदि हम पर किसी ने हमला किया तो हम निश्चित प्रतिकार करेंगे। आक्रामक को असह्य हो इतना कठोर सबक सिखाएंगे। इन वाक्यों के कारण भारत स्वयं एक नैतिक स्तर पर पहुंच गया। भारत ने आगे कहा, विश्व के सभी देशों से अण्वास्त्र नष्ट करना यही राष्ट्रीय सुरक्षा का उद्देश्य है। इसके अलावा गुप्तवार्ता संकलन, जानकारी एकत्रित करना, संचार, नियंत्रण एवं प्रत्यक्ष प्रभुता ऐसे सुरक्षा दलों के विभिन्न विभागों में हम उत्तम समन्वय रखेंगे।

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