दृढ़ इच्छाशक्ति ही सफलता का राज

तुम्हारी सफलता का राज कहीं और नहीं, तुम्हारे ही अंतःकरण के साहस, संकल्प, आत्मबल, मनोबल तथा दृढ़ इच्छाशक्ति में छिपा है। अन्य जगहों पर उसे खोजना व्यर्थ है।

एक प्रसिद्ध कहावत है ‘जो रोता हुआ जाता है वह मरे हुए की खबर लाता है।’ जो पहले ही संशयग्रस्त है वह असफलता को ही गले लगाता है। जो प्रबल आत्मविश्वास, साहस एवं दृढ़ इच्छाशक्ति का मालिक है, सफलता उसी का वरण करती है।

सुकरात अपने समय में यूनान के महान ज्ञानी एवं दार्शनिक थे। वह निडर एवं निर्भीक स्वभाव के थे तथा सत्य के प्रचार-प्रसार हेतु जान तक कुर्बान करने को तैयार रहते थे। दूर-दूर से लोग अपनी शंकाएं एवं समस्याएं लेकर महात्मा सुकरात की सेवा में उपस्थित होते थे एवं महात्मा सुकरात से उसका निराकरण एवं समाधान प्राप्त करते थे। एक बार अपने जीवन में अनेक असफलताओं को झेला हुआ नौजवान व्यक्ति महात्मा सुकरात के पास यह पूछने हेतु आया कि आखिर इस विश्व में सफलता प्राप्त करने का राज क्या है? वह काफी बेचैन था। सुकरात के घर गया तो पत्नी ने बताया कि वह तो तालाब में नहाने गए हैं। वह अधीरता एवं अधैर्य से ग्रसित था। अतः वह तालाब का पता पूछते-पूछते वहां पहुंच गया, जहां महात्मा सुकरात नहा रहे थे। जैसे ही किसी ने उसे दिखाया कि “वे हैं महात्मा सुकरात.. तो वह धैर्यहीन व्यक्ति महात्मा सुकरात के नहाकर बाहर आने तक रूक पाने का भी धैर्य एवं संयम नहीं रख पाया तथा तालाब के किनारे खड़े-खड़े ही कमर तक पानी में खड़े महात्मा सुकरात से पूछ बैठा, “महाशय! सफलता का राज क्या है?”

महात्मा सुकरात ने उसके चेहरे को गौर से देखा एवं पाया कि वह अधीर, अशांत एवं संघर्षों से थका-हारा नवयुवक है। उन्होंने उस नवयुवक को इशारा करके अपने पास तालाब के जल में आने हेतु आमंत्रित किया। वह अपने कपड़े उतार कर मात्र नहाने का अधोवस्त्र धारण कर महात्मा सुकरात के करीब पहुंचा तो महात्मा सुकरात ने बिना कुछ कहे उसकी गर्दन कसकर पकड़ कर उसे पूरे बल के साथ पानी में डुबो दिया। युवक पानी से बाहर निकलने हेतु प्रयत्न करता रहा पर महात्मा सुकरात ने अपने हाथ का दबाव बनाए रखा। मरता क्या न करता। उस युवक ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर झटका दिया, जिससे महात्मा सुकरात सम्भाल नहीं पाए एवं वह युवक उनकी पकड़ से छूटकर पानी के बाहर निकल आया।

युवक इस अप्रत्याशित कृत्य के लिए महात्मा सुकरात से किसी तरह का दुर्व्यवहार करता इसके पूर्व ही महात्मा सुकरात ने बड़े स्नेह से उससे पूछा, “नौजवान मित्र! मेरे द्वारा डुबोए जाने के बावजूद तुम्हें किसने उबारा?” युवक ने कहा, “महाशय! जीने की दृढ़ इच्छा ने।” महात्मा सुकरात ने कहा, “नौजवान! सफलता का यही राज है।” तुम्हारी दृढ़ इच्छाशक्ति, संकल्प, साहस एवं सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग ही तुम्हारे लिए तुम्हारी सफलता का रास्ता खोजेगी एवं वही तुम्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाएगी। अपनी इच्छाशक्ति को मुखर किए बगैर एवं सम्पूर्ण क्षमता तथा शक्ति का प्रयोग किए बगैर सफलताएं, साहसहीनता तथा मनोबल की दुर्बलता के बिलों में दबी रह जाती हैं। पानी तभी भाप बनेगा जब उसे भाप बनाने की क्षमता पैदा करने वाली आग के ताप का सहयोग हो। तुम्हारी सफलता का राज कहीं और नहीं, तुम्हारे ही अंतःकरण के साहस, संकल्प, आत्मबल, मनोबल तथा दृढ़ इच्छाशक्ति में छिपा है। अन्य जगहों पर उसे खोजना व्यर्थ है। कहा गया है “साहसे सिद्धिः वसति।” अर्थात लक्ष्मी एवं समस्त सिद्धियां साहसी का ही वरण एवं वंदन करती हैं अर्थात साहस में ही सिद्धि का वास है।

 

 

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