गौरवशाली देश का प्रतीक समर्थ परिवार

समाज में लोगों की सामाजिक स्थिति उस परिवार पर निर्भर करती है जिससे वे आते हैं। इसलिए, हम लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अधिक महत्व देते हैं। समाज का निर्माण व्यक्तियों से होता है और व्यक्तियों को उच्च स्तर का बनाने का उत्तरदायित्त्व परिवार पर रहता है। विद्वानों ने परिवार को व्यक्तियों को ढालने वाली प्रयोगशाला बतलाया है।

आजकल परिवार में बिखराव के मामले इतने बढ़ गए हैं कि यह सवाल बार-बार मन में आता है कि ‘इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है?’ लोगों में धैर्य की कमी हो गई है। वे परिवारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए वक्त देने के बारे में सोचते ही नहीं। कुटुंब प्रबोधन का विषय जब भी मन में आता है तो हमारे आस-पास घटित होने वाली अनेक पारिवारिक घटनाओं की ओर ध्यान आकर्षित होता है। मेरे सम्पर्क में आये मेरे एक मित्र ने एक बार कहा कि वह काउंसलिंग चाहता है। मैंने पूछा, ‘क्या हुआ?’ उसने बताया कि वह अपने बड़े भाई से बहुत नफरत करता है। बचपन में उसके बड़े भाई ने उसे बहुत पीटा था। पिछले 15 वर्षों से वह इसी आग में जल रहा था। घुट रहा था। कहने का मतलब यह है कि अगर अपनों के लिए मन में अगन रखेंगे तो फिर क्या होगा? रिश्तों में दरारें पैदा होंगी। रिश्तों में छोटी-छोटी बातों को लेकर इतनी नाराजगी भर जाती है कि समझौते की बात ही नहीं होती। पति-पत्नी के रिश्तों में भी आजकल धैर्य और विश्वास की बहुत कमी हो गई है।  जब घर में तनाव होता है तो इसका असर बाहर व्यवहार पर भी होता ही है। कार्यालयीन काम को सही तरीके से नहीं निपटा पाते। कई बार हम अपनी लड़कियों को रोजमर्रा की बातों में यह कह जाते हैं कि जब ससुराल जाओगी तो अपने हिसाब से रहना। अत: उन्हें लगता है कि शादी के बाद तो उनका ही राज होगा, जबकि अधिकतर ससुराल में सास पहले से होती है। ऐसे में अपने घर में लडकियों को दी हुई गलत सीख का परिणाम लड़कियों को ही अपने जीवन में भुगतना पड़ता है।

दूसरी ओर शादी होते ही ससुराल वालों को यह लगता है कि लड़की तो  ‘मैच्योर’ होगी ही। जबकि ऐसा नहीं होता। पति अपने पत्नी के अपमान में पत्नी का पक्ष नहीं लेते। इस तरह के विचार रिश्तों को देखने का हमारा नजरिया बदल देते हैं। आज पति पत्नी में, सगे भाइयों में छोटी सी अनबन पर भी सीधे न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाता है। लेकिन ऐसी लडाइयों में कानून से अधिक सकारात्मक सोच रिश्तों को मजबूत रखती है।

यह सवाल जरूर खुद से पूछना चाहिए कि भाई-भाई या पिता-बेटे में, परिवार के सदस्यों में प्रतियोगिता क्यों होती है? अगर परिवार में बहू है तो वह ऐसी हो, उसे ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए, उसे इसी तरह के कपड़े पहनने चाहिए यह रवैया होता है। इस रवैये के कारण लगभग हर परिवार में चर्चा का अभाव देखा जाता है। चर्चा होती भी है तो अक्सर झगड़े में बदल जाती है। आजकल परिवार के सदस्यों में संवाद की कला किसी को अवगत नहीं हैं। लोग इसकी जरूरत ही महसूस नहीं करते। अनुकूल वातावरण का अभाव भी पारिवारिक अलगाव का एक रूप है। सुखी जीवन को प्राप्त करने की चाहत से अलग-अलग रहना सही माना जाता है, लेकिन न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी परिवार से अलग होने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। धीरे-धीरे सभी रिश्तों को समाप्त करके अलग-थलग रहकर अपनी दुनिया में खुशी का आनंद लेना संभव नहीं है। कई बार यह महसूस करने में बहुत देर हो चुकी होती है कि खुशी अकेले में नहीं है, मनुष्यों की संगति में है।

