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फिट बनें, फिटनेस फ्रीक नहीं

फिट बनें, फिटनेस फ्रीक नहीं

by रचना प्रियदर्शिनी
in जुलाई २०१९
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पहले बाजार ने हमें बताया कि सरसों तेल की तुलना में रिफाइंड तेल का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहतर है, तो हमने रिफाइंड तेल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। आज बाजार कह रहा है कि रिफाइंड ऑयल की तुलना में सरसों तेल खाना अधिक फायदेमंद है, तो हमने फिर से सरसों तेल खरीदना शुरू कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारी अपनी बुद्धि ही तेल लेने चली गई है।

करीब दो महीने पहले कोलकाता के न्यू टाउन इलाके में स्थित एक किराए के अपार्टमेंट में एक डॉक्टर को मृत पाया गया। आरंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्टों में पता चला कि 33 वर्षीय डॉक्टर मयंक कुमार वशिष्ठ की मौत हृदयाघात से हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. मयंक की मौत अधिक मात्रा में स्टेरॉयड का सेवन करने से हुई थी। स्टेरॉयड पुरुष हॉर्मोन टेस्टारोन का सिंथेटिक रूप हैं, जिसका उपयोग अक्सर कम समय में बेहतर मसल्स टोन या स्टेमिना पाने के लिए किया जाता है। डॉक्टर्स की मानें, तो नियमित रूप से स्टेरॉयड का सेवन करने वाला व्यक्ति यदि कभी किसी वजह से उसका सेवन नहीं कर पाता है, तो उसके शरीर में सोडियम और पोटैशियम का असंतुलन पैदा हो जाता है, जिससे हृदयाघात की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। डॉक्टर के कार्यालय सहयोगियों और आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ में पता चला कि डॉक्टर मयंक अपनी फिटनेस को लेकर कुछ ज्यादा ही सजग और उत्साही थे। वह खुद को मेंटेन रखने के लिए रोज नियमित रूप से व्यायाम किया करते थे। उनके फेसबुक प्रोफाइल में उनके वर्कआउट की तस्वीरें भरी हुई हैं।

चिकित्सकों की मानें, तो लंबे समय तक या अधिक मात्रा में स्टेरॉयड लेने से कार्डियक अरेस्ट, शरीर में सोडियम-पोटैशियम का असंतुलन, अनियमित हृदय की धड़कनें, रक्त का जमाव, जनन अक्षमता, टाइप टू डायबिटीज तथा लिगामेंट इंज्यूरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

पिछले कुछ समय से भारत के लोगों में अपनी फिटनेस को लेकर जिस तरीके से क्रेज देखने को मिल रहा है, यह उसका बस एक उदाहरण मात्र है। इस फिटनेस को पाने के लिए लोग आज ’कुछ भी’ करने को तैयार हैं। वह इसके लिए जम कर पैसा और समय खर्च कर रहे हैं। ऐसे में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रतिद्वंद्विता के कारण मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर, बाजार लोगों की इस दीवानगी का जम कर फायदा उठा रहा है।

फिटनेस के चक्कर में हो रहे हैं बीमार

एक ओर ज्यादातर लड़कियां जहां करीना कपूर जैसी ’जीरो फीगर’ पाना चाहती हैं, वहीं लडकों की जॉन इब्राहम, ॠतिक रोशन या सलमान खान की तरह दिखने की ख्वाहिश होती है। उनके लिए ’खूबसूरती’ की परिभाषा का अर्थ स्लिम-ट्रीम और स्मार्ट होना है। इस चक्कर में कई बार वे या तो खाना-पीना कम कर देते हैं या फिर अपने नियमित खान-पान के तरीकों में बदलाव कर देते हैं। परिणामस्वरूप इन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं होती हैं। इसके चलते ऐसे लोगों में कई तरह की बीमारियां पाई गई हैं। इनमें से दो मुख्य बीमारियां देखने को मिलती हैं। पहली, एनोरेक्सिया नरवोसा और दूसरी बुलिमिया। एनोरेक्सिया नरवोसा : एनोरेक्सिया खान-पान संबंधी एक सामान्य बीमारी है। यह एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपने वजन को लेकर जरूरत से ज्यादा संजीदा हो जाता है। अपना वजन बढ़ने के डर से भोजन करना कम कर देता है। अत्यधिक डाइटिंग और एक्सरसाइज का सहारा लेने लगता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि भरपेट भोजन करने से उसका वजन न बढ़ जाए या फिर वह मोटा न हो जाए। लिहाजा उनका खानपान अनियमित हो जाता है। इसका उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है और शरीर आंतरिक रूप से कमजोर होने लगता है। ’जर्मन सोसायटी फार चाइल्ड एंड एडोल्सेंट साइकैट्री’ के अनुसार, जिन किशोरों को एनोरेक्सिया की बीमारी होती है वो कुछ सप्ताह के भीतर ही अपने शरीर के वजन को 25 फीसदी तक कम कर लेते हैं।

बुलिमिया: बुलिमिया खान-पान की आदत से जुड़ी एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है। इससे ग्रस्त लोग अपने मनपसंद भोजन को खाने से खुद को रोक नहीं पाते और जी भर कर खा लेते हैं, लेकिन उसके बाद उन्हें यह चिंता सताती है कि कहीं इससे उनका वजन न बढ़ जाए। यह ख्याल आने पर वे जानबूझ कर उल्टियां करके उस खाने को अपने पेट से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी यही मंशा होती है कि मनपसंद भोजन का स्वाद लेने के बाद उल्टी कर देने से उनका वजन नहीं बढ़ेगा।

