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राम जन्मभूमि निर्णय नए अध्याय का प्रारंभ

राम जन्मभूमि निर्णय नए अध्याय का प्रारंभ

by अमोल पेडणेकर
in दिसंबर २०१९, संपादकीय
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समाज अपने प्रश्नों को जिस पद्धति से हल करता है, उससे उस समाज के विकास स्तर को जाना जा सकता है। बहुचर्चित, बहुप्रलंबित एवं बहुविवादित रामजन्म भूमि विवाद का सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दे दिया है।

भारत का इतिहास बताता है कि विदेशी आक्रमणों से भारत त्रस्त था। बाबरी मस्जिद का निर्माण आक्रमकता की पराकाष्ठा थी। परंतु इसका भी समर्थन मुस्लिम समाज, कांग्रेस सरीखे नकारात्मक दृष्टि से विचार करने वाले राजनीतिक दलों एवं भ्रष्ट बुद्धिजीवीयों द्वारा किया गया।

विदेशी आक्रमण का यह समर्थन हिंदूओं द्वारा व्यक्त गुस्से के लिये काफी था। 1984 के बाद राम मंदिर प्रश्न ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था। 1989 में कार सेवा के लिये एकत्रित हजारों कारसेवकों पर मुलायम सिंह द्वारा की गई गोलीबारी में कोठारी बंधुओं सहित सैकड़ों कारसेवक शहीद हो गये थे। इसके फलस्वरूप 1992 में हुई कार सेवा में देशभर से आये हजारों रामभक्तों द्वारा बाबरी मस्जिद ढांचे को उध्वस्त कर दिया गया।

इसके बाद करीब 27 वर्ष चले इस स्थान की मालकियत के विवाद को सर्वोच्च न्यायालय ने सुलझा दिया है। रामजन्मभूमि एवं बाबरी ढांचे के विवाद में हिंदुओं के हक की मांग सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार की है। मांग को स्वीकार करते समय आवश्यक ऐतिहासिक तथ्यों की पडताल भी की गई है। मुस्लिमों की प्रार्थना के अधिकार को भी स्वीकारते हुए उन्हें सरकार द्वारा मस्जिद निर्माण हेतु पांच एकड़ जमीन देने के आदेश भी सुप्रीम कोर्ट ने दिये हैं। इस प्रकार दोनों वर्गों की आस्था तथा भावनाओं को जतन करने का काम सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया है। इस निर्णय से अधिक संतुलित निर्णय अन्य कोई भी नहीं हो सकता था।

गत कई वर्षों से लंबित यह मुद्दा सतत राजनीति का केंद्र रहा है। इसके कारण कई अप्रिय घटनाएं घटित हुईं। दो समुदायों में तनाव, दंगे एवं आतंकवादी कार्रवाईयां भी हुई। इस निर्णय के उपरांत भी भारतीय जनमानस में यह प्रश्न था कि क्या दोनों समुदायों के बीच फिर तनाव निर्माण होगा? परंतु यह समय ऐसी उम्मीद मन में जगाने वाला है कि यह कालखंड इतिहास की अप्रिय हिंसक, कथा-व्यथाओं को पूर्णविराम देकर नई उम्मीद से नये भारत की ओर मार्गक्रमण का है। राम जन्मभूमि विवाद के निर्णय ने यह रेखांकित किया है कि आधुनिक भारत में कटु धार्मिक विवाद भी न्यायालय के सामने आते हैं और न्यायालय का निर्णय सबको मंजूर होता है। अपेक्षानुरुप देश की जनता एवं राजनितिक दलों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। यह निर्णय ना तो इकतरफा है और न ही इससे किसी की हार या जीत हुई है। प्रत्यक्षत: निर्णय का स्वरुप समझदारी एवं समन्वय का है। इस निर्णय के कारण राष्ट्रभावना कोे बढ़ावा देने वाला संदेश सारे विश्व को मिला है कि हमारे देश में संविधान सर्वोच्च है, उसका पालन करने की जिम्मेदारी सरकार सहित सबकी है और संविधान के सामने हमारे धर्म एवं पंथ के प्रश्न गौण हैं। मुस्लिम समाज ने शांति, संयम एवं समझदारी दिखाई। यह बात अभिनंदनीय तो है ही, साथ ही नये अध्याय के शुभारंभ होने की बानगी भी है। हिंदू समाज ने भी रामजन्मभूमि निर्णय का आनंद भव्य शोभायात्रा निकालकर या मुस्लिम समाज के मन में कटुता पैदा करने वाला हो इस प्रकार नहीं मनाया। कहीं भी गौरव यात्रा या प्रदर्शन न करते हुए रामजन्मभूमि मुक्ति का आनंद हिंदुओं ने अपनी आत्माराम तक सीमित रखा यह भी अभिनंदनीय है।

