हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
हिमनदियों-गिरिस्रोतों का उद्गम स्थल उत्तराखंड झेल रहा है भीषण जल संकट

हिमनदियों-गिरिस्रोतों का उद्गम स्थल उत्तराखंड झेल रहा है भीषण जल संकट

by हिंदी विवेक
in अवांतर, देश-विदेश, सामाजिक
0

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-1
अत्यंत चिंता का विषय है कि विभिन्न नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखंड पीने के पानी के संकट से सालों से जूझ रहा है. गर्मियों के सीजन में हर साल पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को भीषण जल संकट से गुजरना पड़ता है किन्तु उत्तराखंड राज्य का जल प्रबंधन इस समस्या के समाधान में नाकाम ही सिद्ध हुआ है.

पढ़ें- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में परंपरागत जल संचयन प्रणालियां

पिछले वर्ष 9 जुलाई 2018 को जारी की गई भारत सरकार की नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश इस समय इतिहास में जल संकट के सबसे भयावह दौर से गुजर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 करोड़ लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं, जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं.रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत पानी दूषित है और पेयजल स्वच्छता गुणांक की 122 देशों की सूची में भारत का स्थान 120वां है. आयोग की रिपोर्ट को आए लगभग एक साल होने को है, किंतु केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से ऐसे कोई गम्भीर प्रयास नहीं किए गए जिससे लगे कि आने वाले समय में केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस जल समस्या का कोई हल निकालने के लिए गम्भीर हों.

गौरतलब है कि हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश,जम्मू कश्मीर और नार्थ ईस्ट के राज्यों में 60 प्रतिशत लोग झरनों और प्राकृतिक जल स्रोत पर निर्भर रहते हैं. स्थानीय लोगों के जीवन यापन के अलावा जैव विविधता के संरक्षण और साथ ही वन्यजीवों के लिए भी इन जलस्रोतों का संरक्षित रहना बहुत जरूरी है.

उत्तराखंड में विगत कई वर्षो में कम बर्फबारी, वनों में भीषण आग और वनों के अवैध कटान से स्थिति और भी भयावह हुई है.वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय में हो रहे वनों के कटान और वन प्रबंधन की बदहाली के कारण न केवल उत्तराखंड में ही जल प्रबंधन की स्थिति चिंताजनक है, बल्कि इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल तक हुआ है.
उत्तराखंड हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी साफ दिखाई दे रहा है, जिसका प्रमाण है पिछले तीन सालों में बारिश का यह रिकार्ड, जो 2016 में 67 फीसदी, 2017 में 52 फीसदी और 2018 में 66 फीसदी रहा था.

गंगा नदी पर हुए शोध के आकड़ों से पता चलता है कि देवप्रयाग में गंगा नदी में 30 प्रतिशत जल ग्लेशियर और 70 प्रतिशत जल जंगलों, बुग्यालों, छोटी नदियों और जलधाराओं से आता है.किन्तु अब सर्दियों के समय में बर्फबारी कम हो रही है,जिससे नदियों के पानी में कमी आ रही है.वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ग्लेशियर वैज्ञानिक पीएस नेगी कहते है कि भविष्य के लिए जलसंकट से निबटने के लिए योजनाएं तो बनाई जाती हैं,लेकिन वैज्ञानिक तरीके से कार्य नही हो पाने के कारण सकारात्मक परिणाम नही आते.अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जल संरक्षण का कार्य किया जाएगा तो फिर अच्छे परिणाम भी सामने आ सकते हैं. यदि विशेषज्ञों की राय और विभागों के बीच समन्वय बनाया गया तो भविष्य में प्राकृतिक जलस्रोत फिर से रिचार्ज हो सकते हैं.
दरअसल,जल संकट की इस समस्या को एक अति गम्भीर राष्ट्रीय समस्या मान कर विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.क्योंकि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ‘‘2030 तक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड सहित देश के लगभग सभी राज्य बहुत बड़े जल संकट की समस्या से जूझने वाले हैं. इन सबमें उत्तराखंड हिमालय की जल पारिस्थिकी पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.उत्तराखंड हिमालय से गंगा,यमुना, रामगंगा,काली सहित दर्जनों जो नदियां निकलती हैं,उन्हीं से उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखंड, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिम बंगाल के राज्यों को जल की आपूर्ति होती है. इन सभी नदियों में जलप्रवाह हिमालय के ग्लेशियरों और वनों में स्थित प्राकृतिक जल स्रोतों से आता है.
वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डी पी डोभाल के अनुसार विगत कई वर्षों से हिमालय में सर्दियों के समय बर्फबारी कम होना भी भविष्य में जलसंकट का खतरा बढने का अशुभ संकेत है. कल्पना कीजिए अगर हिमालय के ये जलस्रोत सूख जाएंगे तो उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि समूचे देश में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा, जिसकी एक झलक इसी साल देखने को मिल रही है जब आधा भारत जलसंकट के घनघोर संकट से गुजर रहा है.

नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 150 वर्षों में हिमालय क्षेत्र के करीब 60 प्रतिशत प्राकृतिक जलस्रोत,जलधाराएं और झरने सूख चुके हैं. रिपोर्ट में अल्मोड़ा जिले के 300 झरनों और प्राकृतिक जलस्रोतों के सूखने का भी उल्लेख किया गया है जो न सिर्फ भयावह है बल्कि भविष्य के लिए भी सबसे बडी चिंता का विषय भी है. वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डी पी डोभाल के अनुसार विगत कई वर्षों से हिमालय में सर्दियों के समय बर्फबारी कम होना भी भविष्य में जलसंकट का खतरा बढने का अशुभ संकेत है. कल्पना कीजिए अगर हिमालय के ये जलस्रोत सूख जाएंगे तो उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि समूचे देश में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा, जिसकी एक झलक इसी साल देखने को मिल रही है जब आधा भारत जलसंकट के घनघोर संकट से गुजर रहा है.

16,843 गांवों में गंभीर पेयजल संकट

हिंदुस्तान समाचार (18 अप्रैल, 2019) में प्रकाशित उत्तराखंड के जलप्रबंधन सम्बंधी एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 16,843 आवासीय बस्तियां आजकल गर्मियों में गंभीर पेयजल संकट से गुजर रही हैं. उत्तराखंड राज्य निर्माण के 19 साल हो चले हैं लेकिन यहां के 16,843 गांवों में आज तक पानी नहीं पहुंचाया जा सका है. इन आवासीय बस्तियों तक पानी पहुंचाने को राज्य, केंद्र समेत वर्ल्ड बैंक से मिलने वाले बजट से अब तक 5,789 करोड़ से अधिक का पैसा खर्च हो चुका है. इसके बाद भी राज्य में पेयजल का संकट दूर नहीं हो पाया है. प्रदेश में तीन सरकारों का कार्यकाल पूरा हो चुका है और चौथी के भी दो साल हो चुके हैं. इसके बाद भी इन 16 हजार से अधिक आवासीय बस्तियों में पर्याप्त पानी कैसे पहुंचेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
दैनिक भास्कर’ (18 जून,2019) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भी जल संकट से नहीं बच पाई है. यहां रहने वाली तीन लाख की आबादी को प्रतिदिन डेढ़ घन्टे के बजाय 45 मिनट ही पानी की सप्लाई हो पा रही है.जल संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि बांदल नदी के सूखने के कारण जल संकट की यह स्थिति उत्पन्न हुई है.

उत्तराखंड में पेयजल संकट सिर्फ गांव में ही नहीं है. राज्य में 75 शहरी क्षेत्र भी ऐसे हैं, जहां लोगों को मानकों के अनुसार पानी नहीं मिल पाता है. उत्तराखंड के शहरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर के हिसाब से पानी सप्लाई होना चाहिए. इस मामले में सिर्फ 17 शहर ही ऐसे हैं, जिनमें पानी मानक के अनुरूप पहुंचाया जा रहा है.

हिंदुस्तान समाचार की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में देहरादून,ऋषिकेश,विकास नगर,डोईवाला, गुलरभोज, शक्तिनगर, कपकोट, झबरेड़ा, हरिद्वार,सतपुली,जौंक, कोटद्वार,श्रीनगर,भीमताल, रामनगर, नैनीताल शहरों में पेयजल की स्थिति कुछ सामान्य है किंतु शेष शहरों में पानी की सप्लाई संतोषजनक नहीं है.

