हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
  यह नहीं कहते तोप से क्या फैला?

  यह नहीं कहते तोप से क्या फैला?

by सतीश पेडणेकर
in दिसंबर -२०१५, सामाजिक
0

हाल ही में पोप फ्रांसिस ने अमेरिका और लैटिन अमेरिका में           अपनी बहुचर्चित यात्रा के दौरान उपनिवेश काल में अमेरिका में मूल निवासियों के खिलाफ किए अत्याचारों में रोमन कैथलिक चर्च की भूमिका के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, कुछ लोगों की यह बात सही है कि पोप जब उपनिवेशवाद की बात करते हैं तो चर्च की करतूतों को नजरंदाज कर देते हैं। लेकिन मैं बहुत खेदपूर्वक आप से कह रहा हूं कि ईश्वर के नाम पर अमेरिका के मूलनिवासियों के खिलाफ कई गंभीर पाप किए गए। मैं विनम्रतापूर्वक माफी मांगता हूं। इससे पहले लैटिन अमेरिका के बोलिविया में भी पोप ने इसी तरह की माफी मांगी थी।

बेशक पोप की माफी देरसबेर ही सही अपने अपराधों का अहसास करने की दिशा में एक अच्छा कदम है। लेकिन लैटिन अमेरिका के लोगों में यह माफी सुनकर पुराने जख्म ताजा हो गए होंगे। विडंबना यह है कि पोप एक तरफ माफी मांग रहे थे मगर लोगों को उनका पाखंड भी नजर आ रहा था; क्योंकि वे दूसरी तरफ नरसंहार करने वाले को संत घोषित कर रहे थे। पंद्रहवीं सदी में अमेरिका में कोलंबस के आने के बाद यूरोपीय मिशनरियों ने वहां के स्थानीय समुदाय के लोगों को अत्याचार, धर्मांतरण एवं नरसंहार के माध्यम से इस किनारे से उस किनारे तक पीछे हटाया। अपना वर्चस्व स्थापित करने वाले ऐसे एक स्पैनिश मिशनरी को संतई प्रदान करने के पोप फ्रान्सिस की अगुवाई में हुए कार्यक्रम के कारण अमेरिका तथा दुनिया में भी आलोचनाओं की बौछार हो रही है। इस दौरान पोप द्वारा १९वीं शताब्दी में यूरोपीय सेना की मदद से स्थानीय लोगों का नरसंहार करने के आरोपी फादर जूनीपेरो सेरा को संतई प्रदान की गई है। इससे अमेरिका के मूल निवासी इंडियनों में भारी आक्रोश है।

लेकिन पिछले ५०वर्षों में कन्वर्जन, आक्रमण, अलग-प्रदेश कब्जे में लेना, उनको लूटना और जो प्रतिकार करें उनका सीधे-नरसंहार करना, इसके कारण ही आज पूरी दुनिया अमेरिका के अधीन दिखती है। ५० वर्ष पूर्व वाला समुदाय आज ५० जनजातियों में विभाजित हो चुका है। आज उनका विभाजन नोटिफाइड और अननोटिफाइड ट्राइब के नाम से किया गया है। उन्हें केवल शराब के अड्डे चलाने, जुए के अड्डे चलाने जैसे काम दिए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में उनकी अगली पीढ़ी शिक्षित हो चुकी है, लेकिन उन पर दबाव का तंत्र आज भी जारी है। सारी दुनिया से अधिक अमेरिका में एक चमत्कार यह है कि वहां रहने वाले यूरोपीय लोगों को अमेरिकी कहते हैं और मूल निवासियों को इंडियन कहते हैं।

बहुत पहले एक मुस्लिम शायर ने एक केवल इस्लाम को मानवीय विध्वंस के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने और ईसाइयत की विनाशलीला पर चुप्पी साध लेने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए कहा था-

 लोग कहते हैं कि तलवार से फैला इस्लाम

यह नहीं कहते तोप से क्या फैला?

