हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
पड़ोसी देशों की फैशन

पड़ोसी देशों की फैशन

by नम्रता महाडिक
in फैशन दीपावली विशेषांक - नवम्बर २०१८
0

भारत के आसपड़ोस के देशों में पश्चिमी पोशाकों के साथ भारतीय सभ्यता से प्रभावित परिधानों का अधिक बोलबाला है। इन परिधानों को स्थानीय परिस्थितियों एवं संस्कृति के अनुकूल बनाया गया है।

पश्चिमी देशों के आधुनिक फैशन की चकाचौंध से दूर रहकर तथा धर्म, संस्कृति, सभ्यता एवं परम्परा के अनुरूप फैशन का सामंजस्य बिठाकर हमारे पड़ोसी देशों ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि अंधानुकरण करने के बजाय हमें हर हाल में हमारी पहचान बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।

चोंग साम और पारंपरिक चीनी वेशभूषा

चोंग साम की उत्पत्ति छिंग राजवंश में मानचू जमाति के महिला वस्त्रों से हुई और चीनी पारंपरिक परिधान संस्कृति का आदर्श मॉडल माना जाता रहा है। वह समग्र रूप से चीनी संस्कृति के अनुरूप तो है ही, साथ ही उसकी आभूषण तकनीक में पूर्व की खास विशिष्टता भी झलकती है। इसके अलावा चोंग साम नारी को सुडौल व छरहरा दिखने में सहायक भी होता है। अतएव चोंग साम चीनी परिधान में अतुल्य पहचान बनाकर लंबे अरसे से लोकप्रिय रहा है। चीन के परंपरागत पुरूष पोशाकों में लम्बा चोगा और मंचुरियन जैकेट प्रतीकात्मक है। लम्बा चोगा और मंचुरियन जैकेट पहनने में सभ्यता और सादगी-सहजता का एहसास देता है और सुविधापूर्ण भी होता है।

चीन में हुए एपेक शिखर सम्मेलन के दौरान सभा में उपस्थित सभी राजाध्यक्ष चीनी स्टाइल की ‘थांग पोशाक’ पहने मंच पर आए थे। इससे ‘थांग पोशाक’ पहनने का फैशन चला। इसलिए ‘थांग पोशाक’ को चीनी स्टाइल वेशभूषा का प्रतिनिधि माना गया है। क्योंकि विदेशों में बसे चीनियों की बस्ती चाइना टाउन कहलाती है। इसके अलावा चीन के विभिन्न स्थानों और विभिन्न जातियों की वेशभूषा की अपनी पहचान व विशेषता होती है। चीनी कपड़ो की संस्कृति का एक लंबा इतिहास है और यह हमेशा शिष्टाचार प्रणाली का हिस्सा रहा है। यह शक्ति और स्थिति का प्रतीक है, तथा  सामाजिक अर्थव्यवस्था, संस्कृति व लोगों की सौंदर्य चेतना का प्रतिबिंब है। समय व सामाजिक जीवन में परिवर्तन के साथ, फैशन लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। कपड़ों के बारे में चीनी लोग बहुत ही रूढ़िवादी होते हैं। समुद्र तट पर कोई स्विम सूट सिर्फ इसलिए नहीं पहनता कि उसे लगता है कि अश्लिल पोशाक पहनने से उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी। पारंपरिक त्योहार के दौरान चीनी पोशाक पहनकर त्योहार में शामिल होना उन्हें ज्यादा पसंद है। इसके अलावा अधेड़ महिलाएं चेयोंग-सैम पहनती हैं जो एक स्कर्ट है। आम तौर पर पुरूष सूट-टाई पहनते हैं। चिंग राजवंश से पहले युग के कपड़े ‘हान’ प्रसिद्ध है।

l नेपाल:-

नेपाली पोशाक, दौरा शुरूवाल जिसे आमतौर पर ‘लाबडा – सुरूवाल’ कहा जाता है, के प्रति कई धार्मिक विश्वास हैं। नेपाली महिलाओं को सूती साड़ी, जिसे गुनू कहा जाता है, बेहद पसंद हैं और फैशन की दुनिया में बहुत लोकप्रिय हो रही है। नेपाल पर भारतीय संस्कृति का बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है। इसलिए नेपाल में भारतीय पारंपरिक परिधानों की लोकप्रियता बनी हुई है। साड़ी-ड्रेस, धोती-कुर्ता, शर्ट-पैंट आदि परिधान आमतौर पर प्रचलित हैं। भारतीय कपड़ों की मांग अधिक होने से भारतीय पारंपरिक परिधान नेपाल में सहजता से देखे जा सकते हैं।

