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चुनौती चीन के हाइब्रिड वार की

चुनौती चीन के हाइब्रिड वार की

by ब्रिगेडियर (नि) हेमंत महाजन
in देश-विदेश, विशेष, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
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चीनी मशीनरी पूरी ताकत लगाकर भारत में अराजकता फैला रही है। अपने कुत्सित उद्देश्य की पूर्ति के लिए वहां की वामपंथी सरकार हर गलत हथकंडे को प्रोत्साहित कर रही है। भारत सभी मोर्चों पर उसका बखूबी मुकाबला कर रहा है, परंतु अब समय आ गया है कि चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए ताकि उसकी कमर तोड़कर दक्षिण एशिया में शांति स्थापित किया जा सके।

दिसंबर 2021 को 1971 के युद्ध को 50 वर्ष पूरे  हो गए। यह स्वतंत्र भारत को मिली सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण विजय थी। इसके कारण पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए। उसके बाद पाकिस्तान कभी भी भारत से बराबरी नहीं कर सका। परंतु 1971 का युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने नए प्रकार का युद्ध प्रारम्भ किया। इसका नाम था  ऑपरेशन काराकोरम। इसके 3 बड़े भाग थे।

ज्ञ-1 यानी खालिस्तानी आतंकवाद, ज्ञ-2 यानी कश्मीर में आतंकवाद और ज्ञ-3 यानी भारत के अन्य भागों में आतंकवाद।

इसका इतिहास हम सब अच्छी तरह जानते हैं। खालिस्तानी आतंकवाद की कमर सन 90 के दशक में तोड़ दी गई। कश्मीर का आतंकवाद अब कश्मीर घाटी तक सीमित है। भारत के अन्य भागों में भी गत कुछ वर्षों से आतंकवादी हमले नहीं हुए हैं।

एक नए प्रकार का युद्ध शुरू

परंतु, अब 2014 से एक नए प्रकार का युद्ध चीन ने शुरू किया है। इसे कुछ विशेषज्ञ हाइब्रिड वार, कुछ ग्रे जोन वारफेर और अन्य कुछ अनरिस्ट्रिक्टेड वार या र्ाीश्रींळ-वेारळप वारफेर कहते हैं। यह चीन की ओर से भारत को सबसे बड़ी चुनौती है।

विभिन्न युद्ध पद्धतियों का एक साथ ही उपयोग

चीन इस युद्ध में निश्चित क्या कर रहा है, वर्तमान परिस्थिति क्या है और हम उसे कैसा प्रत्युत्तर दे रहे हैं इस पर हम ध्यान केंद्रित करें। हाइब्रिड वारफेर एक ऐसी युद्ध पद्धति है जिसमें विविध युद्ध पद्धतियों का एक ही समय पर उपयोग किया जाता है। इसमें पारम्परिक युद्ध, आतंकवाद, साइबर वार, फेक न्यूज, गलत प्रचार, दुष्प्रचार युद्ध, डिप्लोमैटिक वार जैसे अनेक प्रकार शामिल हैं। सीमित स्थान के कारण हम कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।

हाइब्रिड वार पद्धति

सबसे महत्वपूर्ण यानी हाइब्रिड वार विविध प्रकार से लड़ा जाता है। आगामी समय में उसमें और भी बदलाव हो सकते हैं। इसलिए यह युद्ध निश्चित रूप से किस प्रकार लड़ा जाता है इसका विश्लेषण होना चाहिए। उसका उत्तर देने के लिए हम तैयार होने चाहिए। दूसरे, यह युद्ध 24 घंटे*365 दिन चलता रहता है। इसके कारण इसकी व्याप्ति विशाल है। यह युद्ध केवल सीमा पर ही नहीं भारत के आंतरिक भागों में भी अलग-अलग मोर्चों पर एक साथ लड़ा जा रहा है। इसके कारण भारत का प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक संस्था, अलग-अलग राज्य सरकारें, केंद्र सरकार, सुरक्षा एजेंसियां इसमें शामिल है। इनमें से कुछ हाइब्रिड पद्धतियों पर हम अपना ध्यान केंद्रित करें।

सीमा के अंदर चीन की घुसपैठ कैसे रोकें

वर्तमान में भारत चीन सीमा पर तनाव की स्थिति है। गलवान के बाद कोई युद्ध नहीं हुआ। चीन ने गलवान में घुसपैठ की और भारतीय सेना ने उसे रोक दिया। परंतु, यहां शस्त्रों का उपयोग नहीं किया जाता। चीनी सेना अंदर घुसती है और हम उसे रोकते हैं। इतनी लम्बी सीमा की रक्षा कैसे करें?

