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राम मंदिर निर्माण: राष्ट्रधर्म के प्रति नई चेतना- आचार्य स्वामी गोविंदगिरी महाराज

राम मंदिर निर्माण: राष्ट्रधर्म के प्रति नई चेतना- आचार्य स्वामी गोविंदगिरी महाराज

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल २०२०, विशेष, साक्षात्कार
3

 

अयोध्या में भव्यदिव्य श्रीराम मंदिर अगले तीन-साढ़े तीन साल में बनकर तैयार हो जाएगा। इससे सामाजिक समरसता तो आएगी ही राष्ट्रधर्म के प्रति नई चेतना का भी संचार होगा। यह बात श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने एक विशेष साक्षात्कार में कही। साथ में साधु समाज, हिंदुओं के संगठन, मंदिरों की सामाजिक भूमिका, सनातन धर्म आदि विभिन्न विषयों पर भी स्वामीजी ने अपने विचार खुल कर प्रकट किए। प्रस्तुत है कुछ संपादित अंशः

श्रीराम मंदिर निर्माण हेतु हरी झंडी मिल गई है। आध्यात्मिक संत के रूप में इस सम्पूर्ण परिदृश्य को आप किस दृष्टि से देखते हैं?
लगभग 500 वर्षों से लगातार चले आ रहे संघर्ष का पूर्णविराम 9 नवम्बर 2019 को हुआ। अंततः रामलला और रामभक्तों को न्याय मिला। वस्तुतः यह कोई बहुत बड़ा प्रश्न था नहीं। सारा देश चाहता था कि इसका शांतिपूर्ण समाधान निकल जाए और देश की एकता को मजबूती मिले। हमारे पूज्य गुरूजी कांची महाराज और श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयास से इसका हल पहले ही हो जाता किन्तु स्वार्थी तत्व अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए इसमें रोड़ा अटकाते रहे। अब इस विवाद का हल होने के बाद मुझे लगता है कि राष्ट्र में शांति स्थापित करने का अवसर मिला है। देश में बड़ी संख्या में लोगों ने इसके समाधान का स्वागत किया है और राष्ट्र उत्थान का कार्य अब आरंभ हो गया है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम मंदिर के पक्ष में निर्णय आने के बाद सभी धर्मों के लोगों ने सौहार्द का परिचय दिया। इस पर आपके क्या विचार हैं?
वास्तव में सभी को ऐसा लगता था कि निर्णय राम मंदिर के पक्ष में ही आएगा क्योंकि पुरातात्विक प्रमाणों से यह साफ जाहिर हो गया था कि वहां मंदिर ही था। इसलिए वहां फिर से राम मंदिर बने यही भाव जनमानस का था। कुछ राजनीतिक दल इस मामले को और लटकाना चाहते थे लेकिन देशवासियों की आम राय को देखते हुए उन्हें भी शांत रहने पर मजबूर होना पड़ा। वस्तुतः सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लोगों के अंत:करण में शांति निर्माण करने वाला आया इसलिए सभी समाजों में सौहार्द की झलक दिखाई दी। आम तौर पर घटी हुई यह ऐतिहासिक घटना सुखकारक और समाधानकारक हुई है, ऐसा ही मेरा आकलन है।

श्रीराम मंदिर के कोषाध्यक्ष होने के नाते आप किस तरह अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं?
ऐसा है कि कोषाध्यक्ष के मुख्य रूप से दो ही कार्य होते हैं। पहला है कि श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण के लिए अधिक से अधिक कोष हम कैसे संग्रहीत कर सकते हैं, उन उपायों को खोजना और उसका संवर्धन करना। दूसरी बात यह है कि इसका व्यय होने पर बिलकुल चौकन्ने रह कर इसकी निगरानी करना। इन दोनों ही मुख्य दायित्वों का निर्वहन करने का प्रयास कर रहा हूं।

भव्य दिव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण कब तक पूरा हो जाएगा?
आधुनिक तकनीक की सहायता से बड़े से बड़े प्रोजेक्ट 3 वर्षों में पूरे हो जाते हैं। जैसे अक्षरधाम का निर्माण 3 वर्षों में पूरा हो गया। स्टेच्यु ऑफ़ यूनिटी का निर्माण भी 3 वर्षों में पूरा हो गया। हमारा आकलन ऐसा है कि कार्य का आरम्भ होने के पश्चात तीन से साढ़े तीन वर्षों के अंदर मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हो जाएगा।

