शाम रामचंद्र देशपांडे अर्थात शामराव बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। उनकी सदाबहार आवाज में संघ-गीत सुनना अविस्मरणीय अनुभव हुआ करता था। विवेक से उनका आजीवन संबंध बना रहा।
गुरूपूजन उत्सव का कार्यक्रम था। बेलगांव शहर में प्रति वर्ष व्यावसायिक कार्यकर्ताओं (स्वयंसेवकों) का विशेष गुरूपूजन (समर्पण) कार्यक्रम करने की प्रथा रही है। प्रथानुसार ही वह कार्यक्रम आयोजित था। कार्यक्रम में करीब चार सौ स्वयंसेवक उपस्थित थे। सभागृह पूरा भरा था। संघ पद्धतिनुसार ध्वजारोहण इ. होने के बाद मुख्य शिक्षक ने सूचना दी कि अब व्यक्तिगत गीत होगा। मैं उस समय संघ शाखा में नया ही था। वैसे गीत पुराना ही था एवं सभी को शायद मालूम ही होगा। “तन समर्पित, मन समर्पित” ये गीत के प्रारंभिक बोल थे। इस गीत की निम्न पंक्तियां –
मां तुम्हारा ऋण बहुत है, मै अकिंचन।
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन॥
थाल मे लाऊ सजाकर, भाल जब।
स्वीकार कर लेना, दयाकर यह समर्पण॥
श्री शामराव देशपांडे की धीर गंभीर एवं पहाड़ी आवाज हृदय को झिंझोड रही थी। उनके शब्दों से पूरा वातावरण सम्मोहित हो गया था। उनके वे शब्द आज भी याद आते हैं।
शाम रामचंद्र देशपांडे अर्थात शामराव बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। श्री हरीभाऊ वझे, सदानंदजी काकडे, यादवराव जोशी जैसे दिग्गज कार्यकर्ताओं के सहवास के कारण उन पर संघकार्य के संस्कार हुए। इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने के बाद वे मुंबई में रहने चले गए। अनेक वर्षों तक विवेक साप्ताहिक में विविध जिम्मेदारियों को सम्हालते हुए उन्होंने कार्य किया। वह समय ‘विवेक’ के लिए बहुत अडचनों भरा, चुनौतीपूर्ण एवं कठिन था। दिवाली अंक का प्रकाशन यह आय बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण उपाय था। शामरावजी ने उसके लिए अनेक वर्ष पूरे राज्य का प्रवास किया। राज्य के अनेक शहरों में उनके अच्छे संबंध थे। बाद में इन संबधों का उपयोग उन्होंने “वीरवाणी” नामक साप्ताहिक के लिए भी किया। उनका जीवन पहले कैसा था इस विषय में वे कभी हम से या अन्य किसी से भी चर्चा नहीं करते थे। इसके कारण विदर्भ (अकोला) में प्रचारक के रूप में उनके द्वारा किए गए काम या पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत के साथ गाए गए गीत इन सबकी जानकारी हमें बहुत बाद मे पता चली। सुधीर फड़के द्वारा गाए गए गीत रामायण में भी उन्होंने अनेक बार कोरस में साथ दिया। उन्होंने एक बार खुद बताया था कि “बाबूजी अर्थात सुधीर फडके ने एक बार कहा था, संघ में, विवेक में पूरा समय देकर कार्य करने के कारण तुम फंस गए हो अन्यथा बहुत बडे गायक बन सकते थे।” बेलगांव परिसर में गीत-रामायण के सैकड़ों कार्यक्रम उन्होंने किए। अक्सर खुले मंच पर ये कार्यक्रम हुआ करते थे।
उनके द्वारा, मराठी में रचित गीत-रामायण के, करूण रस के गीत तथा वीर रस में गाए हुए अन्य गीत आज भी हमें उस युग में ले जाते हैं। “संपूर्ण वंदे मातरम्” मैंने अनेको गायकों के स्वर मे सुना है परंतु शामराव के स्वर मेें “संपूर्ण वंदे मातरम्” सुनना एक अलौकिक अनुभव होता था। बेलगाव के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने यह आनंद प्राप्त किया है।
“वीरवाणी साप्ताहिक” हिंदुत्ववादी विचारधारा के मुखपत्र के रूप में प्रारंभ हुआ। ‘वीरवाणी’ के प्रारंभ से ही शामराव श्री जी.टी. राजाध्यक्ष के साथ जुड़े एवं अथक परिश्रम कर वीरवाणी को स्थिरता प्रदान की। साप्ताहिक को फोल्ड करने से लेकर उस पर डाक टिकट लगाने तक के सारे काम उन्होंने अंत तक किए। समाचार पत्र के संपादक का पद केवल शोभा या मान सम्मान का न होकर उसमें जिम्मेदारी निहित है इस भावना से उन्होंने अंतिम श्वास तक कार्य किया। संघ के घोष में एक उत्कृष्ट शंख वादक (बिगुल वादक) के रूप में भी वे मुंबई एवं बेलगांव के स्वयंसेवकों को परिचित हैं। महाराष्ट्र प्रांत के पहले सम्मेलन के समय प.पू.गुरूजी की उपस्थिति में उनके द्वारा गाए गए व्यक्तिगत गीत की आज भी याद आती है, ऐसा कहने वाले अनेक कार्यकर्ता आज भी मिलते हैं।
शामरावजी आजन्म अविवाहित रहे परंतु परिवार के साथ उनके संबध अत्यंत आत्मीय रहे। संभवत: इसी भावना के कारण साप्ताहिक विवेक छोडकर वे बेलगांव में स्थायी रूप से बस गए। जीवन की अंतिम सांस तक उन्होंने विवेक के साथ यह ऋणानुबंध बनाए रखा। साप्ताहिक वीरवाणी का कार्यालय याने बेलगांव शहर के कार्यकर्ताओं का मिलन स्थल था। शामराव के निधन के बाद अब वहां आने वाले कार्यकर्ताओं को उनकी खाली कुर्सी हमेशा उनके साथ बिताए गए क्षणों की एवं उनके द्वारा गाए गए गीतों की याद दिलाती रहेगी।