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फूल ही फूल..

फूल ही फूल..

by संगीता जोशी
in जनवरी- २०१५, साहित्य
1

उर्दू शायरी हमारे लिए प्रेम का विषय है। लेकिन उर्दू शायरी का परिचय आम आदमी को जिस माध्यम से प्राप्त हुआ, वह माध्यम है पुरानी फिल्मों के हिंदी गाने। हमारी पीढ़ी उन गानों से केवल प्रभावित ही नहीं थी,बल्कि वे गाने हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए थे। प्रत्येक गाने से हमारी जिंदगी की कोई न कोई घटना जुड़ी रहती थी। आज भी किसी गाने को सुनकर उस छोटी सी घटना की याद हमारे मन में ताजा हो जाती है।

कोई भी गाना हमें आकर्षित करता है, तो उसका पहला श्रेय हमें उसके संगीत को देना चाहिए। फिर धीरे-धीरे हमारा ध्यान गाने के शब्दों की ओर जाता है। अगर शब्द दिल को छू लेनेवाले हों, तो हम सोचते हैं कि इसका शायर कौन है? कितने अच्छे शब्द हैं! जब शायर का पता चल जाता है, तब लगता है उसने और कौन से गाने लिखें हैं;क्या उसकी कोई किताब है? कहां मिल सकती है? इस तरह हम मूल स्रोत ढूंढ़ लेते हैं और शायरी से रिश्ता बन जाता है। पुराने गाने सुनकर यही सब हमारे साथ हुआ करता था।

शायरी की तरफ मेरा सफर कुछ ऐसा ही रहा है। साहिर के गानों की किताब ‘गाता जाए बनजारा’ हाथ में आई और साहिर से, उसकी शायरी से लगाव हो गया। यहां बात मेरे सफर की नहीं है; बात यह है कि पुरानी हिंदी फिल्मों के गाने भी शायरी के दर्जेके ही थे; प्रासंगिक गीत नहीं थे। शायरों की किताबों से गीत या गज़लें चुनकर उनको संगीत में ढाला जाता था। आज की तरह नहीं था, कि पहले तर्ज या धुन तैयार करके मोबाइल से शायर को भेज दी और उस पर शब्द लिखवा लिए। इससे स्पष्ट होता है कि संगीतकार शायर का सम्मान करते थे। कहने का मतलब यह नहीं कि आजकल सम्मान नहीं होता; लेकिन आज जमाना बदल गया है। वेस्टर्न, फ्यूजन आदि कितने नए-नए प्रकार आ गए हैं, जिसमें शब्दों की ज्यादा अहमियत ही नहीं होती। रिदम निश्चित करने पर उसमें शब्द ‘फिट’ किए जाते हैं। ऐसा टी.वी. पर लोगों के इंटरव्यू में सुना है।

मुझे लगता है, इन पुराने फिल्मी गानों के जरिए शायरी को अधिक जान लें। एक गाना अभी मुझे याद आ रहा है, जिसके शायर हैं, कमर जलालाबादी। गाने में नायक या प्रेमी अपनी प्रेमिका को कुछ इस तरह से समझा रहा है कि उनका प्रेम सफल नहीं होनेवाला; और उन्हें एक दूसरे को भूल जाना चाहिए।

मैं तो इक ख्वाब हूं, इस ख्वाब से तू प्यार न कर।

प्यार हो जाए तो फिर प्यार का इजहार न कर ॥

लगता है प्रेमिका नायक से मन ही मन प्यार करती है, मगर उसने शब्दों में बताया नहीं है। पर नायक वह जान गया है। अब हालात दोनों को रोक रहे हैं। इसीलिए नायक नायिका को सावधान करना चाहता है, कि…

मैं समझ चुका हूं, तेरे मन की बात। तभी तो आगाह करना चाहता हूं्। तुम मुझ से प्यार करती हो, लेकिन मैं तुम्हारी जिन्दगी में सिर्फ एक सपने की तरह आया हूं्। सुबह होने पर जैसे सपना बिखर जाता है, उसी तरह मैं ओझल हो जाउंगा। तुम्हारे अरमान पूरे नहीं होने पाएंगे। इसलिए तुम मुझसे प्यार मत करो। और अगर यह भावना तुम्हारे मन में जाग गई है, तो कम से कम उसे होठों तक न आने दो। प्रकट न होने दो। क्योंकि मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकूंगा।

ये हवाएं कभी चुपचाप चली जाएंगी।

लौटके फिर कभी गुलशन में नहीं आएंगी।

अपने हाथों में हवाओं को गिरफ्तार न कर॥

बागों में सुगंध तो होगी ही। लेकिन वे कुछ देर बाद चली भी जाएंगी। इन हवाओं को कोई बाहों में बांधकर कैद कर सकता है क्या? तुम्हारे प्यार में मुझे बांध रखने की कोशिश हरगिज मत करो। क्योंकि हमारा मिलन मुमकिन नहीं है।

तेरे दिल में है मोहब्बत के भड़कते शोले।

अपने सीने में छुपा ले ये धड़कते शोले।

इस तरह प्यार को रुसवा सरे बाजार न कर॥

इस मोहब्बत को तुम अपने दिल में ही रखना। इस आग को तुम्हें अपने सीने में ही छुपाकर रखना पड़ेगा। क्योंकि लोग तानें देंगे। जमाना कभी मोहब्बत को समझ नहीं पाया है। दो दिलों को दूर करने में ही उसे मज़ा आता है। इसलिए तुम्हारी मोहब्बत का पता लोगों को नहीं चलना चाहिए। नहीं तो वे तुम्हें बदनाम करेंगे। तुम्हारी मोहब्बत को भी रुसवा करेंगे। और मैं यह सह नहीं पाऊंगा।

शाख से टूट के गुंचे भी कभी खिलते हैं?

