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बादल-राग

बादल-राग

by दामोदर खड़से
in कहानी, जनवरी- २०१५
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सुनिधि ने विकास को ही सीए होने की जानकारी दी थी। बैंक में और किसी से इस बारे में नहीं बताया था। उसे मालूम था, इस समाचार से बैंक के सहकर्मी खुश होने की बजाय ईर्ष्या से भर जाएंगे। फिर उसके वैवाहिक जीवन की असफलता को इससे जोड़कर देखेंगे। सुनिधि को छोटे से जीवन में यह तो अनुभव हो गया था कि लोग हार पर सांत्वना जताने घर तक आ जाते हैं, भले ही उसमें भीतर से हमदर्दी न हो। परंतु जीत के समय अधिकांश लोगों में ईर्ष्या ही होती है। ऐसी बड़ी उपलब्धियों पर लोग दूसरों की सफलता को सहजता से ग्रहण नहीं कर पाते। जहां तक संभव हो दूसरे दोष निकाल कर इस सफलता को छोटा जता कर बड़ा दिखने की कोशिश करते हैं। सुनिधि को लंबी यात्रा करनी थी। उसने किसी से इस उपलब्धि का जिक्र नहीं किया।

एक दिन ब्रांच मैनेजर ने सुनिधि को चार बजे अपने केबिन में बुलाया। ब्रांच मैनेजर सुजयकुमार एक भला इंसान है। वह सफल मैनेजर है और लोकप्रिय भी है। सुनिधि को इंटरकॉम पर मिलने का संदेश दिया। आमतौर वह किसी को केबिन में नहीं बुलाता। सारा काम इंटरकॉम पर ही बात करके करता है। कभी-कभी स्वयं ही बाहर निकलकर स्टाफ से कामकाज के बारे में बात करता है। ज़रूरत पड़ने पर स्टाफ मीटिंग लेता है। आज उसने सुनिधि को फोन करके केबिन में बुलाया है। सुनिधि सोचने लगी, क्या बात होगी?

केबिन पूरी कांच की। आवाज बाहर नहीं जाती, पर पूरे ब्रांच की आंखें भीतर जा सकती हैं। ग्राहकों के लेन-देन का समय समाप्त हो चुका है। सभी स्टाफ अपना- अपना दिन का नियमित काम निपटाने में लगा है। लंच हो चुका है। चाय आती-जाती रहती है। कंप्यूटर पर लोग लगे हैं। कुछ आपस में बात भी कर लेते हैं। सुनिधि के भीतर पहुंचते ही कई लोगों का ध्यान उधर गया।

‘बधाई हो’, सुजयकुमार ने कहा।

‘सर, किस बात की?’ सुनिधि ने आश्चर्य से पूछा।

‘आप नहीं बताएंगी, तो क्या हमें मालूम नहीं होगा?’ सुजयकुमार पत्रिका का पन्ना पलटते हुए बोला।

सुजयकुमार ने फिर बधाई दी और बैंक का हाउस जर्नल ‘भारत ज्योति’ आगे कर दिया। बैठने का इशारा किया और विशिष्ट पन्ना खोलकर सामने रख दिया।

‘हेड ऑफिस से यह जर्नल अभी-अभी आया है। मैं यू ही पन्ने पलट रहा था तो हमारी शाखा का नाम ऊपर दिखा। सर्र से मैं पूरी खबर पढ़ गया। सीए पास करने पर मेरी बधाइयां।‘ सुजयकुमार ने मन से बधाइयां दीं।

सुनिधि ने पत्रिका देखी। सीए होने की उपलब्धि का समाचार पढ़ा और सोचती रह गई कि किसने इस पत्रिका में भेजा होगा या बताया होगा? विकास। हां, केवल विकास। समाचार पढ़ लेने के बाद सुजयकुमार की ओर देखकर ‘धन्यवाद’ कहा।

‘इस तरह नहीं….पार्टी देनी होगी…।’ सुजयकुमार ने बहुत भले मन से कहा।

‘ज़रूर सर…।’ सुनिधि ने महसूस किया कि सुजयकुमार में विकास का व्यक्तित्व है।

‘बहुत बड़ी सफलता है यह सुनिधि… तुम्हारी निजी तरक्की तो इससे होगी ही, बैंक को भी बहुत फायदा होगा… कीप इट अप!’

सुनिधि ने आंखे झुकाकर प्रशंसा के शब्दों को आत्मसात् किया। इस बीच सुजयकुमार ने सभी स्टाफ सदस्यों को केबिन में बुला लिया और सबकी ओर से दीपक चोपड़ा की पुस्तक ‘सफलता के सात नियम’ पुस्तक दी। आमतौर पर सुजयकुमार अपने पास कुछ ऐसी पुस्तकें या पेन उपहार के रूप में रखता है।

सबकी बधाइयां लेते-लेते शाम हो गई। आज सुनिधि ब्रांच से जल्दी निकल आई।

लगभग साढ़े सात बजे सुनिधि ने विकास को फोन किया,

‘भारत ज्योति’ में मेरे सीए होने की खबर आपने भेजी थी?’ सुनिधि केवल आश्वस्त होना चाहती थी।

‘अरे लोगों को भी मालूम होना चाहिए, तुम क्या हो… जंगल में मोर नाचा किसने देखा।’ विकास ने सीधे-सीधे हमारी नहीं भरी। लेकिन सुनिधि के लिए सब कुछ स्पष्ट था।

‘पर मुझे थोड़ा संकेत तो दे देते…।’ सुनिधि बिना किसी आशय के बोल पड़ी। सुनिधि ने महसूस किया कि विकास के फोन से आसपास कई लोगों की आवाजें आ रही हैं।

‘कहीं बिजी हैं…?’

