लैला: कायरों की दांभिकता का भ्रष्ट प्रदर्शन

लैला के आर्यावर्त पर आधारित एक वेब सिरीज इन दिनों चर्चा में है। प्रयाग अकबर के उपन्यास पर आधारित यह धारावाहिक है। लेखक का फर्जीपन इसीसे जाहिर है कि उसने हिंदू-मुस्लिम संलग्न नाम धारण किया है। परंतु यह उपन्यास भी जॉर्ज आरवेल की कृति ‘1984’ की नकल बताई जाती है। इस नकलची ने हिंदुओं को कहीं का नहीं छोड़ा और इस्लाम के प्रचार की भ्रष्ट दांभिकता का पूरा प्रदर्शन किया है।

इन दिनों लैला के आर्यावर्त पर आधारित एक वेब सिरीज का विज्ञापन जोरशोर से ई-माध्यमों पर चल रहा है। यह प्रयाग अकबर के 2017 मेंं लिखे उपन्यास पर आधारित है। इसका निर्देशन दीपा मेहता ने किया है। मूल रूप से पिछली शताब्दी के जानेमाने लेखक जॉर्ज ऑरवेल की साहित्य कृति 1984 पर यह उपन्यास आधारित है।

ऐनिमल फार्म और 1984 लिख कर जॉर्ज ऑरवेल ने रूस की सर्वेसर्वा, साम्यवादी राज्यव्यवस्था को एक महाकाय बंदीगृह में परिवर्तित करने वाले क्रूरकर्मा स्तालिन के नृशंस कारनामों का इस उपन्यास में पर्दाफाश किया था। यह साहित्य कृति पूरे विश्व की विविध भाषाओं में अनूदित हुई। परंतु पर्दाफाश होने पर भी अत्याचार रुके नहीं। इसी शताब्दी मेंं कई मुस्लिम देशों में कई बार वहां के तानाशाहों ने अपने देश की जनता पर वैसे ही अत्याचार किए। बहुत बड़े पैमाने पर हत्याकांड हुए। मिसाल के तौर पर क्रूरकर्मा सद्दाम हुसैन ने अपने ही देशवासी शिया मुस्लिमों और अल्पसंख्यंकों का कत्लेआम किया था। सद्दाम के कारनामे, मुक्तादा अल सद्र, दि शिया रिव्हावल ऐंड दि स्ट्रगल फॉर इराक, (लेखक पॅट्रीक कोकबर्न) नामक पुस्तक में पढ़े जा सकते हैं। सद्दाम के कृपापात्र अली हसन अल मीद ने 1988-89 विषैली गैस से एक लाख अस्सी हजार कुर्द अल्पसंख्यंकों का खात्मा किया था। उसे केमिकल अली के नाम से ही जाना जाता था। कई महीनों तक हजारों शिया पंथी मौत के घाट उतार दिए जाते थे। एक अनुमान के अनुसार सद्दाम ने एक लाख पचास हजार शियाओं का कत्ल करवाया था। शियाओं के नजफ, करबला जैसे महत्वपूर्ण धर्मस्थलों पर जाने पर पाबंदी लगाई। हालांकि ये पुरानी बातें हो चुकी हैं। इस दशक में भी अरब देशों में कत्ल किए गए नागरिकों की तादाद लाखों में है। मिस्र में मुबारक, लिबिया में गद्दाफी, सीरिया में बशर अल अस्साद इन तानाशाहों ने तरह-तरह के शस्त्रों का इस्तेमाल कर अपने ही नागरिकों पर हवाई हमले किए। अस्साद ने तो सुन्नी मुस्लिम बस्तियों पर हवाई हमलों के दौरान क्लोरीन वायु के सिलेंडर फेंक कर मानो नए रासायनिक शस्त्रों का परीक्षण ही किया था।