विगत कुछ दशकों तक हिन्दू समाज अपनी अस्मिता को लेकर संवेदनहीन हो चला था। क्या राम मंदिर का निर्माण उनमें पुन: धर्म – राष्ट्र के प्रति नई चेतना का निर्माण करेगा?
निश्चित रूप से हिन्दुओं की चेतना को सदैव जागृत रखने का कार्य राम मंदिर निर्माण से होगा। राम मंदिर निर्माण की इच्छाशक्ति ने ही हिंदुत्व को फिर से जगाया है और यही हमारे जागरण का मुख्य केंद्र बिंदु गत 35 वर्षों से रहा है। अब तो राम मंदिर बनना ही है। इससे हिन्दुओं में एक आत्मशक्ति का भी निर्माण होगा। इसका यह संदेश भी है कि यदि हम सभी हिन्दू समाज संगठित होकर अनवरत प्रयास करते हैं तो हम लोग इतिहास को परिवर्तित कर सकते हैं और राष्ट्र को नई दिशा दे सकते हैं।

सदियों से हमारे मंदिर भक्ति – शक्ति के साथ ही समाज संगठन के केंद्र रहे हैं। वर्तमान समय में मंदिरों की सामाजिक क्षेत्र में क्या भूमिका होनी चाहिए?
भारतीय समाज में मंदिर केवल पूजा पाठ या संगठन के स्थान नहीं रहे हैं; बल्कि संस्कारों के भी प्रमुख स्थान रहे हैं। इसलिए सभी मंदिरों को अपने – अपने धन राशि का उपयोग भगवद स्वरूप समाज के कल्याण के लिए करना ही चाहिए। हमारे मंदिर हमारे समाज के लिए आशा स्थान बनने चाहिए, वह सेवा केंद्र बनने चाहिए। संस्कारों का निर्माण उन मंदिरों के माध्यम से होना चाहिए। ऐसा करने पर ही सम्पूर्ण समाज को संगठित किया जा सकता है।

एक आध्यात्मिक संत के रूप में वर्तमान राष्ट्रीय एवं सामाजिक परिस्थियों का आप किस तरह सिंहावलोकन करते हैं?
पूरे देश का जब हम विचार करते हैं तो निश्चित रूप से यहां का राष्ट्रीय हिन्दू समाज अब जाग गया है और वह अपने इस जागरण को प्रत्यक्ष में लाकर के भारत की उन्नति की ओर कैसे अग्रसर हुआ जा सकता है, इसके प्रति भी सावधान हो गया है। युवा शक्ति बहुत बड़ी मात्रा में जागरूक है और यह युवा शक्ति किसी के विरोध में नहीं अपितु अपनी परम्परा के संरक्षक के रूप में जागरूक होकर आगे बढ़ना चाहती है।

सनातन धर्म और भारतीय ज्ञान परम्परा का आधार विशुद्ध रूप से विज्ञान ही रहा है। इसे आज की युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कौन से कार्य किए जाने आवश्यक हैं?
सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति विज्ञान अधिष्ठित प्रारंभ से ही रही है। अब विज्ञान ही हमारी बहुत बड़ी सहायता कर रह है, सहयोग कर रहा है और हमारी अनेकानेक बातों को वह विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध कर रहा है। जिसके चलते पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और सभ्यता को मान्यता मिलती जा रही है। योग को पहले बेहद कम लोग जानते थे। आज योग सर्वमान्य विषय हो गया है। पहले आयुर्वेद को कोई समझना नहीं चाहता था पर आज आयुर्वेद सर्वमान्य हो गया है। भारतीय संगीत और भारतीय चिकित्सा शास्त्र भी सभी जगहों पर मान्य हो गया है। यह बात अब सभी के ध्यान में आने लगी है कि भारतीय ऋषियों के द्वारा निर्मित ये सारी ज्ञान शाखाएं जब इतनी प्रभावी और इतनी सटीक हैं तो अन्य भी शाखाओं में ऋषियों का मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए। संस्कृत भाषा के विषय में भी विश्व में जागरण दिखाई देता है। यूरोप से लेकर अमेरिका तक में संस्कृत सिखाई जा रही है। जर्मनी में तो सबसे अधिक क्रेज दिखाई दे रहा है। इसलिए भारतीय संस्कृति का झंडा धीरे – धीरे अखिल विश्व में फहराता जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि इतिहास में अनेक प्रकार के आघातों को सहने के पश्च्यात भी अपनी विज्ञान निष्ठा के कारण यह संस्कृति बची रही तथा विज्ञान निष्ठा के कारण ही आगे भी यह संस्कृति – सभ्यता बची रहेगी और अधिक प्रभावी होकर रहेगी।

