हिन्दी के विकास में चुनौती हमारा अपना दृष्टिकोण

आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन द्वारा हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत सैर सपाटा के सुरम्य वातावरण में “टेस्ट ऑफ़ गुजरात” परिसर में” हिन्दी का विकास और चुनौतियाँ” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया ।
इस आयोजन की अध्यक्ष डाॅ. माया दुबे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में मिशन पंख फाउंडेशन के  फाउंडर एवं संचालक श्री धर्मेन्द्र शाह मौजूद रहे ।
इस अवसर पर डाॅ. माया दुबे  ने कहा –आज हिन्दी वैश्विक परिदृश्य में नि:संदेह सशक्त हुई है।वैश्विक बाजारवाद ने हिन्दी को विश्व में फैलाया है,लेकिन भाषा केवल अनुवाद का विषय नहीं है   आज भाषा के सामने सबसे बङी चुनौती है ,अंग्रेजी शब्दों का अत्यधिक प्रयोग। भाषा को राजनीतिक दायरे से दूर कर राष्ट्रभाषा का दर्जा देना जरूरी है। नि:संदेह हिंदी भाषा विश्वभाषा बनने की क्षमता रखती है–डाॅ.माया दुबे
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री धर्मेंद्र शाह ने  हिन्दी की अस्मिता और वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए चुनौतियों के समाधान की बात कही ।
अनुपमा अनुश्री ने कहा कि – “आत्महीनता नहीं, हमें अपने देश, अपनी हिंदी भाषा, अपनी संस्कृति और वस्तुओं के प्रति आत्म गौरव होना चाहिए । शैक्षणिक संस्थानों, शालाओं में  छात्र-छात्राओं को अपने ही देश में, अपनी भाषा हिंदी बोलने पर जुर्माना दिया जाना, दंडित करना, अपमानित करना बहुत दासतापूर्ण , शर्मनाक है । न्याय की भाषा भी हिंदी नहीं हो पा रही है जो कि  बहुत चिंतनीय है। संस्कृत से सृजित विशद शब्दावली धारण किए हिंदी में वह क्षमता है जो तमाम नवाचारों को, नए प्रयोगों को शामिल- आत्मसात  कर के चल सकती है और तकनीकी -विज्ञान विषयों का भी अनुवाद हिंदी में बेहतर तरीके से हो सकता है। सबसे बड़ी चुनौती है  हिंदी के विकास में  हमारा दृष्टिकोण।
सोशल मीडिया के लाइक और कमेंट के चक्रव्यूह में फंसे लोगों  ने भी हिंदी भाषा को अशुद्ध, कुरूप और विकृत किया है। हमारी भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है  उसमें हमारे देश की संस्कृति, रहन-सहन ,विचार दर्शन, जीवन मूल्य समाहित होते हैं अतः हिंदी पढ़ना- लिखना, सीखना , समृद्ध करना हर देशवासी का कर्तव्य है।
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए विजया रायकवार  ने कहा कि हिन्दी में  अनुसंधान एवं शोध सामग्री का न होना हिन्दी के विकास के लिए एक बड़ी चुनौती है ।हिन्दी विश्वविद्यालय और हिन्दी में शोध सामग्री की आवश्यकता पर उन्होंने विशेष बल दिया ।
उषा सोनी जी नें अंग्रेजी के मोह और हिन्दी बोलने पर शर्म अनुभव करने को एक बड़ी चुनौती बताया ।  भाषाओं से कोई विरोध नहीं है लेकिन अपनी भाषा का अपमान और दुर्गति स्वीकार्य नहीं है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी हिंदी की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए न कि हिंग्लिश का प्रयोग करना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन कर रही बिन्दु त्रिपाठी ने कहा कि नईं पीढ़ी द्वारा अंग्रेजी  पत्र- पत्रिकाओं की तुलना में हिन्दी पत्र- पत्रिकाओं  के पठन-पाठन में  कमी, छद्म आधुनिकता और विदेश के अंधानुकरण को बड़ी चुनौती बताया।
शोभा ठाकुर द्वारा शासन और प्रशासन तंत्र द्वारा अंग्रेजी को अधिक प्रश्रय दिए जाने को हिन्दी के विकास में एक गंभीर चुनौती बताया गया । सभी आत्म स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा से गौरवान्वित हैं और उसी भाषा में शिक्षण प्रदान करते हैं। हिंदी को गुलामी  पूर्ण मानसिकता से मुक्त होना होगा।
कार्यक्रम का  संचालन बिन्दु त्रिपाठी ने किया।

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