दिल्ली दंगों से उठते सवाल

नई दिल्ली में 36 घंटे चली हिंसा में अब तक 52 भारतीय मारे जा चुके हैं। 526 घायल हुए हैं और 371 दुकानें जलाई गई हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में दिए उत्तर के अनुसार 25 फरवरी के बाद कोई दंगा नहीं हुआ है। दिल्ली की कुल जनसंख्या 1 करोड़ 70 लाख है और जिस इलाके में दंगा हुआ, वहां की कुल आबादी 20 लाख थी। दिल्ली के दंगे 4% क्षेत्र और 13% जनसंख्या तक सीमित रहा। इसे पुलिस ने आगे नहीं बढ़ने दिया। दंगों से निपटने के लिए स्पेशल कमिश्नर नियुक्त किया गया और दंगों में 1000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है।

दिल्ली में जहां दंगे हुए वह सबसे घनी आबादी वाली जगह है। वहां पुलिस का दोपहिया वाहन भी नहीं जा सकता, इतनी सकरी गलियां हैं। दोनों समुदायों के लोग होने के चलते इस इलाके में दंगों का पुराना इतिहास रहा हैं। दंगों में आपराधिक तत्व भी सक्रिय थे। 300 से ज्यादा दंगाई उत्तर प्रदेश से आए थे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 2647 लोगों को हिरासत में लिया गया है। 700 से ज्यादा ऋखठ दर्ज की गई है। दिल्ली के दंगे एक गहरी साजिश थीं।

24 तारीख को उत्तर प्रदेश का बॉर्डर सील कर दी गई। पुलिस की 40 टीमें बनाई गई हैं, जो दंगाइयों की पहचान कर गिरफ्तारी कर रही हैं। 2 डखढ बनी हैं, जो 49 गंभीर मामलों पर काम कर रही हैं। आर्म्स एक्ट के तहत 49 से ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं। दिल्ली के दंगे पूर्व नियोजित थे। दिल्ली के दंगों में हवाला से पैसा आया था और इस आधार पर 3 फाइनेंसरों को गिरफ्तार किया गया है। आईएसआईएस से जुड़े 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा 60 सोशल मीडिया अकाउंट से हेट स्पीच फैलाई गई। दंगा करने के लिए बाहर से पैसा भी आया है। अमित शाह जी ने आगे यह भी कहा कि जिन लोगों ने दंगा फैलाया हैं, उनसे दंगे में हुए नुकसान की भरपाई भी वसूलेंगे।

पुलिस ने दंगाइयों पर काबू पाने के लिए 5000 आंसू गैस के गोले छोड़े और संयम से काम लिया है। दिल्ली हिंसा की भूमिका नागरिकता संषोधन अधिनियम 2019 के संसद में पास होने के बाद ही बनने लगी थीं। दंगे भड़काने में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, कपिल सिब्बल, शरजिल इमाम, अमानातुल्ला खान, ताहिर हुसैन, वारिस पठान, उमर खालिद, हर्ष मंदर जैसों के भड़काऊ भाषणों की अहम भूमिका हैं। इसके अलावा जेएनयू और जामिया की हिंसा, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, शाहीन बाग का धरना, अर्बन नक्सलियों का मुसलमानों को पीड़ित बताना, अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की राजनीति और मदरसों के कई कठमुल्लों के भड़काऊ भाषणों का उपयोग कर दिल्ली में हिंसा और दंगे भड़काए गए हैं।

भड़काऊ भाषण के कुछ अंश

सोनिया गांधी – 14 दिसंबर को रामलीला मैदान में कहा, ‘आर-पार की लड़ाई होगी, सड़कों पर निकलो’

प्रियंका गांधी – कायर होते हैं वे लोग जो लोग घर से नहीं निकलते।

कपिल सिब्बल ने संसद में कहा- अमित शाह जी, मुसलमान आपसे डरते नहीं हैं।

उमर खालिद – डोनाल्ड ट्रम्प देश में आएंगे और हमें सड़कों पर उतरना हैं। उनको बताना हैं कि हिंदुस्तान की मोदी सरकार जनता के विरोध में हैं।

वारिस पठान – जो चीज मांगने से नहीं मिलती वह छीननी पड़ती है। हम 15 करोड़ हैं लेकिन 100 करोड़ पर भारी हैं।

हर्ष मंदर – सर्वोच्च न्यायालय आपको न्याय नहीं देगा। इसके लिए आपको सड़क पर उतर कर लड़ना होगा।

जेएनयू और जामिया – जिन्ना वाली आजादी, हिन्दुओं से आजादी, काफिरों से आजादी, तेरा मेरा रिश्ता क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह। नागरिकता संसोधन अधिनियम 2019 के विरोध के दौरान पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और डऊझख के कट्टरपंथियों ने यह भड़काऊ नारे लगवाए।