वर्तमान में समाज के लड़के लड़कियां दोनों ही बहुत पढ़े-लिखे हैं, लेकिन उनकी मानसिकता का क्या? वे परिवार के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आश्वस्त हैं? मजबूत जीवन में सहअस्तित्व और सहानुभूति महत्वपूर्ण है। हमें एक दूसरे की भावनाओं को जानना होगा। घर के लोगों का स्वभाव अलग-अलग, विरोधाभासी होना कोई बड़ी बात नहीं है। ‘मैं जो कहूंगा वही सही होगा,’ इसमें कोई तर्क, कोई संवाद नहीं। ऐसा घर कमजोर होता है। परस्पर संवाद ही शरीर, मन, बुद्धि और अंतःकरण को समरस बनाता है। इसलिए परिवार में सभी का एक ही लक्ष्य होना चाहिए, सभी के लिए सुख और आनंद।

जन्म से लेकर अंतिम क्षण तक व्यक्ति का मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक लालन-पालन परिवार में संस्कार रूपी अदृश्य शक्ति से होता है। यहीं से एक दूसरे का सम्मान करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। वंश वृक्ष की एक शाखा है परिवार। परिवार क्या है? इसमें कौन आता है? माता, पिता, दादी, दादा, चाचा, चाची, चचेरे  भाई सभी हैं। लेकिन इसके अलावा  कुत्ता, बिल्ली, अपने घर में झाड़ू लगाने और कपड़े धोने वाली चाची, दूधवाली। हम सामाजिक जिम्मेदारी के जरिए उनसे भी जुड़े हैं। कई बार ऐसा महसूस होता है कि किचन में कार्य करते हुए महिलाएं अपने आप से बातें करती रहती हैं। पूछने पर कि ‘किससे बात कर रही थी?’ पता चलता है कि वह रसोई घर में बर्तनों से, डिब्बों से बातें कर रही थी। ऐसा क्यों होता है? इसलिए कि रसोई के पुराने बर्तन भी अपनेपन की भावना जगाते हैं? जब घर की पुरानी कड़ाही या अन्य बर्तन को हटा दिया जाता है, तो अतीत को याद किया जाता है। सही में हमारे परिवार की व्याप्ति बहुत लम्बी है। यह कहना गर्व की बात है कि परिवार की सही व्याख्या परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रमुख शक्ति है। एक गौरवशाली देश का प्रतीक भी है समर्थ परिवार।

परिवार  राष्ट्र का सबसे छोटा रूप है। परिवार का हर आदमी घर की अभेद्य दीवार है। सामाजिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक और बौद्धिक इन सभी प्रणालियों से घर के सभी तत्वों को बाहरी दुनिया के अनुकूल बनाना बहुत जरूरी है। परिवार को सशक्त बनाना, राष्ट्र की प्रकृति एवं संस्कृति को बढ़ाने जैसा है। वेदों के समय से ही जीवन के मूल्यों को किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज को निरोगी, स्वस्थ, निर्भय रखने के लिए लिखा गया है। कुटुम्ब व्यवस्था प्राचीन काल से ही ऋषियों द्वारा बहुत सोच समझकर बनाई गई है। यह परिवार प्रणाली हमें क्या देती है? हमारी परिवार प्रणाली सबसे पहले घर नाम का एक बीज अंकुरित करती है। हर घर में व्यक्ति से बड़ा परिवार होना चाहिए। परिवार की एकता के लिए परिवार के सदस्यों के लिए अपने स्वार्थ और अहम को भुलाकर समझौता करना, एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति दिखाना, एक-दूसरे के हित की देखभाल करना आवश्यक है। मूल रूप से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। स्वभाव से उसे समाज, परिवार की आवश्यकता होती है। लेकिन आजकल आधुनिकता के कारण मनुष्य की मनुष्य पर निर्भरता कम होती जा रही है। लोगों का बैंक में जमा राशि पर ज्यादा ध्यान होता हैं कि पासबुक कितना भरा है। खुशियों की पासबुक से ज्यादा बैंक की पासबुक पर ध्यान देते हैं। सही जीवन जीना भूल जाते हैं और तनाव में रहते हैं।

