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एनपीए का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

एनपीए का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

by सोनल छाया
in अगस्त २०१९
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सरकार और बैंकों के प्रयास से फंसे कर्ज (एनपीए) की वसूली के मोर्चे पर बेहतर परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं, जिससे बैंकिंग क्षेत्र मजबूती की ओर अग्रसर हो रहा है।े जाहिर है, बैंकिंग क्षेत्र के मजबूत होने से अर्थव्यवस्था बेहतर होगी और विकास दर में तेजी आएगी।

गैर निष्पादित आस्ति या फंसा कर्ज (अंग्रेजी में नॉन-परफार्मिंग असेट- एनपीए) भी बैंकिंग कारोबार का हिस्सा होता है। जिस तरह से सामान्य कारोबार में नफा-नुकसान होता है, उसी तरह बैंकिंग कारोबार में भी नफा-नुकसान होता है। फंसे कर्ज को नुकसान के तौर पर देखा जा सकता है। बैंक को ऐसा नुकसान न हो इसके लिए कुशन के तौर पर ऋणी से जमानत ली जाती है, ताकि ऋण खाते के फंसे कर्ज में तब्दील होने पर जमानत में रखी वस्तु को बेच कर खाते को दुरुस्त किया जा सके। इस संदर्भ में ऋणी के वैयक्तिक साख को भी ऋण देने का आधार बनाया जाता है। बैंक को यदि एक निश्चित अवधि तक ब्याज और किस्त नहीं मिलती है तो खाता फंसे कर्ज में तब्दील हो जाता है। ऋण खातों के स्वरूप के मुताबिक फंसे कर्ज के नियम अलग-अलग होते हैं।

एनपीए की मौजूदा स्थिति

बैंकों का सकल फंसा कर्ज (ग्रॉस एनपीए) वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 11.2 प्रतिशत, राशि में 10.39 लाख करोड़ रुपये हो गया, जिसमें सरकारी बैंकों का सकल फंसा कर्ज 8.95 लाख करोड़ रुपये था, जो उनके कुल कर्ज का 14.6 प्रतिशत है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2016-17 में समस्त बैंकों का सकल फंसा कर्ज 9.3 प्रतिशत था, जबकि सरकारी बैंकों का सकल फंसा कर्ज 11.7 प्रतिशत था। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी ट्रेंड्ज एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन 2017-18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुनर्गठित कर्जों के फंसे कर्ज में तब्दील होने और फंसे कर्ज की पहचान की प्रक्रिया लगभग पूरा हो जाने के कारण वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों का सकल फंसा कर्ज अनुपात 14.6 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि शुद्ध फंसे कर्ज का अनुपात 8 प्रतिशत था, जो एक साल पहले 6.9 प्रतिशत था। हालांकि,निजी बैंकों का सकल फंसा कर्ज का अनुपात आलोच्य अवधि में 4.7 प्रतिशत रहा, जो एक साल पहले 4.1 प्रतिशत था, वहीं विदेशी बैंकों के फंसे कर्ज में आलोच्य अवधि में गिरावट दर्ज की गई।

एनपीए में कमी आने के संकेत

भले ही बैंकों के फंसे कर्ज का इलाज लोगों को मुश्किल लग रहा है, लेकिन सरकार और बैंकों के प्रयास से मामले में सकारात्मक परिणाम परिलक्षित होने लगे हैं। एक तरफ सरकार समय-समय पर बैंकों को विभिन्न जरूरतों, उदाहरण के तौर पर, नियामकीय और फंसे कर्ज आदि के लिये पूंजी मुहैया करा रही है तो दूसरी तरफ नए-नए क़ानूनों जैसे, भगोड़ा विधेयक, ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता (आईबीसी) आदि के माध्यम से बैंकों को फंसे कर्ज की वसूली में मदद पहुंचा रही है।

सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज में कमी आई है और बैंक ज्यादातर फंसने वाले संभावित कर्जों की पहचान कर चुके हैं। साथ ही, उनके तुलन पत्र में दिखाने का काम भी लगभग पूरा हो गया है। वित्त वर्ष 2019 की पहली छमाही में इसमें 23,860 करोड़ रुपये की कमी आई है। पुनर्गठित कर्ज भी मार्च 2017 के 7 प्रतिशत से घट कर सितंबर,2018 तक 0.59 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जिन ऋण खातों की किस्त जमा करने में 31 से 90 दिनों की देरी हुई है और जो अभी तक फंसे कर्ज में तब्दील नहीं हुए हैं उनमें लगातार पांच तिमाहियों में 61 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है और सितंबर, 2018 में यह 0.87 लाख करोड़ रूपये रह गया, जबकि जून, 2017 में ऐसे संभावित फंसे कर्ज 2.25 लाख करोड़ रुपये के थे। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकारी बैंकों ने रिकॉर्ड 60,726 करोड़ की वसूली की है, जो साल भर पहले की इसी तिमाही का दोगुना है। सरकारी बैंकों का प्रोविजन कवरेज रेशियो (पीसीआर) मार्च 2015 में 46.04 प्रतिशत था, जो सितंबर 2018 तक बढ़ कर 66.85 प्रतिशत हो गया। यह अनुपात बैंकों की नुकसान सहने की क्षमता के बारे में बताता है। साफ है, सरकारी बैंकों की नुकसान सहने की क्षमता में इजाफा हुआ है।

रिजर्व बैंक ने 31 दिसंबर को अपने एक बयान में कहा कि बैंकिंग क्षेत्र फंसे कर्ज की समस्या से बाहर निकल रहा है और 2015 के बाद पहली बार इसमें कमी आई है। केंद्रीय बैंक ने अपनी अर्द्धवार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा कि बैंकिंग क्षेत्र पटरी पर लौट रहा है। हालांकि, फंसे कर्ज का मौजूदा स्तर अभी भी काफी ऊंचा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों के कर्जों की गुणवत्ता सुधरी है। उनका सकल फंसा कर्ज सितंबर 2018 में घट कर 10.8 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया, जो मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत था। वैसे, खनन, खाद्य प्रसंस्करण और निर्माण क्षेत्रों में दबाव अभी भी बढ़ रहा है, लेकिन बैंक इसके समाधान के लिए भी कोशिश कर रहे हैं। इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र फंसे कर्ज के दबाव से धीरे-धीरे बाहर आ रहा है। सितंबर, 2015 के बाद सकल फंसे कर्ज के अनुपात में पहली छमाही में कमी और प्रावधान कवरेज अनुपात में सुधार आना एक सकारात्मक संकेत हैं। श्री दास के अनुसार दबाव परीक्षण के परिणामों के मुताबिक बैंकों के पास पर्याप्त नकदी है और वे किसी भी दबाव को झेल सकते हैं।

आईबीसी से वसूली में तेजी

आईबीसी और फंसी संपत्तियों के समाधान के लिए रिजर्व बैंक की संशोधित रूपरेखा से फंसे कर्ज और इसकी वसूली दर में तेजी आई है। इसके तहत अब तक 1322 मामलों में से 66 मामलों का निपटारा करके 80,000 करोड़ रूपये की वसूली की गई है। आईबीसी के जरिए वसूली का प्रतिशत 50 से भी अधिक है, जो अन्य वसूली के तंत्रों मसलन, लोक अदालत, डीआरटी, सरफेसी कानून आदि में सबसे बेहतर है। लोक अदालत के द्वारा वसूली करने का प्रतिशत 4, डीआरटी के जरिए 5.4 और सरफेसी कानून के द्वारा 25 है। गौरतलब है कि एनसीएएलटी में जाने से पहले ही 2.02 लाख करोड़ रूपये के 4,452 मामले सुलझा लिए गए थे। साथ ही, 260 मामलों पर कार्रवाई करके परिसंपत्तियां बेचने के आदेश दिए गए।