इस शायर की बात में काफी दम है। आज जिस ईसाइयत को प्रेम और सेवा की प्रतिमूर्ति के रूप में दुनिया के सामने पेश किया जाता है; उस ईसाइयत की असलियत कुछ और ही है। इतिहास गवाह है कि ईसाईयत उस साम्राज्यवाद की भुजा थी जिसने दुनिया भर में जिस तरह नरसंहार और संस्कृतिनाश किया उसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिल सकती। हम भारतीयों के बीच अक्सर इस्लाम के जुल्मों और अत्याचारों की चर्चा होती है, लेकिन ईसाइयत का इतिहास और भी ज्यादा काला, और विकराल है। मुस्लिमों का साम्राज्यवाद केवल तीन उप महाद्वीपों में रहा; मगर ईसाइयों का साम्राज्यवाद पांच महाद्वीपों में।

इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो यह देखना दिलचस्प होगा कि यहूदियों के साथ ईसाइयों ने कैसा बर्ताव किया; क्योंकि ईसा यहूदी थे। कभी ईसा ने कहा था कि मुक्ति यहूदियों को ही मिलेगी, उपदेश यहूदियों के लिए ही है; मगर जब यहूदियों ने उन्हें मसीहा नहीं माना तो वही सबसे बड़े दुश्मन बन गए। उनका तिरस्कार और उत्पीड़न शुरू हुआ। ईसा को मसीहा मानने वाले ईसाइयों ने यहूदियों से प्रचंड घृणा पाल ली और उनका नरसंहार किया। ईसा ने यहूदियों का मुक्तिदूत होने का दावा किया। पर वे मृत्युदूत और यातनादूत बनकर रह गए। सारे यूरोप में ईसाइयत के फैलने के साथ यहूदी विरोध भी फैला। ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि ईसाइयत के शुरूआती दिनों से ही उसमें यहूदी विरोधी भावना थी; जो आनेवाली शताब्दियों में और बलवती हो गई। ईसाइयों द्वारा की गई यहुदियों के खिलाफ हिंसा और हत्याओं ने आखिरकार नरसंहार का रूप लिया। हिटलर ने तो लाखों यहूदियों का नरसंहार किया।

जीसस क्राइस्ट-एन आर्टीफाइस फॉर एग्रेशन के लेखक सीताराम गोयल यहूदियों के नरसंहार को सीधे ईसा से प्रेरित बताते हैं। वे लिखते हैं-गोसेपेल के ईसा ने यहूदियों की सांप, सांपों का बिल, शैतान की औलाद, मसीहाओं के हत्यारे कह कर निंदा की; क्योंकि उन्होंने ईसा को मसीहा मानने से इंकार कर दिया था। बाद के ईसाई धर्मशास्त्र ने उनको ईसा के हत्यारे के तौर पर स्थायी अपराध भाव से भर दिया। यहूदियों को सारे यूरोप में और सदियों तक गैर नागरिक बना दिया गया, उनको लगातार हत्याकांड का शिकार बनाया गया। लेकिन हिटलर के उदय से पहले कोई गोस्पेल के संदेश को इतना सुव्यवस्थित लागू नहीं कर पाया; न फाइनल सोल्यूशन का ब्ल्यू प्रिंट बना पाया। संक्षेप में, हिटलर के अलावा कोई भी गोस्पेल के जीसस द्वारा यहूदियों के बारे में दिए गए फैसले को समझ नहीं पाया। आश्चर्य नहीं कि पश्चिमी देशों के गंभीर चिंतक गोस्पेल को पहला यहूदी विरोधी मेनीफैस्टो मानते हैं।

फ्रांसिसी लेखक और दार्शनिक वाल्तेयर ने ईसाइयत के इतिहास और चरित्र का अध्ययन करने के बाद टिप्पणी की थी, ईसाइयत दुनिया पर थोपा गया सबसे हास्यास्पद, ज्यादा एब्सर्ड और रक्तरंजित धर्म है। हर सम्माननीय व्यक्ति, संवेदनशील व्यक्ति को ईसाई पंथ से डरना चाहिए। उनकी यह बात सोलह आने खरी है। ईसाइयत का सारा इतिहास रक्तरंजित दास्तान रहा है। सबसे पहला देश जहां ईसाइयत राजधर्म बना वह था रोम। जैसा कि ईसाइयों का स्वभाव रहा है कि जैसे ही पर्याप्त शक्ति संग्रहित की कि भयंकर उत्पीडनों को तेज कर देते हैं। उन्होंने बहुदेववादियों का उत्पीड़न शुरू किया। उन यहुदियों का उत्पीडन किया जिनसे ईसाइयत पैदा हुई। इसके अलावा, उन्होंने अपने संप्रदाय से अलग संप्रदाय के ईसाइयों का भी नृशंस दमन किया। रोम में उन्होंने बहुदेववादियों के सारे मंदिर नष्ट कर दिए। बाद में ईसाइयत यूनान भी पहुंच गई। किसी जमाने में यूनान पश्चिमी सभ्यता का सिरमौर हुआ करता था; लेकिन ईसाइयों का वर्चस्व बढने के साथ उसका यह सम्मान जाता रहा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, यूनान ईसाइयों से बहुत पहले पश्चिमी सभ्यता का पहला शिक्षक था। मगर जबसे वह ईसाई बना, उसकी सारी मनीषा और संस्कृति नष्ट हो गई। कुछ ऐसी ही बात महर्षि अरविंद ने भी कही थी। यूनानियों के पास ईसाइयों से ज्यादा प्रकाश था।–ईसाई तो प्रकाश के बजाय अंधेरा लाए।