‘हां, ब्रांच मैनेजर्स की मीटिंग चल रही है।’ विकास निरपेक्ष होता बोला।

‘ओ के बाद में फोन करुंगी… बाय… टेक केयर…।’ सुनिधि ने फोन रख दिया।

दूसरे दिन चारों ओर खबर फैल गई कि सुनिधि सीए हो गई। सुबह-सुबह सुनिधि ने सबके लिए कॉफी और समोसे मंगवाए। सबकी बधाइयां फिर मिलीं। पर अब सुनिधि की ओर देखने का नज़रिया बिलकुल बदल गया। बैंक में सीए का काम करना विशेष समझा जाने लगा। लंच में पुराने साथी भी पहले की तरह खुलकर सहज व्यवहार न करते। कहीं आदर जगा, कहीं ईर्ष्या पनपी तो कहीं अफवाहों के लिए खुदाई होने लगी। सुनिधि ने यह सब सोचा तो था, पर प्रत्यक्ष में बहुत तकलीफदेह था। कभी-कभी जीवन में उपलब्धि बोझ की तरह सवार हो जाती है। पर यह तो यात्रा का हिस्सा था। सुनिधि को अब ऐसी यात्राएं विचलित नहीं करतीं। वह बहुत जल्दी शब्दों के नीचे दबे अर्थों को और आंखों के पीछे छिपे बयान को खूब समझने लगी है।

सुनिधि ने कई बार अनुभव किया कि उसकी दैहिक सुघड़ता और बैद्धिक ऊंचाई के बीच फैसला करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है कि यात्रा में किसकी भूमिका अधिक है। जब वह अपनी दक्षता और कुशाग्रता को अधिक श्रेष्ठ महसूस करती है तो उसे स्वयं ही पता चल जाता है कि यात्रा की सफलता का श्रेय उसकी सुघड़ता को अधिक मिल जाता है। वैसे व्यक्तित्व के उभार में दोनों को समान महत्व मिलना चाहिए। पर पुरुष-प्रधान समाज में स्त्री का सुंदर होना कई आयामों को जन्म देता है। अब सुनिधि ऐसी स्थितियों को बहुत निपुणता से निपटना जान गई है। कार्पेरिट स्तर के अधेड़ पुरुषों की लोलुपता और पदों की हैसियत जताने की चालाकी को सुनिधि अच्छी तरह पहचानने लगी है। साथ ही वह यह भी जान गई है कि ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों के भीतर जो बिजूका है, उसे कैसे निरुत्तर किया जा सकता है। उसकी कुशाग्रता, ज्ञान और सूझ-बूझ ने उसका आत्मविश्वास मजबूत कर दिया है। बस, कभी-कभी उसे अपने आपसे ही डर लगता है कि कहीं वह फिसलन भरी काई को समझने में धोखा न खा जाए… अन्यथा कितना भी तेज बहाव क्यों न हो उसके कदम बहुत संभलकर आगे बढ़ते हैं। वह राम और रावण के अनुनय को खूब समझती है।

प्रशंसा और बधाइयों के कई फोन और पत्र आए। वह इन सारी बातों से विकास को अवगत कराती रहती। विकास के स्थान पर आए दूसरे रिजनल मैनेजर ने भी पत्र लिखा- बधाई का। यह एक सामान्य-सी प्रथा है, पर उन्होंने फोन भी किया और कभी मिलने का निमंत्रण भी। हेड ऑफिस से जनरल मैनेजर एच. आर. का भी पत्र प्राप्त हुआ। इन सबके पत्रों के बारे में वह विकास को बताती। विकास कहता, ‘यह सब जर्नल में आए समाचार का कमाल है। अब प्रमोशन का समय आने वाला है। यह समाचार उसमें तुम्हारी मदद करेगा…।’

सुनिधि यह मानती कि वह आज जो कुछ भी है, उसमें विकास का अमूल्य योगदान है। उसके आत्म-विश्वास में, उसकी उपलब्धियों में और सबसे बड़ी बात उसकी निजी उलझनों को लांघने में विकास एक पुल के रूप में उभरा। वरना वह तो नदी का बहाव न सह पाती… दलदल न पहचान पाती… पहाड़ों को कैसे लांघती… कैसे वह तलाक के लिए सोचती… विकास उसके लिए एक मित्र, सलाहकार और मार्गदर्शनक रहा सही अर्थों में। विकास ने उसके भीतर विवेक और सूझ-बूझ का संचार किया। वह अब स्वयं निर्णय ले सकती है। इसलिए जब भी कोई ग्रिटिंग कार्ड डालना होता तो वह विकास के लिए संबोधन में लिखती, ‘माइ डियर फ्रेंड, फिलॉसफर एंड गाइड-विकास…’

तीन साल में ही सुनिधि का प्रमोशन मैनेजर के रूप में हो गया। विकास की बधाई पर उसने कहा यह सब आपका है। पर आपका प्रमोशन होता तो मुझे इससे भी ज्यादा खुशी होती।

यह केवल औपचारिकता नहीं थी।

एक दिन सुनिधि का फोन आया कि कोर्टने तलाक का निर्णय दे दिया… सुनिधि की आवाज बहुत निरपेक्ष थी। एक महत्वपूर्ण, नहीं, अत्यंत महत्वपूर्ण घटना सुनिधि के जीवन की थी, पर दोनों ही इस पर कुछ नहीं बोले। सुनिधि ने जानकारी दी और विकास शांत-भाव से सुनता रहा। दोनों नि:शब्द। मौन संवाद। सुनिधि के लिए गूंगी-यात्रा का एक और पड़ाव!

 

Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

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