भारत के अतिरिक्त संपूर्ण संसार में हर 13000 वर्ष के बाद हिम युग आता है और लगभग 10000 वर्षों बाद हिम पिघल कर समाप्त हो जाता है और एक चक्र चलता है।( जैसा आदरणीय अरुण उपाध्याय जी ने आगे अपनी टिप्पणी मे बताया है वह अधिक सूक्ष्म एवं प्रामाणिक है इसलिए उसे तदनुसार मिलकर पढ़ा जाए । उत्सर्पीणी और अवसर्पिणी गति मिलकर कुल 24000 वर्ष होते हैं )।
पृथ्वी धुरी पर घूमते हुये सूर्य परिक्रमा तो करती ही है , उसकी ये अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी गतियाँ भी होती हैं और पृथ्वी थोड़ी झुकी हुई घूमती है । पृथ्वी की 4 प्रकार से गतियाँ हैं जिन पर अलग से लिखेंगे । अभी विषय विश्व और भारत है ।
उत्तरी ध्रुव में कभी हरी घास के मैदान थे
यह बात तब पता चली जब अंतरिक्षसे उपग्रहों से देख कर फिर वहां खुदाई की गई और क्या देखा गया कि एकदम जीवित से हाथी यानी हाल ही में मरे हुए हाथी पड़े थे, जिन के मुंह में हरा चारा था और फिर देखा गया तो उनके पेट में भी हरी घास थी।
इससे निष्कर्ष निकाला गया कि वहां विशाल हरी हरी घास के मैदान थे जिन में हाथी चरा करते थे और एक दिन अचानक बर्फीला तूफान आया जिससे वे चलते चलते ही दब गए और फिर निरंतर हिमपात होता है और कई किलोमीटर मोटी बर्फ की चट्टान सी जम गई है ।
यही कारण है कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में तो यह स्थिति है कि वहाँ वसाहत नहीं है।
उससे नीचे यहाँ वहां एस्किमो आदि के घर हैं।तो उन्हें भी वसाहत ही कहेंगे।
यूरोप में स्वयं यह स्थिति है कि वहां अभी 10000 वर्ष पूर्व हिमयुग आकर गया है ।
यह बताने का अर्थ यह है कि विश्व में बसाहटो के विविध स्तर हैं और अलग-अलग स्तर पर अलग अलग सघनता वाली बसाहटें हैं।
इसीलिए यूरोपीय क्षेत्र में धीरे-धीरे हिमयुग के बाद कुछ वसाहत बसी। अभी200 वर्ष पूर्व तक वहां 10000 से अधिक की आबादी के नगर बहुत कम थे। भारत की स्थिति अलग है।
सभी जानते हैं कि भारत मे कर्क रेखा लगभग मध्य मे है उज्जैन की सीध मे । अतः यह आधा भाग उष्ण कटिबन्ध मे है और आधा समशीतोष्ण मे ।
परंतु केवल इतने से भारत हिमयुग की चपेट से न बचता । हिमालय इसे हिम युग की चपेट से बचाता है और पूर्वी एवं पश्चिमी घाट के पर्वत समुद्र के उठान के समय उसके फैलाव को रोकते हैं , अन्यत्र हिमयुग और समुद्र का उफान मिलकर सभ्यताओं को नष्ट करते रहे हैं ।
इन कारणों से भारत की सभ्यता महाप्रलय तक नष्ट नहीं होती , केवल महा प्रलय मे विलुप्त होती है ।
इसीलिए यहाँ काल की विराट गणनाएँ हैं और उनकी स्मृति है । अन्यत्र यह अल्प है ।
10000 वर्ष पूर्व जब हिमयुग की वापसी हो गयी तब से वर्तमान यूरोप क्रमशः मानव जीवन योग्य पुनः हो पाया इसी लिए वे सृष्टि की रचना अब से लगभग 6000 वर्ष पूर्व ही मान रहे थे और उस से पूर्व कोई सभ्यता विश्व मे संभव ही नहीं मान रहे थे ।अब विज्ञान की प्रगति से मानने लगे हैं ।
विश्व मे किसी एक देश के नाम से किसी महासागर का नाम भी एक ही है : हिंदमहासागर जो भूमध्य रेखा पर है ।
अतः भारत मे प्राचीनतम काल की स्मृतियाँ इसी लिए सुरक्षित हैं ।
इसीलिए आधुनिक वैज्ञानिक प्राचीन सभ्यताओं के आधार को समझने के लिए भारत को यानी हिन्दू धर्म और दर्शन को समझते हैं और नटराज का विग्रह महान प्रयोगशाला के द्वार पर रखते हैं ।
अरुण उपाध्याय जी की टिप्पणी –
पृथ्वी पर हिमयुग उत्तरी गोलार्ध में २ कारणों से आता है-उत्तरी ध्रुव सूर्य से विपरीत दिशा में हो, तथा उसी समय पृथ्वी कक्षा में सबसे अधिक दूर हो। उत्तरी ध्रुव की दिशा २६,००० वर्ष के चक्र (अयन चक्र) में घूमती है। इसके विपरीत दिशा में १ लाख वर्ष के चक्र में कक्षा का दूर विन्दु (मन्दोच्च) घूमता है। दोनों का सम्मिलित चक्र २१६०० वर्ष में होता है जो १९२३ के मिलांकोविच सिद्धान्त के अनुसार हिमयुग का चक्र होना चाहिये। १/२६००० + १/१००००० = १/२१६००। किन्तु वास्तविक चक्र २४००० वर्ष का होता है जिसमें १२-१२,००० वर्ष के अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल कहे गये हैं। अवसर्पिणी में सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि के क्रम से युग हैं जिनका अनुपात ४, ३, २, १ है। उत्सर्पिणी क्रम में कलि से विपरीत क्रम में युग होते हैं। २४,००० वर्ष के चक्र के लिये २६००० वर्ष के अयन चक्र के साथ मन्दोच्च का ३१२,००० वर्ष का दीर्घकालिक चक्र जोड़ना होगा। १/२६००० + १/३१२,००० = १/२४०००। हिमयुग उत्सर्पिणी के त्रेता तथा जल प्रलय अवसर्पिणी त्रेता में होता है।
✍🏻अरुण उपाध्याय
और इसीलिए यूरोप के ईसाई पंथाचार्य और विज्ञान विरोधी लोग भारत से ईर्ष्य करते हैं और इसे नष्ट देखना चाहते हैं ताकि विश्व के विषय मे उनकी रची गप्पें ही बच रहें परंतु यूरोप अमेरिका के वैज्ञानिक भारत का महत्व जानते हैं और विश्व मे भारत की मित्र शक्तियाँ बहुत हैं ।
मोदी जी पहली बार भारत की मित्र शक्तियों से सहज मैत्री साध रहे हैं परंतु विडम्बना यह है कि देश के भीतर वे ईसाइयों और कम्युनिष्टों की फैलाई भाषा ही प्रायः बोलते दिखते हैं । जबकि विश्व को भारत की भाषा की आवश्यकता है ।
भाजपा बौद्धिक रूप मे कांगी कम्युनिष्ट पदावली की चपेट मे है जबकि नया भारत सनातन पदावली चाहता है ।
काल प्रवाह से स्थिति बदलेगी ।
प्रो कुसुमलता केडिया