पुलिस विभाग द्वारा निर्णय आने के पूर्व कडी एवं सतर्क भूमिका का निर्वहन किया गया जिसके कारण सोशल मीडिया एवं समाज के असामाजिक तत्वों पर नियंत्रण रखना संभव हुआ। सभी दृष्टिकोणों से विचार करते हुए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लोकतंत्रीय भारत के समझदार एवं प्रगल्भ नागरिकों के रुप में भारतीय समाज ने स्वत: को विश्व के सम्मुख खड़ा किया है। किसी भी विवाद में न्याय मिलना तो महत्वपूर्ण होता ही है, परंतु उससे भी महत्वपूर्ण न्याय कैसे मिला यह भी महत्वपूर्ण होता है। इसके लिये किस प्रक्रिया का पालन किया गया यह बात महत्वपूर्ण होती है। प्राप्त निर्णय सर्वमान्य है। इससे किसी के भी मन में जय पराजय की भावना की स्थिति अब नहीं है। एमआईएम के अध्यक्ष तथा सांसद असिदुद्दीन ओवैसी जैसे स्तरहीन राजनीतिज्ञों के समूह ने इस निर्णय को हिंदू राष्ट्र की दिशा में उठाया गया कदम साबित करने वाली भडकाऊ प्रतिक्रिया व्यक्त की है। परंतु फिर भी मुस्लिम समाज ने उन्हें कोई प्रतिसाद नहीं दिया है। इस संवेदनशील समय में एक चिंगारी से आग भड़काने का प्रयत्न करनेवाले ओवैसी सरीखे धर्मांध लोगों को रोकने का प्रयत्न मुस्लिम समाज ने स्वत: ही किया है। यह आलेख लिखने तक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सुर बदल रहे थे। वह अयोध्या मामले पर पूर्नविचार याचिका दायर करने की सोच रहे थे। इस एक मामले को छोड कर पूरे मामले को देखा जाये तो हिंदू-मुस्लिम समाज द्वारा जिस प्रकार राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है उससे यह कहा जा सकता है कि हमारा देश सौभाग्यशाली है। इसका श्रेय प्रत्येक भारतीय को जाता है। हम चाहे किसी भी धर्म का पालन करते हों, किसी भी आराधना पद्धति पर हमारा विश्वास हो, पर जब राष्ट्र की बात आती है तब हम सब एक होते हैं। यह भावना भारतीय जनमानस में निर्माण हुई दिखाई देती है कि सामाजिक एकता ही हमारा शक्तिस्थान है और वह किसी भी स्थिति में रहनी ही चाहिये।

भारत प्राचीन संस्कृति का विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यही हमारी विरासत है। इस समृद्ध पूंजी के साथ मार्गक्रमण करते हुए हम भारतीयों की नजर उज्ज्वल एवं भव्य दिव्य राष्ट्रीय सफलता की ओर है। यह संकेत भी इस घटना ने विश्व को दिया है।इसके कारण रामजन्मभूमि-बाबरी ढांचे के विवाद का अत्यंत सामंजस्यपूर्ण निर्णय देनेवाले न्यायाधीश गोगोई एवं चार अन्य न्यायाधीशों का मन:पूर्वक अभिनंदन। किसी भी संवेदनशील परिस्थिति में हमारी राष्ट्रीय समरसता अबाधित रहेगी। राष्ट्रहित पर किसी भी प्रकार परिणाम नहीं होगा। ऐसा अब हम गर्व से कह सकते हैं। इस दृष्टि से भविष्य की ओर हम देख सकते हैं। रामजन्मभूमि के निर्णय के बाद देश को ऐसा विश्वास दिलाने वाले भारतीय नागरिकों का मन:पूर्वक अभिनंदन।

अमोल पेडणेकर

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