मुसलमान भारत का धरती पुत्र बने…

अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मूल का इस्लामी नागरिक इस्लामी कट्टर प्रवृत्ति का वारिस बनना चाहता है? भारत के मुसलमानों को भारत की अनेकांतवाद की विचारधारा को अपनाना चाहिए, न कि कट्टरपंथ की। भविष्य में भारतीय मुसलमान भारत की प्रवाही विचारधाराओं का वारिस बनें, न  कि धार्मिक तिरस्कारों का पक्षधर।

राष्ट्र जीवन में राष्ट्र परीक्षा के क्षण अनेक बार आते हैं। भूतकाल में आए हुए ऐसे अनेक प्रसंगों का सामना करके ही भारत आज तक अपने भारतीय तत्वों को बरकरार रख पाया है। भारतीय तत्वों का निरंतर बरकरार रहना भारत की सामाजिक एकता पर अवलंबित है। अत: देशहित को नजरों के सामने रखकर राष्ट्र जीवन में आई हुई कठोर परीक्षाओं का सामना करना आवश्यक होता है।

राम जन्मभूमि और बाबरी ढांचा विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने समाधानकारक  फैसला सुनाया है। सर्वोच्य न्यायालय के 5 जजों की इस बेंच के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि भारतीय समाज के गले में लंबे समय से फंसे इस कांटे को किस तरह निकाला जाए। सर्वोच्य न्यायालय की न्याय प्रक्रिया के बाद किसी भी धार्मिक विवाद के बिना अत्यंत शांतिपूर्ण वातावरण में सभी नागरिकों ने सुप्रीम कोर्ट के इस न्याय को स्वीकार किया है। जिस जगह पर रामलला का जन्म हुआ उस जगह पर मुस्लिमों ने आक्रमण करके ढांचा बनाया था। पुरातत्वीय आधार पर और इतिहास के अनेक घटनाक्रमों की वस्तुस्थिति पर ध्यान देकर न्यायालय के सामने तथ्य उपस्थित किए गए थे। न्यायालय ने इन सभी बातों का गहराई से अध्ययन किया और वहां पर राम मंदिर ही था, इस सत्य पर मुहर लगाई। 133 सालों से चल रहे इस अभूतपूर्व और ऐतिहासिक विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने विविध पहलुओं पर सोच समझकर न्याय दिया। हिंदू और मुसलमान समुदाय में किसी भी प्रकार का संघर्ष ना हो, इस बात पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष ध्यान दिया था। अत: इस प्रकार के ऐतिहासिक विवाद पर समन्वयपूर्वक न्याय देने के लिए सभी पांचों जजों का अभिनंदन करना चाहिए।

इस निर्णय का देश के तमाम हिस्सों में हिंदू, मुसलमान और अन्य धर्म के लोगों ने जोर-शोर से स्वागत किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनजी भागवत ने इस न्याय प्रक्रिया का स्वागत किया। मोहनजी भागवत ने कहा कि सभी लोग इस निर्णय को अपनी हार या जीत के रूप में न लेते हुए, राष्ट्र को भविष्य में विकास की ओर ले जाने वाले अनोखे निर्णय के रूप में स्वीकार करें। उन्होंने यह भी अपील की कि हिंदू इसे किसी उत्सव के रूप में न मनाएं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ट्वीट करके कहा कि, “राम भक्त हो या रहीम भक्त हो, आप सभी के लिए यह समय राष्ट्रभक्त होने का है।” ऐसे समय में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्च न्यायालय के निर्णय पर नाराजी व्यक्त कीहै। एमआईएम के अध्यक्ष तथा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए एक भड़काऊ प्रतिक्रिया दी कि, ‘सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम है परंतु वह सही नहीं है। यह हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ते हुए कदमों की आहट है।’  ओवैसी ने साथ ही यह भी कहा कि न्यायालय की ओर से दी जाने वाली पांच एकड़ की जमीन की भीख हमें नहीं चाहिए।