परिवार में कई व्यक्ति एक साथ होते हैं तो उनमें छोटे-मोटे विवाद तो होंगे ही। लेकिन उनका उचित समाधान खोजना आवश्यक है। यदि विवाद के कारणों को अच्छी तरह समझ लिया जाए तो बातचीत हो सकती है। पारिवारिक स्वास्थ्य के लिए तर्कसंगतता और सहनशक्ति दोनों महत्वपूर्ण हैं। मैं परिवार का सदस्य हूं। परिवार ने मेरा ख्याल रखा। छोटे से बड़ा बनाया। उचित शिक्षा दी। उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया। अब मनुष्य होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं अपना परिवार बनाऊं। यह भावना आज के युवक-युवतियों में पनपनी आवश्यक है।

प्रत्येक परिवार का एक ढांचा होता है। परिवार के कुछ अलिखित नियम होते हैं। कभी-कभी वे परम्परा से आते हैं। कभी-कभी नए नियम अपने आप बन जाते हैं। कभी-कभी जानबूझकर नियम बनाए जाते हैं। अगर परिवार नियमों के भीतर मस्ती करने लगे तो परिवार को कोई नुकसान नहीं। लेकिन ज्यादातर समय, अगर सदस्यों का उस फ्रेम के भीतर दम घुटना शुरू हो जाता है, तो वे फ्रेम को पार कर सकते हैं। इसलिए फ्रेम को मजबूत करने की जरूरत है। परिवार शहरी हो या ग्रामीण, छोटा हो या बड़ा, हर घर के सभी कामों की जिम्मेदारी मुख्य रूप से महिलाओं की ही होती है। इस सोच को अब बदलने की जरूरत है। घर की सारी जिम्मेदारी महिलाओं पर ही क्यों हो? इसे ध्यान में रखते हुए हमें यह देखना होगा कि हम इससे कैसे छुटकारा पा सकते हैं। भेदभाव परिवार में महिला के द्वंद्व को भी रेखांकित करता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ जीवित रहने के लिए पारिवारिक संगठन को पौरुषी बेड़ियों से मुक्त करने की सख्त जरूरत है। आधुनिक काल में जिस गति से लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्य विकल्पों को अपनाने की तैयारी कर रही हैं वहां आवश्यकता के अनुरूप पति को ‘हाउस हसबैंड’ बनने से कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि बेटे-दामाद का ‘हाउस हसबैंड’ बनना पहली बार में न पचे। इसे शुरू होने में समय लगे, परंतु होना आवश्यक है।

भारतीय समाज में पारिवारिक सम्बंधों के धागों को बहुत ही अविभाज्य माना जाता है। ये रिश्ते सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से लोगों के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। लोग गर्व से कहते हैं कि वे उस परिवार के वंशज हैं। समाज में लोगों की सामाजिक स्थिति उस परिवार पर निर्भर करती है जिससे वे आते हैं। इसलिए, हम लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अधिक महत्व देते हैं। समाज का निर्माण व्यक्तियों से होता है और व्यक्तियों को उच्च स्तर का बनाने का उत्तरदायित्त्व परिवार पर रहता है। विद्वानों ने परिवार को, व्यक्तियों को ढालने वाली प्रयोगशाला बतलाया है।

समाज और परिवार में कोई अंतर नहीं है। परिवार का उत्थान समाज का उत्थान और परिवार की सेवा समाज की सेवा है। यदि परिवारों को आदर्श बना लिया जाए तो समाज अपने आप आदर्श बन जाएगा।

समाज का छोटा स्वरूप अपना परिवार है। परिवार को सुसंस्कृत बनाना समाज का उत्थान करने की एक छोटी प्रक्रिया है। उसको क्रियात्मक रूप देने की प्रयोगशाला परिवार है। समाज सेवा का परिपूर्ण अवसर परिवार के छोटे से क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होता है। यदि हम सब अपने कौशल, ज्ञान और क्षमता का पूरा-पूरा लाभ देकर परिवार के माध्यम से समाज सेवा का पूरा उत्तरदायित्व निभाते चलें तो जल्द ही समाज और देश की परिस्थितियां सकारात्मक रूप में बदलने में हम अपना योगदान दे सकते हैं।

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