हिमालयी राज्यों में फिर खिलेगा कमल

हिमालची अंचल के तीन राज्यों- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर- में 2014 की तरह मोदी लहर दिखाई दे रही है और इक्कादुक्का सीटें छोड़ दी जाए तो बाकी जगह कमल का फिर से खिलना लगभग तय है।

उत्तर पश्चिमी हिमालय के तीन प्रदेशों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश औऱ जम्मू-कश्मीर में ‘आर्मी फैक्टर’ निर्णायक भूमिका निभाता रहा है।  स्पष्ट ही है कि इन तीनों राज्यों में मतदान की एक मुख्य कसौटी देशभक्ति बन जाती है। 2019 के चुनावी गणित को इस कसौटी पर कसें तो परिणामों के बारे में सटीक अंदाजा लगाया जा सकेगा।

हिमाचल और उत्तराखंड में नए चेहरों के साथ भाजपा की सरकारें कार्यरत हैं। अभी तक इन चेहरों की ताजगी बनी हुई है, नए मुख्यमंत्रियों के खिलाफ कोई खास आरोप नहीं लग सके हैं, इसलिए 2014 के चुनावी परिणाम फिर से दोहराए जाने की संभावना दिखती है। सबसे अधिक उठापटक जम्मू-कश्मीर में हुई है। जिस राजनीतिक सत्ता को कश्मीर घाटी पिछले सात दशकों से अकेले भोग रही थी, अब वह जम्मू और लद्दाख की तरफ भी यात्रा करने लगी है। घाटी में विरोध के स्वर यदि मुखर हैं तो जम्मू और लद्दाख में समर्थन के स्वर कमजोर नहीं हुए हैं, इसलिए यहां भी पिछली बार के आंकड़े फिर से दोहराए जा सकते हैं। जमीनी आंकड़ों और विश्लेषणों के अनुसार राज्यों में परिणामों की तस्वीर कुछ इस कदर रह सकती है।

उत्तराखंड के उत्तर पहले जैसे

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल को उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों- टिहरी गढ़वाल, पौड़ी, हरिद्वार, नैनीताल और अल्मोड़ा में मतदान संपन्न हुआ, तो अब परिणामों पर चर्चा दिन-ब-दिन गहराती जा रही है।

इस बार प्रदेश में 61.50 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान 62.15 प्रतिशत मतदान हुआ। उत्तराखंड के चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो राज्य में युवा और सैनिक व पूर्व सैनिक मतदाताओं को ‘गेम चेंजर’ माना जा सकता है।

प्रदेश में कुल 77 लाख 65 हजार 423 सामान्य मतदाता हैं, जिसमें 18 से 29 आयुवर्ग के मतदाताओं की कुल संख्या 21,20,218 है। युवा मतदाताओं में रोजगार का मुद्दा जरूर बन सकता है, लेकिन प्रदेश में यह देखा गया है कि भाजपा और इसके सहयोगी संगठन युवाओं के बीच लगातार सक्रिय हैं।  राज्य में पंजीकृत पूर्व सैनिक तथा वीर नारियों की संख्या 1.62 लाख से अधिक है, इसके अलावा पचास हजार से अधिक युवा अर्धसैनिक बलों में तैनात हैं, वहीं तकरीबन तीस हजार सेवानिवृत अर्धसैनिक हैं। इस तरह सैनिक और पूर्व सैनिक परिवारों की संख्या भी अच्छी खासी है। प्रदेश में हुए चुनावों में पूर्व सैनिकों के मत व्यवहार की बात की जाए तो मतदाता अमूमन केंद्रीय मुद्दों के आधार पर ही वोटिंग करते हैं। मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा, सैनिक हितों से जुड़े मुद्दे। इस बार भी वन रैंक वन पेंशन, पुलवामा के बाद बालाकोट एअर स्ट्राइक, कहीं न कहीं चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा।