जिस भाग में पहले सेना तैनात नहीं थी वहां यदि चीन घुसपैठ करता है तो हम क्या करें? इसलिए इस चुनौती का सामना करने के लिए हमने अपनी निगरानी पद्धति को और अधिक उन्नत किया है। सैटेलाइट और ड्रोन की सहायता से और इसके अतिरिक्त अन्य तकनीकी ज्ञान की मदद से निगरानी की जाती है। भारतीय सेना ने इनोवेशन ब्रिगेड तैयार की है। इसके कारण सब प्रकार की जानकारी एकत्रित कर, चीन सीमा पर क्या कर रहा है इसकी अचूक जानकारी प्राप्त की जाती है और इस पर अचूक ध्यान रखा जाता है। यदि कोई आक्रामक कार्यवाही दिखी तो तुरंत उसका प्रत्युत्तर दिया जाता है। सीमावर्ती भाग में सेना की हलचल तेज गति से बढ़ाने के लिए रास्तों के निर्माण पर अतिरिक्त जोर दिया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त भारत ने अपना ध्यान भारत-पाकिस्तान सीमा से हटाकर भारत-चीन सीमा पर केंद्रित किया है। उदाहरण के लिए भारत चीन सीमा पर हमारी कोई आक्रामक कोर नहीं थी। परंतु, अब अरुणाचल प्रदेश में 17 स्ट्राइक कोर तथा लद्दाख में एक स्ट्राइक कोर तैनात की गई है। इसके कारण आवश्यक होने पर चीन के हमले का हम जवाब दे सकें। संक्षेप में चीनी सीमा की रक्षा हम अलग पद्धति से कर वहां चीन को रोक रहे हैं।

चीन की व्यापार और अर्थव्यवस्था में घुसपैठ

चीन के व्यापार युद्ध और अर्थव्यवस्था में की गई घुसपैठ पर बहुत कुछ और बहुत बार लिखा जा चुका है। हम अपनी अर्थव्यवस्था को चीन से अलग रखना चाहते हैं। परंतु कई बार प्रयत्न किए जाने पर भी चीन पर हमारी निर्भरता कम नहीं हो रही है। चीन पर हमारी निर्भरता कम होना आवश्यक है। यह नहीं हुआ तो अत्यंत तकलीफ झेलनी पड़ सकती हैं। परंतु यह हाइब्रिड वार का एक अलग ही पहलू बन सकता है।

डिप्लोमेटिक वार फेर

इस मोर्चे पर चीन भारत को अलग मंच पर तकलीफ देने का प्रयत्न कर रहा है। यहां पर भी हमें इनको उत्तर देने में कुछ सफलता मिली है। उदाहरण के लिए चीन द्वारा बनाए गए शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का नेतृत्व हमारे पास है। यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली का नेतृत्व एक माह हमारे पास था। इसके अतिरिक्त आगामी वर्ष में जी 20 का नेतृत्व हमारे पास आ रहा है। इन सब अलग-अलग समझौते वाले देशों को साथ लेकर हम चीन के विरुद्ध आक्रामक कूटनीतिक कार्यवाही कर सकते हैं। उदाहरणार्थ चीन में उईगर मुस्लिमों पर होने वाले अत्याचारों पर ह्यूमन राइट्स का मुद्दा हमने संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया। पाकिस्तान के आतंकवादियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को बढ़ावा न दिया जा सके इसके विरुद्ध चीन द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों का विश्व के सामने खुलासा किया। इसके कारण चीन की भूमिका इस विषय में नरम पड़ी। इसके अतिरिक्त यूनाइटेड नेशंस की अलग-अलग संस्थाओं में प्रवेश कर भी हमने चीन को हमारे विरुद्ध या पाकिस्तान के समर्थन में रोकने का प्रयत्न किया है।

इररेगुलर वार फेर

इसमें पूर्वोत्तर भारत में विद्रोह की स्थिति, माओवाद शामिल है। पूर्वोत्तर भारत का विद्रोह सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था, उसे पुनः नवीन जीवन देने का चीन का प्रयास है। इसलिए हमें समय-समय पर म्यांमार में स्थित आतंकवादियों के अड्डों को नष्ट करना पड़ेगा।

परंतु, इसके अतिरिक्त हम चीन के विरुद्ध और कोई आक्रामक कार्यवाही कर सकते हैं क्या? यदि चीन पूर्वोत्तर भारत में विद्रोहियों को सहायता कर रहा हो तो वैसी ही सहायता हम शिंजियान की जनता को या तिब्बत की जनता को, जो चीन से अलग होना चाहते हैं, कर सकते है क्या? केवल रक्षात्मक कार्यवाही से कुछ नहीं होगा। हमें आक्रामक कार्यवाही भी करनी पड़ेगी।

माओवाद

माओवादी अनेक वर्षों से देश में सक्रिय हैं। इन्हें रोकने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। अर्धसैनिक बल माओवादियों को पकड़ने में असफल साबित हो रहे हैं। इसलिए मध्य भारत में हम माओवादियों के विरुद्ध सेना का इस्तेमाल कर सकते हैं क्या? सरकार को चाहिए कि वे अर्धसैनिक बलों को हिदायत दे कि यदि आगामी 2 वर्षों में आप माओवादियों का खात्मा नहीं कर सकते तो यह क्षेत्र सेना के हवाले कर दिया जाएगा।

मीडिया वारफेर

इसमें प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शामिल है। चीन के अनेक जासूस चीन की ओर से गलत प्रचार कर या दुष्प्रचार भारतीय मीडिया के माध्यम से करते हैं। परंतु वे चीन के मीडिया में इस प्रकार का प्रचार नहीं कर सकते। कारण चीनी मीडिया में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। फिर चीन के विरोध में हम मीडिया वार कैसे लड़ सकते हैं?

