पहला लांगमार्च
चीन के राष्ट्रवादियों से सत्ता छीनने के लिये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने लांगमार्च की घोषणा की। अनेक स्थानों से एक साथ अलग-अलग लांग मार्च शुरू हुये। इनमें सबसे प्रसिद्ध अक्टूबर 1934 में जिआंगशी से शुरू होकर अक्टूबर 1935 में शांगशी पहुंचने वाला लांगमार्च था। इसके पीछे स्तालिन द्वारा भेजे गये सैनिकों का भी समर्थन था। वस्तुतः यह स्तालिन द्वारा चीन में अपनी कठपुतली सरकार बनाने की योजना का अंग था। अनेक सैनिक टुकड़ियाँ एक साथ मार्च कर रही थीं और अलग-अलग जगहों पर कब्जा कर रही थीं। राष्ट्रवादी सैनिकों से उनका खुला युद्ध चल रहा था। प्रायः सब जगह कम्युनिस्ट बुरी तरह पिट रहे थे। इस लांगमार्च को इंग्लैंड, फ्रांस और सोवियत संघ से पोषण मिल रहा था। जर्मनी और जापान के विरूद्ध संयुक्त मोर्चे में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने स्तालिन का साथ दिया और यूरोपीय देशों तथा अमेरिका से अनेक पत्रकार लेखक तथा कवि चीन में रिपोर्टिंग के नाम पर आ गये तथा दुनिया भर में इस लांग मार्च के पक्ष में प्रचार करने लगे। क्योंकि उन सबको जापान और जर्मनी की जीत का डर था। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार एडगर स्नो भी लांगमार्च की रिपोर्टिंग के लिये पहुँचा और उसने माओ जे दोंग का साक्षात्कार भी लिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में माओ की धूम मचा दी। पश्चिमी यूरोप और अमेरिका के सभी कम्युनिस्ट झुकाव वाले पत्रकार लेखक और कवि माओ जे दोंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का गुण गाने लगे। इसके पीछे जर्मनी और जापान का भय तो था ही, पश्चिमी यूरोप और अमेरिका का चीन मंे वर्चस्व बढ़ाना भी था। यद्यपि राष्ट्रवादी चीनी भी पश्चिमी यूरोप और अमेरिका से ही प्रभावित थे, परंतु वे बौद्ध झुकाव के कारण जापान के प्रति उतने कटु नहीं दिख रहे थे। इसलिये यूरो अमेरिकी शक्तियों ने स्तालिन और माओ को बढ़ाने का निश्चय किया और अपने पत्रकारों, लेखकों आदि को इस काम में लगा दिया।
पहले लांगमार्च के दौरान माओ की तीसरी पत्नी हे जिझेन के माथे पर गंभीर चोट लगी और उसे तत्काल मास्को भेज दिया गया। क्यांेकि वस्तुतः इस लांगमार्च का निर्देशन स्तालिन ही कर रहे थे। हे जिझेन को मास्को भेजा गया और इधर माओ ने जियांग किंग से चौथा विवाह कर लिया। जियांग किंग एक अभिनेत्री थी। उन दिनों यह चर्चा उड़ी कि माओ ने तीसरी पत्नी को पागलखाने में भेज दिया है क्योंकि वह चौथा विवाह करना चाहता था। वैसे भी माओ अपनी कामुकता और लंपटता के लिये प्रसिद्ध था।
जियांग किंग से विवाह कर माओ बहुत दिनों तक उसके साथ एकांत में रहने लगा और वहाँ बागवानी करने लगा तथा बताया कि मैं चिंतन कर रहा हूँ। चिंतन के बाद उसने घोषणा की कि केवल लालसेना जापानियों को हराने के लिये काफी नहीं है इसलिये राष्ट्रवादियों के साथ मिलकर एक संयुक्त राष्ट्रीय सुरक्षा शासन बनाया जाना आवश्यक है। पत्रकारों आदि के सहयोग से उसने यह सुझाव इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका को भेजा। उनमें कुछ सहमति बनने लगी। तब इधर माओ ने घोषणा की कि राष्ट्रवादियों के सर्वमान्य नेता चांग काई शेक गद्दार हैं और वे निष्ठापूर्वक जापान से नहीं लड़ रहे हैं। स्तालिन के संकेत पर चांग काई शेक को गिरफ्तार कर लिया गया और दबाव देकर 25 दिसंबर 1937 को राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्ट पार्टी का संयुक्त मोर्चा बनवाया गया। इस प्रकार माओ स्तालिन के निर्देश के अनुसार रणनीति बनाता रहा और स्तालिन का समर्थन प्राप्त करता रहा।
