अमेरिका अपने आपको दुनिया का चौधरी और लोकतंत्र का रक्षक समझता है। हर राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था पर उंगली उठाना उसकी नीति का हिस्सा रहा है लेकिन सलमान रूश्दी पर हुआ जानलेवा हमला वहां की सुरक्षा नीति पर सवाल उठाता है। अमेरिकी नीति नियंताओं को आगे से दूसरे पर उंगली उठाने से पहले अपने पहलू में झांकना चाहिए।
सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क के शटाक्वा इंस्टीट्यूशन में आयोजित एक कार्यक्रम में हमला हुआ। यह चौंकाने वाली खबर थी, क्योंकि सलमान रुश्दी चर्चित भी हैं और विवादित भी। विवाद के कारण ही उनके कत्ल पर इनाम की घोषणा हो चुकी है। वह किसी पिछड़े देश में नहीं बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क में थे। उन पर हुआ हमला, उस शक्तिशाली मुल्क की पूरी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल देता है। रुश्दी पर हुए हमले की खबर दुनिया भर के मीडिया सहित अमेरिकी मीडिया में भी छाई रही। आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका के लगभग सभी बड़े मीडिया संस्थान ने ’सुरक्षा की चूक’ को प्रमुखता से अपनी खबरों में जगह दी। जांच में सामने आया कि रुश्दी के समारोह को लेकर सामान्य सुरक्षा के उपायों की अनदेखी हुई। बैग्स की चेकिंग और मेटल-डिटेक्टर के इस्तेमाल जैसे उपायों तक को अस्वीकार कर दिया गया था। भला ऐसी चूक महाशक्ति कहे जाने वाले देश में कैसे हुई? सुरक्षा जांच के नाम पर भारत के कई प्रसिद्ध नेताओं, अभिनेताओं, व्यापारियों तक के कपड़े उतरवाने वाले अमेरिका की मठाधीशी यहां आकर पस्त हो गई।
अमेरिका में सुरक्षा चूक का एक बहुचर्चित मामला इसी साल जून महीने में सामने आया था। तब किसी अन्य के नहीं, बल्कि खुद अमेरिकी राष्ट्रपति के घर के पास आकाश में एक छोटा सा विमान पहुंच गया था। वह भी उस इलाके में जिसे सुरक्षा एजेंसियों ने अधिकृत रूप से ’नो फ्लाई जोन’ घोषित कर रखा है। इस वीआईपी इलाके में विमान को देखे जाने के बाद आनन-फानन में राष्ट्रपति जो बााइडेन और उनकी पत्नी को किसी अज्ञात सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। विमान के बारे में जांच की गई तो पता चला, वह ’गलती’ से नो फ्लाई जोन में घुस आया था। घोर आश्चर्य है न? अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिहाज से राष्ट्रपति आवास के आस-पास करीब 30 मील के इलाके में सभी विमानों को नो फ्लाई जोन के नियमों का पालन करना होता है। किसी भी विमान को इस इलाके से उड़ान भरने की अनुमति नहीं है। कमाल की बात है कि अमेरिका में भी ऐसी गलती होती है कि, राष्ट्रपति के रिहायशी इलाके में कोई विमान पहुंच जाए। इस से भी बड़ी बात गौर करने की यह है कि, अमेरिका दूसरे देशों की सुरक्षा पर लगातार सवाल उठाता रहता है।
बाइडेन से पहले के विवादित राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई हिंसा और तोड़फोड़ के घटनाक्रम को भी अमेरिका में लचर सुरक्षा व्यवस्था का जीता जागता उदाहरण माना जा सकता है। जब राष्ट्रपति का चुनाव जो बाइडन ने जीता था, तब उनकी चुनावी जीत को प्रमाणित करने की प्रक्रिया के दौरान हुई हिंसा में तो 4 लोगों की मौत भी हो गई थी। उस दौरान पराजित हुए डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने अमेरिका की राजधानी पर धावा बोल दिया था। स्थिति यहां तक बिगड़ी कि सुरक्षा कर्मियों को इमारत के अंदर छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा था। तब सांसदों को डेस्क और कमरों में जगह-जगह शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। महाशक्ति अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जैसे एक शख्स ने देश की महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया को रोक दिया था। वही अमेरिकी अपनी इन खामियों के बावजूद जब दूसरे देशों पर अपनी अकड़ दिखाता है, तो हंसी आती है।