अंतरराष्ट्रीय साजिश

पत्रकार व साहियत्कार जे. गोपीकृष्णन ने खुलासा किया कि उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में 1500 डॉलर या 1 लाख 11 हजार रुपए भारत को बदनाम करने वाला लेख लिखने के लिए मिल रहे थे; ताकि भारत की छवि धूमिल हों और उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नीचा देखना पड़े। इसके अलावा भारत एशिया में एक शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर न उभर पाए। अल्पसंख्यकों और युवाओं को भड़काया गया। दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जाफराबाद, मौजपुर, चांद बाग, खुरेजी खास और भजनपुरा प्रमुख हैं।

आतंकवादी संगठन आईएसआईएस भी था सक्रिय

दिल्ली में हिंसा के दौरान आतंकवादी संगठन आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) भी सक्रिय नजर आया। इसने एक तस्वीर को एक पोस्टर में बदल दिया है और इसे प्रसारित कर रहा है। इसमें मुस्लिम समुदाय को एकजुट होने और आतंकवादी संगठन में शामिल होने के लिए उकसाया जा रहा है। इसके अलावा दो लोगों को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया है। इसमें एक महिला है और दोनों भी बहुत ज्यादा पढ़ें-लिखें हैं।

दिल्ली दंगों के दौरान ऐसे कई वीडियो वायरल हुए जो यह दिखाते हैं कि आम आदमी पार्टी के नेता ताहिर हुसैन का घर दंगा फैक्ट्री थीं। हिंसा के लिए तैयार रहने के लिए उनके घर पर बम, एसिड बम, बंदूकें, पेट्रोल बम और अन्य आपतिजनक सामान मिला है और इसकी तैयारी बहुत पहले से की गई थी।

दिल्ली हिंसा में मारे गए लोगों के नाम

आमिर, आफताब, अकबरी, एफ अकील अहमद, आलोक तिवारी, अमान, अंकित शर्मा, अनवर कसार, अकीब, अरशद, अशफाक हुसैन, अयूब शब्बीर, बबलू सलमानी / बबलू मोहम्मद, भूरे, बीर भान / बीर खान, कांस्टेबल रतन लाल,   दीपक कुमार, दिलबर / दिलबर नेगी, दिनेश कुमार, फैजान, हमजा, हाशिम, इश्तियाक खान, जमालुद्दीन, माहरोफ अली,   मेहताब, मोहम्मद फुरकान, मोहम्मद मोनिस, मोहम्मद इरफान,   मोहम्मद शाहबान, मोहम्मद यूसुफ, मोहसिन, मुबारक हुसैन,   मुदस्सिर खान, मुशर्रफ, नरेश सैनी, नजीम खान, नितिन पासवान,   परवेज आलम, प्रवेश, प्रेम सिंह, राहुल सोलंकी, राहुल ठाकुर,   सलमान, संजीत ठाकुर, सईद, शाहिद अल्वी, शान मोहम्मद,   सुलेमान, विनोद कुमार तथा ज़ाकिर।

दिल्ली दंगों से उठे कई सुलगते सवाल-

पीएफआई, बांग्लादेशी, नक्सली समूह ’पिंजरा तोड़’, नासिर गैंग के गुंडे इसमें शामिल थे? क्या दंगों से पहले मुस्लिम परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूलों से पहले ले लिया था? क्या फ़िरोज़ ने अपने कारखाने से एसिड की आपूर्ति की? क्या मुसलमानों को पूरी तैयारी थीं? कितने लापता हैं?

मीडिया एजेंसियों की बेशर्मी

दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों के दौरान एनडीटीवी, द वायर, समाचार लॉन्ड्री, इंडिया टुडे और ऑल्ट न्यूज़ जैसी मीडिया एजेंसियां बेशर्मी से हिंदुओं के खिलाफ फर्जी खबरें फैला रही थीं। लेकिन वे खुद का बचाव करते हुए कहते हैं कि ‘भक्तों ने फर्जी खबरें फैलाई!’

सीलमपुर, जाफराबाद और ट्रांस-यमुना के नागरिकों ने वामपंथी समूह ‘पिंजरा तोड़’ पर भी दंगा भड़काने का आरोप लगाया है। कांग्रेस का आईबी अधिकारी अंकित शर्मा और दिल्ली पुलिस के सिपाही रतन लाल की मौत पर चयनात्मक चुप्पी खलती है और यह इन दोनों पर कई सवाल उठाती है।

देश में दंगे कराने वाले लोगों पर नजर रखने का काम वैसे तो रक्षा एजेंसियों का हैं लेकिन क्या हमें अपनी सुरक्षा का ध्यान खुद भी नहीं रखना चाहिए? क्या सुरक्षा का पूरा दारोमदार रक्षा एजेंसियों पर ही थोप देना चाहिए? हम सरकार की आंख और कान कब बनेंगे? क्या हम अपने आस-पास की गतिविधियों की जानकारी रक्षा एजेंसियों को नहीं दे सकतें? क्या हम अपनी सुरक्षा के लिए सामान्य तैयारी नहीं कर सकते? ये प्रश्न इसलिए अहम हैं क्योंकि नई दिल्ली में हुए दंगे एक सुनियोजित षड्यंत्र और प्रयोग थे और स्थानीय लोगों को इसका आभास भी हुआ होगा लेकिन समय पर सही कदम नहीं उठाने के चलते इसका दंश उन्हें ही झेलना पड़ा हैं।

 

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