मीडिया वार आक्रामक रूप से लड़ा ही जाना चाहिए। सोशल मीडिया, फेसबुक या ट्विटर को चीन में प्रवेश ही नहीं है, परंतु फिर भी इनपर चीन का प्रभाव ज्यादा है। अनेक फेक अकाउंट तैयार कर चीन हमारे विरुद्ध दुष्प्रचार करता रहता है। जो चीनी नागरिक चीन के बाहर हैं, उन पर ’ध्यान’ देकर मीडिया वार शुरू करना चाहिए।

वर्तमान में चीन में बहुत राजनीतिक अस्थिरता है। आंतरिक युद्ध चल रहा है। इसमें कौन जीत रहा है इसकी जानकारी हमें नहीं है। हम इसी समय मीडियावार का उपयोग कर चीन के आंतरिक युद्ध को और अधिक हवा दे सकते हैं? इसके अतिरिक्त हमारे देश में जो चीनी जासूस सोशल मीडिया का उपयोग कर अपप्रचार कर रहे हैं तो उन्हें पकड़कर कानूनी कार्यवाही शीघ्रता से करने की आवश्यकता है।

भारत के विरुद्ध राजनीतिक युद्ध

चीन भारत के विरुद्ध राजनीतिक युद्ध भी करता रहता है। यानी उसने भारत के अनेक राजनीतिक दलों तथा अलग-अलग संस्थाओं में घुसपैठ की है। परंतु हम इस प्रकार की घुसपैठ चीन में नहीं कर सकते। चीन के राजनीतिक वार को चुनौती देते समय हमें ऐसे चीनियों का उपयोग करना पड़ेगा जो चीन के विरोध में हैं। खास तौर पर हांगकांग एवं ताइवान के चीनी नागरिक या अन्य अन्य चीनी नागरिक जो चीन के बाहर हैं। तभी हम यह राजनीतिक लड़ाई लड़ सकेंगे और जीत सकेंगे।

भारत के विरुद्ध लीगल वारफेर

इसका मतलब भारतीय कानून का उपयोग कर प्रदूषण या ह्यूमन राइटस जैसे बड़े नामों का उपयोग कर हमारे लोगों के माध्यम से ही हमारी राजनीतिक प्रगति को चीन रोकने का प्रयत्न करता रहता है।

डाटा वारफेर

चीन अपने हार्डवेयर एंड सॉफ्टवेयर की सहायता से, अलग-अलग एप्स की मदद से भारत से जानकारी चुराने का प्रयत्न कर सकता है। हमने चीन के अलग-अलग एप्स को प्रतिबंधित किया था परंतु वह अधूरा था। हमें आक्रामक कार्यवाही कर चीन के साइबर डोमेन में घुसपैठ करने का प्रयत्न करना चाहिए। कारण, अभी चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जनता बहुत नाराज है तथा वहां अराजकता का माहौल है। आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ी चुनौती मिली है। जिसके कारण महंगाई काफी उच्च स्तर पर है। आर्थिक प्रगति की गति मंदी हो गई है। चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। नौकरियां कम हो गई हैं। विश्व के अनेक देश चीन के विरोध में हैं। इसके कारण सामान्य जनता भी विरोध में है। हम सोशल मीडिया के माध्यम से घुसपैठ कर चीन में फैले असंतोष को विश्व के सामने उजागर कर सकते हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि ताइवान के सोशल मीडिया में घुसपैठ कर चीन भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहा है। चीन यदि बाहरी लोगों को खरीद सकता है तो क्या हम चीन के अंदर अपने जासूस तैयार नहीं कर सकते, जो हमारी सोशल मीडिया को वारफेर में सहायता कर सकें?

आंदोलकों का आतंकवाद

चीन हमारे देश की विविध कमजोरियों का पता लगा कर, हमारे यहां स्थित असंतुष्ट गुटों को मदद कर आंदोलन का सत्र भारत में प्रारम्भ करता है। ऐसे आंदोलन हांगकांग में हम नहीं शुरू कर सकते क्या? क्योंकि चीन में भी चीनी सरकार के विरुद्ध प्रचंड जनरोष है।

भारतीय नागरिकों का योगदान अति महत्वपूर्ण

चीन द्वारा चलाए गए हाइब्रिड वार को हम आवश्यकता के अनुसार आवश्यक प्रत्युत्तर दे रहे हैं। परंतु नई-नई पद्धतियों के माध्यम से, और ज्यादा गति से प्रत्युत्तर देने की आवश्यकता है। जब तक चीन के विरुद्ध हम आगे आकर कदम नहीं उठाते, तब तक ऐसे ही चलता रहेगा। इसलिए प्रत्येक भारतीय का महत्वपूर्ण योगदान इसमें आवश्यक है।

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