l भूटान:-

भूटान का ‘घो’ दुनिया से हटके परिधानों में से एक है। हर सरकारी कर्मचारी को कार्यालय में ’घो’ पहनना पड़ता है। कमर के पास बांधकर पहने जाने वाली इस लम्बे परिधान को 17हवीं शताब्दी में नगवांग नामग्याल ने प्रस्तुत किया था। भूटान में पुरूषों के सूट को ‘घो’ और महिलाओं के परिधान को ‘किरा’ कहा जाता है। यहा फैशन और स्टाइल है तथा परंपराओ का भी उतनी ही शिद्द्त से पालन होता है। स्कूली बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिलाएं तक पारंपरिक ड्रेस ‘किरा’ में दिखते हैं। वहीं खूबसूरत रेशमी बालों को फैशनेबल अंदाज में लहरा कर चलती युवती भी भूटान के इस पारंपरिक ड्रेस में बेहद सहज दिखाई देती है। युवकों के बालो के स्टाइल आकर्षक हैं, लेकिन वे भी पारंपरिक पोशाक ‘घो’ में ज्यादातर दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है मानो 15हवीं और 21हवीं सदी यहा एकसाथ कदमताल कर रही है। आम भूटानी नागरिक को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि फैशन की दुनिया किस रफ्तार से दौड़ रही है। वह अपनी मंथर गति से, अपनी संस्कृति, अपनी परंपराओं में पूरी तरह मस्त है। थिंपू शहर हो या पारो की गलियां, हर जगह मुस्कुराते, खिलखिलाए चेहरे नजर आ जाएंगे। हैप्पी इंडेक्स में भूटान अग्रणी देश है।

l पाकिस्तान:-

पाकिस्तान में पायजामा, कुर्ता, शेरवानी, बुर्का, दुपट्टा, सलवार, लहंगा आदि आम से खास लोगों की पहली पसंद है। पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों और टीवी सिरियलों की लोकप्रियता अधिक होने से वहां की महिलाओं में इनमें प्रदर्शित फैशन का खास कर साड़ियों का क्रेज है। खास कर उच्च वर्ग की महिलाओं में साड़ी पहनने का ट्रेन्ड प्रचलित है। वे शादी, पार्टी आदि में साड़ी पहनकर शामिल होती हैं। आम तौर पर मुस्लिम महिलाए पंजाबी कुर्ता सलवार दुपट्टा धारण करती हैं। पाकिस्तान में भारतीय पोलिस्टर कपड़ों की भारी मांग है। पाकिस्तान की फैशन इंडस्ट्री में इन दिनों ‘ट्यूलिप पैंट’ ने धूम मचा रखी है। भीषण गर्मी के बीच पाकिस्तानी लड़कियों को यह नया फैशन खूब लुभा रहा है। ट्यूलिप पैंट एक धोतीनुमा सलवार होती है। कराची, पेशावर व इस्लामाबाद जैसे शहरों में पारंपरिक पोशाकों के साथ भारतीय व मॉडर्न पश्चिमी अंदाज वाले परिधान काफी लोकप्रिय हैं। रूढ़िवादी समझे जाने वाले पाकिस्तान में भी धीरे-धीरे ही सही पर फैशन का रंग चढ़ता जा रहा है। लाहौर को पाकिस्तान का फैशन कैपिटल माना जाता है। ब्राइडल फैशन यानी दुल्हन का लिबास इस समय लोकप्रिय हो रहा है।

l म्यांमार:-

म्यांमार पहले ब्रह्मदेश के नाम से जाना जाता था। म्यांमार में किसी भी शहर में व्यापारी नौकरीपेशा लोग साफ-सुथरे सारोंग (म्यांमार की पोशाक) और धुली हुई कमीज पहनते हैं। फैशन के रूप में यही पारंपरिक सारोंग पोशाक म्यांमार में प्रसिद्ध है। शताब्दियों तक उत्पीड़न (गुलामी) सहने और कई दशकों तक सैनिक शासन झेलने तथा राजनीतिक उथल-पुथल का दौर रहने के कारण पश्चिमी फैशन का असर म्यांमार में दिखाई नहीं देता है। म्यांमार के स्त्री-पुरूष का आम पहनावा लुंगी है। इसके लिए बस 2 मीटर के दोनों सिरों को सिलकर एक घेरा-सा बनाया जाता है। औरतें लुंगी के ऊपरी सिरों को अपनी कमर के किसी एक तरफ खोंस देती है, जैसे कि स्कर्ट है। पुरूष इसके दोनों सिरों को पकड़ कर सामने कमर पर बांध लेते हैं। सलीकेदार और लहराती लुंगी, वहां के गर्म मौसम के लिए एकदम सही पहनावा है। म्यांमार में लुंगी को ‘लोंगी’ नाम से जाना जाता है। लुंगी यहां सामान्य जीवन के साथ धार्मिक और विशेष कार्यों में भी पहनी जाती है।

l इंडोनेशिया:-

इंडोनेशिया का पारंपरिक पहनावा ‘सरोंग’ बेहद लोकप्रिय है। मलेशिया व इंडोनेशिया में इस पारंपरिक पोशाक को पहनना सम्मान की बात मानी जाती है। ये पोशाकें बाटिक कला का बेहतरीन नमूना मानी जाती हैं। बाटिक कला सदियों पहले गुजरात और राजस्थान के कारीगरों के जरिए मलेशिया व इंडोनेशिया पहुंची थी। आसियान देशों की बैठक में आने वाले राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान के तौर पर उन्हें यह पोशाक पहनने को दी जाती है। भारत सहित अमेरिका, जापान व दुनिया के तमाम देशों के नेता इंडोनेशिया और मलेशिया दौरों में यह ड्रेस पहनते हैं।