इतिहास साक्षी है कि हिन्दू समाज जब – जब निष्क्रिय हुआ है तब – तब उसका पतन हुआ है, आपको क्या लगता है, वर्तमान समय में हिन्दू समाज सक्रिय है या निष्क्रिय है?
हिन्दू समाज आज सक्रिय भी है और निष्क्रिय भी है। पहले की अपेक्षा अब सक्रियता बढ़ी है, जागरण बढ़ा है। अपने ऊपर मंडराने वाले संकटों को लेकर वह सावधान स्वयं भी हो गया है और अन्य लोगों को भी कर रहा है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सारा हिन्दू समाज जाग गया है। हिन्दू समाज का कुछ अंश अभी भी निद्रिस्थ है। जो लोग अति संपत्ति के कारण अथवा पश्चिमी अंधानुकरण के कारण जिन सामाजिक एवं राष्ट्रीय विचारों का विचार ही नहीं करते, ध्यान ही नहीं देते, वह समाज निष्क्रिय ही माना जाता है। हालिया उदाहरण ये है कि दिल्ली चुनाव के समय हिन्दू समाज का मतदान प्रतिशत बेहद कम रहा है और यह निष्क्रियता का ही परिचायक है। लेकिन हिन्दू समाज अब इतना निष्क्रिय भी नहीं है कि जितना पहले था। बहुत बड़ी मात्रा में हिन्दू समाज वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सक्रिय हुआ है। निष्क्रिय लोगों को सक्रिय बनाना यह सक्रिय लोगों का परम कर्तव्य है।

सनातन धर्म पर जब भी आक्रमण हुआ है तब – तब हमारे संतों ने उसका प्रखर प्रतिकार किया है। वर्तमान समय में पुन: विधर्मियों द्वारा हिन्दू समाज पर आघात किए जा रहे हैं। ऐसे में संतों का क्या कर्तव्य बनता है?
आक्रमण का जिस प्रकार का स्वरूप होता है, उसे देख कर ही उसका प्रतिकार किया जाता है। जब बौद्धिक आक्रमण होता है तो वैचारिक रूप से ही उसका उत्तर दिया जाता है। जब यह आक्रमण शारारिक व पाशविक रूप में होता है तब संतों द्वारा समाज को नेतृत्व देना ही परम कर्तव्य बन जाता है। बाकी कार्य समाज को स्वयं करना होता है। संत कभी निष्क्रिय नहीं हो सकते। परिस्थितियों के अनुरूप संत समुदाय जागरूक रह कर समाज को जागरूक रखने का कार्य सतत रूप से करते रहते हैं।

जब बाबरी कलंक रूपी ढांचा को ध्वस्त किया गया तब यह नारा दिया गया कि ‘जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा’ क्या यह नारा आज भी प्रासंगिक है?
यह नारा सनातनी नारा है। यह नारा तब भी प्रासंगिक था, आज भी है और आगे भी रहेगा। क्योंकि हमारे देश का मुख्य समाज प्रवाह और बहुसंख्यक आबादी हिन्दू समाज की है, इसलिए लोकतांत्रिक दृष्टि से भी किसी भी शासन का हिन्दू समाज के हित में काम करना, यह आद्यकर्तव्य होना चाहिए। कुछ राजनैतिक दलों, दिल्ली के लुटियंस गैंग, रूढ़िवादिता वादी, वामपंथी आदि ने देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को ही सांप्रदायिक कह कर बदनाम किया और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया। देश का बहुसंख्यक समाज हिन्दू है इसलिए उनके कल्याण के लिए काम करना, उनके बारे में सोचना यह सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है। इसका अर्थ यह नहीं है कि अल्पसंख्यकों के लिए कार्य नहीं होना चाहिए, उनके लिए भी काम होना चाहिए लेकिन वोट बैंक के लालच में किसी भी प्रकार एक धर्म विशेष के तुष्टिकरण के लिए कार्य करना अनुचित है। जो पिछली सरकारों की प्रथा रही है वह पूरी तरह से समाप्त होनी चाहिए।

