15 अगस्त 1947 जब अंग्रेजों के आखिरी वायसराय माउंटबेटन ने भारतीय प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के हाथों सत्ता को सौंपने हेतु जिस प्रतीक का उपयोग किया उस प्रतीक का नाम ‘सेंगोल’ था जो चित्र में अंकित है। इतने महत्वपूर्ण प्रतिक को 1947 से 75 वर्ष बाद भारतीय संसद में स्थापित किया जा रहा है।
अंग्रेजों से नेहरू जी के हाथों सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक ‘सेंगोल’ को क्यों इतिहास से मिटाने का प्रयास हुआ?
प्रश्न यह भी है कि हजारों वर्षों की गुलामी के बाद भारतीय के हाथों सत्ता आने जैसे महत्वपूर्ण घटना के प्रतीक चिन्ह “संगोल” के इतिहास को क्यों छिपाया गया? क्यों इस संगोल को देश की राजधानी दिल्ली से हटा कर प्रयागराज के संग्रहालय में रख दिया गया? क्या इसलिए कि भारतीय जान ही नहीं पाएं कि 15 अगस्त 1947 को आजादी नहीं सत्ता के हस्तांतरण की घटना घटी थी?
सेंगोल में अंकित नंदी हिन्दू प्रतीक व भगवान शिव के गण हैं जो भारत की महान आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक है। क्या इस कारण से इसे दिल्ली से दूर इलाहाबाद के संग्रहालय में रख दिया गया।
इतिहास की पुस्तकों से संगोल को जगह न देकर बच्चों को 15 अगस्त 1947 की इस घटना की जानकारी से दूर रखा गया? भारत के इतिहास से न सिर्फ भारत के शूरवीर शासकों को ही इतिहास से मिटाया गया अपितु उनसे संबंधित प्रतीकों को भी छिपाने का प्रयास किया गया? आखिर इतिहास संकलन का कार्य कर रही संस्थाओं व इतिहासकारों द्वारा किस मंशा से भारतीय गौण की सभी वस्तुओं को मिटाने का प्रयास किया गया?
भारत के नवनिर्माण को प्रतिबद्ध भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू द्वारा संगोल जैसे अतिमहत्वपूर्ण प्रतीक को क्यों नकार दिया गया तब जब पंडित नेहरू के हाथों ही संगोल के मूल्यों के संरक्षण की जिम्मेवारी थी क्योंकि माउंटबेटन द्वारा इन्हें ही सत्ता को हस्तांतरित किया गया था।
– अमित श्रीवास्तव
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