ग्रामीण क्षेत्र की बात की जाए तो, पलायन सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, पलायन का मूल कारण है मूलभूत सुविधाओं का न होना। अभी तक किसी भी सरकार ने इस समस्या का  समाधान नहीं किया है। जातीय समीकरण की बात की जाए तो प्रदेश में कुछेक जगहों को छोड़ कर इसका ज्यादा प्रभाव किसी भी सीट पर देखने को नहीं मिलता हैै। 2014 में अजय टम्टा इसी सीट से कांग्रेस के प्रदीप टम्टा को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे, इस बार भी मुकाबला पहले जैसा है। वैसे तो प्रदेश में मुख्य दो ही राजनैतिक पार्टियां हैं, मगर कुछ अन्य पार्टियां भी हैं जैसे सपा-बसपा, सीपीआई(एम), कुछेक क्षेत्रीय दल, व कुछ निर्दलीय प्रत्याशी जिनका वर्चस्व तो बहुत कम है, मगर ये वोटों को बांटने का काम अवश्य करते हैं।

राज्य की कुल पांच में से गढ़वाल क्षेत्र में आने वाली तीन सीटों पर भाजपा बढ़त बनाती हुई दिख रही है। संगठनात्मक ढांचे और मोदी लहर के सहारे भाजपा मुकाबले में मजबूती से खड़ी है। हालांकि कुमाऊं क्षेत्र में आने वाली राज्य की दो सीटों अल्मोड़ा और नैतीताल पर दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर होने की उम्मीद है। राज्य भर में भाजपा का पलड़ा अगर भारी नजर आ रहा है, तो इसका एक कारण यह है कि इसने इस चुनाव में भी अपने बेहतरीन उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा स्थानीय नेताओं से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक ने यहां चुनावी बढ़त के लिए खूब पसीना बहाया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यहां भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा हैं। उनकी प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी है। क्षेत्रवार विश्लेषण करें, तों टिहरी से भाजपा ने फिर से पूर्व महाराजा स्वर्गीय मानवेंद्र शाह की पुत्रवधु राज्यलक्ष्मी शाह पर दांव लगाया है। सत्ताधारी भाजपा को 1991 से ही यहां की शाही परिवार से मजबूती मिलती रही है। इस बार कांग्रेस ने यहां से अपने प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को मैदान में उतारा है। गौरतलब हो कि प्रीतम पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

पौड़ी में कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष खंडूड़ी चुनाव के लिए नया चेहरा हैं, जबकि उनके सामने भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत हैं। तीरथ सिंह काफी अनुभवी हैं और उनसे मनीष को कड़ी चुनौती मिल रही है। वहीं दूसरी तरफ मनीष को पार्टी में सीधे एंट्री कराने और उन्हें टिकट थमाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने श्रीनगर गढ़वाल में रैली जरूर की, लेकिन उनके अलावा कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दिया।

हरिद्वार में शीर्ष भाजपा नेता और मौजूदा सांसद रमेश पोखरियाल निशंक मैदान में हैं। निशंक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस ने उनके मुकाबले अंबरीश कुमार को उतारा है जो कि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में यहां से निशंक की दावेदारी काफी मजबूत नजर आ रही है।

नैनीताल सीट पर लड़ाई दिलचस्प हो सकती है। कांग्रेस की तरफ से नैनीताल सीट पर चुनाव लड़ रहे पार्टी के महासचिव हरीश रावत। नैनीताल से भाजपा ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट को उम्मीदवार बनाया है। हरीश रावत अपने मुख्यमंत्रित्व काल में किए गए विकास कार्यों, रोजगार, अलग-अलग वर्गों के लिए जारी की गई पेंशन सुविधाओं का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा के अजय भट्ट की ताकत मोदी फैक्टर है।

अल्मोड़ा से राजनीतिक भाग्य आजमा रहे राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा काफी अनुभवी नेता हैं। अल्मोड़ा लोकसभा (सुरक्षित) सीट पर भाजपा के अजय टम्टा और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा के बीच सीधा मुकाबला है। अजय टम्टा केंद्र में राज्यमंत्री और लोकसभा सदस्य हैं, तो प्रदीप टम्टा राज्यसभा सदस्य।