सीएए विरोध में दिल्ली में जो भयंकर दंगे हुए, उस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
दिल्ली में जो दंगे हुए हैं और जो प्रमाण हमारे सामने आ रहे है, उससे स्पष्ट होता है कि यह यकायक दंगे नहीं हुए। यह दंगा सुनियोजित था, दंगाइयों का उद्देश्य यही था कि मोदी सरकार को किसी तरह बदनाम किया जाए और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के समय दंगे के षड्यंत्र को अंजाम देने का मकसद पूरे विश्व में देश के मान – सम्मान और प्रतिष्ठा पर चोट पहुंचाना था। जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि ख़राब हो। इस दंगे में केवल देश के असामाजिक तत्व सहभागी नहीं थे बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र था। विदेशी ताकतों के इशारों पर देश में मौजूद स्लीपर सेल ने इस षड्यंत्र को अमली जामा पहनाया है।

हिन्दू समाज में संगठन शक्ति की कमी दिखाई दे रही है। हिन्दू साधु-संत इस दिशा में क्या प्रयास कर रहे हैं?
हिन्दू समाज को संगठित करना, उसके पूर्व हिन्दू समाज को संस्कार संपन्न करना और अध्यात्म संपन्न करना यह संतों का कर्तव्य है। आज की नई पीढ़ी के संतों में भी समाज, राष्ट्रधर्म के प्रति जागरण है। पुरानी पीढ़ी के जो संत थे वे बहुत बड़ी मात्रा में अपनी – अपनी आध्यात्मिक साधना, अपने – अपने संप्रदाय के संरक्षण और उसके कर्मकांड को ही अपनी इतिश्री मान लेते थे। लेकिन आज का जो नया युवा संन्यासी साधु मैं देख रहा हूं, वह सावधान है, जागरूक है और वह स्थान – स्थान पर हिन्दू समाज को संगठित करने का प्रयास कर रहा है।

हिन्दुओं को शांति और सौहार्द का पाठ पढ़ा कर क्या हमारा क्षात्र तेज खत्म करने का षड्यंत्र किया जा रहा है?
पहले ऐसा ही किया गया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं जो हमारे युवा साधु-संतों को देख रहा हूं, उनमें भी क्षात्र तेज की अग्नि छुपी हुई है। पहले की तरह साधु-संत केवल शांति की बात नहीं करते बल्कि क्षात्र तेज की ज्वाला को भी प्रखर बनाने का कार्य कर रहे हैं। साधु- संतों ने अब जाहिर रूप से भक्ति के साथ शक्ति का आवाहन शुरू किया है। जिसके चलते समाज में अनेक स्थानों पर अनेक प्रकार के हिन्दू संगठन खड़े हुए हैं और वे सभी राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्र संगठन के कार्य में लगे हुए हैं। किन्तु निश्चित रूप से और अधिक व्यापक रूप से इस कार्य को गति देने की आवश्यकता है।

राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र निर्माण में कितना सहायक सिद्ध होगा?
मैंने पत्रकारों से वार्ता में कई बार यह कहा है कि राम मंदिर के निर्माण से राष्ट्र का सारा वास्तुदोष ही समाप्त हो जाएगा और राष्ट्र हमारा अत्यंत प्रभावशाली रूप में दुनिया में उभर कर सामने आएगा। राम मंदिर की विजय स्वत: ही देशवासियों में यह आत्मविश्वास निर्माण करती है कि सनातनी हिन्दू समाज हजारों वर्षों से ऐतिहासिक रूप से सदा विजयी ही रहा है। 500 वर्षों या हजारों वर्षो बाद भी निरंतर संघर्षरत रह कर जीतने का माद्दा हिन्दू समाज में है। भगवान श्रीराम सभी क्षेत्रों, प्रांतों, जातियों – जनजातियों, भाषा – भाषी लोगों के रहे हैं। इसलिए राम मंदिर के बनने से सामाजिक समरसता को बल मिलेगा। लोगों के आत्मविश्वास और समर्पण से राष्ट्र निर्माण होता है इसलिए मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि राम मंदिर निर्माण से लोगों में आत्मविश्वास जगा है और उनमें समर्पण की भावना प्रबल हुई है। मेरा मानना है कि निश्चित रूप से राम मंदिर निर्माण के साथ ही राष्ट्र निर्माण का कार्य बहुत वेग से होगा और राष्ट्र निर्माण के सभी क्षेत्रों में सहायक सिद्ध होगा।

