दिल्ली के दंगे सिर्फ सीएए या एनआरसी के समर्थकों के बीच हुई झड़प नहीं हैं; बल्कि पूरे भारत के इस्लामीकरण की गहरी साजिश का छोटा सा संकेत है। शाहीनबाग में शांतिप्रिय जिहाद की नौटंकी हुई, जबकि जिहाद और शांति दोनों परस्पर विरोधी बातें हैं। इसे मुस्लिम परस्त मीडिया, राष्ट्रविरोधी नेता और सेकुलर बुद्धिजीवी कब समझेंगे?
उत्तर पूर्व दिल्ली में नफरत और हिंसा में 50 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं। सैकड़ों को बेघर और घायल अवस्था में जीने मरने के बीच तड़पता छोड़ दिया है। हिंसा और नफरत से भरा दिल्ली का यह माहौल दिल्ली और देश दोनों के लिए अच्छा नहीं है। विभाजन और विस्थापन के गहरे जख्म लेकर लोग विभाजन के समय दिल्ली में आए थे। दंगे का इतिहास उसी विभाजन के क्षण से दिल्ली के माथे पर लिखा हुआ है। विभाजन के समय हुए दिल्ली के दंगों की स्मृतियां दिल्ली वासियों को बार-बार कचोटती रहती हैं।
विभाजन के समय से ही दिल्ली समय-समय पर लहूलुहान होती आई है। दिल्ली निकट अतीत में एक बार तब लहूलुहान हुई थी जब मंडल आयोग की रिपोर्ट पर युवाओं ने आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान हिंसा की थी। 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयानक घटनाएं अभी भी कांग्रेस को आरोपी के कटघरे में खड़ा करती हैं। फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में 3 दिन तक हुई हिंसा ने विभाजन के समय के मुस्लिम प्रणीत और 1984 के सिख विरोधी कांग्रेस प्रणित दंगों की स्मृतियों की दर्दनाक यादें ताजा की हैैं। इस घटना ने देश की छवि को प्रभावित किया है।
दिल्ली की इस हिंसा के लिए सीएए और एनआरसी जिम्मेदार है इस प्रकार का दावा सेकुलरिज्म का अंधापन जानबूझकर ओढ़ी तथाकथित मीडिया कर रही है। यह हिंसा मुस्लिम हिंसक मानसिकता के कारण कतई ना होने का दावा भारत की मीडिया और कुछ बुद्धिजीवी कर रहे हैं। संशोधित नागरिकता कानून- (सी ए ए) को लेकर विरोधी और समर्थकों के बीच हिंसात्मक टकराव से देश की राजधानी सुलगती रही इस प्रकार का अर्धसत्य बतियाने वाली मीडिया और बुद्धिजीवी इतिहास से जुड़ी कुछ बातें जानबूझकर भूल रहे हैं। देश के विभाजन के पहले से लेकर आज तक देश के मुसलमानों ने देश के हित को ध्यान में रख कर कोई बात की है? हर समय मुस्लिम समुदाय और धर्म के हित में ही फैसले लेने का प्रयास मुस्लिमों ने नित्य किया गया है। देश का संपूर्ण इतिहास इस प्रकार की घटनाओं से भरा हुआ है। दिल्ली के दंगों को सी ए ए और एनआरसी के समर्थक और विरोधीयों के बीच का दंगा करार देने से पहले मुसलमानों की मानसिकता का इतिहास खंगालना अत्यंत आवश्यक है।
देश के किसी खास संप्रदाय के बारे में कुछ कहना भी विचित्र लगता है, लेकिन भारत के मुसलमानों के बारे में अलग से लिखना अत्यंत जरूरी है। भारत में हिंदुओं के बाद मुसलमान ही सबसे बड़ी संख्या में है। देश के कुछ जिलों में सामाजिक और राजनीतिक जीवन में निर्णायक भूमिका अदा करने की स्थिति में मुसलमानों की संख्या आ गई है। ऐसी स्थिति में यह कहना अत्यंत कडवा सच है कि आज भारत भी इस्लामी राज्य की ओर बढ़ रहा है। इस्लामीकरण के इस अभियान में भारतीय मुसलमान बड़ी तत्परता के साथ सक्रिय हैं। मुसलमानों की यह सक्रियता सीएए और एनआरसी का बिल आने के बाद की ही नहीं है। यह सक्रियता तो मुस्लिमों के इतिहास से जुड़ी हुई किसी भी घटना को आप खंगालेंगे तो मुसलमानों की इस्लामीकरण और विस्तार की हवस से निर्माण हुई रक्तरंजित घटनाएं सामने आएंगी। इस्लाम के धर्म ग्रंथ में संपूर्ण विश्व में इस्लाम धर्म और इस्लामी राज्य स्थापित करने का आदेश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इस्लामिक राज्य स्थापित करने के लिए दो व्यापक नीतियां मुसलमानों ने अपनाईं, अल्लाह के नाम पर जिहाद करना और तेजी से मुसलमान आबादी बढ़ाना। संपूर्ण विश्व में देखी जाने वाली इस्लामी विचारधाराओं से प्रभावित घटनाओं को जब हम सामने लाते हैं तो संक्षेप में कुछ बातें हमारे सामने आती हैं, जिहाद ही इस्लाम है और इस्लाम ही जिहाद है। जिहाद के बिना इस्लाम का कोई अस्तित्व नहीं है।
