ब्यूटी इंड्रस्टी की ग्रोथ से बढ़ रहा धरती पर बोझ

ब्यूटी प्रोडक्ट खूबसूरती निखारने के लिए होते हैं। गोरे चेहरे को और ज्यादा सुंदर बनाने और सांवले चेहरे को गोरा बनाने का फार्मूला सिर्फ ब्यूटी प्रोडक्ट बनाने वालों के ही पास है। लेकिन, किसी ने कभी इस बात पर गौर किया कि खूबसूरत बनाने वाली क्रीम, पाउडर और ऐसे हजारों प्रोडक्ट की खाली डिब्बियों, बॉटल और डिब्बों का क्या होता होगा! दरअसल, ब्यूटी प्रोडक्ट के ये खाली डिब्बे धरती को ऐसी बदसूरती दे रहे हैं, जो लाइलाज है। सरकार सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर तो रोक लगा रही है, पर इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा! हर साल इनसे निकला लाखों टन प्लास्टिक कचरा भी उतना ही हानिकारक है, जितना सिंगल यूज़ प्लास्टिक! सरकार ने बिना विकल्प खोजे इस कारोबार से जुड़े लाखों लोगों को संकट में डाल दिया, पर ब्यूटी के इन ठेकेदारों को खुला क्यों छोड़ दिया, जो धरती पर प्लास्टिक का बोझ बढ़ा रहे हैं।