ये सब अत्याचार क्या कम थे कि, अल्पकालिक खिलाफती शहंशाह अबु बक्र बगदादी ने तबाही मचा दी थी। उसके आतंकवादियों ने उन कारनामों का फिल्मीकरण ई-माध्यामों में प्रस्तुत किया मानो ये राक्षस बर्बरता का व्यवहार कर जन्नत की ओर जाने का दरवाजा खुद के लिए खोल रहे हो। प्रयाग अकबर क्या इन नृशंस कारनामों से अवगत नहीं था? ऐसा कभी नहीं हो सकता। फिर उसने आर्यावर्त में इसी प्रकार के जुल्म किए जाने का क्यों वर्णन किया? उसे आर्यावर्त छोड़, किसी और नाम से यह वास्तव दिखाने के लिए कौन रोकने वाला था? कारण सरल है। प्रयाग अकबर जैसे नाम धारण करने वाले लोग दांभिक, कायर, भगोड़े मनोवृत्ति के होते हैं। वे इस्लाम और मुस्लिमों को लेकर एक शब्द भी कहना, लिखना नहीं चाहते। एक मिसाल देता हूं। हिंदुओं के इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश करने वाली वेंडी डोनिगर नामक लेखिका के सहलेखक, सुधीर कक्कड़ ने अपनी कायरता की, दांभिक होने की स्वीकृती दी है। एक मुलाखात में कक्कड़ कहते हैं, So what we are talking here is Islam & So yes, there is certain caution by scholars here & But then if a section of Muslims is intolerant and violently so, does it mean all Hindus should follow that example? (The Times of India, Feb 16, 2014)।            कक्कड़ जैसे कायर लोग वास्तविकता को टालते हैं और भगोड़ापन छिपाने के लिए हिंदू समाज को उपदेशों की खुराक पिलाना चाहते हैं। प्रयाग अकबर और दीपा मेंहता, दोनों ने आर्यावर्त, डॉ. जोशी, शालिनी रिज़वान चौधरी ऐसे नाम पात्रों को देकर अपना यथार्थ से वास्ता न रखने की कायरता, दांभिकता का प्रकटन किया है।

प्रयाग अकबर जैसे नाम लेकर तथा शालिनी रिज़वान चौधरी जैसे पात्रों का निर्माण कर अपना सेक्युलर चेहरा दिखाने का प्रयास करने वाले ये लोग विखंडित व्यक्तित्व (Split personality) के होते हैं। उन्हें मुस्लिम नाम अपना कर नक्काशीदार टोपी पहन कर अपनी अलग पहचान बनाने में दिलचस्पी होती है। साथ ही उन्हें हिंदू समाज और संस्कृति से नफरत होती है। मुस्लिम नाम अकबर से जुड़ने वाली विरासत को अनदेखा कर हिंदू नाम से जुड़ी विरासत को विद्रूप करके प्रसारित करने में उन्हें एक तरह का सेक्युलर बड़प्पन महसूस होता है। यही उनके विखंडित व्यक्तित्व की पहचान है। इन विखंडित व्यक्तित्व के लोगों को एक बात का पूरा भरोसा है की पड़ोसी बांगलादेश में जिस तरह से मुक्त चिंतन करने वाले ब्लॉगर्स को छुरे घोंप कर, या हतौड़े मार कर मस्तिष्क छिन्नभिन्न कर दिया जाता है उस तरह का बर्ताव हिंदू उनके साथ नहीं करेंगे।