असदुद्दीन ओवैसी ने भारत देश के हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ने की जो व्याख्या अपने वक्तव्य में की है, उस बात पर गौर किया जाए तो मन में प्रश्न आता है कि ‘हिंदुत्व क्या है?’ राम जन्मभूमि आंदोलन को संकुचित दृष्टिकोण से देखने वाले हर समय हिंदुत्व को धार्मिक आंदोलन के रूप में देखते रहे हैं। राम जन्मभूमि का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने  सभी न्यायिक तथ्यों को ध्यान में रखकर दिया है। इस न्यायिक प्रक्रिया को हिंदू राष्ट्र की ओर ले जाने के दृष्टिकोण से देखने तथा बयानबाजी करने का कार्य असदुद्दीन ओवैसी जैसे राष्ट्र विरोधी लोग ही कर सकते हैं।

‘हिंदुत्व क्या है?’ विविधता हिंदुत्व का प्राण है। हर देश का अपना एक वैचारिक अधिष्ठान होता है, जिसके आधार पर उस देश के चरित्र का निर्माण होता है। भारत का भी एक अपना वैचारिक अधिष्ठान है। जिसके आधार पर भारत के चरित्र का निर्माण पिछले हजारों वर्षों की यात्रा में हुआ है। उस चरित्र का नाम है हिंदू। जिस आध्यात्मिक विचार और हिंदू चरित्र के आधार पर भारत की राष्ट्रीयता की पहचान सारे विश्व में सदियों से प्रसारित और प्रतिष्ठित हुई है, उस राष्ट्रीय तत्व का नाम है हिंदुत्व। भारत का आध्यात्मिक विचार, भारत का हिंदू व्यक्तित्व और भारत की हिंदू राष्ट्रीयता इसी को हम भारत की विचारधारा कहते हैं। हिंदुत्व की यह विविधतापूर्ण विचारधारा तोड़ने का नहीं अपतिु जोड़ने का काम करती है। इस बात को समझना ही हिंदुत्व को समझना है। कई शतकों के पहले आई देश की विविध स्तरीय दुर्बलताओं को ठीक करने का अर्थ ही हिंदुत्व है। भारत को नई शक्ल देना, नया स्वास्थ्य देना और भारत के अस्तित्व को पूरे विश्व में स्थापित करना भी इसमें सम्मिलित है। विकास के दौरान राष्ट्रीय बोध के साथ हिंदुत्व का बोध जोड़ा जाना एक स्वाभाविक एवं नैसर्गिक प्रक्रिया है।

भारत के हर आदमी को एक सवाल सालता है कि हम गुलाम क्यों हुए? अयोध्या की राम जन्मभूमि, मथुरा की कृष्ण भूमि, वाराणसी का विश्वनाथ मंदिर इत्यादि क्यों तोड़े गए? पहले इस्लामी हमला, उसके बाद ब्रिटिशों की गुलामी में हम क्यों फंस गए? ऐसे सवाल मन में आने के बाद उन सवालों का हल निकालने का प्रयास भारतीय समाज ने किया है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सफलता भी इन्हीं सवालों का जवाब कही जा सकती है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से राम जन्मभूमि के होने का सत्य स्वीकार किया गया है। उस सत्य की मूल धारा भी भारतीयों के मन में निर्माण हुए प्रश्नों में ही है। सारा देश आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत कर रहा हैं। ऐसे समय में भी देश के कुछ कट्टर मुस्लिम नेता आम मुस्लिमों को भड़काने के लिए हिंदू राष्ट्र शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। आज यह बात निश्चित हुई है कि देश का आम मुसलमान नागरिक सर्वोच्च न्यायालय ने दिए हुए अलौकिक एवं ऐतिहासिक निर्णय और समाधान के विरुद्ध नहीं है।

मुगल शासकों ने राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ मंदिरों को ध्वस्त करके इसलिए मस्जिद बनवाई ताकि भारत कीधार्मिक स्मृतियों का अपमान हो सके। यह बात शतकों पुरानी है। इस्लाम का मूल विदेशी है, परंतु पिछले सैंकड़ो सालों के संपर्क के कारण अब वह भी अन्य धर्मों की तरह भारत का एक भाग बन गया है। उस समय इस्लामी आक्रमणकारियों ने भारत के मूल नागरिकों को हिंसा के बल पर इस्लाम स्वीकारने पर मजबूर किया था। अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मूल का इस्लामी नागरिक इस्लामी कट्टर प्रवृत्ति का वारिस बनना चाहता है? भारत के मुसलमानों को भारत की अनेकांतवाद की विचारधारा को अपनाना चाहिए, न की कट्टरपंथ की। भविष्य में भारतीय मुसलमान भारत की प्रवाही विचारधाराओं का वारिस बनें, न  कि धार्मिक तिरस्कारों का पक्षधर। वर्तमान भारत का मुसलमान हमलावर प्रवृत्ति का नहीं है, वह कट्टर विचारों से दूर होकर इस देश के अनेकांतवाद का हिस्सा बनना चाहता है। यह रास्ता मुश्किल बेशक है पर भारत में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का एक अच्छा विकल्प भी है।