एनोरेक्सिया की तरह बुलिमिया के मरीजों को भी हमेशा वजन बढ़ने का डर सताता रहता है। इसी डर की वजह से वे कैलोरीज घटाने के लिए नुकसानदेह तरीके अपनाने लगते हैं। बार-बार जबर्दस्ती उल्टियां करने के कारण गले में खराश, डिहाइड्रेशन, थकान, सोडियम, कैल्शियम, पोटैशियम और मिनरल्स जैसे पोषक तत्वों की कमी हो सकती हैं।

सामाजिक जीवन हो रहा है प्रभावित

स्मार्टफोन के इस जमाने में लगभग हर क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों को दिखाने के लिए तरह-तरह के एप्स मौजूद हैं। फिटनेस एप्स भी उन्हीं में से एक है, जो लोगों की दिनचर्या से लेकर उनके खान-पान और लाइफस्टाइल को भी कंट्रोल करता है। इन दिनों लोगों की लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुके इन एप्स के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह है कि लोग अपनी सेहत ही नहीं बल्कि अपने पूरे रुटीन की बागडोर उसी के हाथों सौंप रहे हैं। उन्हें कब जागना है, कब सोना है, किस वक्त खाना है और कब बाहर जाना है। उनकी ये सारी गतिविधियां एप्स के जरिये नियंत्रित हो रही हैं।

फिट रहने के लिए अनुशासित दिनचर्या अपनाना तो ठीक है, लेकिन पूरी तरह से एप के नियंत्रण में आकर अपने दैनिक जीवन की प्राथमिकताएं भूल जाना, परिवार के प्रति जिम्मेदारियों को दरकिनार कर देना और लोगों से खुद को दूर कर लेना किसी भी लिहाज से सही नहीं है। कुछ लोगों में फिटनेस एप की यह लत मानसिक बीमारी के स्तर तक पहुंच गई है। क्लीनिकल साइकलॉजिस्ट की मानें, तो मनोचिकित्सा में बेहद अनुशासित बनने और मानसिक बीमारी होने के बीच एक बेहद बारीक रेखा है। फिटनेस एप्स के मामले में यही हो रहा है। ऐसे लोगों को हम फिटनेस फ्रीक की कैटेगरी में रख सकते हैं। उन्हें फिटनेस के अलावा कुछ याद ही नहीं रहता। वे हर वक्त अपने फिजिक और अपने बॉडी शेप के बारे में ही सोचते रहते हैं। इसके लिए उन्हें किसी भी हद तक जाने और कितना भी पैसा खर्च करने से कोई गुरेज नहीं होता है।

बाजार की गिरफ्त

आप या हम आज इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि बाजार ने हमारे जीवन में इस कदर घुसपैठ कर ली है कि हमारे आहार, विचार, व्यवहार सब उससे प्रभावित हैं। हमारे अपने सोचने-समझने की क्षमता कुंद पड़ती जा रही है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने भी योग, ध्यान, प्राकृतिक उत्पादों आदि की विशेषताओं पर बल देते हुए उन्हें अपने जीवन में शामिल करने की सलाह दी थी, लेकिन उस समय उनकी ब्रांडिग करने के लिए मार्केट मौजूद नहीं था, इसलिए हमने उन चीजों के महत्व पर ध्यान नहीं दिया। फिर अचानक से एक दिन बाज़ार ने बाबा रामदेव को भारतीय संस्कृति के ब्रांडिंग प्रोडक्ट के रूप में मार्केट में उतारा। मीडिया ने भी उनके बारे में जमकर प्रचार-प्रसार किया। फिर क्या था, लोगों को एक बार फिर से अपनी संस्कृति में सब कुछ अच्छा-अच्छा दिखने लगा। आज बाजार का प्रभाव हमारे जीवन पर इस तरह से हावी है कि केवल हमारा फिटनेस ही नहीं, हमारी जिंदगी का हर पहलू, यहां तक कि हमारी सोच, विचार एवं व्यवहार भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।

इससे पहले चाहे हमारे बड़े-बुजुर्ग कहें, डॉक्टर कहें या फिर खुद को भी समझ आ रहा हो कि फलां चीज़ हमारे स्वास्थ या हमारे जीवन के लिए सही नहीं है, लेकिन हमने उस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन आज बाजार कह रहा है, तो वह चीज़ हमारे लिए अच्छी या खराब हो गई। बाजार हमें बताता है कि स्लिम-ट्रीम होना और फलां स्टाइल के कपड़े पहनना आज का ट्रेंड है, तो बस हम अगले दिन से ही डायटिंग करना शुरू कर देते हैं। अपनी अलमारी से पुराने कपड़ों को हटाकर उसमें नए कपड़े भर देते हैं। पहले बाजार ने हमें बताया कि सरसों तेल की तुलना में रिफाइंड तेल का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहतर है, तो हमने रिफाइंड तेल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। आज बाजार कह रहा है कि रिफाइंड ऑयल की तुलना में सरसों तेल खाना अधिक फायदेमंद है, तो हमने फिर से सरसों तेल खरीदना शुरू कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारी अपनी बुद्धि ही तेल लेने चली गई है। हमारे लिए कौन-सी चीज़ अच्छी है और कौन-सी बुरी, यह जानते हुए भी अक्सर हम बाज़ार के दबाव में आकर बुरी चीज़ को अपना लेते हैं।

फिट होना सही है, लेकिन इस फिटनेस के चक्कर में अपनी सेहत से खिलवाड़ करना या फिर अपने आपको प्रताड़ित करना सही नहीं है। नियमित रूप से संतुलित आहार का सेवन करके और समुचित व्यायाम करके भी हम खुद को स्वस्थ्य एवं निरोगी रख सकते हैं। याद रखें, अति सर्वत्र वर्जयेत!

 

 

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