होली के रंग बापू के संग
‘मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा कि मैंने गांधीजी को भारत की वास्तविकता बता दी। वे होली के रंग देखना चाहते थे, मैंने बदरंग दिखा दिए परन्तु मैं भी क्या करता?”
‘मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा कि मैंने गांधीजी को भारत की वास्तविकता बता दी। वे होली के रंग देखना चाहते थे, मैंने बदरंग दिखा दिए परन्तु मैं भी क्या करता?”
होली तो नेताओं का प्रिय त्योहार होता है जैसे गब्बर का हुआ करता था। नेताजी बोले, देखिए! हमारी यह पॉलिसी है कि हम किसी बाहरी आदमी के समक्ष अपने सीनियर का नाम अपनी ज़ुबान पर नहीं लाते। अतः गब्बर की बात मत करिए।
महाशिवरात्रि को पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध कुछ ऐसी स्थिति में होता है कि मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर उठती है इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने पूरी रात जागरण कर उत्सव मनाने की प्रथा-परंपरा स्थापित की।
हरिद्वार में आयोजित होने वाला कुंभ का मेला उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। जो कि यहां के गंगा घाट पर 14 जनवरी मकर संक्रांति से चल रहा है। हरिद्वार कुंभ इतना अधिक प्राचीन है कि उसका सर्वप्रथम वर्णन सन 1850 के इंपीरियल गजैटियर में मिलता है। इस मेले में इस समय न केवल अपने देश के अपितु विदेशों तक के हर एक कोने से विभिन्न धर्म-जाति व संप्रदाय के असंख्य संत-महात्माओं, धर्मगुरुओं एवं भक्तों-श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा हुआ है।
आज से करीब तीन दशक पहले कश्मीरी पंडितों ने अपनी इज़्ज़त और सम्मान को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया था। इन तीन दशकों में वैसे तो बहुत कुछ बदल गया। यह बदलाव ना सिर्फ देश में आया बल्कि कश्मीर में भी देखने को मिला। जम्मू कश्मीर से लद्धाख को…
भारतीय परिवेश और परंपरा में वस्त्रों के रंग और पहनावे की विभिन्न शैलियां ही नहीं है अपितु वस्त्रों के धागे, वह किस तंतु से निर्मित हैं, और किस अवस्था में किस ऋतु में कौन से धागे या तंतु के कपड़े पहने हैं यह भी एक महत्वपूर्ण विषय है। जैसे गर्मी के समय में रेशमी वस्त्रों को धारण नहीं किया जाता। कपास से निर्मित वस्त्रों और ऊनी वस्त्रों को प्रयोग में नहीं लाते, वहीं सर्दियों में नेट के वस्त्र नहीं पहने जा सकते।
मेरे विविध प्रकारों के बारे में मैं जितना बताऊं उतना कम है, लेकिन एक बात का आनंद अवश्य है, कि जब भी कोई भारत के बाहर से भारत आता है, तो मेरे विविध प्रकारों को देखकर खुश हो जाता है। भारत के बाहर कपड़े और हैंडलूम के इतने प्रकार कहीं भी आपको देखने को नहीं मिलेंगे। ये यहां के कलाकारों की मेहनत, बुनकरों की लगन और कपास उगाने वाले किसानों की दृढ़ इच्छा ही है, जो आज भारत में हर एक गांव हर एक क्षेत्र में पहनावे की विविधता मिलती है।
भारतीय पोशाक अपने पारंपरिक तरीके और धरोहर से जुड़ाव के लिए जाने जाते है। पारंपरिक भारतीय डिज़ाइन अधिकतर प्रकृति से जुडे होते हैं। भारतीय पोशाक आरामदायक होने के साथ ही देखने में सुंदर और राजसी होते है।
भारत संभवत: दुनिया के उन शुरुआती गिने-चुने देशों में से है, जहां कपास का उपयोग सबसे पहले किया गया था। कपास का नाम भी भारत से ही विश्व की अन्य भाषाओं में प्रचलित हुआ, जैसे- संस्कृत में ‘कर्पस’, हिन्दी में कपास’, हिब्रू में ‘कापस’, यूनानी तथा लैटिन भाषा में ‘कार्पोसस’ आदि। अत: यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हर तरह के परिधानों का आविष्कार भारत में ही हुआ है।
दशहरे के दिन शस्त्र पूजन का एक और उद्देश्य है जनमानस में क्षात्रतेज को जागृत करना। यह क्षात्रतेज ही संकट की घडी में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय अस्मिता को बचाने का कार्य करता है।
हरियाणा के रोहतक में आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने कहा कि हरियाणा के युवकों के लिए कृषि लघु प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे कृषि के नचारी शोधों का उपयोग किसान के विकास के लिए किया…
भारतीय संस्कृति में तीन प्रकार की नवरात्रियाँ मनाई जाती हैं। चैत्र महीने में राम की, क्वार मास में देवी मां की और अगहन महीने में खंडोबा की नवरात्रि मनाई जाती है। आदिमाया ने दानवों की पीड़ा से मानव की मुक्ति कराने के लिए मां देवी ने नौ दिन सतत युद्ध किया था। सूर्यास्त…