भारत के मुस्लिम समाज को मुस्लिम कट्टरपंथी नेताओं ने हमेशा इस गलतफहमी में रखा की राम जन्मभूमि आंदोलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  और भाजपा जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों की ही इच्छा है। लेकिन 134 सालों से चल रहे इस आंदोलन का प्रभाव देश के सवर्णों पर था, देश के मध्यमवर्गीय और दलित जातियों पर था, देश के वनवासियों और गिरीजनों के हृदय पर था। आंदोलन सिर्फ उत्तर प्रदेश के हिंदुओं का नहीं था वरन राष्ट्र विकास से जुड़े हुए देश के तमाम नागरिकों का था।  हमारे धार्मिक स्थलों पर आक्रमण क्यों हुए? हम गुलाम क्यों हो गए? हमारे ऊपर हजारों सालों से हमले क्यों होते रहे? जैसे सवाल जो हिंदुओं के मनों में उठ रहे थे, यह आंदोलन उन मनों मे उठनेवाले सवालों का जवाब था। अयोध्या में बाबरी ढांचे की जगह राम मंदिर बने, यह इच्छा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद अथवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नहीं थी। राम जन्मभूमि के विषय पर जो लोग राजनीति कर रहे थे, उन्हें यह बात समझ में आनी चाहिए थी और आज भी आनी चाहिए कि राम जन्मभूमि देश के समस्त हिंदू समाज का विषय था।

रामजन्म भूमि आंदोलन को राष्ट्रीय अस्मिता के रूप में देखना अत्यंत आवश्यक है। परंतु धार्मिक एवं जातिगत राजनीति की आग पर अपनी रोटियां सेंकने वाले असदुद्दिन ओवैसी जैसे राजनीतिज्ञों ने इस बात को समझते हुए भी मुस्लिम जनता तक पहुंचने नहीं दिया। अब इस स्थिति को ठीक करने का समय आ गया है। जितना इस्लाम इस देश में आना था, वह आ चुका है। भारत के विभाजन के रूप में एक राष्ट्रीय त्रासदी वह भारत को दे चुका है। जितने हिंदुओं का इस्लामीकरण होना था, हो चुका है। अब हमें यह सोचकर चलना चाहिए कि अब भारत देश में हिंदू और मुसलमानों को एक साथ रहना है। इस संदर्भ में अयोध्या के रामजन्मभूमि विषय पर सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया, वह निर्णय सत्य के तथ्यों पर आधारित था। किसी पर जुल्म या अन्याय करने वाला बिल्कुल नहीं था। भारत के मुस्लिमों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस  निर्णय को खुले दिल से स्वीकार करके उसका स्वागत भी किया है। इस घटना को देखते हुए यह महसूस हो रहा है कि भारत का मुसलमान भारत में अमन के साथ विकास की ओर बढ़ना चाहता है। भारत की मुस्लिम जनता इन अलगाववादी, भड़काऊ बयानबाजी करने वाले नेताओं के चंगुल से बाहर निकलकर भारत की उभरती आकांक्षाओं का अध्ययन करना चाहती है। भारत का विकास हिंदू मुसलमान साथ मिलकर करना चाहते हैं। भारत को समझने का प्रयास करना चाहते हैं। मुसलमान भारत के धरतीपुत्र बनना चाहते हैं।

