मोहे रंग दे…

हजारों साल पहले से ही भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में गोदना गुदवाने की प्रथा परंपरा के रूप में चली आ रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुरानी परंपरा ही अब नए लेटेस्ट वर्जन में टैटू के रूप में सामने आई है, जिसकी पूरी दुनिया दीवानी होती जा रही है।

वर्तमान में टैटू पूरे विश्व में फैशन का पैमाना बन गया है और व्यक्तित्व में निखार लाने हेतु अधिकाधिक प्रयोग किया जाने लगा है। भारत में भी स्थायी टैटू, जिन्हें गोदना के नाम से जाना जाता है, का इतिहास बहुत पुराना है। दक्षिण भारत में स्थायी टैटू को पचकृथु कहा जाता था। इस तरह के टैटू 1980 के दशक के पहले तामिलनाडु में बहुत सामान्य बात थी। भारत में टैटू विभिन्न जनजातियों से संबंधित लोगों के निशानी हुआ करते थे। अलग-अलग जाति और जनजाति के लोग अपनी पहचान के लिए टैटू बनवाते थे।

इसके अलावा शुरूआती दौर से ही भारत में मेंहदी की सहायता से अस्थायी टैटू बनवाए जाते थे, जो विभिन्न जाति-वर्गों में उपयोग किए जाते थे। आज के दौर में भी मेंहंदी का चलन जोरों पर है। भारत से यह प्रथा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका तक पहुंची। साक्ष्यों के अनुसार मिस्र में मेंहदी का प्रयोग केवल बालों की रंगाई के लिए ही किया जाता है।

यह कहना गलत तो नहीं होगा कि आजकल के दौर में टैटू का क्रेज अपने चरम पर है। युवा पीढ़ी अपनी अलग पहचान बनाने के लिए, अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर टैटू बनवाने लगी है। वैसे तो यह भी माना जाता है कि युवा खून बहुत जोशीला होता है, लेकिन ये युवा अपने टैटू के कोटेशंस व डिजाइन के रूप में यह बात प्रमाणित भी कर देते हैं।

भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में एक लीला गोदना गोदने की भी है। वे नटीत की वेशभूषा अपना कर गोपियों को गोदना गोदते है। इससे पता चलता है कि उस काल में भी गोदना गोदने की प्रथा थी। पूर्वांचल में पहले पूरे हाथ में गोदना गोदने का रिवाज था। अब यह एक छोटे से फूल-पत्ती व बेल बूटे तक सीमित रह गया है। वैष्णव संप्रदाय के लोग शंख, चक्र, गदा व पद्म अपने हाथ पर गुदवाते हैं तो शैव लोग केवल डमरू सहित त्रिशूल गुदवाते हैं। पूर्वांचल में आज भी बड़ी-बुढ़ियां अपने पति का नाम नहीं लेती है। उनके पति का नाम उनके घर के बच्चे बताते हैं। यदि जरूरी हो और कोई विकल्प नहीं हो तो ये अपना हाथ आगे कर देती है, जहां पति के नाम का गोदना होता है और वे पति की उम्र कम करने के पाप से बच जाती है।

गोदना पहले गांव देहात के लोग ही गुदवाते थे। अब गांव ने गोदना से दुरी बना ली है। शहर के लोग, जो गोदना को पिछड़ेपन की निशानी मानते थे, अब गोदना को टैटू की शक्ल में पहचान गए हैं। शहरी लोग अब धड़लते से टैटू अपने सीने और हाथों पर बनवाने लगे हैं। जिसे गांव ने छोड़ा उसे शहर ने अपनाया। अब शहर को पिछड़ेपन का खिताब कोई नहीं देता।

वैसे मान्यता है कि गोदना चेहरे पर गुदवाने से बुरी नजर से बचने में आसानी होती है। कहते हैं कि एक गोदना ही ऐसी चीज है, जो साथ जाती है, मरते वक्त तो लोग तन से कपड़ा भी उतार लेते हैं, गोदना बना रहता है। अब तो गोदना का क्रेज इतना बढ़ गया है कि इससे हॉलीवुड व बॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा। क्रिकेटर भी गोदना गुदवाने लगे हैं। गोदना का नया नाम टैटू हो गया है। शिक्षित समाज इसे टैटू कहता है, जिसका आस्ट्रेलिया एवं अफ्रीका में प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।