अब देखना है कि अकबर की दीनी विरासत को आर्यावर्त में दिखाए गए माहौल पर कैसे थोपा गया है। आर्यावर्त में लोगों को आतंकित रखने के लिए श्रम केंद्रों का निर्माण दिखाया है। श्रम केंद्र, जहन्नुम-नरक समान यातना देकर मानसिक शुध्दिकरण करने के लिए बनाया गया बंदी शिविर (Concentration camp) है। उसमें एक मंत्र, ‘हमारा जन्म ही हमारा कर्म है’ सदैव गूंजता रहता है। मानो ऐसे कि यदि कोई इन्सान काफिर माता-पिता की पैदाईश है, तो वह कितना भी सदाचारी क्यों न हो, उसका अंत नरक यातना भुगतने में ही है। नरक यातनाओं से छुटकारा पाने का केवल एकमात्र साधन है, कुफ्र त्याग कर अल्ला के बंदे बनो। श्रम केंद्रों में महिलाएं बहुसंख्य दिखाई गई हैं। ठीक उसी तरह जैसे बुखारी हदीस (Summaised  Sahih  Bukari, English translation, Islamic University, published from Darusslam, Pg144, Pg648) में दिया है कि नरक में महिलाएं बहुसंख्या में होंगी। क्योंकि इस्लाम के अनुसार महिलाएं जन्नत में प्रवेश मिलने के लिए पात्र नहीं होती हैं (तत्रैव पृष्ठ 901)। जहन्नुम में सिर्फ दो प्रकार के लोग रहने वाले हैं, काफिर और महिलाएं, ठीक उसी तरह श्रम केंद्र के निवासी नीले घर वाले और हरे घर वाले घेट्टो में रखे जाएंगे। जहन्नुम निवासी सदा के लिए नरकाग्नि में भूने जाते रहेंगे (कुरआन शरीफ 2।39) ठीक उसी तरह श्रम केंद्र के घेट्टो में मिथेन वायु ज्वालाएं निवासियों को भूनती रहेंगी। जहन्नुम में रहने वालों को उबलते पानी में रहना होगा (कु. श. 55।44) और जक्कुम के विषैले फल खाने होंगे (कु. श. 37।62-68), तो आर्यावर्त में विषैले पानी की बौछार निवासियों के शरीरों को जलाती रहेगी। जहन्नुम और आर्यावर्ती श्रम केंद्र में और कई समान बिंदू हैं, जो अकबर को दीनी विरासत में मिले हैं। प्रयाग अकबर जैसे लोग कश्मीरी पंडितों की पीड़ा, पाकिस्तान में हिंदुओं का छल और धर्म परिवर्तन, भारतीय मुस्लिमों में अलगाव का भाव जगा कर उन्हें इसीस से जाकर मिलने के लिए उकसाने वाले बदमिजाजी दीनी बंदों के कारनामों पर और माया, ममता, मुलायम जैसे जयचंदों पर लिखने से कतराते हैं। खासकर सुन्नी मुस्लिमों में सउदी डॉलर की लालच से दशकों से बढ़ती वहाबी धर्मांधता की अनदेखी कर हिंदुओं में धर्मांधता बढ़ रही है यह दुनिया के सामने सिध्द करने के प्रयास ये कुबुध्दिजीवी कर रहे हैं। यही इनके विखंडित व्यक्तित्व और कायरता का प्रमाण है।

मोदीजी की सरकार आई और सभी सेक्युलॅरिस्टों के होश उड़ गए। मोदीजी स्वयं पिछड़े परिवार से और समाज के गरीब तबके से आते हैं। आर्यावर्त का सर्वेसर्वा तानाशाहा डॉ. जोशी को दिखा कर मानो मोदीजी पर ब्राह्मणी मुखौटा चढ़ा कर प्रयाग अकबर ने 1984 जैसी प्रसिद्ध साहित्य कृति की भ्रष्ट नकल उतारी है। किंतु भारत का सामान्य नागरिक 2014 के लोकसभा चुनाव दौरान इनके बहकावे से बाहर हो गया। ना तो उस पर अवार्ड वापसी के तमाशों का परिणाम हुआ, ना तो अखलाख को लेकर बार-बार बहाए गए घड़ियाली आसुओं का। वह सालों से ममता, माया, मुलायम किस तरह से हिंदू समाज की अवहेलना करने पर तुले थे, यह जानता था। उसने गांधी परिवार का उधार लिया हिंदूकरण भी भांप लिया। उसे ही जनता जनार्दन ने 2019 के चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व यश दिलाया। प्रयाग अकबर जैसे दांभिक लोग केवल हाथ मलते रह गए।

 

 

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