सांप्रदायिकता का सीधा रिश्ता अपने संप्रदाय की आक्रामक प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। जिस समाज में विभिन्न समुदाय आपस में एक दूसरे के साथ मिल कर रहने के बजाय एक दूसरे के मुकाबले अपनी प्रतिष्ठा जताने के लिए आक्रामकता की मुद्रा अपनाएं तो वहां संप्रदायिकता का जन्म होकर ही रहेगा। भारत में अनेक संप्रदायों के लोग रहते हैं, जिसमें जैन, बुद्ध, पारसी जैसे अनेक संप्रदायों ने कभी अपने आप को इस रूप में जताने की कोशिश नहीं की कि हम अल्पसंख्यक हैं। हमारे समाज या संप्रदाय से जुड़ी फलां फलां बातें देश हित के विरोध में जाती हो तो भी सरकार को माननी पड़ेगी, इस प्रकार का दबाव कभी इन समुदायों के माध्यम से प्रस्तावित नहीं किया गया। इन समुदायों की यह मिसाल देशभक्ति का एक मापदंड बनती जा रही है। पर मुस्लिम समुदाय को लेकर क्या हम इतने विश्वास से यह बात कह सकते हैं? क्या मुस्लिम समाज ने देशभक्ति का मापदंड समय-समय पर प्रस्तुत किया है? दुर्भाग्यवश भारतीय मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में यह बात हम नहीं कह सकते। भारत के मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नेताओं ने आज तक ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जिससे देश के बहुसंख्यक समुदाय के मन में मुस्लिम समाज के बारे में भरोसा निर्माण हो। मुस्लिम समुदाय ने हर समय अपने संप्रदाय को भारत की मूल धाराओं से अलग माना है। इसी अलगाव के कारण इतिहास से अब तक भारत पर हमले किए हैं। भारत के हिंदू समुदाय को प्रताड़ित किया है, उन पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार किए हैं।
1947 में पाकिस्तान का विभाजन भारत देश से अपने आपको अलग मानने की इस्लामी अवधारणा की मनोवृत्ती ही है। भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात 70 सालों में मुस्लिम नेताओं ने इस संगठनों ने विभाजन पर आज तक कोई पछतावा जताया है? परंतु एक संप्रदाय के रूप में खुद को आक्रमक तरीके से जताने की कोशिश मुस्लिम नेता और संगठनों ने हमेशा से निरंतर की है। देश के फैसले से अलग अपना फैसला, सरकार से हिंसा के आधार पर मनवाने की कोशिश बार-बार मुस्लिम समुदाय ने की है। शाहबानो के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को बदलवा देना यह एक उत्तम उदाहरण है। बाबरी मस्जिद से देश के मुसलमानों की धार्मिक भावना से कभी भी जुड़ी नहीं थी, पर बाबरी ढांचे को लेकर देश के मुसलमानों ने अपनी भावनाओं का हिंसक प्रदर्शन दंगों, उसके बाद बम विस्फोटों और सैकड़ों रक्तरंजित आतंकवादी घटनाओं के जरिए किया है। सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारतीय मुसलमान समाज का किस प्रकार का नुकसान होने वाला है? इस प्रश्न का उत्तर इस कानून से भारतीय मुसलमानों का कोई नुकसान नही हो रहा है यही है। ऐसी स्थिति में दिल्ली में जो दंगे हुए उन दंगों को सिर्फ और सिर्फ सीएए और एनआरसी समर्थक और विरोधियों में हुई हिंसक झड़प कहना देश के साथ गद्दारी है। देश की तथाकथित मीडिया और कथित बुद्धिजीवी यह गद्दारी देश के साथ कर रहे हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि आज पूरा विश्व इस्लामी आतंकवाद की बर्बरता से लोहा ले रहा है। इस्लामी आतंकवाद से लोहा लेने के लिए ठोस और प्रभावी रक्षात्मक कदम उठा रहा है। वहीं भारत में हिंदू एवं राष्ट्र विरोधी कुछ ताकतें हैं जो इस्लामी कट्टरपंथी राजनीतिक शक्तियों के सामने समर्पण करती दिखाई दे रही हैं। ऐसा महसूस हो रहा है कि ये तबके अपनी स्वेच्छा से भारत देश को इस्लामिक साम्राज्य का अंग बनाने के लिए सहायक हो रहे हैं। आज भारत ही इस्लामी आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार है। हमारे कथित बुद्धिजीवी नेता, राष्ट्र विरोधी मीडिया जिहादी आतंकवाद को समाप्त करने का रोना तो हर समय रोते हैं; परंतु स्वयं इस राष्ट्र विरोधी आतंकवाद के विरोध में कुछ ठोस कदम उठाने का साहस करते नहीं दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक नेता भी अपने स्वार्थ के कारण इस्लामीकरण को सहयोग देते नजर आ रहे हैं।
शाहीनबाग जैसे आंदोलन में जहां एक तरफ हाथ में भारत के झंड़े और संविधान को बुलंद करने का नारा देकर सी ए ए और एन आर सी का विरोध किया जा रहा था; तो दूसरी तरफ घर की महिलाओं, बेटियों, नानी-दादियों को इस आंदोलन के माध्यम से देश के सामने लाया जा रहा था। उसी समय दिल्ली का मुस्लिम पुरुष वर्ग दिल्ली में जिहादी आतंक फैलाने के लिए अपनी छतों पर एसिड बम, पेट्रोल बम, पत्थरों का ढेर, पत्थर फेंकने के लिए गुलेर, बंदूकें और ढेर सारे हथियार इकट्ठा करके इस्लामी जिहाद की तैयारी कर रहा था। दिल्ली के मुसलमानों के इसी रवैये, साजिशों एवं मुस्लिम आतंकी मानसिकता के कारण दिल्ली जल गई, हिंदुओं के घर और संपत्ति खाक हो गई। शहिद रतनलाल जैसे होनहार पुलिस अधिकारी, शहिद अंकित शर्मा जैसे आईबी अधिकारी अपनी जान गंवा बैठे। दिल्ली में हुए इस संपूर्ण घटनाक्रम के पीछे जिहादी आतंकवादी मुसलमान ही हैं। आम आदमी पार्टी के मुस्लिम पार्षद और सत्ता में आए मुस्लिम विधायक अमानुल्ला खान जैसे लोगों ने ही दिल्ली को जलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। आम आदमी पार्टी के माध्यम से ताहिर हुसैन जैसे कुछ मुस्लिम पार्षद और विधायक चुने जाने पर दिल्ली और दिल्ली के हिंदुओं का यह दर्दनाक हाल हो सकता है तो, जब मुसलमान सभी संभावित उपायों द्वारा अपनी जनसंख्या 20% से 25% तक बढ़ा लेंगे और राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली हो जाएंगे तब देश का और देश में हिंदुओं का क्या हाल होगा? सोचिए तो जरा!
हमारे देश में कुछ विद्वानों की यह भी विचारधारा है कि भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदू ही थे, सो आज नहीं तो कल वे हिंदू राष्ट्र की विचारधारा में जुड़ेंगे। बहुत सारे बुद्धिजीवियों से जब मैं बात करता हूं तो उनका यह भ्रम उमड़ आता है। उनका यह कोरा भ्रम है। पीड़ा इस बात की है कि 1947 में भारत का विभाजन हिंदू और मुसलमान के आधार पर हुआ था। विभाजन के बाद हिंदुस्तान- पाकिस्तान के बीच हिंदू मुस्लिम आबादी की अदला-बदली क्यों नहीं की गई? जबकि 1940 में पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना जैसे मुस्लिम नेताओं ने संपूर्ण हिंदू -मुस्लिम आबादी की अदला-बदली पर बल दिया था। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हिंदू -मुस्लिम आबादी की अदला-बदली को मुस्लिम समस्या का हल बताया था। परंतु हिंदू विरोधी जवाहरलाल नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया। 1947 में हिंदू -मुस्लिम आबादी की अदला-बदली ना करना विभाजन के समय की कांग्रेसी विचारधारा की सबसे बड़ी भूल थी। परिणाम स्वरूप लाखों हिंदू पाकिस्तान और बांग्लादेश में क़त्ल कर दिए गए। लाखों हिंदू इस्लाम में धर्मांतरित कर दिए गए। ऐसे समय में मुस्लिम मानसिकता किस प्रकार से विचार कर रही थी, उस समय के मुस्लिम नेता एफ.