ईरानी महिलाओं को हिज़ाब से चाहिए आजादी

इन दिनों हिज़ाब के सवाल पर इस्लामिक राष्ट्र ईरान सुलग रहा है। वहां की महिलाओं ने सरेआम ऐलान कर दिया है कि, ‘अब बहुत हुआ! हम हिज़ाब से सर नहीं ढकेंगे।’ इतना ही नहीं महिलाओं ने सिर्फ़ अपनी बात रखी होती तो उसे मामूली समझकर रफा-दफा किया जा सकता था, लेकिन ईरानी महिलाओं और लड़कियों ने सजा के प्रावधान को भुलाकर सार्वजनिक स्थलों से बिना हिज़ाब के  फ़ोटो और वीडियो तक शेयर किए। जो कहीं न कहीं यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि वह चाहें इस्लामिक समाज की महिलाएं हो या किसी अन्य समाज की। अब वो पितृसत्तात्मक समाज की सोच से आगे नहीं बढ़ने वाली, लेकिन दुःख तो तब होता है। जब भारत जैसे देश में जहां संवैधानिक स्वतंत्रता है। सभी को खुलकर जीने की आज़ादी है। फिर भी हिज़ाब जैसे मुद्दे पर बखेड़ा खड़ा किया जाता है। वैसे भारत में हिज़ाब को लेकर अलग ही तरह का माहौल देखने को मिलता है। जब दुनिया के अन्य देश हिजाब से आज़ादी की तरफ बढ़ रहे। उस दौर में हमारे देश में शिक्षण-संस्थानों में भी हिज़ाब पहनकर जाने की आज़ादी की वकालत की जाती है।
ईरान के बारे में हम सभी जानते हैं कि वो एक इस्लामिक राष्ट्र है, और महिलाओं के हक़ को दबाने में वहां की व्यवस्था भी कभी पीछे नहीं रही। कभी इस्लाम के नाम पर पाबंदी लगी तो कभी किसी अन्य वज़ह से, लेकिन अब महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। लड़कियां और महिलाएं किसी भी हद्द तक जाकर हिजाब से आज़ादी मांग रही है। उनका मक़सद साफ़ है कि अब वे हिज़ाब के पीछे खुद को छुपाकर नहीं रखना चाहती है बल्कि खुली हवा में आजादी की सांस लेना चाहती है। जो कहीं न कहीं उनका व्यक्तिगत अधिकार भी है। पर ईरान की रूढ़िवादी सत्ता इससे परेशान हो उठी है। वह महिलाओं की आजादी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है और इसके लिए कड़ी कार्रवाई की बात की जा रही है। गौरतलब हो कि ईरान में हिजाब पहनना मज़हबी बाध्यता है और इसका कठोरता से पालन भी करवाया जाता रहा है। ईरानी सरकार ने 12 जुलाई को ‘हिजाब और शुद्धता दिवस’ के रूप में मानने की घोषणा की थी। जिसके साथ ही ईरान की महिलाओं का क्रोध चरम पर पहुंच गया। वो इसके विरोध में सड़क पर उतर गईं है। महिलाओं का साफ़ मानना है कि अभी नहीं तो कभी नहीं! वे खुलकर सार्वजनिक क्षेत्रों में बिना हिज़ाब पहने अपनी आज़ादी का जश्न मानती नज़र आ रही है।
ईरान की रूढ़िवादी सरकार ने हिजाब का सख़्ती से पालन करवाने के लिए सुरक्षाबल के जवानों को मैदान में उतार दिया है। साथ ही सरकारी टेलीविजन चैनलों पर भी हिजाब के पक्ष में वीडियो प्रसारण तक करवाये जा रहे है। जिससे महिलाओं के मन मे डर पैदा किया जा सके। ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद 9 वर्ष से अधिक उम्र की ईरानी महिलाओं और लड़कियों के लिए सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। कुछ महिलाओं ने इसका विरोध भी किया और कट्टरवादी सरकार न उनका दमन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यही स्थिति वर्तमान कट्टरपंथी सरकार की देखने को मिल रही है। करीब 4 करोड़ 50 लाख महिला आबादी वाले देश ईरान में महिलाओं की एक बड़ी आबादी हिजाब के खिलाफ खड़ी हो गई है। हिजाब के विरोध में सैकड़ों महिलाएं तेहरान के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी सड़कों पर उतर आईं है। अपने सिर से हिजाब हटाकर इस्लामी कानून के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रही हैं। महिलाओं से खुद को हिज़ाब से आजाद करने की अपील कर रही हैं। अब जरा सोचिए क्या ऐसी स्थिति कभी भारत में निर्मित हो सकती है? शायद यह हाल के समय में संभव नहीं। तभी तो भारत में तथाकथित कट्टरपंथियों के उकसावे में आकर भारत की मुस्लिम महिलाएं हिज़ाब का समर्थन कर रही है। ऐसे में इन सबके पीछे भारत की मुस्लिम महिलाओं की क्या मजबूरी है? यह तो वही जाने! लेकिन जिस तरह से भारत में हिज़ाब को लेकर राजनीतिक रोटियां बीते दौर में सेंकी गई और वही स्थिति अभी भी चल रही है। वह किसी से छिपी नहीं है।
जहां तक महिलाओं का सवाल है तो सदियों से पितृसत्तात्मक समाज ने महिलाओं का शोषण किया है। यह जानते हुए भी भारत की माहिलाएं हिजाब जैसी कुरीति का समर्थन कर रही है तो समझा जा सकता है कि कट्टरपंथियों की जड़े कितनी मजबूत है। इसकी एक बानगी पीएफआई और एसडीपीआई जैसे इस्लामिक संगठनों का हिजाब मामले में तूल देना देखा जा सकता है। वैसे भारत में हिज़ाब पर हंगामा कर्नाटक शिक्षण संस्थान से शुरू हुआ था। सोचने वाली बात है कि आज भी समाज में महिलाओं को समान शिक्षा नहीं दी जाती है। ख़ासकर मुस्लिम महिलाओं की बात करें तो उनकी स्थिति तो और भी दयनीय है। ऐसे में शिक्षण संस्थानों में हिजाब का विवाद कई सवाल खड़े करता है? सवाल तो यह भी है कि कपड़ों के नाम पर शिक्षण संस्थानों में राजनीति करना कहाँ तक उचित है? क्या पहनावा शिक्षा से बढ़कर हो गया है? क्या मुस्लिम समुदाय नहीं चाहता कि उनके घर की औरतें पढ़े लिखें? समाज में अपने हक के लिए आवाज़ उठा सकें?  हिज़ाब पहनना नहीं पहनना यह महिलाओं का व्यक्तिगत अधिकार है लेकिन शिक्षण संस्थानों में विरोध प्रदर्शन जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। वैसे ईरान से शुरू हुई हवा बाकी देशों तक भी पहुँचें तो कुछ बात बनें और उम्मीद की जा सकती है कि आगामी दौर में यह स्थिति देखी जाए, लेकिन इसके लिए शिक्षा का प्रसार होना बेहद जरूरी है।
– सोनम लववंशी

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