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एक युग का अन्त है… पूज्य आचार्य श्री धर्मेन्द्रजी महाराज का गोलोकवास

एक युग का अन्त है… पूज्य आचार्य श्री धर्मेन्द्रजी महाराज का गोलोकवास

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in अध्यात्म, विशेष, व्यक्तित्व
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भारतीय संस्कृति एवं सनातन चेतना के प्रज्जवलन्त प्रेरणापुंज विश्वविख्यात पूज्य संत श्री मत्पंचखंडपीठाश्वर आचार्य स्वामी श्री धर्मेन्द्रजी महाराज का आज प्रातःकाल जयपुर में निधन हो गया। वे 80 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। पूज्य आचार्य श्री भारत में श्री रामजन्म भूमि आन्दोलन के प्रेरणापुंज नक्षत्र थे। 90 के दशक में उन्होंने रामजन्मभूमि आन्दोलन को नई उर्जा दी नई उँचाई दी थी। आचार्य स्वामी श्री धर्मेन्द्रजी ने 8 वर्ष की अवस्था से ही अपनी प्रतिभा और वाग्मिता से समाज को प्रभावित किया था। वर्ष 1959 में 16 वर्ष की किशोरावस्था में ही स्वामीजी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के उद्धार हेतु सत्याग्रह किया था और वहां गिरफ्तार भी हुए थे। न्यायालय में अपने स्वयं की पैरवी करते हुए किशोर श्री धर्मेन्द्र देव शर्मा के रूप में उन्होंने अपना काव्यात्मक वक्तव्य दिया था, जो अभी भी न्यायिक दृष्टि से विश्व में कीर्तिमान है। उसके कारण स्वामी जी को पूरे देश में प्रसिद्धि और प्रशंसा मिली थी और वे परम तेजस्वी किशोर संत के रूप में पूरे देश में विख्यात हो गए थे। स्वामी जी का जन्म 10 जनवरी 1942 को विश्ववंद्य परम तपोवन, देश भर में गोरक्षा आन्दोलन के लिए विख्यात संत श्री मन्महात्मा रामचन्द्र वीर जी महाराज के आत्मज् के रूप में हआ था। शिशु धर्मेंद्र को प्रारंभ से ही पैतृक गुण स्वभाव प्रकृति विरासत में प्राप्त हई थी। 18 वर्ष की अवस्था में बालक धर्मेन्द्र ने ‘वज्रांग’ पत्रिका का नियमित प्रकाशन प्रारंभ कर दिया था।

अपनी विलक्षण लेखनी से वे प्रारंभ से वे पाठकों को चमत्कृत कर देते थे और अपनी अद्भुत वकृत्व शैली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। अपने तपस्वी व्यक्तित्व के कारण ही वे कालान्तर में श्रीरामजन्मभूमि आन्दोलन के अग्रणी संत के रूप में विख्यात हुए। उनके तेजस्वी नेतृत्व में ही अयोध्या में ही बाबरी ढांचे का विध्वंस हुआ था। पूज्य श्री धर्मेन्द्रजी महाराज सनातन संत परम्परा के ध्वजवाहक के साथ-साथ एक कुशल रचनाकार, साहित्यकार और कथाकार भी थे। उन्होंने श्री बच्चन की मधुशाला की परंपरा के सामने ‘गौशाला’ काव्य की रचना करके हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘गीता माता’ की रचना की, जो श्रीमदभगवत गीता के हिन्दी रूपांतर का उत्कृष्ट गीत काव्य माना जाता है। आचार्यश्री श्रीमदभागवत एवं वाल्मिकी रामायण के अद्भुत व्याख्याता थे। व्यासपीठ पर विराजमान होकर वे भक्तजनों को अपने अकाट्य तर्क से मुग्ध कर देते थे। उनकी विवेचनापूर्ण शैली अत्यंत सुबोध और हृदयग्राहिणी होती थी। पूज्य आचार्य श्री धर्मेन्द्रजी महाराज के अवसान से देश की संत परंपरा में एक युग का अंत हआ है और भारतीय संस्कृति और मनीषा को अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई होना लगभग असंभव है।

पूज्य आचार्यजी ने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हिन्दू चेतना को और अस्मिता को एक नई दिशा दी थी, जिसके लिए समस्त हिन्दू समाज उनका चिर ऋणी रहेगा। मृत्यु ने उनके भौतिक शरीर को भले ही हमसे दूर कर दिया हो, किन्तु उसी के कारण आचार्यश्री भावजगत में निश्चय ही अपने शिष्यों/प्रशंसकों तथा अनुयाइयों के और निकट आ गए हैं। अब उनकी परम चेतना ही समस्त हिन्दू समाज को निरंतर उत्प्रेरित करेगी और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सदैव सन्नद्ध रहने की प्रेरणा देगी। साथ ही उनका पावन स्मरण हिन्दू समाज को अपनी धर्म, संस्कृति तथा परंपरा के प्रति अधिक समर्पण भाव से आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद आचार्य स्वामी श्री धर्मेन्द्रजी महाराज की परम चेतना को प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

 

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वीरेन्द्र याज्ञिक

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