    माना जाता है कि ब्यूटी प्रोडक्ट हमारी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। लेकिन, इनसे निकलने वाला कचरा धरती की खूबसूरती में बदनुमा दाग लगा रहा है। कहने को तो सरकार ने जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा दिया। पर, अभी भी ऐसे अनगिनत प्रोडक्ट है जिनकी पैकेजिंग में प्लास्टिक का भरपूर उपयोग होता है। आश्चर्य की बात है कि इस तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं गया। बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के सामने सरकार ने मौन धारण क्यों कर लिया। जब बात छोटे व्यापारियों की आती है, तो सरकार पूरे जोश में आ जाती है। आंदोलन किए जाते हैं, यहां तक कि छोटे व्यापारियों, फल सब्जी बेचने वालों पर भारी जुर्माना तक लगा दिया जाता है। पर, बड़े कारोबारियों की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा जाता।
     एक अनुमान के मुताबिक, हर साल ग्लोबल कॉस्मैटिक इंडस्ट्री में करीब 120 बिलियन पैकजिंग प्रोडक्ट्स का उत्पादन होता है। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर को रिसाइकल नहीं किया जाता। वैज्ञानिकों का मानना है कि साल 2050 तक 12 बिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा धरती पर जमा हो जाएगा। जो न केवल पर्यावरण संकट उत्पन्न करेगा, बल्कि मानव अस्तित्व को भी खतरे में डाल देगा।
    सुंदरता बढ़ाने के नाम पर ऐसे न जाने कितने उत्पाद बनाए जाते हैं, जो बाजारों के बाद घरों की ड्रेसिंग टेबल की शोभा बढ़ाते हैं। हर घर में इनकी लम्बी कतार देखी जा सकती है। फिर बात चाहें खुशबूदार परफ्यूम, शैम्पू या फिर गोरे होने वाले क्रीम की हो! हर कोई इनके आकर्षक विज्ञापनों से खुद को रोक भी नहीं पाता है। इन ब्यूटी प्रोडक्ट्स से इंसानी सुंदरता बढ़े न बढ़ें, पर धरती की सुंदरता पर ग्रहण जरूर लग रहा है।
    ब्यूटी प्रोडक्ट्स के ज्यादातर प्रोडक्ट प्लास्टिक कंटेनर में ही आते है और इस्तेमाल करने के बाद इन्हें फेक दिया जाता है। न तो ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियों का इनसे कोई सरोकार रहता है और न सरकार इनके निपटान के लिए कोई उचित नीति बना पाई। बात प्लास्टिक के इतिहास की करें, तो प्लास्टिक की कहानी 1960 से शुरू हुई थी। सोचने वाली बात है कि इतने दशकों के बाद भी मात्र 9 प्रतिशत प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाता है। बाकी बचा प्लास्टिक हर बार पर्यावरण की सेहत ख़राब करने के लिए वैसे ही छोड़ दिया जाता है। इसमें वो ब्यूटी प्रोडक्ट की खाली शीशियां और डिब्बे भी हैं, जिन्हें बाद में कचरा समझकर डस्ट बिन में फेंक दिया जाता है।
     भारत में पिछले पांच सालों में प्लास्टिक का इस्तेमाल दोगुना बढ़ा। यह दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी कर रहा है। साल 2018-19 में प्लास्टिक कचरा 30.59 लाख टन था, जो 2019-20 में 34 लाख टन हो गया। साल 2020 की ही बात करें तो देश में 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा तैयार हुआ। यह सालाना 21.8% की दर से बढ़ रहा है। प्लास्टिक के भरपूर इस्तेमाल की वजह से दिल वालों की दिल्ली में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा। जबकि, प्लास्टिक की खपत करने वाले राज्य में महाराष्ट दूसरे नम्बर पर है। वहीं तमिलनाडु तीसरे नम्बर पर है। प्लास्टिक इस्तेमाल में तो मानों सभी राज्यों में होड़ जोड़ मची है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने बताया है कि साल 2019-20 में दिल्ली में सालाना 2,30,525 टन (टीपीए) प्लास्टिक कचरे का उत्पादन हुआ। यह प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन के मामले में देश में सबसे अधिक है। इसके अलावा मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में भी प्लास्टिक के पहाड़ देखे जा सकते है।
     साल 2020 में ग्लोबल कॉस्मेटिक मार्केट की कीमत 341.1 बिलियन यूएस डॉलर आंकी गई। वहीं, साल 2030 तक 560.50 बिलियन यूएस डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। ब्यूटी प्रोडक्ट्स का यह बढ़ता कारोबार अनचाहे कचरे को कई गुना बढ़ा देगा। धरती ही नहीं बल्कि समुद्र तक की सेहत को प्लास्टिक के कचरे ने खराब कर दिया है। अमेरिका जैसे देश में ही हर साल 30 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। वहीं ब्यूटी प्रोडक्ट्स से करीब 7.9 बिलियन कठोर कचरा पैदा होता है। हमारे दिन की शुरुआत से लेकर रात के सोने तक हम प्लास्टिक से ही घिरे हैं। प्लास्टिक हर जगह, हर समय मौजूद है। यहां तक कि लाखों टन प्लास्टिक पैकेजिंग के टुकड़े लैडफिल में छोड़ दिए जाते है। इसके अलावा माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में समा जाते हैं। जिससे समुद्री जीवों पर भी संकट मंडराने लगा है।
    भारत ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का एक बड़ा उभरता हुआ बाज़ार है। साल 2021 में ब्यूटी और पर्सनल केयर मार्केट में सबसे अधिक रेवन्यू में विश्व में भारत चौथे नंबर पर रहा है। भारत में ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का जितना बाज़ार बढ़ेगा उसका पर्यावरण पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा। सरकारें समय रहते नहीं जागी तो वह दिन दूर नहीं जब धरती प्लास्टिक के ढेर में समा जाएगी। कहने को तो तमाम सरकारें प्लास्टिक बैन का ढिंढोरा पिटती रहती हैं। पर, धरातल पर इसका कोई खास असर नहीं दिखता है। भारत जैसे गरीब देश में प्लास्टिक को खत्म करने के लिए जिस तरह की नीतियों की आवश्यकता है। वह इस तरह के प्रतिबंध की घोषणाओं में कहीं नजर नहीं आती। दूसरी तरफ इस तरह के प्रतिबंध निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए एक नई परेशानी बनते जा रहे हैं। छोटे और लघु उद्योग वाले लोगों को इसका ख़ामियाजा सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। उन पर इसका आर्थिक भार पड़ता है। ईको-फ्रेंडली के नाम पर जो बाज़ार स्थापित किया जा रहा है, उसकी पहुंच बहुत सीमित विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग तक है। प्रतिबंध से पहले अन्य विकल्प न सामने लाना सरकार की नीयत को साफ दर्शाता है।
-सोनम लववंशी

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