आक्रामक पंथों के साथ हमेशा ऐसा ही होता है। भारत में जिस प्रकार मंदिरों में अनेक देव मूर्तियां साथ-साथ रहती हैं, उसी तरह ग्रीक देवी देवताओं की मूर्तियां भी वहां के मंदिरों में साथ साथ रहती थी। न तो देवताओं में ईर्ष्या और नफरत भरी प्रतिस्पर्धा थी, न पुजारियों के मध्य। लेकिन नए पंथ की सोच में ही कुछ गड़बड़ी थी। इसलिए यूरोप में ईसाइयत का इतिहास विध्वंस लीलाओं से भरा रहा। ईसाइयत ने किस तरह यूरोप पर कब्जा किया, अनेक समाजों, संस्कृतियों के मठों मंदिरों को नष्ट किया, विचार स्वातंत्र्य को खत्म किया इसका इतिहास रक्तरंजित और रोंगटे खड़ा करनेवाला है। ईसाई संतों ने इसमें सबसे दुष्टतापूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे क्रूरकर्मा लोगों को वहां संत कहा गया। सेंट मोरोलियस ने गोल में अनेक प्रतिमाएं जलाईं। एमिन्स के सेंट फरमिनस ने जहां भी मूर्तियां पाईं उन्हें नष्ट किया। सेंट कोलंबस और सेंट गाल ने सारे यूरोप महाद्वीप में हजारों मंदिरों, मठों और वहां स्थापित मूर्तियों को नष्ट किया। और मंदिरों से जुड़े बगीचों को उजाड़ डाला। जर्मनी में तो उन्होंने भीषण तबाही मचाई। सेंट आगस्तीन ने इंग्लैंड में यही किया।

बहुदेवपूजकों के प्रशा और बाल्टिक क्षेत्रों को तेरहवीं सदी में जबरन ईसाई बनाया गया। पचास साल तक चले भीषण रक्तपात और युद्ध के बाद प्रशा ने समर्पण कर दिया। समर्पण की शर्त थी नागरिक एक माह के भीतर बाप्तिस्मा कर ईसाई बन जाएं। जो ऐसा करने से इंकार करे उनका सामाजिक बायकाट किया जाए। जो पुरानी पैगन पद्धति जारी रखने का आग्रह करें उन्हें गुलाम बना डाला जाए।

ईसाइयों में शुरू से ही प्रवृत्ति रही है एक ईसाई संप्रदाय वाला दूसरे ईसाई संप्रदाय वाले को मार डाले। दरअसल एक ईसाई संप्रदाय किसी और संप्रदाय का ईसाई होना पाप ही मानता था। उसे राज्य के विरूद्ध अपराध भी घोषित कर दिया जाता था। एक संप्रदाय के राजा कानून बनाकर भिन्न ईसाई संप्रदायों पर पाबंदी तक लगाते। राजा थिओडोसियस के समय तक ऐसे १० कानून बने थे। तब भी उसने नए कानून भी बनाए। उनके कोड़ में लिखा था, हमारा आदेश है कि हमारे प्रशासन के आधीन सभी लोग केवल उस ईसाई संप्रदाय के प्रति आस्था रखेंगे जो दिव्य पीटर ने रोमनों को सौंपा है। जो अभिसप्त हैं, बीमार हैं, केवल वे ही अलग ईसाई संप्रदाय के प्रति निष्टा जारी रखेंगे। इसके लिए उन्हें पहले दैवी अभिशाप नष्ट करेगा ही साथ ही शासन भी उनका दमन करेगा। असल में यूरोप में पहले पैगन वंश के लोगों का वंशनाश किया गया। फिर अन्य ईसाई संप्रदायों के ईसाइयों को ढूंढ कर जलाया गया। लाखों अन्य संप्रदायों के ईसाई सार्वजनिक उत्सव के साथ जलाए गए। उन्मत्त ईसाइयों ने समाजों और कौमों का उत्पीड़न किया। इस तरह ईसाइयत ने यूरोप को अपने अधीन किया। पोप ग्रेगरी ने इंग्लैंड के बिशप आगस्तीन को को सलाह दी कि भव्य मंदिर हों उनको नष्ट न कर उन पर कब्जा करे वहां की मूर्तियां हटा दी जाएं और वहां सच्चे ईश्वर की पूजा की जाए।