हिमाचल में विपक्ष के बिखराव का मिलेगा लाभ

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में 19 मई को सातवें अंतिम चरण में मतदान होगा। उत्तर भारत के सबसे ज्यादा साक्षर राज्यों में से एक हिमाचल प्रदेश में उम्मीदवारों के लिए यह चुनाव कड़ी परीक्षा लेने वाला है। देवभूमि के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश उन वीर जवानों की भी भूमि है, जिन्होंने जरूरत पड़ने पर देश के लिए जान कुर्बान कर दी।  प्रदेश में ऐसे परिवारों की बहुत बड़ी संख्या है, जिनका कोई न कोई सदस्य सेना में सेवारत है या सेवानिवृत्त हो चुका है। लिहाजा राष्ट्रवाद, हिमाचली चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने वाला है। इसलिए हर दल पर इस चुनाव में राष्ट्रवाद हावी रहने वाला है।

क्षेत्रवार अध्ययन करें तो, कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने खाद्य आपूर्ति मंत्री एवं गद्दी समुदाय का नेतृत्व करने वाले किशन कपूर पर विश्वास जताया है। कांग्रेस ने पवन काजल को अपना प्रत्याशी बनाया है। प्रदेश की राजनीति में पवन काजल एक उभरता हुआ चेहरा हैं। हालांकि लंबे सियासी अनुभव और एसटी आबादी का काफी प्रभाव होने के कारण किशन कपूर का पलड़ा भारी दिख रहा है। इसके अलावा मोदी लहर भी काफी हद तक कपूर के पक्ष में है।

शिमला संसदीय सीट से पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप को भाजपा ने और पूर्व सांसद एवं राज्य मंत्री कर्नल धनी राम शान्डिल को कांग्रेस ने टिकट दिया। सुरेश कश्यप 16 साल से ज्यादा समय तक भारतीय वायु सेना में काम कर चुके हैं। सुरेश कश्यप जातिगत समीकरणों के साथ-साथ पूर्व सैनिक होने के नाते सैनिकों के वोटों को भी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं, शिमला संसदीय सीट से कांग्रेस ने एक बार फिर कर्नल धनीराम शांडिल को उतार कर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने का प्रयास किया है। शांडिल की पार्टी में अच्छी पैठ है। कर्नल शांडिल जिस जाति से आते हैं उसका सोलन, कसौली, शिमला और सिरमौर में काफी जनाधार है।

मंडी संसदीय सीट से सांसद रामस्वरूप शर्मा को दूसरी बार लोकसभा का टिकट मिला है। साफ छवि वाले रामस्वरूप पिछले चुनावों में अपनी प्रतिभा साबित कर चुके हैं, वहीं हाईकमान को भी उन पर पूर्ण विश्वास था। इसीलिए उन्हें दोबारा टिकट मिला। वहीं कांग्रेस ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा को मंडी में मौजूदा सांसद के खिलाफ मैदान में उतारा है। आश्रय मंडी लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट मांग रहे थे, लेकिन भाजपा ने मौजूदा सांसद राम स्वरूप पर ही भरोसा जताया। इसके बाद आश्रय अपने दादा के साथ फिर से कांग्रेस में चले गए। मंडी संसदीय सीट का चुनाव हमेशा से दिलचस्प रहा है और इस बार भी राजनीति में रूचि रखने वाले लगातार इस क्षेत्र पर नजर रखे हुए हैं।

