मातृत्व की महिमा
‘जीवन में तीन चीज कभी नहीं हो-1.छोटे बच्चों की मां कभी न मरे। 2. जवानी में पति कभी नहीं मरे। और 3. बुढापे में पत्नी न मरे। ये तीनों आर्य सत्य हैं जिन्हें नकारना असम्भव है।’
‘जीवन में तीन चीज कभी नहीं हो-1.छोटे बच्चों की मां कभी न मरे। 2. जवानी में पति कभी नहीं मरे। और 3. बुढापे में पत्नी न मरे। ये तीनों आर्य सत्य हैं जिन्हें नकारना असम्भव है।’
एक बड़ी सिद्ध कहावत है ‘नेकी कर दरिया में डाल’ अर्थात् उपकारी उपकार को कर्तव्य अर्थात फर्ज मान कर उसे सम्पादित करें। उसमें उपकार करके उसके बदले प्रतिलाभता प्राप्त करने का विचार नहीं होना चाहिए।
एक भक्त ने संत एकनाथ से पूछा कि -“गुरूदेव! साधना के क्षेत्र में आपकी निस्पृहता देखकर हम सब दंग हैं। आप कृपया हमें बतायें कि ऐसी निस्पृहता एवं स्थितप्रज्ञता आप कैसे रख पाते हैं?“ संत एकनाथ ने एक गहरा निःश्वास छोड़ते हुए कहा कि -“वत्स! तुझे किसी दिन फुर्सत में बैठकर इस साधना का रहस्य बताऊंगा परन्तु...
चित्तौड़ दुर्ग राजपूती आन-बान शान का प्रतीक है। जो महत्त्व इस गढ़ को एवं इसके सिसोदिया वंश के महाराणाओं को इतिहास के पृष्ठों में मिला है। वह यश एवं कीर्ति अन्य किसी गढ़ या वंश को उतनी मात्रा में नहीं मिली है। इस महत्त्व को दिग्दर्शित करते हुए कवि ने कहा है-
मधुभाई भट्ट गुजरात के मेहसाणा के निवासी थे। यह घटना आजादी से पूर्व की है जब घरों में नल, गुसल तथा शौचालयों का इतना प्रचलन नहीं था। गांवों में लोग लोटे में पानी भरकर बस्ती से दूर शौच के लिए जाते थे। नहाने हेतु गांव में स्थित रहट की बाड़ियां थी।
इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि स्त्री चाहे मां, पुत्री या बहन ही क्यों ना हो, उनके साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि इन्द्रियां बहुत चंचल एवं बलवान हैं। भलो-भलों को फुसला कर उन्हें पथभ्रष्ट करने की क्षमता रखती हैं।
एक कहावत है कि जो रोता जाता है मरे की खबर लाता है. परंतु साहसी सैकड़ों आफतों को झेल जाता है। अर्थात जो व्यक्ति पहले से ही हिम्मत हार चुका है, निराशाग्रस्त है, वह कभी उत्साहित होकर नहीं जाता है। वह तो पहले से सदमाग्रस्त होकर रोता हुआ जाता है एवं जब आता है तो मरे हुए की खबर लेकर आता है।
तुम्हारी सफलता का राज कहीं और नहीं, तुम्हारे ही अंतःकरण के साहस, संकल्प, आत्मबल, मनोबल तथा दृढ़ इच्छाशक्ति में छिपा है। अन्य जगहों पर उसे खोजना व्यर्थ है।
एक बड़ी समय-सद्ध कहावत है, ‘नेकी कर दरिया में डाल’ अर्थात् उपकारी उपकार को कर्तव्य अर्थात फर्ज मानकर उसे सम्पादित करें। उसमें उपकार करके उसके बदले प्रतिलाभता प्राप्त करने का विचार नहीं होना चाहिए।
यूरोप के एक परिवार मे मात्र तीन प्राणी थे। एक तो थी पति से परित्यक्त मां एवं उसके दो अबोध उम्र के पुत्र। पति से परित्यक्त होने के कारण मां को अपना एवं पुत्रों का पालन-पोषण करने हेतु नौकरी पर जाना पड़ता था। दोनों बच्चे पढ़कर स्कूल से आए परंतु मां काम की व्यस्तता से घर नहीं आ पाई थी।