राम मंदिर के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले बलिदानियों विशेषकर कोठारी बंधुओं और कारसेवकों के प्रति आपके मन में क्या भाव है?
जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया उस दिन मैं कोलकाता में ही था, तब मेरी कथा वहां चल रही थी। वहीं से मैंने अपने वक्तव्य में उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की और बड़ी कृतज्ञता से कारसेवकों को वंदन किया। श्रद्धेय अशोक जी सिंघल, कोठारी बंधु एवं सभी कारसेवकों सहित साधु-संतों आदि जिन्होंने भी राम काज में अपना बलिदान दिया, उन सभी का नाम लेकर मैंने भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी और सभी का मान वंदन किया। यह भावना केवल उस दिन तक सीमित नहीं थी बल्कि निरंतर हमारे भीतर जागृत है और रहेगी। इसके साथ ही सभी देशवासियों में यह भावना व प्रेरणा जागृत रहे इसके लिए राम मंदिर परिसर में भी कुछ न कुछ कार्य किया जाना चाहिए। यद्यपि यह हो ही नहीं सकता था यदि यह सारे लोग अपने प्राणों की बाजी लगाकर के इस प्रकार का संघर्ष नहीं करते।

‘जय श्रीराम’ के नारों में ऐसी कौन सी दिव्य शक्ति है, जिसके बलबूते राम मंदिर आंदोलन व संघर्ष इतने लंबे समय तक चला और आख़िरकार हमें सफलता भी मिली?
भारतीय संस्कृति के प्राणभूत तत्व है भगवान श्रीराम। इनको ‘रामो विग्रहवान धर्म:’ अर्थात साकार धर्म के रूप में देखा गया है। भारतीय संस्कृत का प्राणतत्व होने के कारण जब ‘जय श्रीराम’ कहा जाता है तब अपने-आप सारे के सारे तत्व, सारे के सारे जीवनमूल्य स्वयं ही हमारे भीतर प्रस्फुटित होते हैं और स्पन्दित होते हैं। जिसके कारण लोग स्वयं ही अपने भीतर दिव्य शक्ति का अनुभव करते हैं। इसलिए ‘जय श्रीराम का नारा इतना ही महत्वपूर्ण है जितना स्वतंत्रता आंदोलन के काल में ‘वन्दे मातरम्’ रहा। ‘वन्दे मातरम्’ के नारे ने उस समय देशभक्तों एवं क्रांतिकारियों में इतनी प्रेरणा – स्फूर्ति भर दी कि लोग ख़ुशी – ख़ुशी अपने बलिदान के लिए उत्साहित हो गए। वही काम ‘जय श्रीराम’ के नारे ने भी किया है। इसलिए हमारे लिए यह अत्यंत वंदनीय नारा है।

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Comments 3

  1. भालचंद्र रावले,भोपाल मप्र says:
    5 years ago

    बहुत अच्छा,पूज्य स्वामी गोविंद देवगिरि जी महाराज का मंतव्य एवं वक्तव्य देश के भवितव्य को ही परिभाषित कर रहा है।रामन्दिर निर्णय ने देश मे न्याय के प्रति विश्वास जगाया है।भव्य राम मंदिर का निर्माण भारत की वर्षो से कुचली हुई राष्ट्रीय तेजस्विता को पुनः विश्व मे उसके परित्राणाय साधुनाम विनाशायच दुष्कृताम के उद्देश्य को पूर्णता प्राप्त कराएगा।अब हिन्दू भारत विश्व का नेतृत्व करेगा।इसके लिए जहां एक ओर साधु सन्यासियों को सक्रिय होना पड़ेगा वही उद्योजक, योजक एवं समर्थ सुरक्षा तंत्र विकसित करना होगा ।यह अब होगा ही ऐसा विश्वास है।

    Reply
  2. Jai Kishan Sharma (dadhich) says:
    5 years ago

    Jai Shri ram

    Reply

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