पश्चिम व यूरोप के देशों में टैटू में एक औद्योगिक रसायन मिलाया जाता है। जिससे संक्रमण का खतरा होता है। एक ही सुई कई बार इस्तेमाल करने से कुष्ठ, एड्स और हेपाटाइटिस-बी होने का भी खतरा रहता है। यूरोप में एक बार में एक ही सुई इस्तेमाल करने एवं दस्ताने पहने होने का कानून है, पर औद्योगिक रसायन इस्तेमाल न करने का कानून अब तक नहीं बना है। इसलिए ये रसायन धड़ल्ले से उपयोग में लाए जा रहे हैं। जब तक कानून बनेगा तब तक ये रसायन बहुतों को संक्रमण बांट चुके होंगे। औद्योगिक रसायनों को कैंसर का कारक भी माना जाता है। यदि साफ-सफाई का ख्याल रखा जाए, एक बार में एक ही सुई इस्तेमाल की जाए और औद्योगिक रसायन की बजाय हर्बल का प्रयोग किया जाए तो ये टैटू एक्युप्रेशर का काम करेंगे। इससे नाड़ी संचालन सही रहता है। और बीमारियों से बचने में मदद मिलती है।

हम टैटू को लेटेस्ट ट्रेंड के रूप में देखते हैं किंतु यह सत्य नहीं है। हजारों साल पहले से ही भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में गोदना गुदवाने की प्रथा परंपरा के रूप में चली आ रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुरानी परंपरा ही अब नए लेटेस्ट वर्जन में टैटू के रूप में सामने आई है, जिसकी पूरी दुनिया दीवानी होती जा रही है।

अपने दिल की बात टैटू के सहारे कहने का चलन आजकल के दौर का है।

* चीन में टैटूः- प्राचीन चीन में टैटू असभ्य जनजातियों की प्रतीक मानी जाती थी। चीनी साहित्य में ऐतिहासिक नायकों और डाकुओं से भी टैटू को जोड़ा गया है। चीन में कैदियों के चेहरे पर  गोद कर निशान बनाया जाता था जो उनके अपराधी होने का प्रमाण था।

* दास प्रथा :- इसके अलावा दास प्रथा के समय दासों के मालिक भी अपने-अपने दासों पर एक विशिष्ट निशान गुदवा देते थे, जो उनकी पहचान बन जाते थे।

* मिस्र में टैटू ः- प्राचीन मिस्र में टैटू का संबंध केवल महिलाओं से ही था। जो उनकी सामाजिक हैसियत और अवस्था को दर्शाता था। इसके अलावा टैटू महिलाओं के धर्म और दी गई सजा से भी जुड़ा होता था। विभिन्न इतिहासकारों का मानना है कि टैटू का संबंध किसी विशेष रोग के इलाज से भी हुआ करता था। शोधकर्ताओं ने खुदाई के दौरान प्राप्त ममी के शरीर को जब जन जांचा तो उस पर विभिन्न रंगों से बनाए गए टैटू दिखे। शोधकर्ताओं के अनुसार इस टैटूओं के रंगों का संबंध रोग के इलाज से था।

* फिलिपींस में टैटूः- प्राचीन फिलिपींस में यह माना जाता था कि टैटू या गोदने के भीतर जादुई शक्तियां होती हैं। इसके अलावा फिलिपींस के लोग अपनी सामाजिक हौसियत और ओहदे को दर्शाने हेतु विभिन्न टैटू बनवाते थे। फिलिपींस में रहने वाले कलिंग, इफुगाओ, इगोरट लोगों में टैटू की प्रथा अपेक्षाकृत ज्यादा प्रचलित थी।

* यूरोप में टैटूः- प्राचीन यूरोप का सबसे प्रचलित और प्रसिध्द टैटू एल्प्स की प्रसिध्द ओट्ज घाटी से मिले ओट्जी नाम के आइसमेन के शरीर पर मिला था, जिसका संबंध ईसा पूर्व की 4 शताब्दि पहले से है। विभिन्न सर्वे में यह प्रमाणित हुआ है कि ओट्जी के शरीर पर कुल 61 टैटू हैं जो कार्बन की सहायता से बनाए गए थे। जिनमें से कुछ दाईं और बाई कलाई पर, कुछ कूल्हों और एड़ी तो कुछ रीढ़ की हड्डी पर थे। जहां-जहां ये टैटू थे, उनके आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि इनका संबंध निश्चित रूप से बीमारियों के उपचार से रहा होगा। यूरोप में ईसाइयत का दौर शुरू हुआ तब टैटू बनवाना अवैध घोषित कर दिया गया था।