इस बीच जापानियों ने शंघाई और नानकिंग पर कब्जा कर लिया और नानकिंग में भीषण लूटपाट की। लगभग 5 लाख चीनी मारे गये जिनमें चीनी सैनिक और कम्युनिस्ट सैनिक लगभग 2 लाख थे। शेष अन्य चीनी नागरिक थे। सोवियत संघ की प्रेरणा से 4 लाख नये चीनी सैनिक लालसेना में भर्ती हुये और उन्होंने जापान के साथ युद्ध छेड़ दिया। बीस हजार जापानी सैनिक मारे गये और माओ ने जापान के विरूद्ध मोर्चा संभाला। अमेरिकी सेनायें भी जापान के विरूद्ध माओ का साथ दे रही थीं। अमेरिकी सैनिक अधिकारियों ने अपने शासन को रिपोर्ट दी कि जापान के विरूद्ध युद्ध में हमें कम्युनिस्ट लड़ाकुओं की मदद की अधिक आवश्यकता है क्योंकि वे बहुत संगठित और अनुशासित हैं।
1944 ईस्वी में रूजवेल्ट ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से मिलने अपना विशेष दूत भेजा। दूत ने लौटकर जो रिपोर्ट दी उसके अनुसार अगली रणनीति बनी। स्तालिन को दिये गये वचन के अनुसार माओ को मुख्य चीन युद्ध के उपरांत सौंप दिया गया और चांग काई शेक को फार्माेसा द्वीप में अपनी राष्ट्रवादी सरकार के साथ रहने पर सहमति बनी। अमेरिका चांग काई शेक को भी मदद करता रहा और माओ जे दोंग को भी। क्योंकि उसे अपनी रणनीति और प्राप्त सूचनाओं के अनुसार यह आवश्यक लगा।
कम्युनिस्ट सेनाओं ने लांगमार्च के दौरान 70 लाख से अधिक चीनी लोगों की हत्या की। यह बात तो एक चीनी सैनिक अधिकारी ने अपनी पुस्तक में लिखी है।
पहले तो अमेरिका के हस्तक्षेप से माओ ने वचन दिया कि वह राष्ट्रवादी दल के साथ साझा शासन बनायेगा परंतु फिर राष्ट्रवादियों पर भीषण आरोप लगाते हुये उनसे संबंध तोड़ने की घोषणा की। स्तालिन ने माओ की मदद की और सोवियत सेनाओं ने उत्तर पूर्वी चीन पर कब्जा कर लिया तथा फिर मार्च 1946 में स्तालिन ने इसे गुप्त रूप से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को दे दिया। स्तालिन की सेनाओं ने दो लाख से अधिक राष्ट्रवादी चीनी सैनिकों की हत्या की। तब जाकर वहाँ सोवियत संघ का कब्जा हुआ और फिर वह इलाका माओ को दे दिया गया। कुछ समय बाद 1948 ईस्वी में माओ ने निर्देश दिया कि राष्ट्रवादियों चीनियों को सम्पूर्ण चीन मार भगाया जाये। इस पर पीपुल्स लिबरेेशन आर्मी टूट पड़ी और कई लाख राष्ट्रवादियों को मार डाला। जून से अक्टूबर तक लगातार हत्यायें की जाती रहीं। कर्नल झांग झेंग लू के अनुसार हिरोशिमा में 9 सेकंड में जितने जापानी मारे गये थे, हमने पांच महीने में उससे अधिक चीनी नागरिकों को मार डाला। 21 जनवरी 1949 को राष्ट्रवादी सेनायें पूरी तरह हार गईं और वे चीन की मुख्य भूमि से हटकर फार्मोसा में जाकर सिमट गईं। माओ ने घोषणा की – चीन के लोग विजयी हुये हैं। 10 अक्टूबर 1949 को चीनी गणराज्य स्थापित करने की घोषणा हुई और विस्तृत क्षेत्र पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया।
जिस अमेरिकी पत्रकार एडगर स्नो ने यूरोप और अमेरिका में माओ की छवि चमकाई थी, उसे बाद में माओ ने यह सुविधा दी कि उसने चाईनीज इण्डस्ट्रियल कोआपरेटिव एसोशियेसन बनाकर अपना व्यापार वहाँ काफी फैलाया। चीन के प्रति उसे वास्तविक अनुराग हो गया। यहाँ तक कि उसने यह वसीयत की कि मृत्यु के बाद उसके अस्थि अवशेषों का आधा भाग अमेरिका के एक कब्रिस्तान में दफनाया जाये और शेष आधा भाग पीकिंग विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक कोने में दफनाया जाये। वैसा ही किया गया। इससे स्नो का चीन के प्रति अनुराग प्रकट होता है।
महायुद्ध के बाद किस इलाके को कैसा बांटना है, यह रूजवेल्ट, चर्चिल और स्तालिन ने तय कर लिया था, वही किया गय और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को बहुत बड़े क्षेत्र में कब्जा कर लेने दिया गया। इसके लिये भयंकर मार-काट की गई। स्पष्ट है कि यह क्षेत्र एक नकली राज्य है और अवसर मिलते ही इसके बड़े हिस्से अपने-अपने मूल राष्ट्र में मिल जायंेगे- मंगोलिया, मन्चूरिया और तिब्बत। (क्रमशः …)
-प्रो. कुसुमलता केडिया