75 शहरों में पानी की भारी किल्लत

उत्तराखंड में पेयजल संकट सिर्फ गांव में ही नहीं है. राज्य में 75 शहरी क्षेत्र भी ऐसे हैं, जहां लोगों को मानकों के अनुसार पानी नहीं मिल पाता है. उत्तराखंड के शहरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर के हिसाब से पानी सप्लाई होना चाहिए. इस मामले में सिर्फ 17 शहर ही ऐसे हैं, जिनमें पानी मानक के अनुरूप पहुंचाया जा रहा है. जल की उपलब्धता को देखते हुए उत्तराखंड राज्य में इस समय कुल आवासीय बस्तियां हैं- 39311, इनमें से केवल 22453 बस्तियों में ही पूरा पानी पहुंच रहा है. 16843आवासीय बस्तियां आंशिक पानी से ही गुजारा कर रही हैं. यहां 17 शहरों में ही मानकानुसार पानी उपलब्ध है. इस समय सबसे अधिक जलसंकट वाले स्थान हैं-

केदारनाथ, अगस्त्यमुनी, तिलवाड़ा, ऊखीमठ, नानकमत्ता,रुद्रपुर, जसपुर, बेरीनाग, गंगोलीहाट, गजा,लंबगांव, ढालवाला, मंगलौर, शिवालिकनगर, पिरान कलियर, भगवानपुर, पौड़ी, गंगोत्री, नौगांव, चिन्यालीसौड, पुरोला,बड़कोट, सेलाकुईं, चंपावत, बनबसा, लोहाघाट, टनकपुर, गैरसैंण, थराली, पोखरी,नंदप्रयाग,रानीखेत, भिकियासैण, अल्मोड़ा,द्वाराहाट,कालाढूंगी आदि.

पांच वर्षों में गम्भीर हुआ है जलसंकट

उत्तराखंड में बीते पांच वर्षों में 3256 बस्तियों तक ही पानी पहुंचाया गया. हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि इस अवधि में 6917 ऐसी आवासीय बस्तियां भी थीं, जहां पहले पर्याप्त पानी उपलब्ध था, लेकिन अब ये बस्तियां भी संकटग्रस्त क्षेत्रों की श्रेणी में आ गई हैं. इन आंकड़ों ने सरकारी विभाग की कार्यशैली और जल प्रबंधन की नीति को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

गर्मियों में पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के संकटग्रस्त क्षेत्रों तक पानी की सप्लाई खच्चर के जरिए और सड़क से सटे क्षेत्रों में टैंकर के जरिए वैकल्पिक इंतजाम के तहत पानी पहुंचाने का प्रावधान है. किंतु खच्चर और टैंकर के नाम पर होने वाले खर्च को लेकर भी हर साल सवाल उठते रहे हैं.

पिछले पांच वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में जिस तरह से पेडों का अंधाधुंध कटान हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का प्रकोप बढ़ा है,उससे प्राकृतिक जलस्रोतों में पानी निरंतर कम हो रहा है. कई जलस्रोत सूख गए हैं. राज्य के 19 हजार 500 जलस्रोतों में से 17 हजार जलस्रोतों में 50 से 90 फीसद तक पानी कम हो गया है और गर्मियों में हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं.

एक जल वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार उत्तराखंड में 90 फीसद पीने के पानी की सप्लाई प्राकृतिक झरनों या छोटे-छोटे जलस्रोतों से होती है. लेकिन पिछले पांच वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में जिस तरह से पेडों का अंधाधुंध कटान हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का प्रकोप बढ़ा है,उससे प्राकृतिक जलस्रोतों में पानी निरंतर कम हो रहा है. कई जलस्रोत सूख गए हैं. राज्य के 19 हजार 500 जलस्रोतों में से 17 हजार जलस्रोतों में 50 से 90 फीसद तक पानी कम हो गया है और गर्मियों में हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं.

-डॉ मोहन चंद तिवारी

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

हिंदी विवेक

Next Post
जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस जेबी पारदीवाला की विवादित टिप्पणी

जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस जेबी पारदीवाला की विवादित टिप्पणी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0