सरकारी मदद

सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के 7 बैंकों में पुनर्पूंजीकरण बाँड के जरिए पूंजी डाल रही है। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 41,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त तौर पर देगी, जो पहले की घोषित राशि से अलग होगी। इससे सरकारी बैंकों में केंद्र की तरफ से लगाई जाने वाली रकम 65 हजार करोड़ से बढ़ कर 1.06 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। सरकारी मदद से कुछ बैंक रिजर्व बैंक के प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) के दायरे से बाहर आ गए हैं। पीसीए में उन बैंकों को डाला जाता है, जो कुछ महत्वपूर्ण वित्तीय मानकों का पालन नहीं कर पाते हैं। पीसीए में डाले जाने के बाद बैंकों के लोन देने और नई शाखाएं खोलने पर रोक लगा दी जाती है।

क्यों हो रही है एनपीए में कमी

ऐसा लगता है कि ऋण आकलन में अनुशासन का पालन अब बेहतर ढंग से हो रहा है, बाजार जोखिम के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है और परिचालन जोखिम मूल्यांकन बेहतर हुआ है। आईबीसी से आमूलचूल बदलाव आया है और इससे देश की ऋण संस्कृति में अनुशासन लाने में मदद मिली है। हां, समाधान के लिए भेजे गए कुछ मामलों में तय समय-सीमा से कुछ ज्यादा समय लगा है, लेकिन मामले में सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे हैं।

चुनौतियां

मौजूदा समय में बैंक नकदी की तरलता, ऋण जोखिम, धोखाधड़ी आदि का सामना कर रहे हैं। इन जोखिमों की वजह से बैंकों को प्रणालीगत संकट का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका में वर्ष 1990 में ऋण संकट उत्पन्न हुआ था। वर्ष 1990 में ही जापान के बैंकों में परिचालन संकट पैदा हुआ था। कुछ समय पहले नाइजीरिया में 25 बैंकों का अधिग्रहण करना पड़ा, क्योंकि वे दिवालिया हो गए थे। पंजाब नेशनल बैंक में धोखाधड़ी होने से भारतीय बैंक, साख के संकट का सामना कर रहे हैं। भारतीय बैंक एनपीए की समस्या से भी जूझ रहे हैं। भारतीय बैंकों को बासेल तृतीय के मानकों को वर्ष 2019 तक लागू करना है, जिसके लिए उन्हें भारी-भरकम पूंजी की दरकार है। नियामक स्तर पर भी कई कमियां हैं, जिसका खुलासा पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले के दौरान हुआ। बैंक के कुछ कर्मचारियों के बीच काम की जानकारी का नहीं होना भी एक बड़ी समस्या है। कैसे हो मुनाफे में इजाफा

बैंकिंग उद्योग की लाभप्रदता के समक्ष मुख्य बाधा बढती नियामकीय पाबंदी, सरकारी हस्तक्षेप, वित्तीय संस्थानों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा एवं विविध राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करना है। बैंक जमा राशि का उपयोग जरूरतमंदों को कर्ज देने में करता है। ब्याज की राशि में से कुछ भाग वह जमाकर्ताओं की जमा राशि पर ब्याज देता है और बची हुई राशि वह अपने पास लाभ के रूप में रखता है। बैंक को सकल जमा राशि में से कुछ भाग नकद कोष के रूप में रखना होता है, ताकि वह आकस्मिक देनदारी की पूर्ति कर सके।

बैंक अल्पकालीन, मध्यम एवं लंबी अवधि के लिए ऋण वितरण करके लाभ कमाता है। वे बिलों की कटौती भी करते हैं। बैंक की ऋण नीति समय के अनुसार बदलती रहती है। बैंक को अपनी ऋण नीति निर्धारित करते समय कई बातों को ध्यान में रखना होता है, जैसे, ऋण का वितरण इस प्रकार हो कि आवश्यकता होने पर उसे नकदी में तब्दील किया जा सके, ऋण राशि सुरक्षित रहे, ऋण से संतोषजनक आय हो, ऋण किसी एक ही उद्योग को न दिया जाए, ऋण किसी व्यक्ति विशेष को न दिया जाए, जमानतों का भली-भांति निरीक्षण किया जाए, जमानत, जिस पर ऋण दिया जा रहा है, तरल, सुरक्षित और आसानी से नकदी में तब्दील होने वाला हो, यदि जमानत का मूल्य ह्रास होने लगे तो ऋणी से अविलंब अन्य जमानत ली जाए आदि।