* जापान में टैटूः- 1603 से 1868 तक के प्राचीन जापान में मालवाहक, वेश्याएं और निम्न दर्जे पर काम करने वाले लोग ही टैटू बनवाते थे, ताकि उनकी सामाजिक पहचान बनी रहे। 1720 से 1870 तक अपराधियों के चेहरे पर भी टैटू बनाए जाते थे। जब भी अपराधी कोई अपराध करता था तो उसकी कलाई पर एक रिंग बना दी जाती थी, जितने ज्यादा अपराध उतने ज्यादा छल्ले।

* ताईवान में टैटूः- ताईवान में जनजाति के वयस्क लोग अपने चेहरे पर टैटू बनवाते थे, जिन्हें “तसन”कहा जाता था। यह इस बात का प्रमाण था कि वयस्क व्यक्ति अपने घर और भूमि की रक्षा हेतु तैयार है और वयस्क महिलाएं घर संभालने के लिए खुद को रेडी कर चुकी हैं।

फिलिपींस, इंडोनेशिया, मलागासी लोगों, जो आज भी टैटू प्रथा मजबूती से अपनाए हुए हैं, की परंपराओं का उद्भव भी ताईवान में रहने वाले उनके पूर्वजों से ही माना जाता है। आज भी ताईवान के लोग टैटू से जुड़ी अपनी परंपरा पर कायम है।

टैटू से सावधान…

युवा पीढ़ी टैटू के बढ़ते क्रेज और अपनी फेवरेट सेलिब्रिटीज को फॉलो करने के चक्कर में, अपने लवर्स के नाम का टैटू बनवाने के
फेर में यह भूल जाते हैं कि उनकी यह दीवानगी गंभीर बीमारियो को न्योता दे सकती है।

इस मामले में डॉक्टरों की सलाह है कि टैटू बनवाने से रक्त संबंधी गंभीर बीमारियां जैसे एड्स, हेपेटाइटिस हो सकती है। त्वचा संबंधी खतरनाक बीमारियां होने की आशंका भी है। स्कीन एक्सपर्ट्स के अनुसार टैटू में उपयोग किए जाने वाले कुछ कलर्स शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। सबसे ज्यादा खतरनाक लाल रंग का टैटू होता है। टैटू बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले कलर्स से त्वचा संबंधी ग्रेन्यूलोमा और कीलोइड जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इससे स्किन फूल जाती है। इसके अलावा इससे लेप्रसी और ट्यूबर कुलोसिस जैसी खतरनाक बीमारियों को आशंका बढ़ जाती है।

टैटू निकलवाना ज्यादा मुश्किल…

टैटू कम खर्च और कम समय में बनाए जा सकते हैं किंतु इसे निकलवाना बेहद कठिन है। मशीन से एक सेकंड में हजारों छेद कर टैैटू बनाए जाते हैं। लेकिन निकलवाने में 12 से 15 सीटिंग देनी होती हैं। एक स्क्वायर इंच टैटू निकालने का खर्च 2000 रूपये तक आता है। यह सिर्फ लेजर ट्रीटमेंट से ही निकलता है और इसके बाद भी थोड़ा निशान रह ही जाता है।

महीने में हर स्किन स्पेशलिस्ट के पास कम से कम 10 से 15 लोग टैटू निकलवाने आते हैं। पुलिस-सेना की परीक्षाओं में टैटू होने पर डिस्क्वालिफाई करने के कारण भी लोग टैटू हटवा रहे हैं। कई बार लोग प्रेमी या प्रेमिका का नाम टैटू में लिखवाते हैं लेकिन अगर उनका रिश्ता टूट जाता है तो ये लोग फिर से बनवाए हुए टैटू को मिटवा लेते हैं।

आंखों के आसपास टैटू बनवाना सबसे खतरनाक माना जाता है। यंगस्टर्स शरीर के विभिन्न भागों के साथ ही आखों के आसपास टैटू बनवा रहे हैं, किंतु यह सबसे ज्यादा खतरनाक है। आंखों के आसपास किसी भी तरह के कलर्स का उपयोग करना रिस्की है। इससे आखों की रोशनी भी जा सकती है।

 

 

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