हमारी “इच्छाशक्ति” प्रबल एवं प्रखर हो

यदि हमें अपने जीवन को उन्नति और प्रगति के द्वारा सार्थक बनाना है तो अपनी “इच्छाशक्ति” को बढ़ाना और प्रबल बनाना होगा,” तभी हममें “दृढ़ता,” “साहस” और “कार्य क्षमता” का विकास होगा । हम “उत्साही,” “वीर” और “संकल्पवान बनेंगे ।” हममें वह “कर्मठता” आएगी जो जीवन-पथ की बाधाओं तथा विपत्तियों से कुंठित न हो सकेगी ।

“सफलता का पथ निश्चय ही बड़ा कठिन और दुर्गम होता है ।” उसको सरल प्रशस्त बनाने में मनुष्य की “इच्छाशक्ति” का बड़ा उपयोग है । “इच्छाशक्ति” की “दृढ़ता” और “प्रबलता” मनुष्य को “पराक्रमी,” “पुरुषार्थी” और “धीर-गंभीर” बना देती है । “प्रबल इच्छाशक्ति” वाला जिस काम में हाथ डालता है, उसे तब तक नहीं छोड़ता जब तक पूरा नहीं कर लेता । वह बाधाओं, विरोधों से साहसपूर्वक लड़ता हुआ बढ़ता रहता है । “उन्नति” और “सफलता” का इसके सिवाय और कोई उपाय नहीं है ।

“संसार की सारी सफलताओं का मूल मंत्र है– “प्रबल इच्छाशक्ति,” । इसी के बल पर “विद्या,” “सम्पत्ति” और “साधनों” का उपार्जन होता है । यही वह आधार है जिस पर आध्यात्मिक तपस्याएँ और साधनाएँ निर्भर रहती हैं । यही वह दिव्य संबल है, जिसे पाकर संसार में खाली हाथ आया मनुष्य वैभव और ऐश्वर्यवान बनकर संसार को चकित कर देता है । “यही वह “मोहन” और “वशीकरण” मंत्र है, जिसके बल पर एक अकेला पुरुष कोटि-कोटि जन-गण को अपना अनुयायी बना लेता है ।”

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