हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध एक अनिवार्य और उचित कार्यवाही 

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हलाल का समर्थन करने वाले लोग हिंदू सनातन विरोधी  और आतंकवाद का समर्थन करने वाले लोग हैं और यही लोग अभी हमास का समर्थन करते हुए भी दिखाई पड़ रहे थे। अतः हिंदू समाज जागृत होकर अपनी रसोई में अगर हलाल प्रमाणित पैकेट रखा हो तो उसे बाहर फेंक दे और अगला पैकेट वही ख़रीदे जिस पर हलाल प्रमाणित न लिखा हो।      

खेल ‘खेल’ न रहा 

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कुछ साल पहले तक भारत में प्रोफेशनल खेलों के नाम पर केवल क्रिकेट ही था जहां ‘नेम और फेम’ दोनों मिलता था परंतु ये सिर्फ महानगरों के लोगों तक ही सीमित था। आज जब अन्य खेलों के लीग मैच इतनी बड़ी संख्या में हो रहे हैं तो एक परिवर्तन यह भी दिखाई देता है कि देश के छोटे-छोटे खिलाड़ियों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा है।

गजब के हैं ये अजब मंदिर

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अगर कोई पूछे कि मंदिर किसके लिए प्रसिद्ध है तो उत्तर होगा भगवान के लिए परंतु भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो केवल भगवान के लिए नही अपितु कुछ अलग ही कारणों से प्रसिद्ध हैं। कुछ मंदिरों के तो भगवान भी बंदर या मोटरसाइकल हैं। ऐसे अजब-गजब मंदिरों की जानकारी दे रहा है यह लेख।

मंदिर आस्था से समृद्धि की ओर

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मंदिर हमारी सामाजिक-धार्मिक आस्था के केंद्र रहे हैं। सनातन संस्कृति में मंदिर से कई क्रिया-कलाप संपादित होते रहे हैं। बीते दशक में मंदिरों का विश्लेषण किया जाए, तो यह कहने में दिक्कत नहीं है कि मंदिर से हमारी अर्थव्यवस्था को भी बहुत लाभ मिल रहा है।

धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

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धार्मिक पर्यटन का एक पहलू यदि धार्मिक और आध्यात्मिक सरोकार हैं तो दूसरा पहलू धार्मिक स्थलों का आर्थिक और सामाजिक विकास भी है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पर्यटन उद्योग भारत के कुल कार्यबल का लगभग 6 प्रतिशत रोजगार देता है।

रोमांचक यात्राओं को लेकर जागता जुनून

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युवा मन कभी भी ‘रिस्क’ लेने से नहीं कतराता। साहस उसे आकर्षित करता है। यही कारण है कि आजकल साहसी पर्यटन का ‘क्रेज’ बढ़ता जा रहा है। बाइकिंग, बंजी जम्पिंग, रिवर राफ्टिंग जैसे साहसी पर्यटन आज युवाओं की पहली पसंद बन रहे हैं। 

रंगमंच हमेशा जिंदा रहेगा

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रंगमंच को जीवित रखना केवल रंगकर्मियों का ही नहीं दर्शकों का भी कर्तव्य है क्योंकि इसमें होने वाले नित नए प्रयोगों के कारण रंगमंच वह प्रयोगशाला बन जाता है जिसके उत्पाद दर्शकों को बड़े पर्दों, टीवी या ओटीटी पर दिखाई देते हैं।

खबरों की तात्कालिकता और सिनेमा की शाश्वतता

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हिन्दी सिनेमा चूंकि सबसे कम खर्च कहानियों पर करता है, इसीलिए रेडीमेड कहानियों की तलाश उसकी मजबूरी हो जाती है। यह जरूरत मसालेदार सत्य घटनाएं आसानी से पूरी कर देती हैं। खबरों के प्रति सिनेमा की इस सहजता की एक वजह उसके दर्शकों के सामने अचानक से आया खबरों का विस्फोट भी है।

बदल गई ‘बचपन’ की दुनिया

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वक्त के साथ दुनिया बदलती ही है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसीलिए विकास के साथ जीवन के प्रति हमारी प्राथमिकताएं, सोच, रहन-सहन और आदतें भी बदल जाती हैं। लेकिन; इन बदली हुई प्राथमिकताओं में कई बार हम उन आदतों व चीजों से अनजाने ही दूर होते जाते हैं जो कभी हमारी ज़िंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करती थीं। मसलन वे खेल जिनके साथ हम बड़े हुए हैं। पुराने समय के खेल-खिलौनों की जगह अब मोबाइल, वीडियो गेम, कम्प्यूटर ने ले ली है। कहना गलत न होगा कि आज के बच्चों का बचपन और उनके खेल-खिलौने वक्त के साथ पूरी तरह बदल चुके हैं।

कला पर बोझ बनता स्टारडम

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जब कोई निर्देशक कोई फिल्म बनाता है तो उसके मस्तिष्क में फिल्म की पूरी ब्लू प्रिंट तैयार होती है। पर्दे पर दिखने के पहले वह निर्देशक की आंखों में उतर चुकी होती है। ऐसे में स्टारडम के बल पर सुपर स्टार्स का फिल्म में हेरफेर करना पूर्णत: अनुचित है। निर्देशकों को अपनी सोच के हिसाब से फिल्म बनाने की छूट मिलना कथा से लेकर उसकी परिणीति तक के लिए अत्यंत आवश्यक है।

स्पेशल इफेक्ट भी हो और कहानी भी

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फिल्मे ‘आदिपुरुष’ स्पेशल इफेक्ट के सहारे चाहे जितने ‘ब्रह्मास्त्र’ चला लें परंतु अगर कहानी में दम नहीं होगा या उसे तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाएगा तो दर्शकों का प्यार पाना सम्भव नहीं हो पाएगा। हिंदी सिनेमा का दर्शक अभी भी कहानी का भूखा है, केवल स्पेशल इफेक्ट का नहीं।

फिर वो ही ‘खासियत’ लायीं है…

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भारतीय फिल्में फिर एक बार भारतीयता का चोला ओढ़ कर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही हैं। भारतीय इतिहास को बिना तोेड़े-मरोड़े दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की चुनौती अब भारतीय सिनेमा बनाने वालों को स्वीकार करना होगा।

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