फिर यूरोप के ईसाइयों ने बाकी महाद्वीपों में जाकर यही इतिहास दोहराया। उन्होंने अमेरिका और आस्ट्रेलिया जाकर वहां के स्थानीय निवासियों को असभ्य करार देकर उनका नरसंहार किया और उनकी जमीन आदि पर कब्जा कर लिया। बेनेडिक्ट चर्च के पादरी कोलंबस के पीछे अमेरिका पहुंचे। उन्होंने केवल हैती में ही पौने दो लाख उन मूर्तियों को नष्ट कर दिया जिनकी वहां के देशी लोग पूजा करते थे। मैक्सिको के पहले पादरी जुआन द जुमरगा ने १५३१ में दावा किया था कि उसने ५० से ज्यादा मंदिर नष्ट किए  और २०० से ज्यादा मूर्तियां तोड-फोड़ कर मिट्टी में मिला दीं। एक मिशनरी ने बहुत गर्व से लिखा है, उसका रात का खाना चार फीट उंची लकड़ी की मूर्ति का जलाऊ लकड़ी तरह प्रयोग कर तैयार किया गया था और वहां स्थानीय लोग खड़े खड़े देखते रह गए थे।

गांधीवादी चिंतक और इतिहासकार धर्मपाल के शब्दों में कहा जाए- उनकी नजर में विजित को आखिरकार खत्म होना था। भौतिक रूप से न सही मगर संस्कृति और सभ्यता के रूप में। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के स्थानीय निवासी जल्दी ही नेस्तनाबूद हो गए थे। उत्तरी अमेरिका में उनके पूर्ण उन्मूलन में  ३००-४०० साल लगे। १४९२ में अमेरिका के स्थानीय लोगों की आबादी ११.२ करोड़ से १४ करोड़ के बीच थी।

अफ्रीकी महाद्वीप इस्लाम और ईसाइयत जैसे दोनों विस्तारवादी और घोर असहिष्णु धर्मों के हमलों को झेल रहा है। जिन्होंने उन्हें सदियों से दबोच रखा है। इससे उनकी प्राचीन  संस्कृति लगभग खत्म होती जा रही है। दोनों के बीच स्थानीय लोगों को धर्मांतरित करने की होड़ चल रही है। हाल ही में यह हमला और तेज हुआ है और अफ्रीकी अपने युगों पुराने धर्मों को खोने की कगार पर हैं। प्राच्य विद्या विशारद अलेस्ट कोयनार्ड के मुताबिक अफ्रीका में १९०० में से ५० प्रतिशत लोग पैगन धर्मों को मानते थे, लेकिन अब ईसाई और मुस्लिम मिशनरियों ने उनकी संख्या को १० प्रतिशत से कम पर पहुंचा दिया है।

ईसाइयत के प्रसार न केवल कई संस्कृतियों का विनाश किया वरन् यूरोप, अमेरिका, एशिया और आस्ट्रेलिया के लाखों लोगों की हत्या हुई। महान दार्शनिक वोल्तेयर के शब्दों में कहें तो ईसाइयत ने काल्पनिक सत्य के लिए धरती को रक्त से नहला दिया।

अठारवीं सदी की कई प्रतिभाएं ईसाईयत के इस इतिहास से परिचित थीं। लेकिन बाद में इस बारे में चेतना घटती गई; जबकि कई अध्ययनों से इस बारे में हमारी जानकारी में इजाफा हुआ है। पश्चिमी देश सेकुलर होने के बावजूद अपने को ईसाई मानते हैं। इसलिए सार्वजनिक जीवन और शिक्षा व्यवस्था के जरिये सदियों तक ईसा के नाम पर मानवता के खिलाफ हुए अपराधों को छिपाते रहे। भारत में तो इस काले अध्याय को पूरी तरह से पोंछ दिया गया है। उस पर कभी चर्चा नहीं की जाती। ईसाइयत को प्रेम और सेवा के धर्म के रूप में प्रचारित किया जाता है। लेकिन उसमें इस बात की चर्चा नहीं जाती कि इसके लिए कितने लोगों की बलि चढ़ाई गई। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा- तमाम डींगों के बावजूद आपकी ईसाइयत तलवार के बिना कहां सफल हुई? मुझे दुनिया का एक ऐसा देश बताइए। मैं कह रहा हूं, सारे ईसाइयत के इतिहास में एक मिसाल बताइये; मैं दो नहीं चाहता। मुझे पता है, आपके पूर्वज कैसे धर्मांतरित हुए। उनके सामने दो ही विकल्प थे- धर्म बदलें या मारे जाएं। ये डींगे मार कर आप मुस्लिमों से बेहतर क्या कर सकते हैं? आप शायद यह कहना चाहते हैं कि हम अपनी तरह के अकेले हैं; क्योंकि हम दूसरों को मार डालते हैं।

