सौभाग्यशाली बनिएचर्म दान करके

दिनों समाचार पत्रों में छपे समाचार के अनुसार इंदौर शहर देहदान एवं अंगदान में अग्रणी है, पढ़कर प्रसन्नता हुई। यह समाचार दर्शाता है कि समाज में धीरे-धीरे अंगदान के संबंध में जागरुकता बढ़ रही है। अंगदान के संबंध में धर्म-जाति या अन्य बंधन आड़े नहीं आए, शोकाकुल अवस्था में भी लोगों ने किस प्रकार से मानवता को प्राथमिकता दी इसके समाचार भी पढ़ने में आते हैं। कई गायक आदि कलाकार भी इस संबंध में चैरटी शो करते नजर आ जाते हैं।

अंगदान से संबंधित समाचारों में देहदान, नेत्रदान, किडनी दान या लीवर का एक हिस्सा देने के समाचार भी पढ़ने में आ जाते हैं। परंतु, मरणोपरांत ‘स्किन डोनेट’ (चर्म या चमडी दान) के समाचार सहसा पढ़ने में आते ही नहीं हैं या यूं भी कह सकते हैं कि लोग चमड़ी दान ना के बराबर ही करते हैं। इंदौर के चौइथराम हॉस्पिटल में ‘बर्न यूनिट’ स्थापित है। जहां चमड़ी दान करनेवाले अपना नाम पंजीकृत करवा सकते हैं। चमड़ी दान के संबंध में चर्चा करने पर यह ध्यान में आया कि इस संबंध में अधिकांशतया समाज भी जागृत नहीं है। इसके पीछे है जानकारी का अभाव और कई तरह की भ्रांत धारणाएं।

जब स्किन डोनेट की जाती है तो चमड़ी अधिकांशत: पीठवाले हिस्से से ही निकाली जाती है। चमड़ी निकालने के पश्चात किसी तरह के घाव या रक्त का बहना आदि नहीं होता या शरीर लहूलुहान भी नजर नहीं आता जैसी कि लोगों की भ्रांत धारणा है। इस संबंध में जहां कहीं किसी भी हॉस्पिटल में ‘बर्न यूनिट’ हो वहां संपर्क कर इस संबंध में पूर्ण जानकारी हासिल की जा सकती है।

इस चीज को समझने की आवश्यकता है कि चर्म दान की बहुत कमी है जबकि जलनेवालों की संख्या अधिक। जलने के दर्द को वही समझ सकता है जिसके शरीर का कोई अंग गंभीर रूप से जला हो। अग्नि दुर्घटना का शिकार सबसे अधिक लडकियां-महिलाएं ही होती हैं, फिर वह चाहे रसोईघर में भोजन बनाते समय हो, दहेज के कारण हो या किसी सिरफिरे ने फैंके तेजाब से हो। कई बार तो अपराधी भी महिलाओं पर अत्याचार करने में असफल होने पर क्रोध एवं ईर्ष्यावश उन्हें जलाने का प्रयास करता है, ऐसे समाचार भी समय-समय पर छपते ही रहते हैं। जलन एवं घावों की मरणांतक यंत्रणाएं भोगने के लिए सबसे अधिक अभिशप्त वे ही होती हैं। साथ ही विद्रुपता का दंश अलग से झेलना पडता है। यदि चमड़ी दान करनेवाले पर्याप्त हों तो इन विकट परिस्थितियों से बचा जा सकता है।

परंतु, आज तक मेरी जानकारी में तो भी मैंने किसी महिला संगठन को इस संबंध में आगे आकर महिलाओं की इस पीड़ा को समझ चर्मदान की अपील करते न देखा, न ही यह देखने या सुनने, पढ़ने में आया कि किसी महिला हितैषी संगठन ने किसी पीड़िता के घर जाकर ‘स्किन डोनेट’ करने की पेशकश की हो। इस छोटे से आलेख के लेखन के पीछे उद्देश्य केवल यह ही है कि जलने की पीड़ा को समझ लोग चर्मदान के लिए भी उसी तरह आगे आएं जैसे कि नेत्र-दान के लिए आते हैं। किसी जमाने में नेत्र-दान के संबंध में कई भ्रांतिया व्याप्त थीं जो सतत प्रचार-प्रसार एवं नेत्र-दान की अपीलों के द्वारा ही दूर हुई और आज सतत कहीं ना कहीं से नेत्र-दान के अनुकरणीय समाचार पढ़ने में आते ही रहते हैं।

 

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