पोथी तुम कितनी गुणवती हो

Continue Readingपोथी तुम कितनी गुणवती हो

साहित्य में अब पाठकों की रुचि नहीं रही यह मानकर अच्छा साहित्य लिखा जाना बंद नहीं हो जाना चाहिए। पाठकों की रुचि और उनके दिशादर्शन का ध्यान रखकर साहित्य का निर्माण करना साहित्यकारों का दायित्व है और साहित्यकारों की रचनाओं को उचित प्रतिसाद देना पाठकों का।

गजब के हैं ये अजब मंदिर

Continue Readingगजब के हैं ये अजब मंदिर

अगर कोई पूछे कि मंदिर किसके लिए प्रसिद्ध है तो उत्तर होगा भगवान के लिए परंतु भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो केवल भगवान के लिए नही अपितु कुछ अलग ही कारणों से प्रसिद्ध हैं। कुछ मंदिरों के तो भगवान भी बंदर या मोटरसाइकल हैं। ऐसे अजब-गजब मंदिरों की जानकारी दे रहा है यह लेख।

धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

Continue Readingधार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

धार्मिक पर्यटन का एक पहलू यदि धार्मिक और आध्यात्मिक सरोकार हैं तो दूसरा पहलू धार्मिक स्थलों का आर्थिक और सामाजिक विकास भी है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पर्यटन उद्योग भारत के कुल कार्यबल का लगभग 6 प्रतिशत रोजगार देता है।

बदल गई ‘बचपन’ की दुनिया

Continue Readingबदल गई ‘बचपन’ की दुनिया

वक्त के साथ दुनिया बदलती ही है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसीलिए विकास के साथ जीवन के प्रति हमारी प्राथमिकताएं, सोच, रहन-सहन और आदतें भी बदल जाती हैं। लेकिन; इन बदली हुई प्राथमिकताओं में कई बार हम उन आदतों व चीजों से अनजाने ही दूर होते जाते हैं जो कभी हमारी ज़िंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करती थीं। मसलन वे खेल जिनके साथ हम बड़े हुए हैं। पुराने समय के खेल-खिलौनों की जगह अब मोबाइल, वीडियो गेम, कम्प्यूटर ने ले ली है। कहना गलत न होगा कि आज के बच्चों का बचपन और उनके खेल-खिलौने वक्त के साथ पूरी तरह बदल चुके हैं।

फिर वो ही ‘खासियत’ लायीं है…

Continue Readingफिर वो ही ‘खासियत’ लायीं है…

भारतीय फिल्में फिर एक बार भारतीयता का चोला ओढ़ कर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही हैं। भारतीय इतिहास को बिना तोेड़े-मरोड़े दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की चुनौती अब भारतीय सिनेमा बनाने वालों को स्वीकार करना होगा।

धागों से जुड़ता भारत

Continue Readingधागों से जुड़ता भारत

भारतीय कला विविध रूपों में प्रतिबिम्बित होती है। कभी चित्रों के रूप में कैनवास पर, कभी शिल्पों के रूप में दीवारों पर तो कभी कढ़ाई के रूप में कपड़ों पर। जितने राज्य उससे भी अधिक कढ़ाई के तरीके। परंतु इतनी विविधता में एकता यह झलकती है कि कश्मीर की कशीदाकारी दक्षिण के लोग पसंद करते हैं और उत्तर प्रदेश की बनारसी महाराष्ट्र की दुल्हनों को लुभाती है। ये धागे भारत को जोड़ते हैं।

भारत की मनमोहक लोक चित्रकलाएं

Continue Readingभारत की मनमोहक लोक चित्रकलाएं

घर के आंगन में रोज बनाई जाने वाली रंगोली से लेकर दीवारों पर आयोजन विशेष के आधार पर बनाए जाने वाले चित्रों तक, सब कुछ भारतीय लोककला का जीवंत प्रमाण है। आज भारत की ये लोककलाएं पूरे विश्व में अपनी विशेष पहचान के लिए जानी जाती हैं। मधुबनी हो, वार्ली हो या ईसर-गवरी के चित्र हों, सभी देखने वालों का मन मोह लेती हैं।

दीपावली ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ाने का स्रोत

Continue Readingदीपावली ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ाने का स्रोत

दीपावली विशेषांक की पूर्तता के लिए हिंदी विवेक को विद्वानों और लक्ष्मी पुत्रों का बहुत बड़ा सहयोग प्राप्त हुआ है। इस विशेषांक के सारगर्भित आलेख देश के विभिन्न क्षेत्र के मान्यवर विद्वान लेखकों द्वारा प्राप्त हुए हैं। इन आलेखों को प्रकाशित करने के लिए हिंदी विवेक के शुभचिंतक लक्ष्मीपुत्रों ने विज्ञापन के रूप में हमें अर्थपूर्ण सहयोग दिया है। इन मान्यवरों के सहयोग के बिना यह विशेषांक देशभर के लाखों पाठकों तक पहुंचाना कठिन था। इस कठिनाई को सुलभ करने में जिन उद्योगपतियों ने हमें योगदान दिया है, उन सभी हितचिंतकों का हिंदी विवेक परिवार हृदय से आभारी रहेगा।

पूर्वोत्तर में अरूणोदय अवश्य होगा– राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य

Continue Readingपूर्वोत्तर में अरूणोदय अवश्य होगा– राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य

हिंदी विवेक द्वारा सन २०१५ में प्रकाशित 'अष्टलक्ष्मी पूर्वोत्तर' दीपावली विशेषांक में तत्कालीन राज्यपाल मा. पद्मनाभ आचार्य जी का साक्षात्कार लिया गया था जिसमें पूर्वोत्तर की तत्कालीन परिस्थिति, वहां की नैसर्गिक सम्पदा तथा वहां के समस्याओं के बारे में उनकी चिंता एवं चिंतन प्रस्तुत हुआ हैं.

आवाज की दुनिया के दोस्तों…

Continue Readingआवाज की दुनिया के दोस्तों…

ऑर्केस्ट्रा से लेकर कॉन्सर्ट तक संगीत की महफिलों ने पिछले कई दशकों से लोगों का मनोरंजन किया है। जमाना बदला, वाद्य बदले, गाने के अंदाज बदले......नहीं बदला तो बस संगीत से लोगों का प्रेम। ये बढ़ता रहा और बढ़ता ही रहेगा।

काष्ठकला की भारतीय परम्परा

Continue Readingकाष्ठकला की भारतीय परम्परा

महलों, किलों के विशालकाय दरवाजे से लेकर घरों के मंदिरों, कुर्सी, टेबल इत्यादि तक विभिन्न वस्तुओं से भारतीय काष्ठशिल्प की सुंदरता प्रतीत होती है। काष्ठशिल्प उतना ही पुराना है जितना मानवीय सभ्यता। इसी परम्परा की पहचान कराता आलेख-

आनंद का प्रतीक नृत्य

Continue Readingआनंद का प्रतीक नृत्य

गाना गाना, नृत्य करना कोई वाद्य बजाना ये सभी अपने मनोभावों को व्यक्त करने का तरीका हैं। ये सारे क्रिया कलाप केवल किसी को ‘इम्प्रेस’ करने के लिए नही वरन् स्वयं को ‘एक्सप्रेस’ करने के लिए किए जाते हैं तो वे सभी मनोभाव देखने और सुनने वालों तक अपने आप पहुंच जाते हैं।

End of content

No more pages to load