भारत भी ईसाइयों की विनाश लीला का शिकार हुआ है। पुर्तगालियों की हिंसा जगजाहिर थी तो अंग्रेजों की हिंसा सूक्ष्म थी, चुपचाप जड़ें खोदने वाली थी। एक ईसाई इतिहासकार ने लिखा है कि पुर्तगालियों नें अपने कब्जे के भारत में क्या किया। एडां टीआर डिसूजा के मुताबिक १५४० के बाद गोवा में सभी हिन्दू मूर्तियों को तोड़ दिया गया था या गायब कर दिया गया था। सभी मंदिर ध्वस्त कर दिए गए थे और उनकी जगहों को और निर्माण सामग्रियों को ऩए क्रिश्चियन चर्च या चैपल बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। कई शासकीय और चर्च के आदेशों में हिन्दू पुरोहितों के पुर्तगाली क्षेत्र में आने पर रोक लगा दी गई थी। विवाह सहित सभी हिन्दू कर्मकांडों पर पाबंदी थी। मिशनरी गोवा में सामूहिक धर्मांतरण करते थे। इसके लिए सेंट पाल के कन्वर्जन भोज का आयोजन किया जाता था। उसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने के लिए जेसुइट हिन्दू बस्तियों में अपने नीग्रो गुलामों के साथ जाते थे। इन नीग्रो का इस्तेमाल हिन्दुओं को पकड़ने के लिए किया जाता था। जब ये नीग्रों भागते हिन्दुओं को पकड़ लेते थे तो वे हिन्दुओं के होठों पर गांय का मांस लगा देते थे। इससे वह हिन्दू लोगों के बीच अछूत बन जाता था। तब उसके पास ईसाई धर्म में घर्मांतरित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता था। इतिहासकार ईश्वरशऱण ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है-संत झेवियर के सामने औरंगजेब का मंदिर विध्वंस और रक्तपात कुछ भी नहीं है। अंग्रेज शासन के बारे में नोबल पुरस्कार विजेता वीएस नायपाल की यह टिप्पणी ही काफी है कि इस देश में इस्लामी शासन उतना ही विनाशकारी था जितना उसके बाद आया ईसाई शासन। ईसाइयों ने एक सबसे समृद्ध देश में बड़े पैमाने पर गरीबी पैदा की। मुस्लिमों ने दुनिया की सबसे सृजनात्मक संस्कृति को एक आतंकित सभ्यता बना दिया।

पोप ने अब माफी मांगना शुरू किया है तो केवल अमेरिका और  लैटिन अमेरिका से माफी मांग कर काम नहीं चलेगा। उन्हें कई देशों से कई समाजों से, कई धर्मों और स्वयं ईसाइयत के विभिन्न संप्रदायों से माफी मांगनी पड़ेगी। उन्हें यहूदियों अन्य संप्रदाय के ईसाइयों और हिन्दुओं से माफी मांगनी होगी। उन्हें माफी मांगनी पड़ेगी उन लाखों महिलाओं से जिन्हें यूरोप में चुडैल कह कर जला दिया गया। उन्हें माफी मांगनी होगी उन लाखों ईसाइयों से जिन्हें धर्म से विरत होने के कारण यातनाघरों में यातनाएं दी गईं। गैलीलियों जैसे वैज्ञानिकों से प्रताड़ित किए जाने के लिए माफी मांगनी होगी। पोप माफी मांग भी लेंगे लेकिन क्या ये प्रताडित उनकी माफी कबूल करेंगे। आखिर माफी मांगने से इतिहास तो नहीं बदलता। समय के चक्र को पीछे नहीं चलाया जा सकता। फिर माफी मांगना नाटक और ईसाइयत की छवि सुधारने की कोशिश के अलावा क्या है? असली माफी तो तब होगी जब ईसाइयत अपना असहिष्णु और विस्तारवादी चरित्र बदले। शायद यह कर पाना पोप के बस की बात नहीं। पोप फ्रांसिस भले ही कितने ही प्रगतिशील होने का दावा क्यों न करें, ईसाइयत के मूल चरित्र को वो कैसे बदल पाएंगे?

 

सतीश पेडणेकर

Next Post
मुकुंदजी, यूं बिना बताये कैसे चले गए….

मुकुंदजी, यूं बिना बताये कैसे चले गए....

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0