ए.दुरानी के बयान से उजागर होती है। उन्होंने कहा था- संपूर्ण भारत हमारी (मुस्लिमों की) पैतृक संपत्ति है, उसको फिर से इस्लाम के विस्तार के लिए विजयी कराना नितांत आवश्यक है। आज पाकिस्तान का निर्माण इसलिए महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान का आधार बना कर शेष भारत का इस्लामीकरण किया जा सके। ऐसे समय जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेसियों की धारणा क्या थी? भारत में बसे मुसलमानों के सहारे लंबे समय तक देश पर राज किया जाए, मुसलमानों के एहसान के बदले उन्हें ज्यादा से ज्यादा रियायत दी जाए। 1947 में भारत आजाद नहीं हुआ बल्कि भारत का विभाजन हुआ है। देश का एक भाग पाकिस्तान के नाम से मुसलमानों को दे दिया गया और शेष भारत भविष्य में इस्लामीकरण के लिए रखा गया।
जैश-ए-मोहम्मद इस आतंकवादी संगठन के मुखिया मौलाना मसूद अजहर ने जहरीला भाषण दिया था। सन 2000 में मौलाना मसूद अजहर को जेल से छुड़ाने के लिए भारतीय हवाई जहाज को अगवा किया गया। हवाई जहाज में बंधक बनाए 160 यात्रियों के बदले मौलाना अजहर को छोड़ा गया तब आतंकी मौलाना मसूद अजहर ने कंधार में हजारों लोगों की उपस्थिति में कहा था, हम मुसलमान जल्द ही भारत में इस्लाम का झंडा फहराएंगे। मैं यहां केवल इसलिए आया हूं कि मुझे इस कार्य के लिए और साथी चाहिए। मुझे कश्मीर की मुक्ति के लिए मुजाहिदिनों की जरूरत है। मैं तब तक शांति से नहीं बैठूंगा जब तक भारत का प्रत्येक मुसलमान भारत के इस्लामीकरण के लिए सहयोग नहीं देगा। मुसलमानों, जिहाद करते रहो। जब तक अमेरिका और भारत समाप्त नहीं हो जाते तब तक जिहाद करते रहो। लेकिन पहले भारत समाप्त करो।
भारत के नेताओं ने, मुस्लिम आकाओं ने मुस्लिम समाज को एक वोट बैंक बना कर राजनीतिक उपयोग किया है। वहीं मुस्लिम नेता देश के मुसलमानों में यह भावना हमेशा पैदा करते रहे हैं कि मुसलमानों को इस देश में अब तक असुरक्षा बनी है। मुसलमानों को यह असुरक्षा किससे है? तो वह भारत के हिंदुओं से है। मुस्लिम नेता दो काम बड़े जोरों से करते हैं- एक, मुस्लिमों को संगठित करते हैं और दूसरी बात यह है हर बार मुस्लिमों के मन में देश और हिंदुओं के संदर्भ में परायेपन और दुश्मनी की भावना पनपाते रहते हैं। परिणाम स्वरूप मुसलमान और हिंदुओं में दूरी लगातार बनी और बढ़ती रहती है। मुस्लिम समाज की सांप्रदायिकता को आक्रामकता की शक्ल में देश के विरोध में उपस्थित किया जाता है।
हाल ही में दिल्ली में हुई मुस्लिमों की आतंकी करतूतों को सिर्फ एनआरसी अथवा सीएएए का विरोध और समर्थन इस दृष्टि से देखा नहीं जाना चाहिए। मुस्लिम अपने इस्लाम धर्म के हित में, उसके विस्तार के लिए जो जो बातें आवश्यक हैं वे वे बातें भारत सरकार पर दबाव लाकर करवाना चाहते हैं। यह दबाव शाहीनबाग में हाथ में संविधान, भारत का झंडा लेकर शांतिप्रियता की नौटंकी कर लाया जा रहा था ना, वह असल में यह शांतिप्रिय जिहाद, जिहाद का नया प्रयोग था। उसका असली हिंसक रूप दिल्ली दंगों की अमानवीयता से सामने आया ही है। क्या यह बात देश की सेकुलर पार्टी और बुद्धिजीवियों को समझ में नहीं आती, कि मुस्लिम समुदाय शेष भारत में इस्लामी राज्य प्रस्तावित करने की दिशा में चल रहा है। स्वार्थी राष्ट्र विरोधी राजनेता, सेकुलर बुद्धिजीवी देश और देशवासियों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति में जो देश का जो दाहक भविष्य पनप रहा है उसे देश की जनता को समझना अत्यंत आवश्यक है।