आजकल निवेशक बैंक से ज्यादा लाभ कमाने की अपेक्षा रखते हैं, ताकि उन्हें उनके निवेश का संतोषजनक प्रतिफल मिले। लिहाजा, बैंक लेनदेन, जमा अधिशेष, चेक बुक, एटीएम, जमा आदि पर भी शुल्क ले रहे हैं। ऋण प्रोसेसिंग पर शुल्क, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क, बीमा आदि से आय अर्जित कर रहे हैं। अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए बैंक कम जोखिम वाले ऋण पर कम ब्याज और ज्यादा जोखिम वाले ऋण पर अधिक ब्याज एवं शुल्क ले रहे हैं। बैंक डेबिट व क्रेडिट कार्ड, एवं अन्य स्मार्ट कार्ड, जैसे गिफ्ट कार्ड आदि पर भी शुल्क आरोपित कर रहे हैं। मौजूदा समय में बैंक प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय, क्रॉस सेलिंग आदि से भी लाभ कमा रहे हैं। मोटे तौर पर आय और खर्च का अंतर बैंक का लाभ माना जाता है, लेकिन सरकार को अदा की गई कर की राशि और एनपीए के लिए किए गए प्रावधान की गई राशि को बैंक के समग्र लाभ से घटाने के बाद बची हुई राशि बैंक का शुद्ध लाभ कहलाता है।

एनपीए का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव

बैंकों में एनपीए की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है। एसोचैम-क्रिसिल के अध्ययन के मुताबिक बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी मात्रा में दबाव वाली परिसंपत्तियां हैं, जिनमें सुधार की संभावना कम है। रिपोर्ट में परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों की वृद्धि के कम होने की आशंका जताई गई है, जिसका कारण उनका पूंजी आधार घटना है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक जून, 2019 तक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों की वृद्धि घट कर 12 प्रतिशत पर आने की उम्मीद है, जबकि दबाव वाली परिसंपत्तियों के बढ़ कर एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से संसद में हाल ही में कहा था कि वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच सरकारी बैंकों को विभिन्न बैंकिंग धोखाधड़ी के चलते कुल 227.43 अरब रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। बैंकिंग धोखाधड़ी के 25,600 से ज्यादा मामले दिसंबर, 2017 तक दर्ज हुए, जिसके जरिए 1.79 अरब रुपये की धोखाधड़ी की गई।

विदित हो कि अर्थव्यवस्था तभी स्वस्थ रहेगी, जब बैंक स्वस्थ रहेंगे। बैंकिंग क्षेत्र के स्वस्थ रहने पर ही रोजगार सृजन, उत्पादों की मांग में तेजी, निर्माण के कार्यों में वृद्धि आदि संभव हो सकता है, क्योंकि पूंजी के स्रोत बैंक ही हैं। कल-कारखाने बिना पूंजी के नहीं चल सकते हैं। जब उद्योगों के पास पूंजी होगी, तभी वे उत्पादन कर सकेंगे। वर्तमान में बैंकों को बढ़ते फंसे कर्ज और बासेल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने के लिए भारी-भरकम पूंजी की दरकार है। पूंजी की कमी की वजह से बैंक कारोबारियों को कर्ज नहीं दे पा रहे हैं, जिससे उत्पादों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है, जिससे बाजार में सुस्ती का माहौल बना हुआ है।

निष्कर्ष

कहा जा सकता है कि सरकार और बैंकों के प्रयास से फंसे कर्ज की वसूली के मोर्चे पर बेहतर परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं, जिससे बैंकिंग क्षेत्र मजबूती की ओर अग्रसर हो रहा है। जाहिर है, बैंकिंग क्षेत्र के मजबूत होने से अर्थव्यवस्था बेहतर होगी और विकास दर में तेजी आएगी।

 

 

सोनल छाया

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