भारतीय कारीगरों की देन है बाटिक कला। यह कला गुजरात-राजस्थान, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में अलग-अलग नामों से चलन में रही है। आदिवासी परम्पराओं में यह कला सदियों से चली आई है। लेकिन, अंग्रेजी शासन के दौरान अनदेखी की वजह से कारीगरों को रोजी-रोटी के लिए दूसरे देशों में जाना पड़ा। इन कारीगरों को इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में अनुकूल परिस्थितियां मिलीं और वहां पर एक नए रूप रंग में यह कला फलने-फूलने लगी। इन पोशाकों को आज वहां पर सम्मान की नजर से देखा जाता है और इन्हें पहनने वाला ‘विशिष्ट’ माना जाता है। यह अलग बात है कि हम स्वयं ही अपनी परंपरा कला को भुला चुके हैं।

पुरी दुनिया में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा मुस्लिम देश होने के बावजूद आज भी वहां पर भारतीय जीवन मूल्य, संस्कृति- सभ्यता का दर्शन हर जगह मिलता है। इंडोनेशिया के बाली नामक प्रांत में सबसे अधिक हिंदू आबादी है। पुरुष एवं महिलाएं बहुत ही सम्मान के साथ पारम्परिक धोती पहनते हैं। कोई भी धोती पहने बिना मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता। इसके साथ ही इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर और ब्रुनोई में लुंगी को ‘सरूनग’ के नाम से जाना जाता है। यह इंडोनेशिया का पारंपरिक परिधान है। यहां पर धार्मिक कार्यक्रमों में लोग सरूनग पहने ही नजर आएंगे। यहां इसे बटीक और कलिमंतन नाम से भी जाना जाता है।

l श्रीलंका:-

श्रीलंका में महिलाओं के लिए साड़ी व पुरूषों के लिए सरोंग बहुत लोकप्रिय परिधान है। पुरूष सरोंग या पतलून पहनते हैं। अधिकतर महिलाएं साड़ी या आधी साड़ी का उपयोग करती हैं। लेकिन वहां विभिन्न क्षेत्रीय विशेषताएं हैं। महिला की उम्र के आधार पर उनके कपड़े बहुत भिन्न होते हैं। छोटी लड़कियां अक्सर स्कर्ट व ब्लाउज पहनती हैं। स्कर्ट थोड़ा सा साड़ी के लिए स्टाइलिश है। विवाहित व अधेड़ उम्र की महिलाएं अक्सर साड़ियां ही पहनती हैं। सरोंग श्रीलंका के पुरूषों की पहली पसंद है। इसके साथ ही वे टोपियां पहनना भी पसंद करते हैं। श्रीलंका में राजनेता सार्वजनिक मंचों पर पारंपरिक वेशभूषा पहने नजर आते हैं। जिसमें कॉटन ट्यूनिक और सरोंग पहना जाता है। नेता सार्वजनिक स्थानों पर पश्चिमी परिधान में नजर नहीं आते हैं। इसके अलावा टी शर्ट भी वहां प्रचलन में है। श्रीलंका में लुंगी सर्वाधिक पहने जाने वाला वस्त्र है।

l मलेशिया:-

मलेशिया को एक उदार मुस्लिम देश माना जाता है। उनमें अधिक कट्टरता नहीं होती इसलिए वहां पर फैशन का भी बोलबाला है। मिनी स्कर्ट, मिनी पैंट पहनी महिलाएं-युवतियां आपको कहीं भी दिख जाएंगी। मुस्लिम लड़कियां-महिलाएं हिजाब पहनती हैं लेकिन कोई भी अपना चेहरा नहीं ढ़ंकता। छोटे शहरों में पारंपरिक पहनावा कम अधिक मात्रा में प्रचलन में है पर बुर्का नहीं। मलेशिया का काले और सुनहरे रंग का पारंपरिक परिधान बाजू मेलायु व संपिंग बेहद लोकप्रिय है। बाजू मेलाय कुर्ता पायजामा जैसा ही परिधान है जब कि संपिंग कपड़े का टुकड़ा है जिसे पुरूष कमर में बांधते हैं, यह कुर्ते के निचले सिरे तक लटकता है। हाल के समय में कट्टर वहाबी इस्लामिक विचारधारा के बीज वहां पर डाले जा रहे हैं, इसलिए अब फैशन का विरोध होना शुरू हो गया है।

 

 

नम्रता महाडिक

Next Post
आदि काल से  रानियों-महारानियों तक

आदि काल से रानियों-महारानियों तक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0