रात और दिन भी जमाने में कहीं मिलते हैं?

भूल जा,जाने दे तकदीर से तकरार न कर॥

मोहब्बत को मन से निकाल दिया तो मन मुरझाए हुए फूल की तरह हो जाएगा। शाख से टूटा हुआ फूल दोबारा नहीं खिल सकता। एक बार मोहब्बत हो जाने के बाद फिर कौन प्यार कर सकता है? रात और दिन एक कैसे हो पाएंगे? मिलना हमारे नसीब में नहीं लिखा है। पर अब तुम अपने नसीब को दोषी मत ठहराना। नसीब से इस बारे में कोई शिकायत भी मत करना। जाने दे, भूल जा कि तुमने कभी मुझको चाहा था।

यह गाना कमर जलालाबादी ने फिल्म ‘हिमालय की गोद में’ के लिए लिखा था। कमर उनका तखल्लुस था जिसका अर्थ होता है चांद। १९१९ में जन्में इस शायर का मूल नाम था ओमप्रकाश भंडारी। पंजाब के जलालाबाद में वे पैदा हुए। छोटी उम्र में ही शायरी करने लगे थे। उन्होंने १९४२ में पहला गाना फिल्म ‘जमींदार’ के लिए लिखा था। उनके लिखे बहुत से गाने आज भी लोकप्रिय हैं। रेडियो सिलोन पर हर एक तारीख को किशोर कुमार का गाना बजाया जाता था; खुश है जमाना आज पहली तारीख है। यह गाना उन्हीं का लिखा हुआ है। सिलोन याने आज का रेडियो श्रीलंका। विविध भारती यह गाना एक तारीख को जरूर बजाती है।

कमर जलालाबादी की एक और गज़ल मुझे इस वक्त याद आ रही है, जो पाकिस्तानी गायक गुलाम अली ने गायी है।

कभी कहा न किसी से तेरे फसाने को

न जाने कैसे खबर हो गयी जमाने को..

सुना है गैर की महफिल में तुम न जाओगे

कहो तो आज सजा लूं गरीबखाने को..

शायर कहता है, मैंने तो तुम्हारे बारे में किसी से कुछ नहीं कहा था। फिर भी हमारा प्यार जाहिर हो ही गया। तुम गैरों की महफिल में जाओगी नहीं; तो मैं अपने घर को सजा के रखता हूं्। अगर तुम आ गई तो समझ जाउंगा कि तुम अब भी मुझे अपना मानती हो।

दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले

कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को..

खूबसूरत शेर में गहरा अर्थ छिपा है। एक पंछी है जो बहार याने बसंत ऋतु के लिए प्रार्थना करता है। ईश्वर दुआ कुबूल भी कर लेता है। फिर तो पंछी को खुश होना चाहिए न; क्योंकि बहार आ गई;उसके बाग में फूल ही फूल खिल गए। लेकिन पंछी सोचता है, कि मेरे मांगने से बहार तो आ गई। मगर अब टहनी में इतने सारे फूल लग गए कि मेरा घोंसला बनाने के लिए जगह नहीं बची। अब मैं क्या करूं?

पंछी पहले बहार को तरस रहा था। वह मिलने पर उसे दुख हो रहा है कि अब आशियाना कहां बनाऊं? मनुष्य का स्वभाव भी ऐसा ही होता है। असल में आनंद की खोज करना ही मनुष्य का उद्देश्य है। लेकिन वह हमेशा दुख को ही खोज लेता है। जीवन में क्या ‘मिला है’, यह सोचकर खुश रहने के बजाय क्या ‘नहीं मिला’ इसी बात को ज्यादा तवज्जो देता है। आधा गिलास खाली है, यही चिंता उसे हमेशा सताती रहती है। आधा गिलास भरा है इसकी खुशी वह नहीं मानता। है न सच ? शायर ने दो मिसरों में कितना कुछ कह डाला है! यही होती है गज़ल की खासियत!

अंतिम शेर ऐसा है-

दबा के कब्र में सब चल दिए, दुआ न सलाम

जरा सी देर में क्या हो गया जमाने को..

किसी के मर जाने पर लोग उसके घर आते हैं। कल्पना की है कि मरनेवाला उन्हें शायद देख पाता है। और सोचता है, ‘अरे, लोग मिलने तो आए; पर आने के बाद कुछ हाय हैलो नमस्ते भी नहीं किया! मुझे कब्र में दबाकर चल भी दिए? मेरी आखरी सांस रुकने से पहले तो इनका बर्ताव ऐसा नहीं था।’

मृत्यु के आने की अनिश्चितता, जन्म-मृत्यु के बीच एक सांस का फासला तथा उस एक क्षण के बाद बदलने वाली दुनिया का जिक्र बड़ी खूबी से शायर ने इस शेर में किया है।

कमर जलालाबादी की मृत्यु ९ जनवरी २००३ में हुई। उनकी शायरी से प्रेम करनेवाले हम जैसे लोग सलाम भी करेंगे और कहेंगे, (उनकी लिखी पंक्ति में)

वो पास रहे या दूर रहे, नजरों में समाए रहते हैं..

………प्यार इसी को कहते हैं।

मो.: ०९६६५०९५६५३

संगीता जोशी

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Comments 1

  1. Kishor Kachhawa says:
    4 years ago

    कभी कहा न किसी से तेरे फसाने को ये ग़ज़ल उस्ताद क़मर जलालवी की है नाकि क़मर जलालाबादी की। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं दोनों कमर साहब आला दर्जे के शायर रहे हैं।

    Reply

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