20 जुलाई 1965 सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी
भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे प्रसंग हैं जिन्हे पढ़कर आँखे शर्म से झुकती हैं । जिन लोंगो ने हमें स्वतंत्र बनाने के लिये अपना जीवन न्योछावर किया, अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं सहीं उनके साथ स्वतंत्रता के बाद कैसा व्यवहार हुआ । इनमें से एक हैं सुप्रसिद्ध क्रान्ति कारी बटुकेश्वर दत्त के जीवन के प्रसंग । जिन्होंने आजादी के बाद आजीविका के लिये कितना भीषण संघर्ष करना पड़ा । परिवार चलाने के लिये कभी गाइड का काम किया तो कभी कभी सिगरेट कंपनी के एजेंट बने । हद तो तब हुई जब पटना कलेक्टर ने उनसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का प्रमाण पत्र माँगा ।
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगालमें हुआ । बचपन से उनमें राष्ट्र और संस्कृति के लिये प्रेम था यह भाव उनको पारिवारिक विरासत में मिला । वे मात्र चौदह वर्ष के थे कि क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़ गये । इन दिनों वे क्रातिकारियों के संदेश वाहक और पर्चे बाँटने का काम करते थे ।
उनके बारे में देश पहली बार तब परिचय मिला जब दिल्ली विधान सभा में बम कांड हुआ बंदी बनाये गये । उनका नाम लाहौर षडयंत्र केस में भी जुड़ा । उन्हे आजीवन कारावास मिला और कालापानी भेज दिया गया । जहाँ उन्हे गंभीर शारीरिक यातनायें दी गईं जिससे वे मरणासन्न हो गये । उन्हे यातनायें देने का मामला बहुत उछला था । अंत में अति गंभीर हालत में उन्हे 1938 में रिहा कर दिया गया । देवकृपा से वे स्वस्थ हो गये । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में फिर गिरफ्तार कर लिये गये । हालाँकि चार वर्ष की सजा हुई लेकिन 1945 में रिहा हुये । आजादी के बाद उन्होंने विवाह किया और पटना में रहने लगे । जहाँ उन्होंने अपनी आजीविका के लिये बड़ा संघर्ष किया कभी गाइड बनकर सैलानियों को घूमाया तो कभी सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर आजीविका चलाई । अंत में गंभीर बीमार हुये और दिल्ली के अस्पताल में उनका निधन हुआ ।
–रमेश शर्मा