भारत हिंदू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है ऐसा कहकर असदुद्दीन  ओवैसी मुस्लिम समाज को गलत राह पर ले जाना चाहते हैं। अब मुसलमानों को हिंदू, हिंदुत्व एवं हिंदू राष्ट्र के सही अर्थ को समझना आवश्यक है। हिंदुत्व किसी एक तत्व से बना हुआ नहीं है। इस भारत देश में उत्पन्न हुए या भारत देश के भीतर हजारों वर्षों से समा चुके विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं, जातियों-उपजातियों, इतिहास के अनेक कालखंडों, साहित्य की विभिन्न धाराओं, लुप्त हुई एवं उपलब्ध भाषाओं की विविधताओं के मिश्रण से जो रसायन निकलता है उसी का नाम हिंदुत्व है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यही स्वभाविक प्रक्रिया भारतवासियों की चेतना का प्रतीक बन चुकी है। इसी से भारत की विकास यात्रा प्रारंभ होती है और इसी से हम विश्व में भारतीय रूप में उच्च मुकाम तक पहुंच सकते हैं। इसलिए मुसलमानों को सांप्रदायिक राजनीति करने वाले मुस्लिम नेताओं के विचारों से दूर रहकर इतिहास और वर्तमान की वास्तविकता को स्वीकार करके नये भारत का रास्ता  अपनाना होगा। गंदी धार्मिक राजनीति करने वाले और बुद्धिभेद करने वाले नेताओं ने भारतीय मुस्लिमों को भारतीयता के सही अर्थ तक पहुंचने से रोका है।

पूरे विश्व पर नजर डालेंगे तो एक बात महसूस होगी की कोई भी कट्टर विचारों का इस्लामिक देश स्वस्थ नहीं है। आने वाले भविष्य में वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली स्थिति में आ जाएगा। अपनी कट्टरता के कारण वहां लोग आपस में लड़ेंगे, मरेंगे और खत्म हो जाएंगे। कट्टर धार्मिक नेता भारत के मुसलमानों को भी ठीक उसी दिशा में जाना चाहते हैं। ऐसे में मुसलमान बुद्धिजीवी और कब तक सोए रहेंगे?

भारत में रहने वाले  मुसलमान इसी भारत देश के हैं, वे कहीं बाहर से आए हुए नहीं है। मध्यकालीन मुसलमान हमलावर था अत: आज के मुसलमान भी हमलावर सिद्ध नहीं हो जाते। वे तो इस देश की ही संतान हैं। हर दस में से नौ मुसलमान धर्मांतरित पूर्वजों के वंशज होंगे। इसलिए ये मुसलमान हमलावर नहीं हो सकते। उन्हें खुद को भारत का नैसर्गिक धरतीपुत्र बनाने का प्रयास करना चाहिए।

अब भारत में रहने वाले मुसलमानों को हिंदुत्व की सच्चाई का भरपूर एहसास हो रहा है। परंतु कुछ राजनीतिज्ञ नहीं चाहते कि वे सहज भारतीय होकर अपना जीवन जी सकें। भारत में हजारों सालों से अनवरत चली आ रही सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक विरासत का वे हिस्सा बनें। भारतीयत्व में भारत का मुसलमान घुल मिल जाए। कट्टरपंथी विचारों के मुस्लिम नेता यह बात बिल्कुल नहीं चाहते। वे लगातार कुछ झूठ आम मुसलमानों के मन में गाडते रहते हैं। गत पांच हजार सालों से चलती आ रही भारतीय विचारधारा को मुसलमानों का शत्रु कहकर बदनाम करते है। पूरा विश्व इस्लाम को कट्टरपंथी मजहब के रुप में पहचानता है। जितने भी मुसलमान हमलावरों ने भारत पर हमले किये है उन सभी का उद्देश्य था भारत को मुसलमान बनाना। भारत के मंदिरों को तोड़ना, लोगों को इस्लाम कबूल करवाने के लिये मजबूर करना। उन्होंने यह काम बड़े जोर शोर से किया भी। हिंदुत्व में  कभी इस प्रकार की विध्वसंक बातें नहीं की गईं।

इतिहास में परिवर्तन नहीं हो सकता यह सत्य है। परंतु हम इतिहास  से सबक लेकर अपना वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं। आज समय की मांग है कि इस बात को ध्यान में रखकर भारतीय मुसलमान मार्गक्रमण करें। सांप्रदायिक सद्भाव भारत की सबसे मजबूतताकत है। इसी ताकत के बल पर हम सभी एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर गर्व से “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा” कह सकते हैं, नये भारत का निर्माण कर सकते है।

 

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