हमीरपुर संसदीय सीट से भाजपा ने धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष ठाकुर लगातार चौथी बार इस सीट से जीत दर्ज करना चाहते हैं। बीते 30 वर्षों में इस सीट से केवल एक बार सीट जीतने वाली कांग्रेस ने पांच बार के विधायक राम लाल ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा है। रामलाल ठाकुर (67) नैना देवी विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक हैं। अनुराग ठाकुर ने 2014 के चुनाव में राजिंदर सिंह राणा को 98,000 से अधिक वोटों से हराया था। प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता इस बार पार्टी से कुछ खिन्न नजर आ रहे हैं। इसका पार्टी को न केवल हमीरपुर सीट से, बल्कि प्रदेश भर में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाजपा ने इन चुनावों के लिए इस बार थोड़ी हटकर रणनीति तैयार की है। इसने हिमाचल प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार समेत अपने चार में से दो सांसदों के टिकट काट दिए हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि भाजपा के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं है। हालांकि इसके लिए भाजपा ने अपने भरोसेमंद नेता प्रेम कुमार धूमल को चुनाव रणनीति की कमान सौंपी है। भाजपा नेता और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर के लिए धूमल अब भी एक व्यापक राजनीतिक अनुभव लिए एक वरिष्ठ नेता हैं और उनके अनुसार चुनाव एकजुट प्रयास से ही लड़े जाते हैं। धूमल को चार दशक से ज्यादा समय का राजनीतिक अनुभव है। इस दौरान वह दो बार मुख्यमंत्री, चार बार विधायक और तीन बार सांसद रहे।

जहां तक मुद्दों की बात है, तो प्रदेश भाजपा की रणनीति, ‘राष्ट्रवाद और मोदी लहर’ के सहारे इस चुनावी समर से अपनी वैतरणी पार करने की है। इसके लिए सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, वन रैंक वन पेंशन समेत सेना व पूर्व सैनिकों के लिए उठाए गए दूसरे कल्याणकारी कदमों को इस चुनाव में भुनाने का प्रयास करेगी। वहीं इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी प्रदेशों में अलग-अलग प्रचार रणनीति अपना रही है। मई में कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भी हिमाचल में तीन रैलियां होनी हैं। इसके अलावा दूसरे बड़े नेता प्रदेश में पार्टी प्रचार में अपना पसीना बहा रहे हैं। हालांकि पार्टी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती नाराज चल रहे वीरभद्र सिंह को विश्वास में लेने की रहेगी। वीरभद्र सिंह, अनुराग ठाकुर के विरुद्ध कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा के बेटे अभिषेक राणा को इस सीट से चुनाव मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने राणा को टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से सिंह ने राज्य की राजनीति से दूरी बना ली है।

जम्मू-कश्मीर में बना रहेगा मोदी मैजिक

जम्मू-कश्मीर में भी इस बार के आम चुनाव न केवल आतंकवाद और अलगाववाद बल्कि कई प्रमुख राजनीतिक दलों के अस्तित्व की लड़ाई बन गए हैं। 2014 के बाद से देश और दुनिया में पहली बार जम्मू-कश्मीर को लेकर विमर्श बदला है और यह विमर्श न केवल भारत बल्कि उस राज्य के लिए भी सकारात्मक साबित हो रहा है।

एक दूसरे के विरोधी माने जाने वाले राज्य में एक साथ आ किसी भी तरह मोदी को हराने में अपनी सारी ताकत झोंक रहे हैं। 2014 के चुनावों में भाजपा जम्मू, उधमपुर और लद्दाख सीट पर परचम लहराया था और बाकी तीनों सीटें पीडीपी को मिली थी। भाजपा के लिए इस बार भी समीकरण कुछ इस तरह के ही लग रहे हैं। जम्मू से भाजपा के उम्मीदवार के विरुद्ध कांग्रेस के उम्मीदवार लड़ रहे हैं और एनसी, पीडीपी दोनों इसका समर्थन कर रहे हैं। राज्य के बड़े दल माने जाने वाले एनसी और पीडीपी ने जम्मू से भाजपा को हराने के लिए अपने प्रत्याशी तक नहीं उतारे। लेकिन जम्मू की जनता के लिए राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि रहा है। तो यहां कमल खिलना लगभग तय है। वहीं उधमपुर सीट से भी केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह भी कड़ी टक्कर के बाद जीतते हुए दिख रहे हैं। कश्मीर की तीनों सीटें एनसी-कांग्रेस के पास जाने की संभावना हैं और लद्दाख में सभी दलों में कांटे की टक्कर देखी जा रही है।

 

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