इन सबसे अधिक भयावह चूक तो आज तक रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है। यह तो कल्पना से भी परे है कि, चाकचौबंद सुरक्षा रखने वाले अमेरिका में कोई वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत को विमान से टकराकर जमींदोज कर दे। इस एक घटना से अमेरिका की सुरक्षा व्यवस्था पर भयंकर वाला प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है। तब एक दो नहीं बल्कि आतंकियों की ओर से पूरे 4 हमले किए गए थे। इस हमले से अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया हिल गई थी। 21 वर्ष पहले अमेरिका के इतिहास में हुई यह घटना 9/11 के नाम से याद की जाती है। अमेरिका पर हुआ यह सबसे बड़ा आतंकी हमला था, जिसे अलकायदा ने अंजाम दिया था। अमेरिका की चूलें हिलाने का काम अमेरिका से दूर अफगानिस्तान में बैठे आतंकी ओसामा बिन लादेन ने किया था। हालांकि अमेरिका ने लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारा, लेकिन लादेन ने अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों की पोल खोलकर रख दी थी। यह हमला सिर्फ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ही नहीं किया गया था, बल्कि इस हमले ने अमेरिका की अस्मिता और उसकी साख पर भी हमला किया था। इन हमलों में 2977 लोगों की मौत हुई थी। इनमें 19 हाईजैकर आतंकी भी शामिल थे। वहीं जो लोग मारे गए, उनमें चार विमानों में सवार 246 यात्री, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और उसके आसपास के इलाके में 2606 और पेंटागन में मौजूद 125 लोग शामिल थे। मारे गए लोगों में ज्यादातर आम नागरिक थे। वहीं राहत और बचाव कार्य के दौरान भी 344 बचावकर्मी, 71 पुलिसकर्मी और 55 सैन्यकर्मी भी मारे गए थे। अगर समीक्षा की जाए तो इन सारी मौतों की जिम्मेदार अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियां थीं। अपने पिट्ठू दूसरे देशों को हथियार, सैन्य सहायता इत्यादि देकर उनकी सुरक्षा का दावा करने वाले अमेरिका की जड़ें आतंकी हमले से हिल गई थीं। यह सीधे-सीधे सुरक्षा चूक का मामला था।
हालांकि इस आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद विरोध के नाम पर अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ दिया था। वहां एक अमेरिकी समर्थक शासन खड़ा कर दिया गया था। लेकिन अमेरिका वहां बीस साल तक कोई अजूबा नहीं कर सका। अपनी खीज मिटाने के नाम पर अफगानिस्तान को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया गया। खुद अपने ही नागरिकों का विरोध झेलना पड़ा। यहां तक कि बाद में अमेरिका को इस अजेय भूमि से हटने के लिए भी मजबूर होना पड़ा। महाशक्ति अमेरिका आतंकवाद विरोधी और अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक परिवर्तन का कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सका। दुनिया में अभी भी हर दिन आतंकवादी हमले हो रहे हैं और अफगानिस्तान भी अपने मूल राज्य में वापस आ गया है। वहां तालिबान का शासन है। यह सब अमेरिका की एक सुरक्षा चूक के परिणामस्वरूप हुआ। अमेरिका को आर्थिक नुकसान हुआ वह अलग।
अमेरिका में नस्लीय भेदभाव को लेकर भी व्यक्तिगत हमले होते रहते हैं। इन घटनाओं को लेकर अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा धूमिल होती रही है। नस्ली भेदभाव और जुल्म के विरोध में वहां कई हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। खुफिया एजेंसियां क्या उस से वाकिफ नहीं रहती होंगी? फिर भी घटनाओं में कोई कमी नहीं आती। टैक्सी में, दुकानों पर, मॉल में और रिहाइशी इलाकों में लूटपाट और हत्याएं वहां भी होती हैं। अपराधियों से वहां की भी जेलें भरी पड़ी हैं। जब अमेरिका के अपने लोगों को भी सुरक्षा की चूक जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो वह अन्य देशों में होने वाले भेदभाव, वहां की सुरक्षा व्यवस्था या वहां की कार्यप्रणाली पर पर सवाल कैसे उठा सकता है? ऐसे में पलटकर यह सवाल उठाया जाए कि, अमेरिका अपनी सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त क्यों नहीं करता, तो क्या यह अनुचित सवाल होगा?
सय्यद सलमान